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स्वाध्याय मंडल के तत्वावधान में गत दिनों नई दिल्ली स्थित दीनदयाल शोध संस्थान में 'स्वामी विवेकानंद चिंतन: युवावर्ग की दिशा एवं दशा' पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता रा.स्व.संघ के अ.भा. सह सम्पर्क प्रमुख श्री राममाधव थे, जबकि अध्यक्षता प्रसिद्ध साहित्यकार श्री नरेन्द्र कोहली ने की। विषय प्रवर्तन कराया श्रीमती प्रेमलता गर्ग ने।
श्री राममाधव ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज के युवा के लिए आत्मविश्वास बहुत जरूरी है। स्वामी विवेकानंद ने साहस और आत्मविश्वास के बल पर ही विश्व को जीता था। उनमें हिम्मत अहंकार से नहीं थी, बल्कि संस्कृति और ज्ञान के निचोड़ से थी। विश्व धर्म सम्मेलन में किसी और के समय में से उन्हें समय मिला था, लेकिन उन्होंने अपने विचार के जरिए पूरे विश्व को जीत लिया। उन्होंने कहा कि विश्व धर्म सम्मेलन का आयोजन ईसाइयत सर्वश्रेष्ठ है यह साबित करने के लिए किया गया, लेकिन भारत के युवा संन्यासी ने उस धर्म सम्मेलन में विश्व को एक नया विचार दिया। स्वामी विवेकानंद ने भारत की एक नई तस्वीर विश्व के सामने प्रस्तुत की।
श्री राममाधव ने कहा कि स्वामी विवेकानंद पहले संन्यासी थे जिन्होंने संतों को समाज की सेवा में लगाया। उन्होंने कहा कि रा.स्व.संघ ने स्वामी विवेकानंद के विचारों से देश व समाज को जोड़ने और इसके प्रति सम्पूर्ण भाव से काम करने का संकल्प लिया है। श्री राममाधव ने कहा कि स्वामी विवेकानंद को पूरी तरह समझ पाना मुश्किल है। स्वयं स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था कि विवेकानंद को समझने के लिए एक और विवेकानंद को जन्म लेना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद के बारे में रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा था 'भारत को समझने के लिए स्वामी विवेकानंद को पढ़ो'। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि 'स्वामी विवेकानंद को पढ़कर मेरी देशभक्ति और बढ़ गई'। अंत में श्री राममाधव ने कहा कि हम स्वामी विवेकानंद के जीवन से प्रेरणा लें यही उनके जीवन का हमारे लिए संदेश है।
करीब 1 घंटे के अपने उद्बोधन में श्री नरेन्द्र कोहली ने स्वामी विवेकानंद के जीवन के कई पहलुओं को छुआ। श्री नरेन्द्र कोहली ने कहा कि स्वामी विवेकानंद में दृढ़ता थी, जिस बात पर वे टिक जाते थे उसे पूरा करते थे। धर्म के बारे में स्वामीजी कहा करते थे कि जो तर्क से सिद्ध नहीं होता वह धर्म नहीं है और जब तक धर्म आचरण में न लाया जाए तब तक धर्म, धर्म नहीं है। स्वामी विवेकानंद अमरीका जाने से पहले कहकर गए थे कि भारतमाता के माथे से कलंक मिटाने के लिए जा रहा हूं। उन्होंने वहां हिन्दू धर्म को स्थापित किया। विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद ने कहा कि धर्म हमारे पास बहुत है, हमें आप धर्म न दें। स्वामी विवेकानंद ने जात-पांत को पूरी तरह ध्वस्त किया। इस अवसर पर दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव डा. भरत पाठक सहित दीनदयाल शोध संस्थान के अनेक पदाधिकारी तथा राजधानी दिल्ली के गण्यमान्य नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित थे। प्रतिनिधि
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