अशरफ की अगवानी के लिए यह आतुरता क्यों?
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अशरफ की अगवानी के लिए यह आतुरता क्यों?
अजमेर की दरगाह पर 9 मार्च को चादर चढ़ाने आए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की अगवानी करने के लिए सलमान खुर्शीद को भेजकर सरकार ने एक बार फिर अपनी तुष्टीकरण वाली सोच उजागर कर दी। अशरफ उसी देश के प्रधानमंत्री के नाते चादर चढ़ाने आए थे जो 8 जनवरी को भारतीय सेना के दो जवानों की हत्या और एक जवान का सिर काटने के बाद अपनी उस अमानवीय करतूत से मुकर गया था। भारत की जनता उस घटना से बेहद गुस्से में है और ईंट का जवाब पत्थर से देने की मांग करती रही है। लेकिन कुछेक तावभरे बयानों के बाद सरकार की तरफ से कोई ठोस हरकत देखने में नहीं आई। अशरफ के विरोध में अजमेर की दरगाह के मुख्य दीवान जरूर उतरे और ऐसे देश के प्रधानमंत्री को खुद जियारत नहीं करवाने की घोषणा कर दी। शहर के वकीलों, व्यापारियों और कई हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों ने अशरफ के विरोध में कामकाज बंद रखा, बाजार बंद रखे। लेकिन जिस तरह बांछें खिलाकर खुर्शीद अशरफ की अगवानी कर रहे थे उससे इस सरकार की भारत की सुरक्षा को लेकर रही नरम सोच की एक बार फिर से कलई खुल गई। आखिर पाकिस्तान की जिहादी करतूतों के बावजूद उससे मधुर संबंध बनाने की कोशिश के पीछे क्या है? यहां बता दें कि 8 जनवरी, 2013 को भारतीय सैनिक का सिर काटने की घटना के बाद 14 जनवरी को सीमा पर ब्रिगेड कमांडर स्तर की बैठक हुई थी जिसमें पाकिस्तानी सेना से ऐसी हरकतों से बाज आने और सीमा पर शांति बनाए रखने को कहा गया था। लेकिन 11 मार्च को रक्षामंत्री ने संसद को बताया कि तब से अब तक पाकिस्तानी सेना 14 बार संघर्षविराम का उल्लंघन कर चुकी है।
अहमदेनिजाद पर ईरानियों की गाज
वेनेजुएला के राष्ट्रपति शावेज की मृत्यु के बाद अफसोस करने वेनेजुएला गए ईरान के राष्ट्रपति अहमदेनिजाद को अपने देश के बड़े वाले मौलवियों के गुस्से का सामना करना पड़ा। उनका 'कसूर' इतना था कि शावेज के अंतिम संस्कार के वक्त, अपने बेटे के विदा हो जाने से दुखी उनकी मां को ढाढस बंधाते हुए अहमदेनिजाद ने अपने कंधे का सहारा दिया था। अगले दिन तमाम अखबारों में उस पल की तस्वीरें छपने के बाद ईरान में खूब हायतौबा मची। शावेज की दुखी मां को गले लगाना मुल्क के इस्लामी कायदों में जुर्म माना गया, मुल्ला-मौलवी बिफर पड़े। ईरान के अखबारों में मौलवियों ने पराई महिला से स्पर्श करने को 'वर्जित' हरकत बताया।
अहमदेनिजाद शावेज के जाने से ऐसे भावुक हुए कि वेनेजुएलावासियों के साथ दुख बांटते हुए पत्र लिख दिया कि-'शावेज वह 'शहीद' हैं जो फिर से धरती पर लौटेंगे।' मुल्लाओं ने इसके लिए भी अहमदेनिजाद को खूब खरी-खोटी सुनाई।
फ्रांसिस अगले पोप
