हिज्बुल्ला के हाथों मे सीरियाई रासायनिक हथियार
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इस्रायल के एक पूर्व रक्षा मंत्री की मानें तो, सीरिया के रासायनिक हथियार छन-छनकर लेबनान के आतंकी गुट हिज्बुल्ला के हाथों में जा रहे हैं। दुनिया को चौंकाने और परेशान करने वाली यह जानकारी 29 अप्रैल को सेवानिवृत्त जनरल बिनयामिन बेन-इलीजर ने दी है। हिज्बुल्ला एक खूंखार गुट माना जाता है। उनका यह भी कहना था कि सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद ऐसे हथियारों का इस्तेमाल कर चुके हैं। अब वे हिज्बुल्ला को दिए जा रहे हैं। हालांकि इस्रायल के रक्षा अधिकारी इलीजर के इस बयान को खुले तौर पर खास तरजीह नहीं दे रहे हैं, लेकिन जानकार कहते हैं कि अगर इलीजर की जानकारी पुख्ता है तो यह बेहद चिंताजनक है। असद का सहयोगी हिज्बुल्ला गुट इस्रायल का विरोधी है। इस्रायल के प्रधानमंत्री नेतनयाहू ने कहा है कि आतंकियों तक रासायनिक हथियारों की पहुंच फौजी कार्रवाई छेड़ सकती है। इस्रायल असद का धुर विरोधी है, पर वह बड़ी सफाई से सीरिया के गृह युद्ध में किसी पाले में खड़े होने से बचता रहा है। इसके पीछे इस्रायल के फौजी कमांडरों की यह आशंका हो सकती है कि असद को हटा दिया गया तो फिर वहां के असद-विरोधी अल कायदा से जुड़े गुट इस्रायल पर निगाह डाल सकते हैं।
ईराक ने लगाई अल जजीरा पर रोक
26 अप्रैल को दुनियाभर में मशहूर अरब के समाचार चैनल अल जजीरा और 9 दूसरे ईराकी टेलीविजन चैनलों को ईराक की सरकार ने अपने देश में खबरें दिखाने से प्रतिबंधित कर दिया। सरकार ने इन चैनलों पर साम्प्रदायिक हिंसा बढ़ाने का आरोप लगाते हुए उन पर पाबंदी लगा दी। इन दिनों ईराक के सुन्नियों में बेहद उबाल के चलते जगह-जगह शिया-सुन्नी झगड़े हो रहे हैं और ईराक की शिया नेतृत्व वाली सरकार की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं। एक ही हफ्ते में साम्प्रदायिक झगड़ों में 180 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। देश में सुरक्षा व्यवस्था चरमरा गई है।
प्रतिबंधित किए गए चैनलों में से 8 सुन्नी चलाते हैं जो प्रधानमंत्री नूरी अल-मालिकी को पानी पी-पीकर कोसते हैं, सरकार की जमकर आलोचना करते हैं। सुन्नियों में उबाल तब भड़का था जब पिछले दिनों हाविजा शहर में सुन्नियों के प्रदर्शन पर ईराकी सुरक्षा बलों ने कार्रवाई की और उसमें 3 सैनिकों सहित 23 लोग मारे गए। वैसे अल्पसंख्यक सुन्नी वहां पिछले चार महीनों से नूरी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।
चैलनों पर रोक के बारे में ईराक के सुन्नी सांसद दाहफिर का कहना है कि यह सरकार की हाविजा और बाकी जगहों पर हुए खून-खराबे पर पर्दा डालने की कोशिश है। खाड़ी के देश कतर से चलने वाले अल जजीरा ने सरकार के इस कदम को हैरान करने वाला बताया है। जबकि सरकार का कहना है कि ये चैनल हाविजा में हुई कार्रवाई के बाद से हिंसा को हवा देने का काम कर रहे थे। उन पर यह आरोप भी लगाया गया है कि वे ईराकी जनता पर जुल्म ढाने वाले प्रतिबंधित आतंकी गुटों को बढ़ावा देने में लगे थे।
