पाकिस्तानएक आया, एक गया, एक बना सरदार
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मुशर्रफ लौटे, बिलावल गए, खोसो ने संभाली कुर्सी
फिदायीनों के डर से कड़ी सुरक्षा में घिरे रहे, पर कहते रहे-मुझे किसी का डर नहीं।
पिछले दिनों पाकिस्तान में एक के बाद एक तीन दिलचस्प घटनाएं देखने में आईं। तीनों सियासी। तीनों ने मुल्क की सियासत में हलचल पैदा की। पहली घटना थी प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ का कुर्सी से विदा होना, उनकी जगह एक सेवानिवृत्त जज का अंतरिम प्रधानमंत्री बनना। दूसरी थी पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ का चार साल के बाद मुल्क में वापस लौटना। और तीसरी घटना तो इन पंक्तियों के लिखते वक्त घटी, जो थी बिटुआ बिलावल का अपने पिता यानी राष्ट्रपति जरदारी से रूठकर दुबई चले जाना।
बात शुरू करते हैं मुशर्रफ के लौटने से। जिहादी तालिबानियों की फिदायीन हमलों से जान ले लेने की धमकियों के बीच मुशर्रफ ने खुद पर अपने से लादे चार साल के देश-निकाले के बाद 24 मार्च को वतन वापसी की। मुशर्रफ पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर की हत्या सहित अपने पर कई दूसरे मुकदमों में गिरफ्तारी से बचने के लिए पाकिस्तान से गुपचुप निकल लिए थे। इस बीच उन्होंने ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग के नाम से एक सियासी तंजीम बना ली और गाहे-बगाहे पाकिस्तान लौटकर सियासी मैदान में कूदने के जुमले उछालकर अपने मुरीदों और खिलाफतियों के मन की थांह लेते रहे थे। अब 11 मई को पाकिस्तान में आम चुनाव होने की मुनादी होने के बाद उनकी सियासी चाह ने जोर मारा और इस बार वह सचमुच में मुल्क लौट आए। कराची हवाई अड्डे पर उतरते ही उनका सच से सामना हुआ, चाहने वालों की भीड़ उतनी न थी जितनी उन्होंने सोची थी। तिस पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम ने उन्हें दूर-दूर रखा। जिहादी धमकियों का असर उनकी पहली रैली पर भी पड़ा, जो जिन्ना की मजार पर होनी थी, पर होने न दी गई।
पाकिस्तान की फौज ने जहां हुकूमत से अपने पुराने जनरल के लिए कड़ी हिफाजत की मांग की है, वहीं बहुत से ऐसे भी हैं जो उनको उनके किए 'जुर्मों' के लिए कड़ी सजा देने की मांग कर रहे हैं। बलूचिस्तानियों का पारा तो बहुत ऊंचा है जहां मुशर्रफ के फौजी कार्रवाई के फरमान के चलते बलूचियों में लोकप्रिय नेता नवाब अकबर बुग्ती की जान गई थी। उन्हीं बुग्ती के बेटे, जम्हूरी वतन पार्टी के आला नेता तलाल अकबर बुग्ती कहते हैं, 'हत्या के मामलों में उनका कथित हाथ होने के लिए उन्हें मौत की सजा हो।'
वतन लौटने पर मुशर्रफ ने अपने कट्टरवादी समर्थकों को खुश करने के लिए बयान दिया कि कारगिल करने पर उन्हें फख्र है। भारत में उनके इस बयान पर तमाम दलों ने तीखी आलोचना करते हुए उनसे माफी मांगने को कहा।
खोसो कराएंगे चुनाव
अब दूसरी घटना। 25 मार्च को सेवानिवृत्त जज 84 साल के मीर हाजर खान खोसो ने कार्यवाहक प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाल ली। उन्हें वहां के चुनाव आयोग ने कुर्सी पर तब बैठाया जब संसदीय समिति और तमाम सियासी तंजीमें किसी एक उम्मीदवार के नाम पर एक नहीं हुईं। दिलचस्प बात यह है कि खोसो उथल-पुथल वाले इलाके बलूचिस्तान से हैं। वह अपना अंतरिम मंत्रिमंडल बनाकर 11 मई के चुनाव करवाएंगे।
तीसरी और सबसे हैरान करने वाली घटना राष्ट्रपति-पुत्र बिलावल के रूठकर दुबई चले जाने की है। कुछ महीनों पहले विदेश मंत्री हिना खार से कथित नजदीकियों के चलते अपने पिता जरदारी से उनके खरी-खरी सुनने के खूब चर्चे उड़े थे। अभी हाल में उन्हें उनके अब्बा ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का सरपरस्त बनाया था। 26 मार्च को पार्टी से जुड़े कुछ मुद्दों पर उनकी अपने अब्बा और बहन फरयाल से ऐसी ठनी कि वह गुस्से में दुबई चले गए। नजदीकी जानकारों के मुताबिक, बिलावल का कहना था कि पार्टी ने उग्रवादी हिंसा, मलाला पर तालिबानी हमले और शियाओं पर जिहादी हमलों के मुद्दे को सही तरह से नहीं उठाया। फरयाल ने सिंध में उन लोगों को आने वाले चुनावों में टिकट देने से मना कर दिया था जिनकी बिलावल ने पैरवी की थी। अपने पिता से इस बाबत बात करने पर भी बिलावल को कुछ हासिल नहीं हुआ। बताते हैं, पानी जब गले तक आ गया तो बिलावल यह कहते हुए दुबई रवाना हो गए कि, 'अगर मुझसे कोई पूछे तो मैं भी पीपीपी को वोट नहीं दूंगा।' लेकिन ऐसा मानने वालों की भी कमी नहीं है कि गुस्से का गुबार उतरने के साथ बिलावल लौट आएंगे, क्योंकि सियासत के अलावा उनकी और कहीं गति नहीं है और पीपीपी में बने-बनाए रुतबे को छोड़कर वे फिलहाल नई तंजीम खड़ी करने की बाबत सोच तक नहीं सकते।
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