कर्नाटक के आइने में चुनावी यथार्थ
July 15, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

कर्नाटक के आइने में चुनावी यथार्थ

by
May 11, 2013, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 11 May 2013 14:54:03

 

यह 'बिल्ली के भाग से छींका टूटना' नहीं तो और क्या है? जिस समय पूरे देश में केन्द्र सरकार और सोनिया पार्टी के द्वारा लाखों-करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार की कथाओं की चर्चा पूरे मीडिया पर छायी हुई थी, उच्चतम न्यायालय केन्द्र सरकार पर कोयला घोटाले में सीबीआई नामक जांच एजेंसी को पिजड़े में बंद करने और हाथ-पैर बांधने के कड़े आरोप लगा रहा था, उस समय सुदूर दक्षिण में कर्नाटक राज्य के विधानसभा चुनावों में सोनिया पार्टी को चौदह वर्ष बाद पूर्ण बहुमत मिलने के समाचार ने वंशवादी पार्टी के मुरझाये चेहरों पर खुशी ला दी। इस जीत के बाद वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्री भी उछलने-कूदने लगे। वित्त मंत्री चिदम्बरम टेलीविजन संवाददाता का-सा अभिनय करने लगे, दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल इस जीत का पूरा श्रेय राहुल गांधी को देकर अपनी वफादारी प्रदर्शित करने लगे। और तो और कानून मंत्री अश्विनी कुमार- जिन पर कोलगेट मामले में प्रधानमंत्री का बचाव करने के लिए सीबीआई निदेशक को अपने कमरे में महाधिवक्ता वाहनवती और प्रधानमंत्री कार्यालय के संयुक्त निदेशक की उपस्थिति में बुलाकर, उच्चतम न्यायालय में दाखिल होने वाले हलफनामे में परिवर्तन करने का गंभीर आरोप लगा हुआ था, और जिनके कारण ही उच्चतम न्यायालय केन्द्र सरकार को कड़ी फटकार लगा रही थी, जिनके त्यागपत्र की मांग को लेकर पूरा विपक्ष एकमत होकर संसद को चलने नहीं दे रहा था, उनमें भी यह साहस आ गया कि वे मीडिया के सामने अपने पाप की सफाई देने के बजाय कर्नाटक की जीत का जश्न मनाने लगे, पर अपने त्यागपत्र के विषय पर मुंह तक नहीं खोला। आश्चर्य तो तब हुआ जब 10, जनपथ के प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी ने इस चुनावी जीत को कांग्रेस की विचारधारा व नीतियों की जीत कहा।

इसमें विचारधारा और नीति कहां?

केन्द्र में संप्रग के नौ वर्ष लम्बे शासनकाल में क्या इस विचारधारा का चेहरा देश और विश्व ने देखा है? घोटाले पर घोटाले, खरीद-फरोख्त और जोड़-तोड़ के सहारे किसी न किसी तरह अपनी सरकार को बचाये रखना, राज्यपाल और सीबीआई जैसी संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर अपने विरोधियों को उखाड़ना और कुछ दलों का समर्थन खरीदना, यही तो नीति रही है कांग्रेस की। कर्नाटक ने भी पिछले पांच साल में इस विचारधारा और नीति का नंगा रूप देखा। 2008 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों में सोनिया पार्टी को 224 सीटें की विधानसभा में से केवल 80 सीटें मिली थीं और भाजपा को 110। बहुमत के 113 के जादुई आंकड़े से भाजपा केवल तीन सीटें पीछे रह गयी थी, जिनको जुटाने के लिए उसे निर्दलियों का समर्थन लेना पड़ा था। उस चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत सोनिया पार्टी से कम था। भाजपा को 33.93 प्रतिशत वोट मिले थे तो सोनिया पार्टी को 35.13 प्रतिशत। इस बार के चुनाव में सोनिया पार्टी को 121 सीटें मिल गयीं पर उसका जनाधार वहीं का वहीं रहा। उसे 1.8 प्रतिशत वृद्धि के साथ केवल 36.6 प्रतिशत मत मिले हैं। पर भाजपा का जनाधार घटकर केवल 20 प्रतिशत रह गया है और उसने 70 सीटें खोयी हैं। वोट प्रतिशत और सीट संख्या में इस भारी अंतर का कारण क्या विचारधारा की हार-जीत को देना उचित होगा? भाजपा की पिछली जीत का पूरा श्रेय मुख्यमंत्री बी.एस.येदियुरप्पा को दिया गया। येदियुरप्पा को कर्नाटक में 19 प्रतिशत लिंगायतों का नेता कहा गया। यद्यपि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक के नाते 40 वर्ष से भारतीय जनसंघ और भाजपा में सक्रिय थे। माना जाता है कि लिंगायत मतदाता दक्षिण कर्नाटक में 50 और उत्तर  कर्नाटक में 40 सीटों के निर्णय को प्रभावित करते हैं। पिछली बार वे येदियुरप्पा के कारण भाजपा के पीछे खड़े हो गये। इस बार येदियुरप्पा की बगावत के कारण वे भाजपा से छिटक गये। एक विश्लेषक ने अनुमान लगाया है कि 51 विधानसभा सीटों पर येदियुरप्पा की 9 दिसंबर, 2012 को स्थापित कर्नाटक जनता पार्टी को प्राप्त वोटों को भाजपा प्रत्याशियों के वोटों में जोड़ दिया जाए तो भाजपा वहां जीत जाती। येदियुरप्पा ने लगभग सब सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये थे। उनकी घोषणा थी कि मैं जीतू या न जीतू पर भाजपा को नेस्तनाबूद करके रहूंगा। एक प्रकार से वे बदले की राजनीति कर रहे थे।

