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फांसी! फांसी!! फांसी!!! 17 दिसम्बर की रात को राजधानी दिल्ली में छह दरिन्दों द्वारा एक 23 वर्षीया युवती के साथ चलती बस में करीब तीन घंटे तक बलात्कार की घटना के बाद न केवल दिल्ली में बल्कि पूरे देश में मानो गुस्से का विस्फोट हो गया और चारों ओर से यही मांग उठने लगी। इस शर्मनाक, वीभत्स और मर्मांतक हादसे को लेकर संसद से सड़क तक जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और दिल्ली में चल रहे जंगलराज के विरुद्ध गुस्से से पूरा देश उबल रहा है। दिल्ली में तो जंतर-मंतर, दिल्ली पुलिस मुख्यालय, मुख्यमंत्री निवास, इंडिया गेट व अनेक स्थानों पर क्रुद्ध लोगों विशेषकर- महिलाओं-छात्राओं ने बड़ी संख्या में प्रदर्शन किए ही, दिल्ली से सटे इलाकों- गाजियाबाद, गुड़गांव व फरीदाबाद में भी गुस्साए लोग सड़कों पर उतर आए। आक्रोश का यह दौर इन पंक्तियों के लिखे जाने तक थमने का नाम नहीं ले रहा। दरिंदगी की शिकार वह युवती सफदरजंग अस्पताल में जिन्दगी और मौत के बीच झूल रही है। पिटाई से उसकी आंतें तक फट गई हैं। करीब एक दर्जन आपरेशनों के बाद भी उसका जीवन खतरे में है। आश्चर्य है कि बलात्कारी बस 3 घंटे दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती रही और पुलिस सोती रही! इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए 18 दिसम्बर को लोकसभा में विपक्ष की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज ने कहा, 'यदि वह लड़की मौत को हरा देती है तो भी वह पूरी जिन्दगी जिन्दा लाश की तरह रहेगी।'
जिस दिल्ली की कानून-व्यवस्था का जिम्मा केन्द्र सरकार के पास है, जिस दिल्ली की मुख्यमंत्री एक महिला हैं, जिस दिल्ली में अन्य राज्यों की अपेक्षा पुलिकर्मियों की संख्या अधिक है, जिस दिल्ली के चौराहों पर दिन-रात पुलिस की गाड़ियां खड़ी रहने का दावा किया जाता है, उस दिल्ली में ऐसी शर्मनाक घटना घटती है! फिर यह क्यों नहीं कहा जाए कि दिल्ली में जंगलराज कायम हो चुका है? दिल्ली बलात्कारों की राजधानी बन चुकी है। इस जंगलराज में हर तीसरे दिन बलात्कार या छेड़छाड़ की एक घटना घटती है। दिल्ली में हर वर्ष ऐसी घटनाओं में तेजी से वृद्धि हो रही है। 'नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्यूरो' के अनुसार 2010 में दिल्ली में बलात्कार के 414 मामले दर्ज हुए, जबकि 2011 में यह संख्या 568 पहुंच गई। अक्तूबर 2012 तक ऐसी 600 से अधिक वारदातें हो चुकी हैं। ये तो वे घटनाएं हैं, जिनके मामले दर्ज हुए हैं। बड़ी संख्या में ऐसे मामले तो बाहर आते ही नहीं हैं। दिल्ली में गत 5 वर्षों में इन मामलों में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जबकि केवल एक चौथाई मामलों में ही सजा हो पाई है। अदालतों में इन मामलों के वर्षों तक लटके रहने और पुलिस की कमजोर पैरवी से भी दोषियों को सजा मिल पाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे अपराधियों को खौफ नहीं रहता।
इधर प्रदर्शन, उधर बलात्कार
दिल्ली की इस शर्मनाक व हैवानियत भरी घटना के विरुद्ध 19 दिसम्बर को पटना, त्रिवेन्द्रम, दिल्ली सहित देश के अनेक शहरों में हजारों लोगों ने प्रदर्शन किया। जब विभिन्न जगहों पर प्रदर्शन हो रहे थे उसी समय सिलीगुड़ी (प. बंगाल), सागरपुर (दिल्ली) और रामपुर (उ.प्र.) में बलात्कार की घटनाएं उजागर हुईं। सिलीगुड़ी में तो दुष्कर्म के बाद युवती को आग लगाकर मारने की कोशिश की गई। सन्तोष बड़ोई नामक एक युवक ने 15 दिसम्बर को एक परिचित युवती के साथ बलात्कार किया और उसे आग लगा दी। 16 दिसम्बर को सन्तोष के घर के बाहर जली हालत में वह लड़की मिली। अभी उसका इलाज अस्पताल में चल रहा है। दिल्ली के सागरपुर में एक व्यक्ति ने साढ़े तीन साल की बच्ची से दुष्कर्म किया। आरोपी की पत्नी सागरपुर में निजी विद्यालय चलाती है। वह बच्ची उसी विद्यालय में पढ़ने आती थी। उ.प्र. के रामपुर में मिलक कोतवाली के एक गांव में कक्षा एक में पढ़ने वाली बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ। इस तरह की घटनाएं प्राय: रोजाना होती हैं।
बलात्कारियों को माफी क्यों?
