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Dec 22, 2012, 12:00 am IST
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शिशुओं-किशोरों में त्वचा संबंधी बीमारियां

दिंनाक: 22 Dec 2012 15:57:59

 शिशुओं–किशोरों में

त्वचा संबंधी बीमारियां

स्वास्थ्य

डा. हर्ष वर्धन

नवजात शिशुओं, बच्चों तथा किशोरों में त्वचा संबंधी परेशानियां भी अक्सर देखने को मिलती हैं। इसके अनेक कारण हो सकते हैं। त्वचा संबंधी कुछ रोग तो स्वत: ठीक हो जाते हैं लेकिन कुछ रोगों के उत्पन्न होने पर चिकित्सक से परामर्श करना अत्यंत आवश्यक है। पाठकों की जागरूकता हेतु त्वचा संबंधी कुछ आम बीमारियों का उल्लेख प्रश्नोत्तरी के रूप में किया जा रहा है।

नवजात शिशुओं की त्वचा की देखभाल कैसे करनी चाहिए?

नवजात शिशु की त्वचा की देखरेख के लिए कोई विशेष जरूरत नहीं होती है। 'नॉन-मेडिकेटेड' साधारण साबुन से शिशु को नहलाने की जरूरत होती है। तेल, क्रीम, पाउडर एवं मालिश के समाज में प्रचलन के पीछे चिकित्सकीय जरूरत से कहीं ज्यादा परंपरा आधारित व्यवहार है। पाउडर का प्रयोग न करना शिशु के लिए बेहतर है क्योंकि अनेक बार असावधानीवश सांस के माध्यम से पाउडर शिशु के फेफड़ों में चला जाता है, जो शिशु के लिए नुकसानदायक हो सकता है। कोई भी दवायुक्त तेल आदि (जैसे लाल तेल) के शिशु पर प्रयोग करने से पूर्व सावधानी और जानकारी आवश्यक है अन्यथा चमड़ी के माध्यम से शरीर में प्रवेश की संभावना रहती है। अत: थोड़ी सी लापरवाही शिशु की त्वचा के लिए हानिकारक हो सकती है।

नवजात शिशुओं, को 'डायपर डर्मेटाइटिस' से कैसे बचाया जा सकता है?

'डायपर' या 'नैपी डर्मेटाइटिस' मल-मूत्र से गीली नैपकिन के संपर्क में शिशुओं के लगातार आने के कारण उत्पन्न होती है। शिशुओं को इससे बचाने का सबसे आसान तरीका है कि प्रयोग में लायी जा चुकी नैपकिनों का प्रयोग दोबारा न किया जाए। 'डायपर' जब भी गीला हो, उसे तुरन्त बदल देने से इस बीमारी से शिशुओं को बचाया जा सकता है। उच्च अवशोषक 'डायपर' का विविध कंपनियों द्वारा विज्ञापन दिया जाता है। इस पर निर्भर रहने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि शिशु जब भी मल-मूत्र त्यागे तो अविलंब शिशु का 'डायपर' अथवा नैपकिन बदल दें, क्योंकि एक बार 'डर्मेटाइटिस' विकसित हो गयी तो इसके इलाज में 'डायपर' का प्रयोग न करना भी शामिल हो जाता है। बच्चा बार-बार डायपर गीला करता है तो हर घंटे इसे बदल देना चाहिए।

हल्का 'डर्मेटाइटिस' होने पर 'डायपर' के लगातार बदलने के साथ-साथ साधारण क्रीम (चिकित्सक के परामर्शानुसार) का प्रयोग पर्याप्त होता है लेकिन इसका प्रकोप अधिक होने पर शिशु रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें।

नवजात शिशुओं, की त्वचा में होने वाले फफूंद संक्रमण से उन्हें कैसे बचाया जाये?

सिर की त्वचा में संक्रमण एक आम फफूंद संक्रमण है। फफूंद संक्रमण 'रिंगवर्म' के रूप में परिलक्षित होता है, जिसमें त्वचा पर उठे हुए गोले जैसे नजर आते हैं, जिसके बीच की चमड़ी साफ होती है। बच्चों में इसकी पहचान करना आसान होता है। नाखून में फफूंद संक्रमण होने पर लगभग 3-6 माह तक इलाज चलाया जाता है लेकिन नाखून में यह संक्रमण कम बच्चों में पाया जाता है। नवजात शिशुओं, त्वचा पर ज्यादा मात्रा में चकत्ते का बनना देखने को मिलता है। ऐसे में क्या करना चाहिए?

