'युवराज' की पाठशाला
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समदर्शी
कांग्रेस के जयपुर चिंतन शिविर में महासचिव से उपाध्यक्ष बना दिये जाने के बाद 'युवराज' राहुल गांधी सक्रिय बताये जा रहे हैं। हालांकि तेलंगाना से लेकर महिला सुरक्षा तक, हर ज्वलंत मुद्दे पर उनका मौन बरकरार है, पर कांग्रेस के मीडिया मैनेजरों का दावा है कि वह वाकई बहुत सक्रिय हैं और गंभीर भी। गंभीरता का कोई प्रमाण तो इन मैनेजरों के पास भी नहीं है, पर सक्रियता का प्रमाण उनकी पाठशाला बतायी जा रही है। उपाध्यक्ष बनने के बाद 'युवराज' ने तीन दिन तक पाठशाला लगायी। जाहिर है, इस पाठशाला के एकमात्र शिक्षक तो वह ही रहे, लेकिन विद्यार्थियों में वे भी शामिल थे, जिनका राजनीतिक जीवन ही 'युवराज' की उम्र से ज्यादा हो चुका है। अब ऐसे में राजनीतिक गलियारों में स्वाभाविक सवाल यह गंूज रहा है कि इस पाठशाला में 'युवराज' ने पाठ क्या पढ़ाया? मीडिया मैनेजर जो बता रहे हैं, वह जयपुर के चिंतन शिविर में उनके चर्चित भाषण का विस्तार भर है। पर कांग्रेस के रंग-ढंग पर उठाये गये उनके सवाल तो उल्टे मां-बेटे को ही कठघरे में खड़ा कर देते हैं। फिर भी मुद्दों से मुंह चुराते हुए कांग्रेसी मीडिया मैनेजर दावा कर रहे हैं कि जल्द ही बड़ा बदलाव नजर आयेगा, पर क्या बदलेगा–कोई नहीं जानता। हां, कुछ चेहरे अवश्य ही बदल जायेंगे। उसके लिए जोड़तोड़ भी शुरू हो गयी है। याद है न, पिछले केंद्रीय मंत्रिमंडलीय फेरबदल में कुछ मंत्रियों ने संगठन में काम करने की इच्छा जताते हुए इस्तीफे दिये थे। केंद्र में सरकार के दिन गिने-चुने बचे हैं। इसलिए ज्यादातर कांग्रेसियों की कोशिश है कि संगठन में दांव लग जाये, क्योंकि एक तो वहां दुकान सदाबहार चलती रहेगी, दूसरे नये नेतृत्व से निकटता बढ़ाने का बेहतर मौका मिलेगा।
परिवार बनाम पार्टी
मुद्दों पर 'युवराज' भले ही मौन रहे, पर उन्होंने एक संदेश पदाधिकारियों और उनके जरिये पार्टीजन को अवश्य दिया है। मीडिया से तो 'युवराज' दूर ही रहने में भलाई समझते हैं, पर मैनेजरों के ही मुताबिक, उन्होंने कहा है कि पार्टी को परिवार मानिए। परिवार होने का दावा तो कमोबेश सभी दल करते हैं, पर कांग्रेस के संदर्भ में अक्सर इसके मायने बदल जाते हैं। दिलचस्प यह है कि यह काम सिर्फ विपक्षी दल ही नहीं करते, दबी जुबान कांग्रेसी भी ऐसा करने में नहीं चूकते। मसलन, 'युवराज' की इसी नसीहत पर कटाक्ष करते हुए एक कांग्रेसी ने समदर्शी से पूछा कि कहीं राहुल जी की जुबान तो नहीं फिसल गयी? कांग्रेस के अतीत और वर्तमान के मद्देनजर तो नसीहत यह होनी चाहिए थी कि परिवार को ही पार्टी समझिए, क्योंकि नेहरू परिवार ही तो कांग्रेस है। अगर पार्टी ही सही मायने में परिवार होती तो क्या वाई. एस. राजशेखर रेड्डी की हेलिकाप्टर दुर्घटना में मौत के बाद उनके बेटे जगन मोहन रेड्डी को दुत्कार कर उसके पीछे सीबीआई लगा दी जाती?
राजा की राजनीति
हिमाचल प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को बहुमत दे दिया और चाहे-अनचाहे सोनिया गांधी ने वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री भी बना दिया, लेकिन वह ओछी राजनीति से ऊपर उठ पाने को तैयार नहीं दिखते। पहला काम तो उन्होंने 'फोन टैपिंग' आदि मामलों में पूर्ववर्ती सरकार को फंसाने की कोशिश का किया है, पर इससे तो खुद उनका ही अहं तुष्ट होगा। सो, अब कांग्रेस आलाकमान को खुश करने के लिए खाद्य आपूर्ति विभाग के राशन के थैलों से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का चित्र हटाने का फैसला किया है। हालांकि ऐसे तीन लाख थैले स्टाक में हैं, पर उन्हें हटाकर कर नये थैले उपयोग में लाये जायेंगे। कांग्रेस को जानने वाले इस फैसले को 'आम के आम गुठलियों के दाम' वाली कहावत से जोड़ रहे हैं। वाजपेयी के चित्र वाले थैले का इस्तेमाल न करने से आलाकमान खुश तो नये थैले बनवाने से किसको कैसी-कैसी खुशी मिलेगी–सभी जानते हैं।
शीला की कहानी
दिल्ली में गत 16 दिसंबर को हुए बर्बर सामूहिक बलात्कार कांड ने पूरे देश को शर्मिंदा कर दिया, लेकिन कांग्रेस की बेशर्म राजनीति बदस्तूर जारी है। केन्द्र और राज्य, दोनों ही जगह कांग्रेस की सरकार है, लेकिन फिर भी एक-दूसरे के पाले में गेंद उछालकर जनता को भरमाने की कोशिश की जा रही है। महिलाओं की सुरक्षा के प्रति मुख्यमंत्री शीला दीक्षित कितनी संवेदनहीन हैं, इसका पता उनके अतीत के अनेक बयानों से मिल जाता है, जिनमें महिलाओं को रात में अकेले न निकलने की नसीहतें दी जाती रही हैं। लेकिन कुछ ही महीनों बाद होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर अब सारी नाकामी का ठीकरा वे दिल्ली पुलिस के सिर ही फोड़ने की कोशिश कर रही हैं, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है। इस कोशिश में एक बार शीला खुद केंद्रीय गृहमंत्री को पत्र लिख चुकी हैं तो अब अपने करीबी मंत्री रमाकांत गोस्वामी से पत्र लिखवाया है।
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