'मैं और मेरा भारत' का संकल्प लिया
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'मैं और मेरा भारत' का संकल्प लिया
स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में विगत दिनों चित्रकूट स्थित दीनदयाल शोध संस्थान में 'मैं और मेरा भारत' की संकल्पना को लेकर संकल्प दिवस का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव डा. भरत पाठक एवं सहयोगी कार्यकर्ताओं द्वारा स्वामी विवेकानन्द के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। इस दौरान दीनदयाल शोध संस्थान के प्रकल्प- कृषि विज्ञान केन्द्र मझगवां, कृष्णादेवी वनवासी बालिका आवासीय विद्यालय मझगवां, जन शिक्षण संस्थान कर्वी, कृषि विज्ञान केन्द्र गनीवां, परमानन्द आश्रम पद्धति विद्यालय गनीवां, आयुर्वेद चिकित्सा महाविद्यालय, गोवंश विकास एवं अनुसंधान केन्द्र, चित्रकूट रसशाला, आरोग्यधाम, सियाराम कुटीर, रामनाथ आश्रमशाला, उद्यमिता विद्यापीठ, रामदर्शन, गुरुकुल संकुल, सुरेन्द्रपाल ग्रामोदय विद्यालय, शैैक्षणिक अनुसंधान केन्द्र एवं समाजशिल्पी दम्पति प्रकल्प के 150 चयनित कार्यकर्ताओं द्वारा स्वामी विवेकानन्द के गीत 'भुवनमण्डले नवयुगमुदयुते सदा विवेकानन्दमयम्, सुविवेकमयं स्वानन्दमयम्' दोहराया। साथ ही उनके प्रिय उद्घोष 'उत्तिष्ठत् जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत्' के भाव को प्रासंगिक रूप प्रदान करते हुए स्वामी विवेकानंद के सार्द्धशती वर्ष हेतु विभिन्न कार्यक्रमों की योजना बनाई। इस अवसर पर डा. भरत पाठक ने कहा कि स्वामी विवेकानंद के प्रासंगिक विचारों और नव जागरण की कल्पना को साकार रूप प्रदान करने के लिये दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा वर्षभर अलग-अलग प्रकार के आयोजन किए VÉÉBÆMÉä* |ÉÊiÉÊxÉÊvÉ
भाऊराव देवरस सेवा न्यास का 19वां स्थापना दिवस
पहले व्यक्ति को ठीक होना होगा, तभी समाज ठीक होगा
–स्वामी अभयानंद
गत दिनों लखनऊ में भाऊराव देवरस सेवा न्यास के 19वें स्थापना दिवस पर 'सेवा, समर्पण एवं व्यवहार' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मंचस्थ अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन तथा पुष्पार्चन से हुआ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि स्वामी अभयानंद महाराज ने कहा कि श्रेष्ठ कार्यों के चिंतन के लिए लोगों के पास समय नहीं है। सनातन धर्म में वैचारिक छूट है, जब विचार कर सही लगे तब उसे स्वीकार करो। अन्य मत-पंथों में कहा गया है उसे स्वीकार करना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि सेवा के लिए बुद्धि की जरूरत होती है। व्यक्ति से ही समाज बनता है, पहले व्यक्ति को ठीक होना होगा तभी समाज भी ठीक होगा। व्यक्ति यदि स्वस्थ नहीं है तो समाज स्वस्थ नहीं होगा। मन खराब होने पर शरीर ठीक भी हो तो सेवा नहीं हो सकती। मन पहले ठीक हो तो शरीर भी ठीक हो जाता है और तभी समाज और संसार ठीक होगा। अत: शरीर मन से युक्त, स्वस्थ हो तभी सेवा हो पाती है। सेवाभावी व्यक्ति को ममता का दायरा कम करना चाहिए। यह संसार तब तक अपना नहीं बनेगा जब तक अपने भीतर के मतलब का त्याग न होगा। पूरे संसार में यदि आपको अपनी आत्मा दिखाई देने लगे तो सेवा करने पर वह सेवा पूर्ण समर्पण से होगी और उसका प्रत्येक व्यवहार सेवक के उचित व्यवहार से युक्त होगा। सेवा करते समय लोभ, अहंकार और व्यक्तिगत इच्छा का त्याग जरूरी हो जाता है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री ज्ञानेन्द्र सिंह ने कहा कि जब, जैसे, जहां भी अच्छी चीज मिले उसे ग्रहण करना चाहिए। आज मानवीय मूल्यों का हृास इतना हुआ है कि मानवता पर कलंक दिखाई देता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार जब मौका पाता है तो वह प्रकट हो जाता है। सेवक होने के लिए आवश्यक है संकीर्णता का त्याग कर मन से बड़ा होना और सेवा का भाव तभी बनता है जब परमपिता परमेश्वर की कृपा होती है। अपनी सबसे प्रिय वस्तु का अर्पण करने की बुद्धि उसे सच्चा सेवक बनाती है। सेवा का भाव व्यवहार में दिखना चाहिए। महापुरुष अपने व्यवहार से सेवा करते हैं इसलिए सामान्य रूप में जन्म लेकर भी वे आगे अपने समर्पण तथा व्यवहार के कारण ही मानवता की सेवा करने से ही महापुरुष के रूप में समाज में पूजे जाते हैं।
विशिष्ट अतिथि डा. अनिल कुमार सिंह ने कहा कि सेवा कार्य की कहां आवश्यकता है यह पता होना आवश्यक है ताकि हम उचित स्थान, उचित व्यक्ति और उचित समय पर सेवा करें। हमारी संस्कृति में सभी के कल्याण की कामना है और इसके लिए सभी को दुख रहित करने के लिए सेवा की आवश्यकता होती है। हमारी सबसे बड़ी कामना है कि दुखी जनों के दुख का निवारण कर सकें और राजसुख तथा पुनर्जन्म न प्राप्त कर भी सेवा करें। सर्वप्रथम आपत्ति में पड़े हुए व्यक्ति को अपनी सेवा देकर उसे मुक्ति दिलाना यह सबसे प्रथम सेवा है। अतिथियों के उद्बोधन से पूर्व न्यास द्वारा सुंदरकांड के पाठ का आयोजन भी किया गया।
कार्यक्रम में न्यास के सभी कार्यकर्ताओं को उपहार भेंट किये गये। धन्यवाद ज्ञापन किया डा. सुधांशु उपाध्याय ने। इस अवसर पर बड़ी संख्या में गण्यमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम का समापन वंदेमातरम् से हुआ। प्रतिनिधि
स्वामी विवेकानन्द सार्द्धशती आयोजन समिति के प्रयाग उत्तर कार्यालय का उद्घाटन
भारतीय संस्कृति के विराट पुरुष हैं स्वामी विवेकानन्द
–इन्द्रेश कुमार, सदस्य, अ.भा. कार्यकारी मंडल, रा.स्व.संघ
'स्वामी विवेकानंद 19वीं व 20वीं सदी के वह विराट महापुरुष हैं जिन्होंने पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति का 'वसुधैव कुटुम्बकम' का सफल संदेश दिया। अगर विश्व को हिंसा, साम्राज्यवाद, आतंकवाद, प्रदूषण, पिछड़ापन आदि समस्याओं से मुक्त करना है तो इसका एकमात्र मार्ग है भारतीय संस्कृति'। उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य श्री इन्द्रेश कुमार ने गत दिनों इलाहाबाद (उ.प्र.) में स्वामी विवेकानन्द सार्द्धशती आयोजन समिति के प्रयाग उत्तर कार्यालय का उद्घाटन करते हुए कहीं।
श्री इन्द्रेश कुमार ने कहा कि स्वामीजी ने विश्व पटल पर विश्व के मानव मात्र को सम्बोधित करते हुए ईश्वर प्रदत्त सम्बन्धों से पुकारा। अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा 'विश्व के सब नर-नारी हमारे भाई और बहन' हैं। इस सम्बोधन के माध्यम से उन्होंने दुनिया में भारतीय संस्कृति का परचम फहराया। उन्होंने कहा कि मां-बेटे और भाई-बहन का रिश्ता प्रभु से ही मिलता है। इसलिए भारत के मानवीय ईश्वरीय संदेश को विश्व को देने के कारण स्वामी विवेकानंद सामान्य से असामान्य तथा लघु से विराट हुए।
श्री इन्द्रेश कुमार ने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा कि भय, आतंक, नारी को मारना, बेटी की इज्जत लुटना और हिंसा प्रदूषण से मुक्त भारत चाहिए तो नये युग के निर्माण के लिए विवेकानंद, सुभाष, मालवीय, तिलक के भारत पर चर्चा करनी होगी और विवेकानंद की सार्द्धशती में एक नये भारत का निर्माण होगा। इस अवसर पर कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री विश्व मोहन गुप्त तथा बाघम्बरी मठ के स्वामी आनन्द गिरि ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन अनुराग पाठक ने किया। इससे पूर्व कार्यालय उद्घाटन के अवसर श्री इन्द्रेश कुमार ने हवन व यज्ञ किया। हिन्दुस्थान समाचार
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