|
पलक झपकते गणित के कठिन सवालों को सुलझाने वालीं शकुन्तला देवी नहीं रहीं। 21 अप्रैल 2013 को वह बेंगलुरू से उस धाम की यात्रा पर निकल गईं जहां से कोई लौटता नहीं है। वह 83 वर्ष की थीं। हृदय संबंधी बीमारी के कारण वह पिछले दो हफ्ते से अस्पताल में भर्ती थीं। शकुन्तला जी को 'मानव कम्प्यूटर' के नाम से भी जाना जाता था। चाहे किसी भी तरह का सवाल होता था बिना कागज-कलम के मौखिक रूप से वह हल कर देती थीं। वह अद्भुत प्रतिभा की धनी थीं। पिछली सदी की किसी भी तारीख का दिन वह मिनटों में बता देती थीं। इस क्षमता की वजह से ही उनका नाम 'गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड' में दर्ज किया गया था। उन्होंने कभी औपचारिक शिक्षा नहीं पाई थी। इसके बावजूद उन्होंने वह कर दिखाया जिसके लिए बड़े-बड़े विद्वान अपना पूरा जीवन लगा देते हैं, फिर भी उन्हें मनचाही सफलता नहीं मिल पाती है। शकुन्तला जी ज्योतिष शास्त्र की भी अच्छी जानकार थीं। गणित और ज्योतिष शास्त्र पर उनकी अनेक पुस्तकें हैं। उनकी प्रसिद्ध पुस्तकें हैं 'फन विद नम्बर्स', 'एस्ट्रालॉजी फार यू', 'पजल्स टू पजल्स यू' 'मैथब्लीट' आदि।
शकुन्तला देवी का जन्म 4 नवम्बर, 1929 को बेंगलुरू के एक साधारण परिवार में हुआ था। परिवार के भरण-पोषण के लिए उनके पिता सर्कस में करतब दिखाते थे। शकुन्तला जब सिर्फ 3 वर्ष की थीं उसी समय से अपने पिता के साथ पत्तों का खेल खेलती थीं। इसी खेल के दौरान उन्होंने अपनी प्रतिभा का अनेक बार परिचय दिया। जब वह छह वर्ष की थीं तब उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय में गणना करने की क्षमता और स्मरण शक्ति का परिचय देकर बड़े-बड़े विद्वानों को चौंका दिया था। आठ वर्ष की आयु में उन्होंने एक बार फिर अन्नामलाई विश्वविद्यालय में अपनी प्रतिभा से लोगों को दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर किया था। 1977 में उन्होंने 101 अंकों वाली संख्या का 23वां मूल 23 सेकेण्ड में बता दिया था। पाञ्चजन्य परिवार की ओर से उन्हें भावभीनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित है। प्रतिनिधि
टिप्पणियाँ