श्रीलंका में तमिलों को उनके अधिकार मिलें
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श्रीलंका में तमिलों को उनके अधिकार मिलें

by
Mar 23, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 23 Mar 2013 12:52:06

 

अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में सरकार्यवाह श्री भैया जोशी ने श्रीलंका के तमिल पीड़ितों की समस्याओं पर प्रेस के लिए एक बयान जारी किया। यहां उसी बयान के सम्पादित अंश प्रस्तुत हैं।

गत वर्ष संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यूएनएचआरसी) की जेनेवा बैठक से ठीक पहले हमने यह वक्तव्य प्रसारित किया था कि श्रीलंका सरकार अपने देश के तमिलों की समस्याओं का समाधान करने के लिए सक्रियतापूर्वक कदम उठाते हुए उनकी सुरक्षा, उचित पुनर्वास एवं राजनीतिक अधिकारों को सुनिश्चित करे। मैं आज यह कहने को बाध्य हूं कि एक वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद भी धरातल पर उनकी स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है। इस कारण से वैश्विक जगत का श्रीलंका सरकार की मंशाओं के प्रति संदेह और गहरा गया है।

मैं इस अवसर पर श्रीलंका सरकार को एक बार फिर याद कराना चाहता हूं कि वह 30 वर्ष के लिट्टे (एलटीटीई) एवं श्रीलंका सुरक्षा बलों के मध्य हुए संघर्ष के परिणामस्वरूप हुई तमिलों की दुर्दशा पर आंख मूंदकर नहीं बैठ सकती, जिन्हें इस कारण अपने जीवन, रोजगार, घरों और मंदिरों को भी खोना पड़ा। एक लाख से अधिक तमिल आज अपने देश से पलायन कर तमिलनाडु के समुद्री किनारों पर शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं।

हमारा यह सुनिश्चित मत है कि श्रीलंका में स्थायी शांति तभी संभव है जब उस देश की सरकार उत्तरी एवं पूर्वी प्रान्तों तथा भारत में रहने वाले तमिल शरणार्थियों की समस्याओं पर गंभीरतापूर्वक एवं पर्याप्त रूप से ध्यान दे। हम भारत सरकार से यह आग्रह करते हैं कि वह यह सुनिश्चित करे कि श्रीलंका सरकार, विस्थापित तमिलों के पुनर्वास तथा उन्हें पूर्ण नागरिक व राजनीतिक अधिकार प्रदान करने के लिए जिम्मेदारीपूर्वक व्यवहार करे।

यह ध्यान रखना ही होगा कि हिन्द महासागर क्षेत्र में स्थित इस पड़ोसी द्वीप को, जिसके भारतवर्ष से हजारों वर्ष पुराने रिश्ते हैं, हम वैश्विक शक्तियों के द्वारा हिन्दू महासागर को युद्ध क्षेत्र बनाने के भू-सामरिक, कूटनीतिक खेल में उनका मोहरा न बनने दें। उस देश के सिंहली व तमिलों के बीच की खाई को और अधिक बढ़ाने के प्रयासों को सफल नहीं होने देना चाहिए। इसी में ही श्रीलंका के संकट का स्थायी हल निहित है।

इसी अवसर पर देश की वर्तमान परिस्थितियों पर श्री जोशी ने कहा कि सरकार की अदूरदर्शितापूर्ण नीतियों से बढ़ते आर्थिक संकट और कृषि, लघु उद्योग व अन्य रोजगार आधारित क्षेत्रों की बढ़ती उपेक्षा आज देश के लिए चिन्ता का कारण बन कर उभर रही है। देश के उत्पादक उद्योगों की वृद्धि दर आज स्वाधीनता के बाद सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुंच गयी है। बेरोजगारी, निरंतर बढ़ रही महंगाई, विदेश व्यापार में बढ़ता घाटा और देश के उद्योग, व्यापार व वाणिज्य पर विदेशी कम्पनियों का बढ़ता आधिपत्य आदि आज देश के लिए गंभीर आर्थिक संकट का कारण सिद्ध हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों के प्रवाह को अवरुद्ध करने के सरकारों के प्रयास, उन्हें प्रदूषण-मुक्त रखने के लिए उपेक्षा एवं उनकी रक्षार्थ चल रहे आन्दोलनों की भावना को न समझते हुए उनकी उपेक्षा भी गंभीर रूप से चिन्तनीय है। संघ इन सभी जन आन्दोलनों का स्वागत करता है।

रामसेतु के सन्दर्भ में श्री जोशी ने कहा कि रामसेतु, जो करोड़ों हिन्दुओं की श्रद्धा का केन्द्र होने के साथ-साथ, वहां पर विद्यमान थोरियम के दुर्लभ भण्डारों को सुरक्षित रखने में भी प्रभावी सिद्ध हो रहा है। उसे तोड़ कर ही सेतु-समुद्रम योजना को पूरा करने की सरकार की हठधर्मिता, देश की जनता के लिए असह्य है।

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