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भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, प्रवासी दुनिया और अक्षरम् के संयुक्त तत्वावधान में गत दिनों दो दिवसीय 11वां अंतरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव नई दिल्ली में सम्पन्न हुआ। इस उत्सव का उद्घाटन भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् के महासचिव श्री सुरेश गोयल ने किया। उद्घाटन सत्र में हिन्दी के समक्ष उपस्थित चुनौतियों पर गंभीर चर्चा हुई। सत्र में डा. प्रभाकर श्रोत्रिय, श्री राहुल देव, डा. अशोक चक्रधर, प्रो. हिदेआकि इशिदा, डा. श्रीनारायण 'समीर' एवं डा. विमलेश कांति वर्मा ने अपने विचार प्रकट किए। उत्सव के आयोजन का उद्देश्य हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार कर उसे व्यापकता प्रदान करना व उसकी रक्षा करना था।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री सुरेश गोयल ने हिन्दी भाषा की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिन्दी भाषा को मात्र राजभाषा का दर्जा प्रदान कर देने से हिन्दी भाषा का विकास नहीं हो सकता। इसके लिए हिन्दी को आत्मा की भाषा बनाना जरूरी है। यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि हिन्दी केवल सरकारी फाइलों में दबकर न रह जाए।
प्रख्यात चिंतक श्री प्रभाकर श्रोत्रिय ने कहा कि हिन्दी में साहित्य के अलावा अन्य ज्ञान उपलब्ध नहीं है। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि हिन्दी क्षेत्र के लोगों को दक्षिण भारत की भाषाएं सीखनी चाहिएं, ताकि भारत में भाषायी सामंजस्य स्थापित हो सके।
डा. श्रीनारायण 'समीर' ने कहा कि राष्ट्रीय भावना की कमी हिन्दी के विकास में मुख्य बाधा है। उन्होंने लोकतांत्रिक बहुलतावाद को हिन्दी की प्रमुख शक्ति बताया।
जापान में हिन्दी भाषा के विद्वान प्रो. हिदेआकि इशिदा ने कहा कि जापान में विद्यार्थियों में हिन्दी सीखने के प्रति बहुत उत्साह है।
केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो. अशोक चक्रधर ने सरकारी कामकाज में हिन्दी की स्थिति पर प्रकाश डाला।
हिन्दी की चिंताजनक स्थिति को क्रमबद्ध ढंग से प्रस्तुत करते हुए प्रख्यात पत्रकार श्री राहुल देव ने कहा कि प्राथमिक स्तर पर हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं में विद्यार्थियों को शिक्षा देने से ही इन भाषाओं का संरक्षण संभव है। उन्होंने हिन्दी भाषी समाज को जाग्रत होकर प्रयत्न करने की आवश्यकता पर बल दिया।
अमरीका से आईं लेखिका सुश्री सुदर्शना प्रियदर्शनी ने अमरीका में हिंदी की स्थिति पर चिंता प्रकट की। साथ ही ब्रिटेन की अध्यापिका श्रीमती सुलेखा चोपला ने ब्रिटेन में अपने हिन्दी शिक्षण संबंधी अनुभवों को प्रस्तुत किया। प्रतिनिधि
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