युगनायक विवेकानन्द
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युगनायक विवेकानन्द

by
Feb 16, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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पाठकीय:अंक-सन्दर्भ 27 जनवरी,2013

दिंनाक: 16 Feb 2013 13:48:36

पाञ्चजन्य के गणतंत्र दिवस विशेषांक में आत्मविश्वास के साक्षात् मूर्तस्वरूप स्वामी विवेकानन्द से संबंधित लेखों को पढ़कर प्रसन्नता हुई। श्री देवेन्द्र स्वरूप का लेख 'विवेकानन्द शिला स्मारक राष्ट्रीयता का पावन तीर्थ' पढ़कर पुरानी स्मृति जाग गई। स्वामी जी की जन्मशताब्दी का शुभारम्भ जब हुआ, तब मैं उत्कल प्रान्त में था। इसलिए श्री एकनाथ रानाडे के क्रियाकलापों का इतना वृहत् ज्ञान प्राप्त नहीं कर सका। यह इतिहास पढ़कर आश्चर्य-मिश्रित आनन्द प्राप्त हुआ। यह अंक इस लेख से परिपूर्ण हो गया है।

–आचार्य त्रिनाथ

गुरुकुल प्रभात आश्रम, ग्राम–टीकरी

पत्रालय–जानी, जिला–मेरठ-250501 (उ.प्र.)

विशेषांक में विद्वान लेखकों ने स्वामी विवेकानन्द के बारे में हमारी जानकारी बढ़ाई है, हम उनके कृतज्ञ हैं। विद्यालयों, घरों में बच्चों को स्वामी जी के बारे में बताया जाना चाहिए। हम अपने राष्ट्र के गौरव को तभी बचा सकते हैं जब हम स्वामी विवेकानन्द के विचारों पर चलेंगे। हमें स्वामी जी के इस मंत्र 'गर्व से कहो हम हिन्दू हैं' का बार-बार उद्घोष करना होगा।

–क्षत्रिय देवलाल

उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया कोडरमा-825409 (झारखण्ड)

पहले हम स्वयं स्वामी विवेकानन्द के आदर्शों को अपनाएं, फिर अन्य लोगों को प्रेरित करें। अभी तो हम पश्चिम के रंगीन सपनों में बेसुध हैं। 26 जनवरी, 1950 को हमारे यहां संविधान लागू हुआ, पर वह अभी तक 'भारतीय' नहीं बन सका है। संविधान में स्वामी विवेकानन्द के विचारों को शामिल करना होगा। इसके बाद ही राम राज्य की कल्पना साकार होगी।

–ठाकुर सूर्यप्रताप सिंह सोनगरा

कांडरवासा, रतलाम-457222 (म.प्र.)

स्वामी विवेकानन्द ने यह अनुभव किया कि हमारे जो बन्धु गरीबी में जी रहे हैं उन्हें लालच देकर मतान्तरित किया जा रहा है। इसीलिए उन्होंने कहा, 'उनमें भगवान को देखकर उनकी सेवा करो।' ऐसे ही लोगों की सहायता और सेवा के लिए उन्होंने रामकृष्ण मिशन के माध्यम से सेवा प्रकल्पों की शुरुआत की। सेवा का यह यज्ञ अनवरत चलता रहे। हममें से जो बंधु समय निकाल सकते हैं, कुछ पैसा खर्च कर सकते हैं, वे गरीब हिन्दुओं की सहायता के लिए आगे आएं। स्वामी विवेकानन्द यही तो कहते थे।

–सुहासिनी प्रमोद वालसंगकर

द्वारकापुरम, दिलसुखनगर

 हैदराबाद-60 (आं.प्र.)

स्वामी विवेकानन्द के विचार इस देश की आत्मा और ऊर्जा है। उन्होंने धर्म, राजनीति और राष्ट्रवाद का सूक्ष्म विवेचन कर उसे समाज के उन क्षेत्रों में विस्तार दिया जहां उसकी जरूरत थी। स्वामी जी ने हिन्दू संस्कृति और उसके व्यापक स्वरूप को न केवल देश में बल्कि विश्वभर में प्रचारित किया। स्वामी जी के विचारों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की बहुत आवश्यकता है।

–मनोहर 'मंजुल'

पिपल्या–बजुर्ग, प. निमाड़-451225 (म.प्र.)

