बारहवीं कक्षा के बाद
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पहले खुद को परखें, फिर पहुंचें किसी नतीजे पर
बारहवीं के परीक्षा परिणाम आ चुके हैं। जिन छात्रों ने बारहवीं पास कर ली है उनके सामने अनेक प्रकार के प्रश्न खड़े हैं। ऐसे छात्रों को कहना चाहूंगा कि स्नातक न सिर्फ विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए आवश्यक शर्त होती है, बल्कि इसे सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद वे अपने भविष्य के लिए एक बेहतर रास्ता भी तैयार कर सकते हैं।
बीते कुछ वर्षों से परंपरागत अथवा गैर परंपरागत पाठ्यक्रमों के भविष्य को लेकर भी काफी प्रयोग देखने को मिले हैं। इसका सबसे अधिक फायदा भी छात्रों को ही मिला है क्योंकि उनके सामने विकल्प बढ़ गए हैं और वे इनके प्रति पहले से कहीं ज्यादा आकर्षित हुए हैं।
एक जमाना था जब परंपरागत पाठ्यक्रम का जलवा कायम था। नामी-गिरामी संस्थानों में चंद सीटों के लिए छात्रों की भारी भीड़ उमड़ती थी। जिनको दाखिला मिल जाता था वे अपने आप को खुशनसीब समझते थे। जबकि प्रवेश न पाने वाले छात्रों के सामने सीमित अवसर होते थे। समय के साथ इन परंपरागत पाठ्यक्रमों की संरचना में भी बदलाव आया तथा ये विषय की सम्पूर्ण जानकारी देने के अलावा छात्रों को तकनीकी जानकारी मुहैया कराने लगे। इससे इनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई। आज भी इन विषयों की धूम है तथा स्नातक के विभिन्न वर्गों में प्रवेश पाने के लिए मारकाट मची रहती है। इन्हें तीन श्रेणियों में बांटकर देखा जा सकता है।
कला वर्ग
कला वर्ग की अपनी एक अलग ही विरासत है। तमाम तकनीकी विषयों एवं आविष्कारों के बावजूद इसके प्रति लोगों की दीवानगी कम नहीं हुई है। कला क्षेत्र के अंतर्गत कई विषयों का समावेश है। यह छात्र पर निर्भर करता है कि वे अपनी रुचि के अनुसार कौन सा विषय चयन करते हैं। इतिहास, भूगोल, समाज शास्त्र, दर्शन शास्त्र के अलावा मनोविज्ञान तथा राजनीति शास्त्र में छात्रों की भीड़ साल दर साल बढ़ती जा रही है। इसे करने वालों लोगों को विषय की आधारभूत जानकारी प्राप्त होती है और शिक्षण आदि के लिए वे उपयुक्त होते हैं।
विज्ञान वर्ग
बारहवीं में गणित वर्ग का छात्र इंजीनियर बनने का सोचता है। पीसीएम के साथ-साथ व थोड़ा सा रचनात्मक है तो उसकी पसंद आर्किटेक्चर, फैशन टेक्नोलॉजी है। साहसिक कार्यों में रुचि रखने वाले छात्रों के लिए मर्चेंट नेवी, हवा से बात करने के शौकीन हैं तो पायलट और यदि सेवा भाव एवं जज्बा है तो सेना में किस्मत आजमा सकते हैं। गणित की अच्छी जानकारी है तो बीएससी पहली पसंद साबित हो सकती है। इसी तरह से जीव विज्ञान के छात्र एमबीबीएस, बीडीएस, आयुर्वेद, होमियोपैथी, वेटेरिनरी साइंस, फार्मेसी आदि में जा सकते हैं।
वाणिज्य वर्ग
वाणिज्य वर्ग के ज्यादातर छात्र बीकॉम (ऑनर्स), इको (ऑनर्स), सीए, आईसीडब्ल्यूए, सीएस सहित सांख्यिकी की पढ़ाई कर सकते हैं।
व्यावसायिक पाठ्यक्रम
