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May 27, 2013, 12:00 am IST
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छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री रमन सिंह की विकास यात्रा

दिंनाक: 27 May 2013 15:53:01

नए सपनों की नई डगर

1 नवम्बर, 2000 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी सरकार के वायदे के अनुरूप छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की घोषणा  की तथा दिसम्बर, 2003 में पहली निर्वाचित विधानसभा का गठन हुआ और डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार अस्तित्व में आई। अब भाजपा सरकार के दो कार्यकाल पूरे होने वाले हैं। 16 जिलों के साथ म.प्र.से अलग होकर अस्तित्व में आए छत्तीसगढ को वर्ष 2007 में बीजापुर और नारायणपुर जिलों की सौगात मिली। वर्ष 2012 में डॉ. रमन सिंह की सरकार ने 9 और जिलों का निर्माण किया, जिससे छत्तीसगढ़ में जिलों की संख्या बढ़कर 27 हो गई। साथ ही सभी 146 विकास खंडों को तहसील का दर्जा दिया। डॉ. रमन सिंह ने जनजातीय बहुत क्षेत्र सरगुजा और बस्तर के साथ अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों के तीव्र विकास के लिए तीन विशेष विकास प्राधिकरणों की भी स्थापना की।

अविभाजित मध्य प्रदेश के साथ रहते हुए छत्तीसगढ़ एक बेहद पिछड़ा, अशिक्षित और विकास से कोसों दूर जनजातीय अंचल कहलाता था। लेकिन डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने प्रदेश के विकास की दिशा में ठोस कदम उठाए। 1 जनवरी, 2008 से छत्तीसगढ़ देश का पहला इकलौता विद्युत कटौती मुक्त राज्य बन गया।

सरकार के विकास कायोर्ं को जनता तक पहुंचाने के उद्देश्य से डॉ. रमन सिंह ने 5 वर्ष पूर्व सन् 2008 में 23 मई से 29 जून तक छह चरणों में अपनी विकास यात्रा शुरू की थी। एक बार फिर इस 6 मई से दूसरी विकास यात्रा की शुरूआत दंतेवाड़ा से दंतेश्वरी माई की पूजा अर्चना के साथ हुई। भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने इस विकास यात्रा को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। 6 चरणों में हो रही विकास यात्रा का प्रत्येक चरण पांच दिनों का है। यात्रा का समापन 20 जून को सरगुजा जिले के मुख्यालय अंबिकापुर में होगा।

प्रदेश की जनता डॉ. रमन सिंह और उनकी विकास यात्रा का दिल खोलकर स्वागत कर रही है। तपती दोपहरी में लोग घंटों अपने मुख्यमंत्री की बाट जोहते खड़े रहते हैं। उल्लेखनीय है कि डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार 34 लाख परिवारों को एक रूपये गेहूं और दो रुपये किलो चावल की दर से प्रतिमाह 35 किलो अनाज और 2 किलो नि:शुल्क नमक दे रही है। साथ ही 21 दिसंबर, 2012 को विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सर्वसम्मति से प्रदेश के 50 लाख परिवारों को भरपेट भोजन और सस्ते अनाज के कानूनी अधिकार की गारंटी देने वाला 'छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा कानून' पारित कर दिया है। डॉ. रमन सिंह कहते हैं- 'प्रदेश में एक भी व्यक्ति भूखा रह जाए तो सरकार के मुखिया को नींद नहीं आनी चाहिए।'

पूरे छत्तीसगढ़ में यह विकास यात्रा सरकार और आम जनता के बीच संवाद का महत्वपूर्ण सेतु बन चुकी है। अपनी विकास यात्रा के हर पड़ाव में मुख्यमंत्री विकास रथ से उतरकर सीधे जनता के बीच पहुंच जाते हैं। कभी किसी बच्चे का गाल थपथपाकर उसकी माँ से कहते हैं, 'इतना धूप में इसे क्यों लेकर आईं?' छात्राओं को सरस्वती साईकिल प्रदान करते हुए उनके सिर पर हाथ रखकर उन्हें खूब पढ़-लिखकर आगे बढ़ने का आशीर्वाद देते हैं। छात्रों को नि:शुल्क लैपटॉप देकर उनकी पीठ थप-थपाकर उनका संबल बढ़ाते हैं। किसी जनजातीय परिवार को 'सोलर लैम्प' देकर पूछते हैं, 'यह जंगल में उजाला करेगा कि नहीं।' बुजुर्ग महिलाओं को राशन कार्ड देकर उनका आशीर्वाद लेते हैं।

लगभग 6 हजार 100 किलोमीटर की यात्रा में मुख्यमंत्री 2800 किलोमीटर की यात्रा विकास रथ पर सवार होकर सड़क मार्ग से और लगभग 3300 किलोमीटर की यात्रा हेलीकॉप्टर और विमान से करेंगे। इस दौरान वे राज्य की 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 81 विधानसभा क्षेत्रों में 93 जनसभाओं को संबोधित करेंगे। इसके अलावा 63 स्वागत सभाएँ होंगी।

डॉ. रमन सिंह कहते हैं- 'यह विकास यात्रा वास्तव में छत्तीसगढ़ के वर्तमान को और ज्यादा बेहतर बनाकर एक सुनहरे भविष्य के निर्माण की यात्रा है।' डॉ. रमन सिंह विकास यात्रा के अलावा प्रतिवर्ष ग्राम सुराज अभियान, अपने आवास पर सप्ताह में दो दिन 'जन दर्शन' सहित अनेक कार्यक्रमों के द्वारा जनता से सीधे संवाद का कोई अवसर नहीं छोड़ते।  हेमंत उपासने