विशेषांक के सभी लेख ज्ञानवर्द्धक हैं। स्वामी विवेकानन्द की 150वीं जयन्ती पर पाठकों को उनकी विचार-गंगा में डुबकी लगाने का अवसर प्रदान किया गया है। इसके लिए सम्पादकीय विभाग बधाई और धन्यवाद का पात्र है।

–दिनेश गुप्ता

कृष्णगंज, पिलखुवा (उ.प्र.)

रामधारी सिंह 'दिनकर' ने स्वामी विवेकानन्द को 'सांस्कृतिक राष्ट्रीयता के पिता' के रूप में प्रस्तुत किया है। स्वामी जी ने भारतीय संस्कृति को पूरे विश्व में फैलाने का अतुलनीय कार्य किया। तभी तो आज भी उनके विचारों की प्रासंगिकता है और आगे भी रहेगी।

–हरिहर सिंह चौहान

जंवरीबाग नसिया, इन्दौर-452001 (म.प्र.)

पाकिस्तान का लक्ष्य

पाकिस्तान का एकमेव लक्ष्य भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देकर लोकतांत्रिक शासन पद्धति को विफल सिद्ध करना है। पाक-पोषित आतंकवाद से भारत पिछले कई वर्षों से त्रस्त है। भारत सहित विश्व में घटित होने वाली आतंकवादी घटनाओं के साथ पाकिस्तान का नाम किसी न किसी रूप में जुड़ जाता है। पाकिस्तान के विभिन्न आतंकवादी संगठन वैश्विक शान्ति व सौहार्द के लिए खतरा बन चुके हैं। भारत को नीचा दिखाने तथा अस्थिर करने का पाकिस्तान हर संभव प्रयास करता रहता है। जब वह प्रत्यक्ष युद्ध में हमसे नहीं जीत पाया तो उसने राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर परोक्ष युद्ध छेड़ दिया। भारत को जनता की इच्छा के अनुरूप पाकिस्तान के विरुद्ध कठोर सैन्य कार्रवाई करके सीमा उल्लंघन की घटनाओं पर सदा के लिए अंकुश लगाना चाहिए।

–विक्रम सिंह

15/92, मोहल्ला जोगियों वाला, घरौंडा, करनाल-132114 (हरियाणा)

बेचारे रियांग हिन्दू

सेकुलर भारत में हिन्दू होना कितना बड़ा अपराध है, इसके उदाहरणों में से एक को देखने के लिए आपको मिजोरम जाना पड़ेगा। रियांग हिन्दू पिछले 15 वर्षों से त्रिपुरा के जंगलों में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं। उनका अपराध सिर्फ इतना है कि जब मिजोरम में ईसाई मिशनरियों द्वारा निर्धन जनजातियों को ईसाई बनाने का अभियान चला तो वे अपने धर्म पर डटे रहे। सरकारी और सामाजिक भेदभावों को सहते रहे। मिजोरम में हिन्दू अल्पसंख्यक है। फिर भी वहां न तो अल्पसंख्यक आयोग है और न ही मानवाधिकार आयोग। मिजोरम में सन् 1991 की जनगणना के अनुसार हिन्दू लगभग 90 हजार हैं, जबकि यहां कुल जनसंख्या 9 लाख है। रियांग हिन्दू, सनातन धर्म के वैष्णव सम्प्रदाय से हैं और वे अपने आपको कश्यप ऋषि की संतान मानते हैं। इन्हें ब्रू भी कहा जाता है। रियांग मिजोरम का दूसरा सबसे बड़ा सम्प्रदाय है। लाख कोशिश के बावजूद ईसाई मिशनरियां रियांग लोगों को ईसाई नहीं बना पायीं। नागरिक सुविधाओं के अभाव और सामाजिक प्रताड़ना को देखते हुए रियांग हिन्दुओं ने 1997 में निर्णय लिया कि वे स्वशासित जिला परिषद् की मांग करेंगे ताकि भारत की छठी अनुसूची के अन्तर्गत अपनी भाषाई, धार्मिक व देशी पहचान को सुरक्षित रख सकें। इस हेतु 'ब्रू नेशनल यूनियन' की स्थापना की गई। रियांग हिन्दुओं ने स्वशासित जिला परिषद् की मांग की। लेकिन ईसाई प्रभुत्व वाले राजनीतिक दलों ने इस मांग को बेतुके कारणों से ठुकरा दिया। लेकिन रियांग हिन्दू अपनी मांग पर डटे रहे। तब रियांग हिन्दुओं को मिजोरम छोड़ने को कहा गया और अक्तूबर, 1997 की सर्द रात में इनकी बस्तियों पर हमला बोला गया। रियांग हिन्दुओं के गांव जला दिये गए। लगभग 45,000 रियांग हिन्दुओं ने भाग कर त्रिपुरा के पहाड़ी जंगलों में शरण ली। जो भाग नहीं सके वे उनके हमलों के शिकार बने। महिलाओं के साथ बलात्कार किये गये। इन सब घटनाओं पर मीडिया ने पूरी चुप्पी लगायी। पूरा देश इस त्रासदी को जान नहीं पाया और न ही इन दुखदायी घटनाओं का कोई विवरण समाचार पत्रों में छप पाया। चर्च प्रेरित विभिन्न संगठनों के इस रूप से अभी भी पूरा देश अन्जान है।