आज रोजगारपरकता का जमाना है। इस देश की शिक्षा प्रणाली अभी भी ऐसी है जहां लोग पढ़-लिखकर नौकरी पाने को पहली प्राथमिकता समझते हैं। कई बार जल्दी नौकरी पाने की छात्र की खुद की चाहत होती है, तो कई बार इसके लिए उनके ऊपर पारिवारिक दबाव भी होता है। इसे लेकर उनके अंदर असमंजस की स्थिति आ जाती है। उनके मनोभावों को समझते हुए ही देश में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का उदय हुआ है। वैसे तो इन पाठ्यक्रमों की सूची बहुत बड़ी है लेकिन यदि छात्र थोड़ी सी अपनी जानकारी बढ़ाएं तो इंटरनेट व करियर काउंसलर के जरिए उन्हें कई तरह के विकल्पों का पता चल सकता है। जिन्हें वे अपने लिए चुन सकते हैं। आज हर जगह पेशेवर लोगों को वरीयता दी जाती है। इसे देखते हुए व्यावसायिक पाठ्यक्रम काफी कामगर साबित हो रहे हैं। इस दौर में यह जरूरी हो गया है कि उच्च शिक्षा यानी बीए और एमए आदि के भविष्य का फिर से आत्ममंथन किया जाए और उसे नए परिदृश्य के हिसाब से तैयार किया जाए। वक्त की नब्ज को पहचानकर समय के साथ खुद को ढाला जाए तो करियर में चार चांद लग सकते हैं।
इन पाठ्यक्रमों के जरिए आप जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं-होटल मैनेजमेंट, आर्किटेक्चर, बीसीए, बीबीए, बीजेएमसी, इंटीग्रेटेड एमबीए, इंटीग्रेटेड लॉ, इंजीनियरिंग एवं मेडिकल के प्रमुख कोर्स, फायर इंजीनियरिंग, फैशन टेक्नोलॉजी, मर्चेंट नेवी, मल्टीमीडिया कोर्स, डिजाइनिंग कोर्स
कम समय में बेहतर ज्ञान
व्यावसायिक पाठ्यक्रम ज्यादातर विश्वविद्यालय अथवा महाविद्यालय द्वारा संचालित किए जा रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय इन पाठ्यक्रमों के लिए एक जाना-पहचाना नाम है। यहां हर साल व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए छात्रों की भीड़ लगती है। इन पाठ्यक्रमों की खासियत यही है कि ये अल्प अवधि के होते हैं तथा इनका शुल्क भी बहुत कम होता है। इसलिए छात्र आसानी से इसे कर सकता है। बड़े शहरों में तो लोग पदोन्नति अथवा अतिरिक्त उपाधि के लिए निम्न व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को प्राथमिकता दे रहे हैं-
ऑफिस मैनेजमेंट, मटेरियल मैनेजमेंट, एडवर्टाइजिंग/पब्लिक रिलेशन्स, फिजिकल एजुकेशन, फायर फाइटिंग, एचआर मैनेजमेंट, फूड प्रोसेसिंग, टूरिज्म एवं ट्रवेल मैनेजमेंट, बिजनेस डाटा प्रोसेसिंग, ट्रांसलेशन, लांग्वेज कोर्स
यह भी विकल्प है
बच्चा जब धीरे-धीरे अपने स्कूली स्तर से ऊपर उठता है तो वह अपने घर में डॉक्टर अथवा इंजीनियर बनने की बात करता है। डॉक्टर अथवा इंजीनियर बनने की नींव भी बारहवीं के बाद ही रखी जाती है। दोनों ही पेशे के लिए कई ऐसी प्रतियोगी परीक्षाएं हैं जिन्हें पास करके अपने सपने को पंख लगाया जा सकता है। मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद जहां एमबीबीएस व बीडीएस में दाखिला मिलता है। वहीं इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में सफल होने के बाद बीटेक व बीई में प्रवेश पा सकते हैं। जबकि कैट, मैट, एनमैट, जैट, स्नैप, एटमा, डीयू एफएमएस की तैयारी करके प्रबंधन के क्षेत्र में अभी से विकल्प तलाश सकते हैं। इन प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी छात्र परंपरागत अथवा गैर परंपरागत विषयों की पढ़ाई करते हुए भी कर सकते हैं।
