माली बना जंग का मैदान
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माली बना जंग का मैदान
एशिया से अफ्रीका की ओर अलकायदा
अपनी पूर्व घोषणा के अनुसार अमरीका 2014 के प्रारम्भ होने से पूर्व ही अफगानिस्तान से विदा हो जाएगा। अमरीका अफगानिस्तान में अकेला नहीं लड़ रहा था, बल्कि नाटो संधि के सभी देश उसमें उलझे हुए थे। फ्रांस नाटो संधि का एक प्रमुख घटक है। अमरीका ने जिस दिन ओसामा को मौत के घाट उतार दिया उस दिन नाटो संधि के देश यह समझ बैठे कि अब अलकायदा की छाया से वे मुक्त हो जाएंगे। लेकिन अभी तो दुल्हन मंडप में भी नहीं पहुंची थी कि उससे पहले ही उसके अपहरण के षड्यंत्र की सुगबुगाहट सुनी जाने लगी। अमरीका, इराक और अफगानिस्तान से निकल जाएगा, लेकिन अब अलकायदा के आंतकवादी फ्रांस को घेरने का इरादा पक्का कर चुके हैं। उत्तरी और पश्चिमी अफ्रीका के देशों पर फ्रांस का कब्जा था। उत्तरी अफ्रीका के तीनों देश अल्जीरिया, मोरक्को और ट्यूनेशिया फ्रांसीसी उपनिवेश थे। इतना ही नहीं पश्चिमी अफ्रीका पर भी फ्रांस का ही झंडा लहराता था, जिनमें माली, नाइजीरिया और चाड भी शामिल थे। दूसरे महायुद्ध के पश्चात् जब लोकतंत्र की हवा चली तो इन देशों ने भी येन-केन प्रकरेण स्वतंत्रता प्राप्त कर ली। लेकिन आज भी उन महाशक्तियों को यह बात गले नहीं उतरी है कि साम्राज्यवादी युग का अंत हो गया है। इसलिए अमरीका के नेतृत्व में इन देशों ने सैनिक संधियां स्थापित करके अपनी सत्ता की भूख को मिटाने का प्रयास जारी रखा है। अतएव नाटो के देश मिलकर अपने पुराने साम्राज्यवाद पर किसी न किसी रूप में अंकुश बनाए रखना चाहते हैं। ज्योंही उत्तरी अफ्रीका के मुस्लिम देशों में बगावत फैली कि फ्रांस फिर सक्रिय होकर हस्तक्षेप करने लगा। दूसरी ओर मुस्लिम आंतकवादी संगठन भी इनका पीछा करने में कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसी का एक उदाहरण अफ्रीका का देश माली है, जो स्वतंत्र होने के बावजूद फ्रांस और अलकायदा के बीच चल रहे संघर्ष का मैदान बना हुआ है।
यह एक खुला तथ्य है कि अपने तख्ता पलट की आशंका के कारण गद्दाफी ने अफ्रीकी देशों से मंगाए हुए किराए के सिपाहियों की फौज खड़ी कर रखी थी। इनमें माली के तुआरेग सैनिक भी शामिल थे। तुआरेग की ख्याति गुलामों के व्यापारी के रूप में रही है। वे सहारा रेगिस्तान में तस्करी करके काले अफ्रीका में सोना और गुलामों को लाते थे और बदले में इधर से नमक जैसी साधारण वस्तु लेकर जाते थे। इन्ही तुआरेगों ने टिम्बकटू जैसा बड़ा नगर बसाया था। बाद में उपनिवेशवादी शक्तियों ने इन भागों पर कब्जा कर लिया और जैसा जी चाहा वैसे देश बना लिए। ऐसा ही एक देश माली था जो एक कृत्रिम देश के रूप में अस्तित्व में आया। यहां अधिकतर अफ्रीका की जनजाति के लोग ही बसे हुए थे। यहां अफ्रीकी लोग अधिक थे इसलिए साम्राज्यवादियों ने बमाको नामक नगर को अपनी राजधानी बनाया। गद्दाफी के पतन के बाद तुआरेग स्वदेश लौट आए। यहां पहले से ही बसे हुए कट्टरवादी अंसार दीन के साथ मिल गए। कट्टरवादियों के लिए यह सुविधाजनक स्थिति थी इसलिए पड़ोसी देशों में अपनी विचारधारा के लोगों के साथ मिलकर उन्होंने 'अलकायदा ऑफ वेस्ट' नामक संगठन स्थापित कर लिया।
आग का गोला
माली दो दशक पूर्व आजाद हो चुका था। लेकिन तुआरेग जब विद्रोह करने लगे तो माली की सेना ने सत्ता अपने हाथों में ले ली। इस प्रकार नाटो सेना की एक टुकड़ी के रूप में वहां शांति के नाम पर हस्तक्षेप शुरू हो गया। इससे माली की अपनी स्वतंत्रता खतरे में पड़ गई। जहां भी अवसर मिला तुआरेगों ने फ्रांसीसियों को बंधक बना लिया। फ्रांस ने अपने नागरिकों को बचाने एवं लोकतंत्र की दुहाई देते हुए वहां हस्तक्षेप किया। लेकिन माली के मुस्लिम कट्टरवादियों ने इसे अपने पर हमला मानकर फ्रांस को चुनौती दे दी। माली के कट्टरवादी मुस्लिमों ने इसे जिहाद की संज्ञा दे दी। फ्रांस द्वारा माली पर हमला करते ही अलकायदा ने प्राकृतिक