1997 से रियांग हिन्दू पहाड़ी जंगलों में अत्यंत दयनीय और नारकीय स्थिति में रह रहे हैं। अकेले मलेरिया से सैकड़ों लोग काल के मुंह में जा चुके हैं। अप्रैल, 2005 में मिजोरम सरकार और रियांग हिन्दुओं के बीच समझौता हुआ। इसके अनुसार स्वशासित जिला परिषद् की मांग छोड़ने पर रियांग लोगों को पुन: मिजोरम में बसाया जा सकता है। परेशान रियांग लोगों ने अपनी स्वशासित जिला परिषद् की मांग छोड़ दी। इतना ही नहीं जिन लोगों ने शस्त्र उठाये थे, उन्होंने भी समर्पण कर दिया और उनकी पुन: वापसी पर समझौता हुआ। लेकिन जब उन्हें वापस लेने का समय आया तो अनेक अड़ंगे लगाए गए। इस कारण रियांग हिन्दू अभी भी पहाड़ी पर रहने को मजबूर हैं। इन हिन्दुओं के दर्द को कोई महसूस नहीं कर रहा है,  इनके पक्ष में कोई बोल भी नहीं रहा है। भगवान राम का वनवास तो 14 वर्षों में समाप्त हो गया था, लेकिन मिजोरम में भगवान राम के भक्तों का वनवास कब समाप्त होगा, यह कोई नहीं जानता।

–ओम प्रकाश त्रेहन

एन 10, मुखर्जी नगर, दिल्ली-110009

पाञ्चजन्य से निवेदन

पाञ्चजन्य मुझे बहुत प्रभावित करता है। हर अंक में कुछ न कुछ ऐसी जानकारी मिलती है जिससे पाञ्चजन्य पढ़ना सार्थक लगता है। पिछले दिनों जब हैदराबाद के भाग्यलक्ष्मी मन्दिर का समाचार प्रकाशित हुआ तो पता चला कि हैदराबाद का प्राचीन नाम 'भाग्य नगर' था। भाग्यलक्ष्मी के नाम पर ही 'भाग्य नगर' नाम पड़ा था। इसका अर्थ है कि भाग्य लक्ष्मी मन्दिर बहुत पुराना है। पर दुर्भाग्य से कट्टरवादी उसके साथ विवाद जोड़ रहे हैं। कट्टरवादियों को मन्दिर में सजावट करना भी पसन्द नहीं है, तभी तो वे बराबर हंगामा करते हैं। इन्हीं कट्टरवादियों के वंशजों ने अपने राज–पाट के समय भाग्य नगर का नाम बदल कर हैदराबाद कर दिया था। भारत में ऐसे लाखों गांव और नगर हैं, जिनका मुस्लिम काल में इस्लामी नामकरण किया गया। मेरे विचार से इन नामों को बदलने का समय आ गया है। पाञ्चजन्य से निवेदन है कि यथासंभव ऐसे गांवों और नगरों के प्राचीन नाम पाठकों को बताया जाए। दूसरा निवेदन है कि जब भी किसी देवी–देवता का उल्लेख करें उनके साथ 'श्री', 'जी' जैसे शब्द अवश्य लगाएं। जैसे श्रीकृष्ण, श्रीराम, श्रीविष्णु, सरस्वती जी, लक्ष्मी जी आदि।

–अमित कुमार त्रेहन

म.सं.-653, गली सं. 3 नेहरू कालोनी, मजीठा रोड, अमृतसर-143001 (पंजाब)

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