बहरहाल, यह पाबंदी तब लगाई गई जब कभी-कभार जनता के सामने आने वाले नूरी उन पांच सैनिकों के अंतिम संस्कार में पहुंचे जो सुन्नी प्रभाव वाले अनबार सूबे में 25 अप्रैल को गोलीबारी में मारे गए थे। उनकी गाड़ी को एक सुन्नी प्रदर्शन के पास रोक दिया गया था, जिसके बाद जमकर गोलीबारी हुई थी।
चुनावों से जिंदगीभर के लिए बेदखल हुए मुशर्रफ
मुशर्रफ दुबई से अपनी पत्नी और चुनिंदा समर्थकों के साथ जब 24 मार्च, 2013 को चार साल के अपने से लादे निर्वासन के बाद कराची के हवाई अड्डे पर उतरे, तब उनकी डर के आवरण में बांछें खिली हुई थीं। उन्होंने वहां तकरीर देते हुए कहा कि वे पाकिस्तान के दिन फिराने आ पहुंचे हैं, चुनाव जीतकर वे पाकिस्तान में खुशहाली ला देंगे। पर उसके बाद एक एक करके जो कुछ भी उनके सामने आया उसकी तो उन्हें दूर-दूर तक उम्मीद भी नहीं रही होगी। हालात इस कदर बदले कि उन्हें अदालत के फैसले की तौहीन करते हुए किसी अदना मुजरिम की तरह अदालत के कमरे से मुंह छुपाकर रफूचक्कर होना पड़ा। लिहाजा उन्हें उनके फार्महाउस में ही नजरबंद करने के साथ चौदह दिन की हिरासत में रखना पड़ा। बेनजीर की मौत का हौव्वा भी उना पीछा नहीं छोड़ रहा था, सो अब उस जुर्म की आंच भी उन्हें तपाने लगी है। हालात बिगड़ते-बिगड़ते यहां तक आ पहुंचे कि 30 अप्रैल को पेशावर के उच्च न्यायालय ने उनके ताउम्र चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी। मुशर्रफ ने तो अदालत में चित्राल से अपना चुनावी पर्चा खारिज किए जाने के खिलाफ गुहार लगाई थी, लेकिन मामला पूर्व राष्ट्रपति के उलट चला गया। अदालत ने उन्हें ही आड़े हाथों ले लिया, क्योंकि अपने सुहाने दिनों में उन्होंने मुल्क के संविधान को निरस्त करके अलगनी पर टंगवा दिया था। बड़े संजीदा होकर जस्टिस दोस्त मोहम्मद खान ने मुशर्रफ की अपील दरकिनार करते हुए कहा कि उनको नेशनल असेम्बली तो क्या सीनेट तक का चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दी जा सकती।
69 साल के मुशर्रफ अपनी ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग को 11 मई के चुनावों में कुर्सी दिलाने का ख्वाब पाले पाकिस्तान आए थे, चार जगह से उन्होंने चुनाव के पर्चे भरे थे, पर चारों जगह ही उनके पर्चे चारों खाने चित हो गए। बेनजीर की हत्या के मामले में रावलपिण्डी की आतंकवाद विरोधी अदालत ने भी उन्हें दो हफ्ते की न्यायिक हिरासत में भेजा हुआ है जिसकी अगली पेशी 14 मई को होनी है, यानी चुनाव होने के तीन दिन बाद। अदालत ने अगस्त 2006 में डेरा बुग्ती में सैनिक कार्रवाई में हुई बलूच नेता नवाब अकबर खान बुग्ती की मौत के सिलसिले बलूचिस्तान पुलिस को मुशर्रफ से पूछताछ करने की इजाजत भी दी हुई है। कश्मीर में आतंक फैलाने वाले वाले जिहादियों को 'स्वतंत्रता सेनानी' कहने वाले मुशर्रफ का आगे क्या हाल होगा, यह सवाल पाकिस्तानियों के दिल-दिमाग को मथे हुए है। आलोक गोस्वामी
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