सेब चीन का, नाम कश्मीर का

डड्ढस्तविक नियंत्रण रेखा के रास्तों द्वारा पाकिस्तान के कब्जे वाले

कश्मीर के साथ किए जा रहे व्यापार के बीच एक चौंका देने वाली चर्चा इन दिनों गर्म है। सीमा पार से चीनी सेबों से भरे 21 ट्रक कस्टम विभाग के कर्मचारियों ने पहले जब्त किए, फिर करोड़ों रूपए के इन सेबों को राजनैतिक दबाव के चलते छोड़ दिया गया। इस कारगुजारी को छिपाने के लिए राज्य के बागवानी विभाग के एक अधिकारी से यह रपट बनवाई गई कि पकड़े गए सब सेब पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के थे। जबकि जानकार सूत्रों के अनुसार उस कश्मीर  में इतनी बड़ी मात्रा में सेब का उत्पादन होता ही नहीं और फिर इन दिनों (गर्मियों में) उस कश्मीर क्या, इस कश्मीर घाटी में भी सेब तैयार नहीं होता। और फिर पकड़ी गई सेब पेटियों पर तो चीनी भाषा में पर्चियां भी लगी हुई थीं।

उल्लेखनीय है कि विश्वास बहाली के नाम पर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और भारतीय कश्मीर के बीच सन् 2008 में व्यापार शुरू किया गया था। उस कश्मीर को भारत का ही अंग मानते हुए यह कहा गया था कि इस व्यापार पर कोई 'कर' या चुंगी नहीं लगेगी, किन्तु व्यापार केवल उन्हीं वस्तुओं का होगा जिनका उत्पादन जम्मू-कश्मीर के इन दोनों भागों में होता हो। किन्तु सचाई यह सामने आ रही है कि दोनों ओर से बिना किसी कर या चुंगी के 90 प्रतिशत से अधिक ऐसी वस्तुओं का व्यापार हो रहा है जो  इस कश्मीर तथा उस कश्मीर में उत्पन्न ही नहीं होतीं। इस ओर से उस पार जिन वस्तुओं का बड़े स्तर पर निर्यात हो रहा है उनमें नारियल, मोटी इलायची, लाल मिर्च, केला आदि शामिल हैं। जबकि उस पार से आने वाली वस्तुओं में पेशावरी चप्पल, पेशावरी बादाम, कालीन (चीन में निर्मित) तथा कपड़े आदि शामिल हैं। इससे भी बढ़कर गंभीर बात यह सामने आ रही है कि कई लोग इस व्यापार की आड़ में हवाला की मोटी-मोटी रकम आतंकवादी तथा अलगाववादी तत्वों तक पहुंचा रहे हैं। इस संदर्भ में कुछ मामले भी दर्ज हुए, कुछ गिरफ्तारियां भी हुईं, पर बड़े खुलासे से पहले ही विश्वास बहाली के शोर में जांच रुक गई। विशेष प्रतिनिधि

 

साईं ट्रस्ट पर सोनिया–पवार कांग्रेस का कब्जा

न्यायालय ने कहा – पुनर्गठित करो समिति

द. बा. आंबुलकर

मुबई उच्च न्यायालय द्वारा शिर्डी के

विश्वविख्यात श्री साईं बाबा संस्थान के न्यासी मंडल का पुनर्गठन 15 दिनों के भीतर करने का राज्य सरकार को दोबारा आदेश दिया गया है। इससे मंदिर से संबद्ध विवाद और भी स्पष्ट हो गया है। गत वर्ष भी मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा महाराष्ट्र सरकार को साईं मंदिर के न्यासियों का नये सिरे से चयन करने को कहा गया था। उस समय उच्च न्यायालय ने यह बात विशेष तौर पर इसलिए कही थी कि 2004 में सरकार द्वारा तीन सालों के लिये नियुक्त न्यासी मंडल समयावधि पूरी हो जाने के बावजूद क्रियान्वित था।

उल्लेखनीय है कि शिर्डी के साईं मंदिर के साथ अब श्रद्धा से ज्यादा पैसा तथा राजनीति जुड़ गई है। शिर्डी साईं संस्थान देश के अमीर मंदिर-संस्थानों में से एक माना जाता है। देश-विदेशों से आने वाले लाखों साईं भक्तों के द्वारा चढ़ावे के कारण साईं मंदिर का वार्षिक आर्थिक आंकड़ा 1500 करोड़ रूपयों तक छू गया है। राज्य सरकार ने सन् 2004 में 'श्री साईंबाबा संस्थान ट्रस्ट (शिर्डी) अधिनियम 2004' पारित कर मंदिर संस्थान पर अपने विश्वस्त न्यासियों का चयन कर ट्रस्ट को अपने कब्जे में ले लिया। दूसरे चरण में राज्य सरकार ने 2005 में न्यासी मंडल की नियुक्ति के बारे में संशोधन कर 15 न्यासियों की नियुक्ति की, जिसमें सत्ताधारी गठबंधन सरकार के राष्ट्रवादी कांग्रेस के 8 तथा 7 कांग्रेसी कार्यकर्त्ता-पदाधिकारियों को न्यासी नियुक्त कर संस्थान पर कब्जा जमा लिया। मात्र 3 साल तक के लिए गठित हुई यह सीमित कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस की राजनीतिक सांठगाठ के चलते 7-8 साल पूरे होने पर भी कार्यरत है। इसी मुद्दे को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी। तब न्यायालय ने राज्य सरकार को स्पष्ट निर्देश दिया है कि साईं मंदिर में संबद्ध न्यासी मंडल का पुनर्गठन अविलंब किया जाए। स्पष्ट है कि राज्य सरकार ने साईं मंदिर संस्थान को मनमाने तरीके से चलाने तथा पद एवं पैसा पाने के लिये राजनीतिक अखाड़ा बनाकर रख दिया है।

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