आखिर वेटिकन में जुटे कार्डिनलों ने बहुत ही जल्दी खत्म हुई अपनी गुप्त बैठक में 13 मार्च को कार्डिनल जार्ज मारियो बरगोगलिओ के नाम पर मुहर लगाकर उन्हें अगला पोप घोषित कर दिया। यह पहली मर्तबा है जब यूरोप से बाहर का कोई कार्डिनल पोप के पद पर बैठा है। बरगोगलिओ उनका पहले का नाम है, अब उन्हें कार्डिनल फ्रांसिस के नाम से जाना जाता है। पोप बने 76 साल के फ्रांसिस अर्जेण्टीना से हैं, वहीं कार्डिनल रहे हैं और ताउम्र वहीं का चर्च संभाला है। दिलचस्प बात यह है कि 2005 में जब पोप बेनेडिक्ट सोलहवें चुने गए थे तब फ्रांसिस दूसरे नंबर पर रहे थे। उनके चुनाव पर उन लातीनी अमरीकियों की बांछें खिल गई हैं जो दुनिया में कैथोलिकों की कुल आबादी के 40 फीसदी हैं। कहना न होगा फ्रांसिस के सामने चर्च में अनैतिक यौनाचार, खाली होते चर्च और मतान्तरण के आरोपों के भंवरजाल की चुनौती है और कैथोलिक नए पोप के कार्य-व्यवहार पर बारीक नजर रखने ही वाले हैं
आलोक गोस्वामी
….और टूट पड़ी मजहबी उन्मादियों की भीड़
लाहौर की जोसफ कालोनी से जान बचाने को भागे 150 ईसाई परिवार
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को पड़े जान के लाले
बात 8 मार्च की है। लाहौर के बादामी बाग इलाके में ईसाइयों की रिहायश वाली जोसफ कालोनी पर अचानक करीब 3000 उन्मादियों की भीड़ टूट पड़ी। भीड़ का अगुआ शफीक अहमद बड़ी सरगर्मी से 28 साल के सफाई कर्मचारी सवन मसीह उर्फ बब्बी नाम के एक शख्स को ढूंढ रहा था। वह नहीं दिखा तो उन्मादियों की भीड़ ने उसके घर को घेर लिया, उस पर पत्थर बरसाए और आग लगा दी। मोहल्ले के और 150 ईसाई परिवारों के घरों पर भी हमला बोला गया। चीख-पुकार मच गई। बच्चे और महिलाएं जान बचाने को यहां-वहां भागने लगे, पर जहां जाते थे तैश खाती भीड़ से सामना होता, लिहाजा कहीं छुप-छुपाकर बैठ गए।
सवन नहीं मिला तो उसके पिता को ही पकड़कर बुरी तरह पीटा गया। चीख-पुकार सुनकर मामले की जानकारी लेने आए एक पास्टर की गाड़ी भी फूंक दी गई। दोपहर से शाम तक उन्मादियों ने जमकर उपद्रव मचाया, कहीं कोई पुलिस नहीं, कोई सुनने वाला नहीं। इस बीच मुहल्ले के ईसाई जो हाथ लगा उसे ही संभालकर जान बचाने को भाग निकले। देर शाम पुलिस आई और सवन के नाम धारा 295-सी के तहत ईशनिंदा का मामला दर्ज करके उपद्रवियों को यह 'तसल्ली' दी कि सवन के पकड़े जाते ही उन्हें खबर दी जाएगी। इसके बाद ही शफीक भीड़ को लेकर वहां से हटा।
सवन को शफीक क्यों ढूंढ रहा था? वह इसलिए क्योंकि किसी शाहिद इमरान ने उसे बताया था कि सवन पैगम्बर के खिलाफ 'उल्टा-सीधा' बोलता रहता है, वह कुफ्र का दोषी है। शफीक के सिर पर जुनून सवार हो गया, वह हथियार लेकर भीड़ के साथ सवन के घर जा धमका और उत्पात मचा दिया। 