भेद भाजपा–कांग्रेस का

पर, उनको ऐसा क्यों करना पड़ा? 2008 में कर्नाटक में भाजपा की सरकार बनना सोनिया गांधी को रास नहीं आया। उन्होंने येदियुरप्पा सरकार के विरुद्ध षड्यंत्र रचने के लिए अपने वफादार पूर्व कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज को कर्नाटक का राज्यपाल बनाया।  भारद्वाज पहले दिन से अपनी षड्यंत्रकारी राजनीति में जुट गये। यह लम्बी कहानी है। पर, संयोग से कर्नाटक के लोकायुक्त श्री संतोष हेगड़े ने येदियुरप्पा पर अवैध खनन को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगा दिये। सोनिया पार्टी ने इन आरोपों के आधार पर येदियुरप्पा  के विरुद्ध प्रचार अभियान छेड़ दिया। उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग उठायी। लोकायुक्त के आदेश पर उन्हें गिरफ्तार किया गया। यहीं भाजपा और सोनिया पार्टी का अंतर सामने आता है। भाजपा ने लोकायुक्त के पद का सम्मान किया, उनके निर्णय का स्वागत करते हुए येदियुरप्पा को निर्दोष सिद्ध होने तक मुख्यमंत्री पद से अलग हटने की प्रार्थना की। जबकि दिल्ली में शीला दीक्षित की सरकार अपने एक मंत्री राजकुमार चौहान के विरुद्ध लोकायुक्त के निर्णय को रद्दी की टोकरी में फेंक चुकी है और स्वयं सोनिया गांधी केन्द्रीय मंत्रियों अश्विनी कुमार व पवन कुमार बंसल के विरुद्ध भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों को अनसुना कर उनसे त्यागपत्र मांगने की नैतिकता तक नहीं दिखा रही है। येदियुरप्पा के विरुद्ध दूसरा आरोप लगाया गया कि बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं के विरुद्ध अवैध खनन के आरोपों को अनदेखा कर उन्होंने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में सम्मिलित किया। इसे भी कर्नाटक की भाजपा सरकार के विरुद्ध प्रचार का हथियार बना लिया गया। येदियुरप्पा स्वयं को दोषी नहीं मानते थे। उच्च न्यायालय ने उन्हें कुछ आरोपों में निर्दोष भी घोषित किया। यदि वे उस समय मुख्यमंत्री पद से अलग हट जाते तो उनकी प्रतिष्ठा बहुत बढ़ जाती। पर यहीं पर वे अपने अहं के बंदी हो गये, उन्होंने मान लिया कि वे ही कर्नाटक भाजपा के भाग्य-नियंता हैं और वे मुख्यमंत्री पद से अलग हटने की बजाय बगावत के रास्ते पर बढ़ गये। इस बगावत के कारण छह बार कर्नाटक सरकार के गिरने की नौबत आयी, तीन बार वहां मुख्यमंत्री को बदलना पड़ा।

भाजपा की इस गृह-कलह की जनमानस पर बहुत प्रतिकूल प्रतिक्रिया हुई। ऐसे में 1999 से वे गठबंधन सरकारों की त्रासदी भोगते आ रहे थे। उससे बाहर निकलने के लिए उन्होंने इस बार एक दल को पूर्ण बहुमत दे दिया।

तो क्या भ्रष्टाचार मुद्दा नहीं रहा?