गैस के एक ब्रिटिश कॉम्लेक्स पर धावा बोल सैकड़ों कर्मचारियों को बंधक बना लिया। इनमें 35 की हत्या कर दी गई। इस प्रकार अलकायदा ने यह भी संकेत दिया कि फ्रांस ने माली में हस्तक्षेप किया तो अलकायदा सम्पूर्ण क्षेत्र को आग का गोला बना देगा। अलजीरिया के लिए यह मामला अत्यंत संवेदनशील है, क्योंकि वह जानता है कि अधिकतर आतंकवादी संगठन इसी क्षेत्र में हैं। अलजीरिया की सेना और उनके गुप्तचरों के अनुसार दीन के नेता अयादुल गाली के साथ आतंकवादी संगठनों के गहरे सम्बंध हैं। यथार्थ यह भी है कि 'अलकायदा ऑफ वेस्ट' के अधिकांश नेता अलजारिया में रहे पूर्व विद्रोही हैं। ऐसा लगता है कि अफ्रीका के अनेक भागों में अलकायदा ने पहले अपना संगठन तैयार किया है, फिर अपना सिर उठाया है। प्राकृतिक गैस के चेम्बर पर अलकायदा ने हमला करके नाटो को यह संदेश दे दिया है कि माली में उसका हस्तेक्षप जारी रहा तो फिर अलजीरिया वाली कहानी नाइजीरिया से माली तक दोहरा दी जाएगी। अब वास्तविकता यह है कि उत्तरी अफ्रीका को अलकायदा के आतंकवादी अपना केन्द्र बना रहे हैं। पश्चिमी राष्ट्र अब यह महसूस करने लगे हैं। लेकिन देखा यह जा रहा है कि नाटो देश इससे बचना चाहते हैं। इसलिए जब फ्रांस ने माली में सेना उतारी तो अंतरराष्ट्रीय समर्थन और राष्ट्र संघ की स्वीकृति के उपरांत भी फ्रांसीसी सेना अकेली थी। उनका कहना है कि फ्रांस ने एक ऐसा मिशन शुरू कर दिया है जिसे वह अंत तक नहीं ले जा सकता है। अब तक फ्रांस ने अपने दो हजार सैनिक वहां भेजे हैं। यह मामला जब जोर पकड़ेगा तो वह अपने सैनिकों की संख्या बढ़ाता जाएगा। माली में फ्रांस को 900 नाइजीरियाई सैनिकों का समर्थन प्राप्त होगा। ब्रिटेन ने केवल अपने दो मालवाहक पोत भिजवाए हैं, सेना भेजने से इनकार कर दिया है। बेल्जियम ने भी दो जहाज भेजकर अपना पीछा छुड़ा लिया है। कनाडा, जर्मनी और डेनमार्क ने भी इसमें कोई दिलचस्पी अब तक नहीं दिखाई है। इसका अर्थ यह हुआ कि पश्चिमी राष्ट्र अब अलकायदा से पंगा नहीं लेना चाहते हैं। अलकायदा के सूत्रों का कहना है कि ओसामा बिना लादेन को मार अमरीका खुश था। वह यह सोच रहा था कि अब अलकायदा कमजोर हो जाएगा। लेकिन पश्चिमी अफ्रीका का जो दृश्य है वह यह बता रहा है कि अमरीका ने अलकायदा की ताकत को पहचाना नहीं है।
इस्लाम का बोलबाला
पेरिस से मिलने वाले समाचारों में यह कहा जा रहा है कि फ्रांस और माली के सैनिकों ने आतंकवादियों के गढ़ पर कब्जा कर लिया है। पिछले अप्रैल में यहां अलकायदा के आतंकवादियों ने कब्जा कर लिया था। इतना ही नहीं उन्होंने वहां शरीयत के कानून भी लागू कर दिए थे। माली के विमान तल और महामार्ग पर बने पुलों पर फिर से माली प्रशासन का कब्जा हो गया है। उनका कहना है कि हम आतंकवादियों को माली से बहुत जल्द खदेड़ देंगे। अब तक कुल कितने लोग मारे गए हैं इसके विश्वसनीय आंकड़े नहीं मिल रहे हैं। फ्रांस सरकार को विश्वास है कि वह आतंकवादियों को अपने यहां से भगाने में सफल रहेगी। लेकिन अलकायदा के कमांडरों के हौसले बुलंद हैं। उनका कहना है कि हमने एशिया से अमरीका और उसके नाटो साथियों को भगाया है। भले ही यह कहा जाए कि 2014 के बाद वहां शांति कायम हो जाएगी। लेकिन हमारा मिशन तो इस्लामी कायदे-कानून पर चलने वाली सरकार कायम करना है। आप देखेंगे कि एक दिन यहां इस्लाम का बोलबाला होगा। विश्व स्तर पर माली की घटना के पश्चात् यह सोचा जा रहा है कि जहां इस्लामी कायदे-कानून का राज्य काम नहीं करता है वहां इस्लामी सत्ता को स्थापित करने का अर्थ यह होगा कि इस्लामी आतंकवाद बढ़ता ही रहेगा। यदि अलकायदा अफगानिस्तान से निकलकर पश्चिमी अफ्रीका में पहुंच जाता है तो इसका यह मतलब होगा कि इस्लामी ताकत विश्व के दूसरे देशों में भी फैलती जाएगी। अलकायदा का दावा है कि वे बहुत शीघ्र परमाणु बम प्राप्त कर लेंगे। ऐसा होता है तो फिर सभ्य दुनिया का जीना हराम हो जाएगा।
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