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'बिना संस्कार नहीं सहकार-बिना सहकार नहीं उद्धार।' इस उद्घोषणा के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत, कर्नाटक के मुख्यमंत्री श्री जगदीश शेट्टार तथा बंगलूरु (दक्षिण) के सांसद अनंत कुमार ने दीप प्रज्ज्वलित करके बंगलुरु में सहकार सम्मेलन का शुभारम्भ किया। इस दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन सहकार भारती ने किया था। सम्मेलन के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि सहकारी संस्थाओं की आर्थिक समृद्धि के लिए और अधिक अधिकार दिए जाएं। सहकार भारती के अध्यक्ष सतीश मराठे ने कहा कि सहकारी संस्थाओं के आर्थिक समृद्धि के साथ ही दुग्ध उत्पादन, गृह निर्माण और आम लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले विभिन्न क्षेत्रों में विस्तार की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आज सहकारी संस्थाओं में जमा राशियों के बीमाकरण की आवश्यकता है। मराठे ने सहकारी आन्दोलन के बारे में केन्द्र स्तरीय शोध केन्द्रों की स्थापना की आवश्यकता भी जताई।
भारत के विभिन्न क्षेत्रों से आए सहकार भारती के कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा, 'सहकार भारती के कार्यकर्ता के रूप में यहां आए सभी बंधुओं को संस्था के उद्देश्य को सदा ध्यान में रखना होगा। सहकारिता की भावना मनुष्य का प्राकृतिक गुण है। आज आर्थिक समृद्धि के लिए मनुष्य सहकारिता से जुड़ रहा है। यदि हम लोग परस्पर सहयोग से काम नहीं करेंगे तो देश बलवान नहीं बनेगा। लेकिन लोग परस्पर सहयोग तभी करते हैं जब वे संकट में फंस जाते हैं।' उन्होंने आगे कहा कि सहकारिता एक धर्म है। यदि हम उद्देश्य से भटक गए तो हम सहकार भारती के साथ ही सहकारिता आन्दोलन के लिए भी काम नहीं कर सकते। हम सभी को इस विषय पर विचार करना है। 'कोऑपरेटिव' शब्द पश्चिम की देन है, हमारे यहां 'सहयोग' और 'सहकार' का उपयोग किया जाता है। हमारे यहां 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का विचार है। हमारा काम है एकता, न कि विभाजन। सभी इस देश के नागरिक हैं। वंचित हों या ब्राह्मण, सभी इस देश के हैं, यही हमारी भावना है और यही भावना सहकारिता आन्दोलन को बढ़ा सकती है। हमें गम्भीरता और कठिन परिश्रम से काम करना होगा। चाहे, हमारे काम और नाम को सम्मान मिले या न मिले। हमें हमारे काम में स्वतंत्रता मिले, यही हमारा उद्देश्य होना चाहिए और यह उद्देश्य केवल मनुष्य ही पूरा कर सकता है। हमें व्यक्तिश: स्वातांत्र्य के लिए नहीं सोचना है, हमें सबकी स्वतंत्रता के लिए काम करना होगा और इसका समुचित माध्यम सहकारिता ही है। इसीलिए हमारे यहां 'संगछच्ध्वम्-संवदध्वम्' के माध्यम से सहयोग का संदेश दिया गया है। हमारे यहां सभी के मोक्ष की बात की गई है।
उन्होंने एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि एक शिष्य को गुरु ने मंत्र देते हुए कहा, यह मोक्ष के लिए है इसीलिए तुम्हें यह मंत्र दे रहा हूं, इसे किसी को बताना नहीं। लेकिन सबके मोक्ष की कामना करने वाले शिष्य ने गुरु की आज्ञा की अवहेलना करते हुए छत पर खड़े होकर उपस्थित जनसमूह को मंत्र बता दिया। यद्यपि शिष्य को भय था कि गुरु उन्हें कोई भी सजा दे सकते हैं, लेकिन मंत्र सबको बता कर शिष्य ने साबित कर दिया कि मोक्ष सबको मिलना चाहिए। बाद में गुरु ने शिष्य की भावना का सम्मान करते हुए उसे क्षमा कर दिया। सरसंघचालक ने यह भी कहा कि हमें ध्यान रखना होगा कि भक्ति, शक्ति और धन का सदुपयोग हो। यदि ऐसा नहीं हुआ तो समाज का कोई हित नहीं होगा। सहकारिता आन्दोलन के द्वारा हमने जिस ज्ञान को अर्जित किया है उसका उपयोग मानव कल्याण के लिए ही किया जाए। हमें यह देखना होगा कि समाज का अन्तिम व्यक्ति आत्मनिर्भर हो, उसे किसी अन्य पर अवलम्बित न रहना पड़े। यही सहकारिता आन्दोलन का लक्ष्य होना चाहिए। सहकारिता आन्दोलन से समाज और भी मजबूत बने। उन्होंने कहा कि सहाकारिता आन्दोलन को जारी रखा जाए जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।