बताया जा रहा है कि कर्नाटक का समाज 19 प्रतिशत लिंगायतों, 17 प्रतिशत वोक्कालिंगाओं, 23 प्रतिशत अनुसूचित जातियों, 32 प्रतिशत अति पिछड़े मतदाताओं में विभाजित है। इनके अतिरिक्त 13 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता भी हैं और तटीय भाग चर्च का गढ़ है। इनके अतिरिक्त पुराना मैसूर क्षेत्र, मध्य कर्नाटक क्षेत्र, उत्तर पूर्व का हैदराबाद, दक्षिण कन्नड़ व उडुपी को मिलाकर तटीय प्रदेश-ये कर्नाटक के भौगोलिक विभाजन हैं। इसलिए वहां के चुनाव परिणामों की समीक्षा करते समय इन जातीय व भौगोलिक तथ्यों को भी समझना होगा। भाजपा के सत्ता में आते ही चर्च ने उस पर पांथिक भेदभाव और उत्पीड़न के आरोप लगाना शुरू कर दिया था। चर्च की इस रणनीति व क्षमता का सही आकलन बहुत आवश्यक है। 13 प्रतिशत मुस्लिम समाज कहां गये, इसे जानना भी दिलचस्प रहेगा। इस संदर्भ में मंगलुरू व उडुपी आदि तटीय क्षेत्र में भाजपा की भारी पराजय का सूक्ष्म विश्लेषण बहुत आवश्यक है, क्योंकि इस क्षेत्र को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गढ़ कहा जाता है और वहां उसे स्वामी विश्वेशतीर्थ जैसे संत का आशीर्वाद भी प्राप्त है।

कर्नाटक के चुनाव परिणामों की छाया भावी लोकसभा चुनावों में देखने की कोशिश अपरिपक्वता का परिचायक है। आवश्यकता इस बात की है कि चुनावी हार-जीत की यथार्थवादी समीक्षा करके हम वर्तमान चुनाव प्रणाली की बाध्यताओं, सीमाओं और विकृतियों का सही आकलन करें और उसके स्वस्थ विकल्प की खोज को प्राथमिकता दें। देवेन्द्र स्वरूप

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

समोसा, पकौड़े और जलेबी सेहत के लिए हानिकारक

समोसा, पकौड़े, जलेबी सेहत के लिए हानिकारक, लिखी जाएगी सिगरेट-तम्बाकू जैसी चेतावनी

निमिषा प्रिया

निमिषा प्रिया की फांसी टालने का भारत सरकार ने यमन से किया आग्रह

bullet trtain

अब मुंबई से अहमदाबाद के बीच नहीं चलेगी बुलेट ट्रेन? पीआईबी फैक्ट चेक में सामने आया सच

तिलक, कलावा और झूठी पहचान! : ‘शिव’ बनकर ‘नावेद’ ने किया यौन शोषण, ब्लैकमेल कर मुसलमान बनाना चाहता था आरोपी

श्रावस्ती में भी छांगुर नेटवर्क! झाड़-फूंक से सिराजुद्दीन ने बनाया साम्राज्य, मदरसा बना अड्डा- कहां गईं 300 छात्राएं..?

लोकतंत्र की डफली, अराजकता का राग

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

समोसा, पकौड़े और जलेबी सेहत के लिए हानिकारक

समोसा, पकौड़े, जलेबी सेहत के लिए हानिकारक, लिखी जाएगी सिगरेट-तम्बाकू जैसी चेतावनी

निमिषा प्रिया

निमिषा प्रिया की फांसी टालने का भारत सरकार ने यमन से किया आग्रह

bullet trtain

अब मुंबई से अहमदाबाद के बीच नहीं चलेगी बुलेट ट्रेन? पीआईबी फैक्ट चेक में सामने आया सच

तिलक, कलावा और झूठी पहचान! : ‘शिव’ बनकर ‘नावेद’ ने किया यौन शोषण, ब्लैकमेल कर मुसलमान बनाना चाहता था आरोपी

श्रावस्ती में भी छांगुर नेटवर्क! झाड़-फूंक से सिराजुद्दीन ने बनाया साम्राज्य, मदरसा बना अड्डा- कहां गईं 300 छात्राएं..?

लोकतंत्र की डफली, अराजकता का राग

उत्तराखंड में पकड़े गए फर्जी साधु

Operation Kalanemi: ऑपरेशन कालनेमि सिर्फ उत्तराखंड तक ही क्‍यों, छद्म वेषधारी कहीं भी हों पकड़े जाने चाहिए

अशोक गजपति गोवा और अशीम घोष हरियाणा के नये राज्यपाल नियुक्त, कविंदर बने लद्दाख के उपराज्यपाल 

वाराणसी: सभी सार्वजनिक वाहनों पर ड्राइवर को लिखना होगा अपना नाम और मोबाइल नंबर

Sawan 2025: इस बार सावन कितने दिनों का? 30 या 31 नहीं बल्कि 29 दिनों का है , जानिए क्या है वजह

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies