पाठकीय:दाऊद को पकड़ने का दम दिखाओ
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पाठकीय:दाऊद को पकड़ने का दम दिखाओ

by
Apr 22, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 22 Apr 2013 12:50:24

आवरण कथा 'मुन्ना का फैसला हो गया, भाई को कब पकड़ोगे' में सही सवाल उठाया गया है। दाऊद इब्राहिम के गुर्गे अभी भी भारत में बम फोड़ रहे हैं। दाऊद कहां है, क्या कर रहा है, उसे कौन लोग बचा रहे हैं, यह सारी जानकारी भारत सरकार को है। पर आश्चर्य यह है कि सरकार दाऊद को पकड़ने में तनिक भी दिलचस्पी नहीं ले रही है।

–रामावतार

कालकाजी, नई दिल्ली

द मार्च 1993 में मुम्बई में 257 लोगों को मौत के घाट उतारने वालों को 20 साल बाद सजा सुनाई गई। न्याय-प्रक्रिया इतनी लम्बी क्यों होती है? अपराधियों को उसके किए की सजा जल्दी मिलनी चाहिए। इससे एक अच्छा सन्देश जाएगा। इतने लम्बे समय तक विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में बन्द रहने से उनके साथ कुछ लोगों की सहानुभूति जुड़ जाती है।

–गोपाल महतो

गांधीग्राम, जिला–गोड्डा (झारखण्ड)

द सम्पादकीय शतप्रतिशत सही कहता है- 'संजू, भाग्यशाली हो तुम… कि तुम भारत में हो। तुम सस्ते में छूट गए।' क्या यह गलत है कि धमाकों के तार संजय दत्त के बंगले तक नहीं बिछे थे? तीन-तीन स्वचालित ए.के. 56 अपने घर में छुपाते समय दो छोटे-छोटे बच्चे याद नहीं आए थे क्या? पीड़ित परिवारों में अपनी चल-अचल सम्पत्ति क्यों नहीं बांट देते हो? समझूंगा कि ये आंसू तुम्हारे पश्चाताप के हैं। जाओ, जाओ संजू, जेल जाओ!!

–डा. प्रभात कुमार

वार्ड नं. 3, बीच बाजार, पत्रा.-सोहसराय

जिला–नालन्दा-803118 (बिहार)

द दाऊद इब्राहिम और याकूब मेनन को निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने भी उस पर अपनी मुहर लगा दी है। अब भारत सरकार पाकिस्तान पर दबाव डाले कि वह दाऊद को भारत को सौंप दे। संभवत: याकूब मेनन भी पाकिस्तान में ही छिपा है। यदि पाकिस्तान आसानी से न माने तो दादागिरी दिखाने की जरूरत है। अपने दुश्मनों को सजा देना हमारा हक है।

–सुहासिनी प्रमोद वालसंगकर

द्वारकापुरम,  दिलसुखनगर

हैदराबाद-60 (आं.प्र.)

द संजय दत्त ने नासमझी में अपराध नहीं किया था। उसके संबंध आतंकवादियों से रहे हैं। जिन लोगों से उसने हथियार लिए थे, क्या उनके बारे में संजय को नहीं पता था? सर्वोच्च न्यायालय ने बिल्कुल सही सजा दी है।

–सूर्यप्रताप सिंह सोनगरा

कांडरवासा, रतलाम-457222 (म.प्र.)

द सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से साबित हो गया कि संजय दत्त नायक नहीं खलनायक हैं। संजय की तरफदारी का मतलब है जम्मू-कश्मीर के अलगाववाद और पाकिस्तानी संसद में अफजल को लेकर पारित निन्दा प्रस्ताव को स्वीकार करना। गुनाहगार चाहे कितना ही बड़ा हो उसे सजा मिलनी ही चाहिए।

–हरिओम जोशी

चतुर्वेदी नगर, भिण्ड (म.प्र.)

दोयम व्यवहार

पड़ोसी देशों में 'घटते हिन्दू बढ़ता दर्द' लेख पढ़ा। बंगलादेश, पाकिस्तान व अन्य मुस्लिम देशों में हिन्दुओं की स्थिति नाजुक बनी है। अपने देश भारत में ही हिन्दुओं की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है तो अन्य मुस्लिम देशों में हिन्दुओं की स्थिति क्या होगी इसकी कल्पना की जा सकती है। पिछले दिनों बंगलादेश में एक अपराधी को फांसी की सजा हुयी। प्रतिक्रिया स्वरूप हिन्दुओं और मन्दिरों पर हमले किये गये लेकिन वहां की सरकार कुछ नहीं कर सकी।

–वीरेन्द्र सिंह जरयाल

28-ए, शिवपुरी विस्तार, कृष्ण नगर, दिल्ली-110051

द पाकिस्तान में हिन्दू आबादी का घटता प्रतिशत स्वत: सिद्ध करता है कि वहां उनके साथ क्या हो रहा है। हालत इतनी बदतर है कि हिन्दू अपने परिजनों का अंतिम संस्कार भी अपनी परंपरा के मुताबिक नहीं कर पाते। नेहरू लियाकत समझौते के तहत हमने तो देश के अल्पसंख्यकों के साथ समानता का व्यवहार कर उनके आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तरक्की के मार्ग प्रशस्त किये, दूसरी ओर पाकिस्तान में हिन्दू के साथ दोयम व्यवहार हो रहा है।

–मनोहर  'मंजुल'

पिपल्या–बुजुर्ग

प. निमाड़-451225(म.प्र.)

भेदभाव जारी

शायद विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश होगा, जहां बहुसंख्यक समाज को सबसे अधिक प्रताड़ित व अपमानित किया जाता है। बहुसंख्यक हिन्दुओं का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि उन्हें अपने ही देश में शरणार्थी जीवन बिताने पर मजबूर होना पड़ा। इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार तथाकथित मानवाधिकारी, सेकुलर व मुस्लिम वोटों के सौदागार स्वार्थी नेता हैं। नब्बे के दशक में कश्मीर घाटी से पलायन कर गये हिन्दुओं से आज भी भेदभाव जारी है। 'आधार कार्ड' के बहाने सरकार विस्थापितों की सहायता रोकना चाहती है। यह दिल्ली सरकार का एक नियोजित षड्यंत्र है।

–रमेश कुमार मिश्र

ग्राम–कान्दीपुर, पत्रा. कटघरमूसा, जिला– अम्बेडकर नगर-224146

आन्तरिक दुश्मन का खात्मा?

पिछले दिनों नौसेना का तीसरा पनडुब्बीरोधी लड़ाकू जलपोत कलितान का जलावतरण किया गया। यह पानी के भीतर दुश्मन की किसी भी हरकत को नाकाम करने में सक्षम है। यह अच्छी बात है कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए युद्धक विमान, मिसाइलें आदि भी तैयार कर रहा है। पर जिस प्रकार आतंकवादी भारत को चुनौती दे रहे हैं उन्हें मुंहतोड़ जवाब नहीं दिया जा रहा है। बाहरी दुश्मनों के लिए इतनी तैयारी, किन्तु आन्तरिक दुश्मनों को खत्म करने की तैयारी कब शुरू होगी।

–अनूप कुमार शुक्ल 'मधुर'

संस्कृति भवन, राजेन्द्र नगर

लखनऊ-226004 (उ.प्र.)

संगठित होइए

श्री देवेन्द्र स्वरूप का आलेख 'सरकार बचाओ, देश डुबाओ' सभी राष्ट्रभक्त संगठनों के लिए भी एक चेतावनी है कि वे अभी भी देश और समाजहित में एक मंच पर खड़े नहीं होंगे तो देशद्रोही ताकतें देश का अहित करती रहेंगी। एकता में ही बल है। गांव-गांव में लोगों को बताना होगा कि देश-विरोधी लोग क्या कर रहे हैं। आज जिहादी, माओवादी, नक्सली भारत के खिलाफ काम कर रहे हैं। इन संगठनों को भारत-विरोधी तत्वों का पूरा सहयोग मिलता है। इन भारत-विरोधी तत्वों को परास्त करना हर देशभक्त का कर्तव्य है।

–लक्ष्मी चन्द

गांव–बांध, डाक–भावगड़ी

जिला–सोलन (उ.प्र.)