8 मार्च को जुमे की नमाज पढ़कर निकलते दूसरे मुसलमान भी भड़कावे में आकर भीड़ में शामिल हो गए। भीड़ पूरे मुहल्ले में नारे लगाती, पत्थर फेंकती रही। पाकिस्तान में यूं भी कुर्फ के नाम पर अल्पसंख्यकों को जेल में डाला जाता रहा है। कुछ समय पहले एक 11 साल की ईसाई लड़की को भी ईशनिंदा कानून के तहत जेल भेज दिया गया था। हालांकि बाद में पता चला कि एक मौलवी ने ईसाइयों को सताने की गरज से उस बच्ची को जेल में डलवाया था। मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तूल पकड़ गया तो बच्ची को रिहा करने की कवायद की गई। बहरहाल, मजहबी दंगाइयों ने बादामी बाग इलाके में फरमान जारी कर दिया है कि सवन के उनके हत्थे न चढ़ने तक वे ईसाइयों को जोसफ कालोनी में अपने घरों में लौटने नहीं देंगे। पूरे मुहल्ले में वीरानी पसरी है। जान के लाले पड़े हुए हैं।
11 मार्च को पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय के पुलिस को आड़े हाथों लिया कि उसने जोसफ कालोनी में हिंसा को काबू क्यों नहीं किया, पुलिस चुपचाप तमाशा क्यों देखती रही? अदालत कुछ भी कहे, मुद्दे की बात यह है कि पाकिस्तान में हिन्दुओं की भी हालत चिंताजनक है और दूसरे अल्पसंख्यकों की भी
बंगलादेश में जारी है हिन्दुओं के विरुद्ध कट्टरवादियों की हिंसा
जमातियों ने जलाए मन्दिर और घर
जमाते इस्लामी के बड़े वाले नेता देलवर हुसैन सईदी को मौत की सजा सुनाए जाने के बाद बंगलादेश के तमाम शहरों में उस कट्टरवादी तंजीम के बेलगाम तत्वों ने हिन्दू आबादी पर निशाना साधा। इसकी कुछ शुरुआती जानकारी हमने इसी पृष्ठ पर पहले के अंकों में प्रकाशित की थी। हिंसक घटनाओं का दौर फिलहाल थमता नजर नहीं आ रहा है। वहां अल्पसंख्यक वर्ग के करीब सौ लोगों की हत्या हो चुकी है और बड़े पैमाने पर आगजनी की घटनाएं देखने में आई हैं। जगह-जगह हथियारबंद पुलिस वाले तैनात हैं, पर ये असामाजिक तत्व मौका देखकर हथियारों के साथ हिन्दू मुहल्लों पर टूट पड़ते हैं।
ताजा जानकारी के अनुसार, मजहबी जमाती तत्व नोआखली, सतखीरा और सिराजगंज में हिन्दुओं के घरों और मंदिरों को आग के हवाले कर रहे हैं। बंगलादेश में हिन्दू मंदिरों की देखभाल करने वाली संस्था पूजा उद्यापन परिषद ने बताया कि देलवर को सजा सुनाए जाने के दिन यानी 28 फरवरी से अब तक, 47 मंदिर और हिन्दुओं के 700 घरों को जला डाला गया है, लूटा और तहस-नहस कर दिया गया है। परिषद के उपाध्यक्ष काजल देबनाथ ने कहा कि हिन्दू घरों और मंदिरों को जलाने का दुष्कृत्य जमाते इस्लामी और इस्लामी छात्र शिबिर ने किया है। स्थानीय प्रशासन दंगाइयों को काबू करने में नाकाम साबित हो रहा है।
बंगलादेश की विदेश मंत्री दीपू मोनी ने पिछले हफ्ते पुष्टि की थी कि जमातिये और शिबिर ही बड़े सुनियोजित तरीके से हिन्दू घरों और मंदिरों पर हमले कर रहे हैं। उघर एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी सरकार से हिन्दुओं की जान-माल की हिफाजत करने की मांग की है।
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