'एक्यूट

अर्टीकेरिया' में त्वचा पर बहुत अधिक खुजली होती है, जगह-जगह लाल रंग के छोटे-छोटे गोले बन जाते हैं जो पिछले कुछ घंटों से दिखाई देते हैं। छोटे बच्चों में वील (सूजन के चकत्ते) के साथ बुखार और पेट में दर्द हो सकता है। कभी-कभी ऐसे समय में सांस से संबंधित परेशानी भी उत्पन्न हो सकती है। अधिकांश मामलों में बच्चों में हुई 'एक्यूट अर्टीकेरिया' स्वत: कम हो जाती हैं। यह बीमारी ठीक होने में 6 सप्ताह तक लग सकते हैं। यदि बार-बार यह परेशानी उत्पन्न होती है तो यह असामान्य है तथा बच्चे को शासन अथवा उदर संबंधी संक्रमण की संभावना हो सकती है। अत: परेशानी ज्यादा दिखाई दे रही हो तो शिशु/बच्चे को शिशु रोग विशेषज्ञ के पास ले जाना चाहिए।

कुछ माता-पिता यह मानते हैं कि उनके बच्चे में इस बीमारी के लिए कुछ खाद्य वस्तुएं जिम्मेदार होती हैं परन्तु इस बीमारी के अधिकांश मामलों में खाद्य पदार्थ जिम्मेदार नहीं होते हैं।

 

मच्छरों के काटने पर बच्चों की त्वचा पर परेशानी उत्पन्न हो जाती है। ऐसे में क्या करें?

बच्चों को मच्छर काटने की परेशानी आम है। कुछ बच्चों की त्वचा मच्छरों के काटने के प्रति अतिसंवेदनशील होती है तथा काटे हुए स्थान पर सूजन हो जाती है और उसमें तरल भर जाता है, लालिमा आ जाती है तथा उस स्थान पर बहुत खुजली होती है। कई बार यह परेशानी सप्ताह तक बनी रहती है। कभी-कभी उस स्थान पर फफोला भी बनने की संभावना हो जाती है। बरसात के मौसम में यह परेशानी और बढ़ सकती है। अधिकांशत: मच्छरों के काटने पर उभरी त्वचा में 24-48 घंटे में सूजन कम हो जाती है। लक्षणात्मक उपाय जैसे बर्फ की पट्टी, दवाइयां देने से भी आराम मिलता है। मच्छरों के काटने से बचाव पर विशेष ध्यान देना चाहिए। पूरी बांह की शर्ट, पैंट अथवा कुर्ता पाजामा बच्चों को पहनाना चाहिए जिससे पूरा शरीर खास तौर पर त्वचा ढंक सके। मच्छरदानी, मच्छर निरोधक मैट्स अथवा स्प्रे का प्रयोग भी मच्छरों से बचाव करता है। त्वचा पर मच्छर निरोधक क्रीम भी लगायी जा सकती है। माता-पिता को ध्यान रखना चाहिए कि मच्छरों का प्रकोप हर वर्ष मौसम के अनुसार बढ़ जाता है। अत: बचाव उपायों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।   अधिकांश बच्चों में कुछ अवधि के अंतराल पर मच्छरों के काटने के प्रति अतिसंवेदशीलता स्वत: खत्म हो जाती है।

एक बच्चे के पूरे शरीर पर खुजली हो रही है । क्या यह खाज हो सकती है? ऐसे में क्या करें?

स्कैबीज होने की संभावना तब ज्यादा दिखाई देती है जब बच्चा पूरे शरीर में खुजली करता हो तथा रात में खुजली करने की परेशानी उसे ज्यादा महसूस होती है, उसके शरीर पर बिना मवाद एवं मवाद भरे दाने, परिलक्षित हो रहे हों तथा परिवार के दूसरे सदस्य भी इस परेशानी से प्रभावित हों। इस बीमारी से अंगुलियों के बीच का स्थान, कलाई, कांख, जननांग, दोनों 'हिप्स' के बीच की दरार और पैर विशेष तौर पर प्रभावित होते हैं। शिशुओं में चेहरा, हथेली तथा तलवा भी प्रभावित होता है। कभी कभी इन जगहों पर 'बर्रोज' भी दिखाई देते हैं। ऐसे में बहुत घबराने की बात नहीं होती है। शिशु को शिशु रोग विशेषज्ञ के पास ले जाना चाहिए। सामान्यत: खाज 10-14 दिनों के अंदर ठीक हो जाती है।

एक किशोर के चेहरे पर मुंहासे होने के कारण वह अत्यंत चिन्तित और परेशान है। ऐसे में उसे क्या करना चाहिए?