इस अवसर पर दक्षिण बंगलूरु से सांसद श्री अनंत कुमार ने केन्द्र सरकार द्वारा सहकारी संस्थाओं पर 'डायरेक्ट टैक्स कोड' (डीटीसी) कानून लागू करने की निंदा करते हुए कहा कि केन्द्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने आम नागरिकों की खुशहाली की विरोधी नीतियों को लागू किया है। केन्द्र सरकार के डीटीसी कानून के लागू होने के बाद 6 लाख सहकारी संस्थाओं एवं उसमें काम करने वाले 30 लाख कर्मचारियों के भविष्य पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है। डी.टी.सी. कर का शिकंजा कस कर सहकारिता आन्दोलन को कुचलने का प्रयास ही किया गया है।
इस अवसर पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री श्री जगदीश शेट्टार ने सहकारिता आन्दोलन को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध सहकार भारती की सराहना करते हुए कहा कि उनकी सरकार सहकारिता के काम को आगे बढ़ाने में सहयोग करेगी। कर्नाटक सरकार ने दुग्ध सहकारी समितियों और कृषि सहकारी संस्थाओं के विकास के लिए कई महत्त्वपूर्ण योजनाओं को लागू किया है। राज्य में 36 हजार सहकारी संस्थाएं काम कर रही हैं जिनमें 15 लाख कर्मचारी काम करते हैं। सहकारी समितियों के कर्मचारियों के स्वास्थ्य के लिए 'यशस्वनी' योजना को लागू किया गया है। सरकार ने सहकारी संस्थाओं के लिए 'रिवाल्विंग फंड' की स्थापना का भी निर्णय किया है।
सम्मेलन में गुवाहटी, मणिपुर, मिजोरम सहित देश के अन्य राज्यों से एक हजार सहकारी संस्थाओं के 5 हजार से भी अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित कई राज्यों ने अपने स्टॉल लगाए थे। सहकारी आन्दोलन और सहकार भारती से सम्बंधित विषयों को लेकर प्रदर्शनी भी आयोजित की गई। सरसंघचालक ने सम्मेलन में 'सहकार बेडकु' (सहकार प्रकाश) स्मारिका का विमोचन किया, जिसमें सहकारी आन्दोलन से सम्बंधित ज्ञान बोधित रचनाओं को प्रकाशित किया गया है।
स्वामी विवेकानंद के सार्द्ध शती वर्ष के अवसर पर सम्मेलन में सरसंघचालक एवं कर्नाटक के मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार द्वारा विजय देवांगन द्वारा लिखित 'सहकारितायुक्त स्वावलंबन के प्रणेता-स्वामी विवेकानंद' पुस्तिका का विमोचन भी किया गया। सहकार भारती के इस संगम को देखकर ऐसा लग रहा था, मानो सम्पूर्ण भारत एक ही स्थान पर एकत्र हो गया था। समापन समारोह के मुख्य अतिथि कर्नाटक के पवित्र धार्मिक तीर्थस्थल धर्मस्थल के धर्माधिकारी डा.वीरेन्द्र हेगड़े ने कहा कि यहां किसी में कोई भेदभाव नहीं, सभी भारतमाता की संतान हैं जिनके समर्पण से ही देश सभी विसंगतियों को समाप्त करने में सफल हो रहा है। इसी तरह के समर्पण से राष्ट्र के विकास को कोई नहीं रोक सकता है। उन्होंने सहकार भारती की चर्चा करते हुए कहा कि राज्य में लरालि कैम्पको जैसी सहकारी संस्था ने पड़ोसी राज्यों, केरल एवं कर्नाटक के किसानों को काफी राहत पहुंचाई है। इस संस्था ने कृषि में आधुनिक तकनीक एवं उत्पादन की वृद्धि के लिए कई उपाय किए हैं। वीरेन्द्र हेगड़े ने स्वयंसेवी संस्था 'धर्मस्थल ग्राम अभिवृद्धि योजना' का उल्लेख करते हुए कहा कि यह संस्था ग्राम विकास के लिए काम करती है, इस सन्दर्भ में वह सहकारी संस्थाओं के काफी करीब है। संस्था के साथ 2 लाख 40 हजार स्वयंसेवी समूह जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि सहकारिता आन्दोलन ने लघुस्तरीय वित्तीय सहायता के सपने को साकार किया है। गरीबों तक ऋण की सुविधा पहुंचे, इसीलिए हमें समाज के सभी अंगों को सहकारिता आन्दोलन से जोड़ने की आवश्यकता है। श्री हेगड़े ने सहकार भारती के सदस्यों से आग्रह किया कि वे ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा करें और वहां की समस्याओं को समझकर उनका निदान करें।
इससे पहले पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं सहकारिता आन्दोलन से जुड़े श्री सुरेश प्रभु ने सहकार भारती के इस सम्मेलन को कुंभ की संज्ञा देते हुए कहा कि हजारों प्रतिनिधियों का इस तरह का सम्मिलन सहकार भारती के प्रति समर्पण को दर्शाता है। प्रभु ने कहा कि सहकार भारती की सफलता का प्रमुख आधार विचार एवं तात्विकता ही है।
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