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भुवनेश्वर कुमारगेंद-बल्ले का जादूगर

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Apr 6, 2013, 12:00 am IST
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दिंनाक: 06 Apr 2013 17:15:33

वह भारतीय क्रिकेट की नवीनतम सनसनी हैं। 2007-08 में 17 वर्ष की आयु में उन्हें भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने सर्वश्रेष्ठ जूनियर क्रिकेटर की एम.ए.चिंदबरम ट्रॉफी प्रदान की थी। 2008-09 के रणजी ट्रॉफी फाइनल में उन्होंने उ.प्र. की ओर से खेलते हुए सचिन तेंदुलकर को शून्य पर बोल्ड आउट किया। पाकिस्तान के विरुद्ध अपने प्रथम अंतरराष्ट्रीय एक दिवसीय मैच में उन्होंने पहली गेंद पर मोहम्मद हफीज को बोल्ड आउट कर दिखाया। पाकिस्तान के खिलाफ अपने पहले ही टी-20 मैच में उन्होंने 4 ओवर में 9 रन पर 3 विकेट लेकर विश्व का पहले मैच का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। वह पहली ही गेंद को 'रिवर्स स्विंग' करा सकते हैं। गेंद-बल्ले के जादूगर और भारतीय क्रिकेट टीम में अभी तीन महीने पहले जुड़कर नई उम्मीदें जगाने वाले वह हैं भुवनेश्वर कुमार। इस मुकाम तक पहुंचने की कहानी बता रहे हैं भुवनेश्वर-

मेरा जन्म 5 फरवरी, 1990 को मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ। मेरे पिताजी श्री किरणपाल सिंह मावई मूलत: बुलंदशहर जिले के हैं। उ.प्र.पुलिस में सब इंस्पेक्टर होने के कारण उनका स्थानांतरण होता रहा। बागपत, सहारनपुर, गाजियाबाद होते हुए अब वे मेरठ आ गये हैं। पर मेरी माताजी, मेरी एकमात्र बड़ी बहन और मैं 1998 से मेरठ में ही रहे और यहीं ट्रांसलैम एकेडमी में मेरी इंटर मीडिएट तक की पढ़ाई हुई।

मैं पढ़ने में सदा अच्छा रहा, पर छुटपन से मेरी रुचि क्रिकेट खेलने की ओर ज्यादा रही। जहां तक मुझे याद आता है, मुझे खिलौनों में भी केवल गेंद तथा बल्ला पसंद आते थे। छुटपन में बल्ला हाथ में लेकर मैं अपनी दादी, अपनी मां या बड़ी बहन को मजबूर करता कि वे मुझे गेंद फेंकें। अपने घर का चौक या छत मेरा क्रिकेट मैदान थी।

12 साल का होते-होते मैंने तय कर लिया  था कि मैं क्रिकेट कोच से प्रशिक्षण लूंगा। श्री विपिन वत्स मुझे गुरु रूप में प्राप्त हुए। वे भामाशाह पार्क, मेरठ में क्रिकेट सिखाते थे। हमारे घर से वह स्थान दूर था। बड़ी बहन या खुद माताजी मेरी जिद पर मुझे वहां ले जातीं। एक साल में ही मेरा चयन 'यू.पी.अंडर-15' टीम में हो गया। परिवार में सभी खुश हुए। 2003 में मैंने संकल्प किया कि मैं विश्व कप में खेलूंगा। 2007 में सर्वश्रेष्ठ जूनियर क्रिकेटर आंका गया। रणजी में प्रदेश की ओर से खेलते हुए मुम्बई में सचिन तेंदुलकर को बोल्ड आउट करना बेहद रोमांचकारी अनुभव था। रणजी से याद आया कि 16 फरवरी, 2009 को मेरी बड़ी बहन की शादी थी, लेकिन उस दिन मैं रणजी का मैच खेल रहा था। दिन में कई बार बहन से बात की, दिल को समझाया। होता है ऐसा कभी-कभी। 2012 में पाकिस्तान के विरुद्ध टी-20 मैच से मैंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखा। उसके बाद जो हुआ वह तो अब सब जानते हैं।

मैं अभी 23 वर्ष का हूं। पांच वर्ष की आयु से क्रिकेट मेरा एकमात्र शौक और जुनून है। उसके लिए मैंने न दिन देखा न रात। अपनी कालोनी के छोटे से मैदान में अभ्यास करते हुए बहुत बार गेंद कालोनीवासियों की खिड़कियों पर जा लगती। कितनों के ही शीशे तोड़े, पौधे तोड़े, दीवारें खराब कीं, पर आस-पास रहने वाले लोगों ने बड़प्पन व उदारता दिखाते हुए मेरे प्रति अपना प्यार कम नहीं किया। मेरी एक ही इच्छा है कि इस खेल में भारत को सबसे ऊंचा स्थान दिलाऊं। कपिलदेव से लेकर सचिन तेंदुलकर तक तमाम वरिष्ठ खिलाड़ी मेरे आदर्श हैं।  

o प्रस्तुति: अजय मित्तल

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