प्रतिष्ठा पाता है संयुक्त परिवार

एक समय था जब हम अपने बुजुर्गों को देवतुल्य मानते थे। पर आज बुजुर्गों को भार समझा जा रहा है। चालीस-पचास वर्ष पूर्व तक हमारा बड़ा परिवार होता था, जिसमें दादा-दादी, मां-पिता, भाई, चाचा आदि शामिल थे। ऐसे परिवार में बूढ़े, कमजोर, विधवा अर्थात् सब प्रकार के लोगों की उचित देखभाल होती थी। आज हम प्राचीन मान्यताओं को ध्वस्त कर रहे हैं। सिर्फ पति-पत्नी और एक-दो बच्चे को अपना परिवार मानते हैं। इसका सबसे बुरा असर नई पीढ़ी पर हो रहा है।

संयुक्त परिवार टूटने से बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। शहरों में अधिकांश माता-पिता दोनों नौकरी करने जाते हैं। वे बच्चों के लिए या तो नौकरानी रखते हैं या उन्हें 'क्रेच सेन्टर' में डाल देते हैं। इससे उनके बालमन पर प्रतिक्रियावादी असर पड़ता है। पुराने समय में संयुक्त परिवारों में सामूहिक जिम्मेदारी का भाव होने के कारण बच्चों की देखभाल और उनकी शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध आसानी से होता था। संयुक्त परिवार विघटित होने के कारण जिस उम्र में बच्चों को प्रेम और सुरक्षा मिलनी चाहिए, उस अवस्था में उनकी उपेक्षा होती है। इससे बचपन से ही उनके मन में समाज और माता-पिता के प्रति प्रतिशोध की भावना पैदा हो जाती है। अर्थ प्रधानता और झूठे प्रदर्शन के कारण भी बच्चों की उपेक्षा हो रही है। संयुक्त परिवार और एकल परिवार में पले-बढ़े बच्चों की सोच, बुद्धि और व्यवहार में बड़ा फर्क होता है। मेरे पड़ोस में एक पाण्डे जी हैं। वे अपनी पत्नी और एक बेटे और एक बेटी के साथ काफी समय से दिल्ली में रह रहे हैं। उनका अच्छा-खासा व्यवसाय है। बेटा बड़ा हुआ तो वही पूरा काम-काज देखने लगा। कुछ दिन बाद उसकी शादी हुई। शादी के कुछ दिन बाद से ही वह अपनी पत्नी के साथ उसी घर में अलग रहता है। उसकी मां बीमार रहती है पर कभी वह देखने भी नहीं जाता है। उसके वृद्ध पिता ही कभी दवाई लाते हैं, कभी खाना बनाते हैं,…।

इसके विपरीत संयुक्त परिवार का अपना आनन्द है। पहले भी संयुक्त परिवार के सदस्यों को सब जगह सम्मान मिलता था। आज भी संयुक्त परिवार के सदस्य प्रतिष्ठा पाते हैं। हमारी गली में क्षेत्रीय निगम पार्षद बी.बी. त्यागी रहते हैं। उनके सात भाइयों का बड़ा परिवार है। परिवार के कुल सदस्यों की संख्या 42 है। सबकी एक रसोई है। एक साथ खाने पर बैठते हैं। एक छत के नीचे रहते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उन्हें उनके आदर्श संयुक्त परिवार के लिए सम्मानित किया था। परिवार में किसी की शादी होती है सभी भाइयों में सहयोग की होड़ लग जाती है। 2007 में भाजपा ने उन्हें नगर निगम चुनाव में अपना प्रत्याशी बनाया। क्षेत्र में उनके संयुक्त परिवार की बड़ी चर्चा हुई। लोगों ने कहा कि जो व्यक्ति सात भाइयों के परिवार को कुशलतापूर्वक लेकर चल सकता है वही क्षेत्र के लोगों की सेवा कर सकता है। चुनाव में वे जीत गए। वे 2012 में भी चुनाव जीत गए। उनके संयुक्त परिवार में चार बच्चे मेडिकल की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। पूरा परिवार प्रगति के पथ पर है।

उनका परिवार देखकर हमें भी व्यवहार कुशलता और नम्रता के साथ संयुक्त परिवार में रहने की प्रेरणा मिलती है। संयुक्त परिवार में पाने के लिए बहुत कुछ है खोने के लिए बहुत कम है। 1940 में देश का सबसे बड़ा संयुक्त परिवार आन्ध्र प्रदेश में हैदराबाद से 50 किलोमीटर दूर रंगन नामक गांव में शिव नायडू का था। उनके परिवार में 125 सदस्य थे, जिनमें 22 लोग अंग्रेजों की फौज में थे। दस लोग शिक्षक थे, बाकी खेती का कार्य करते थे। देश और समाज को खुशहाल रखने के लिए हमें संयुक्त परिवार का समर्थन करना चाहिए।

–उमेश प्रसाद सिंह

के.-100, लक्ष्मी नगर

दिल्ली-110092

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