अपनी क्षमता पर रखें भरोसा
अधिकांश छात्र अथवा उनके अभिभावक किसी प्रतिष्ठित संस्थान में प्रवेश पाने के लिए दिन-रात एक किए होते हैं। इसके पीछे उनकी सोच यही होती है कि यदि किसी अच्छे कॉलेज में दाखिला मिल जाएगा तो उनकी किस्मत संवर जाएगी। जबकि वास्तविकता यही है कि छात्र के अंदर यदि काबिलियत है और वह खुद की मेहनत पर यकीन रखता है तो उसे ऊंचाई तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता। उनका दाखिला यदि किसी प्रतिष्ठित कॉलेज में हो जाता है तो यह अच्छी बात है लेकिन किन्हीं कारणों से यदि वे उसमें प्रवेश पाने में असफल रहते हैं तो यह मानकर चलें कि उनका कोई नुकसान नहीं होने वाला है। ऐसे कई लोग मिलेंगे जिन्होंने सामान्य कॉलेज में पढ़ाई करके भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। इसमें सबसे जरूरी है कि छात्र पहले यह देखें कि उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं। जो विषय वह पढ़ना चाहते हैं क्या वह उस कॉलेज में है? छात्र विषय के चयन में कोई समझौता न करें। वही पढ़ें जिसमें उनकी रुचि है।
पहले रुचि विकसित करें
आजकल परंपरागत पाठ्यक्रमों के अलावा कई ऐसे पेशेवर और व्यावसायिक विषय हैं जो छात्रों के सपने में रंग भर सकते हैं। ये सभी विषय बाजार की मांग के मुताबित तैयार किए गए हैं जो रोजगार के लिहाज से तो खास हैं ही, साथ ही छात्रों को समकक्ष उपाधि भी उपलब्ध करवाते हैं। अकेले फायर इंजीनियरिंग व फायर फाइटिंग से जुड़े आधा दर्जन पाठ्यक्रम मौजूद हैं। इनका सबसे बड़ा फायदा यह है कि औसत अंक वाले छात्र भी इसे कर सकते हैं। जब भी छात्रों का झुकाव ऐसे पाठ्यक्रमों की तरफ हो तो वे एक बार खुद को अवश्य ही परख लें कि क्या वे वाकई इन पाठ्यक्रमों के प्रति गंभीर व योग्य हैं। क्योंकि किसी भी पेशे के प्रति बिना रुचि विकसित किए छात्रों को सफलता नहीं मिल सकती। चाहे कोई भी परम्परागत अथवा गैर परम्परागत पाठ्यक्रम हो वह छात्रों से समर्पण व परिश्रम मांगता है। बिना इसके सफलता पाना मुश्किल साबित होता है।
उत्तर प्रदेश सरकार को जोर का झटका
उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार पूरी तरह मुस्लिम तुष्टीकरण में लगी है। कभी यह सरकार मुस्लिम विद्यार्थियों को विशेष वजीफा देती है, विवादास्पद मुस्लिम नेताओं के नाम पर सरकारी योजनाओं का नामकरण करती है, कभी किसी मुस्लिम सन्त या महापुरुष के जन्म दिन पर छुट्टी की घोषणा करती है। तो कभी कुछ और करती है। इसी कड़ी में उसने पिछले दिनों विभिन्न जेलों में बन्द संदिग्ध आतंकवादियों को छोड़ने की घोषणा की थी। इस निमित्त सम्बंधित अधिकारियों को पत्र भी भेजे गए थे। किन्तु सरकार की इस मंशा पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने पानी फेर दिया है। खण्डपीठ ने आतंकवादियों से मुकदमा वापस लेने के सरकारी आदेश पर रोक लगा दी है। खण्डपीठ ने राज्य सरकार से यह भी कहा है कि वह छह हफ्ते के अन्दर जवाब दाखिल करे। कुछ दिन पहले भी न्यायालय ने इस तरह के एक मामले पर कड़ी टिप्पणी की थी।
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