बढ़ती उम्र के किशोरों के चेहरे पर मंुहासे होना एक सामान्य सी बात है तथा सामान्य तौर पर इसमें इलाज की कोई जरूरत नहीं होती है। यह किशोरावस्था (13 से 19 वर्ष की आयु) के उपरांत स्वत: ठीक हो जाते हैं।

90 प्रतिशत किशोरों को मुंहासे की परेशानी होती है लेकिन इसकी गंभीरता एक दूसरे से भिन्न होती है। जब चेहरे पर हल्के मुंहासे अर्थात कुछ काले मस्से या सफेद मस्से हों तो ऐसे में बच्चों को जानकारी देने की जरूरत होती है। बढ़ती उम्र के साथ मुंहासे बढ़ते जाते हैं तो माता-पिता को बच्चों का मार्गदर्शन करना चाहिए।

मुंहासों की उग्रता की स्थिति हल्की या मध्यम हो तो 'रेटिनोइक एसिड, बेनजोएल पराक्साइड' या 'एन्टीबायोटिक जैल' का प्रयोग किया जा सकता है। 'रेटिनोइक एसिड एवं बेनजोएल पराक्साइड' का प्रयोग रात में करने की सलाह दी जाती है। जलन न हो, इसके लिए बहुत हल्की मात्रा में मरहम का इस्तेमाल किया जा सकता है। चमड़ी पर लगायी गयी दवाइयों का प्रभाव 4-6 सप्ताह के उपरांत शुरू होता है। चेहरे को साफ करने के लिए साधारण साबुन का इस्तेमाल करना चाहिए। 'मेडिकेटेड' साबुन और 'ग्रीसी फेस क्रीम' के प्रयोग से बचना चाहिए। साबुन के स्थान पर 'फेस वाश' भी प्रयोग किया जा सकता है। कुछ किशोर अपूर्ण जानकारीवश खानपान पर प्रतिबन्ध लगा लेते हैं तथा बार-बार चेहरा साफ करते हैं। लगातार चेहरा धोने अथवा आहार संबंधी प्रतिबंध से कोई फायदा होने का अभी तक कोई साक्ष्य नहीं प्राप्त हुआ है। इसके अलावा प्रति दिन आठ गिलास पानी पीने, मुल्तानी मिट्टी के प्रयोग अथवा चंदन का प्रयोग करने से लाभ का भी कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं हैं। मुंहासों को जितना कम छेड़ा जाए उतना ही अच्छा होता है।

कुछ किशोरों में मुंहासे बहुत अधिक मात्रा में निकल जाते हैं। ऐसे किशोरों को त्वचा रोग विशेषज्ञ के पास ले जाना चाहिए। उक्त लिखी गयी दवाइयों का प्रयोग अपने आप न करें। उचित चिकित्सा के लिए संबंधित चिकित्सक से संपर्क करें।

कुछ बच्चों में सफेद बाल होने की समस्या उत्पन्न हो जाती है। ऐसे में क्या करें?

सिर की त्वचा पर जिन बच्चों को सफेद दाग हो जाता है, उन बच्चों के सफेद बाल होने की संभावना हो सकती है। सफेद बाल के आधार पर सिर की त्वचा की जांच करने के उपरांत इसका निर्धारण किया जा सकता है। कभी-कभी सिर के कुछ हिस्सों में गंजेपन के 'पैचेज' पर पुन: उगने वाले बाल भी सफेद हो सकते हैं। इसकी सही जानकारी चिकित्सकीय जांच होने पर ही मिल पाती है। अनेक बार सफेद बाल होने के कारणों का पता नहीं चल पाता है। कई बार असमय बाल सफेद होने का पारिवारिक इतिहास भी होता है। माता-पिता को यह जानना आवश्यक है कि इसका कोई प्रभावी इलाज नहीं है जिससे कि बाल सफेद होने की प्रक्रिया को धीमा अथवा सफेद से काले बाल में परिवर्तित किया जा सके। सफेद बाल को लेकर यदि बच्चा व्यथित है तो हिना अथवा 'हेयर डाई' का प्रयोग आगे चलकर किया जा सकता है।

(लेखक से उनकी वेबसाइट www. drharshvardhan.com तथा ईमेल drhrshvardhan@ gmail.com  के  माध्यम से भी सम्पर्क किया जा सकता है।)

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