बलात्कार की घटनाओं में बढ़ोतरी सभ्य समाज के लिए चिन्ता की बात है। इससे आक्रोशित लोग सड़कों से लेकर संसद तक रोष व्यक्त कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी की महिला सांसदों ने संसद परिसर में प्रदर्शन कर अपना रोष जताया, वहीं संसद में यह मामला उठने पर चारों ओर से शर्म, शर्म की आवाज आने लगी और कुछ का गुस्सा तो आंखों से आंसू बनकर फूट पड़ा। आम जनता पूरे देश में प्रदर्शन कर रही है। लोग बलात्कार पीड़िता को न्याय दिलाने और बलात्कारियों को कठोर सजा देने की मांग कर रहे हैं, तो संसद में भी अनेक नेताओं ने बलात्कारियों के लिए फांसी की मांग की है। बलात्कारियों को फांसी होगी या नहीं, यह तो संसद पर निर्भर करता है कि वह ऐसा कानून बनाए। यदि संसद ऐसा कानून बनाएगी तो बलात्कारियों को फांसी की सजा मिल सकती है। न्यायालय तो हर अपराधी को उसके गुनाह की सजा सुना देता है। बलात्कार के बाद हत्या के कई मामलों में न्यायालय ने अपराधी को फांसी की सजा दी भी है। पर बाद में दया याचिकाओं पर विचार करके राष्ट्रपति ने उनकी सजा कम कर दी है। इस मामले में पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल सबसे अधिक 'कृपालु' रहीं। उन्होंने अपने कार्यकाल में 23 दया याचिकाओं का निपटारा किया, जिनमें से 90 प्रतिशत अपराधियों की सजा कम कर दी। इनमें से कुछ ऐसे भी अपराधी थे, जिन्हें बलात्कार और हत्या के आरोप में मृत्यु दण्ड की सजा मिली थी। जबकि इनसे पूर्व के राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने 4 अगस्त, 2004 को प. बंगाल के धनंजय चटर्जी की दया याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद उसे फांसी दे दी गई। धनंजय ने 1990 में 14 वर्षीया एक छात्रा हेतल पारेख के साथ बलात्कार किया था और बाद में उसकी हत्या कर दी थी।
यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि बलात्कारियों को माफी क्यों? पूरे देश में एक बार फिर ऊंची आवाज में यह सवाल उठ रहा है। लेकिन तथाकथित मानवाधिकारवादी कहते हैं कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में फांसी की सजा होनी ही नहीं चाहिए, शायद वे इस दर्द को नहीं समझते कि एक बलात्कार पीड़िता की जिंदगी नासूर बन जाती है। भाजपा नेता और दिल्ली की प्रसिद्ध वकील सुश्री मीनाक्षी लेखी कथित मानवाधिकारवादियों की इस मानसिकता को खतरनाक मानती हैं। उनका कहना है कि 'इसी मानसिकता के कारण बलात्कारियों और आतंकवादियों के हौसले बढ़ रहे हैं। ऐसा लगता है कि भारत की 'फांसी नीति' का अफजलीकरण हो गया है। अफजल को फांसी न हो इसके लिए उन बलात्कारियों और हत्यारों को सजा में छूट मिल रही है, जिन्होंने किसी युवती के साथ बलात्कार किया और फिर क्रूरता से उसकी हत्या कर दी। ऐसे में आप बलात्कार की घटनाओं पर अंकुश कैसे लगा सकते हैं? अदालत जो सजा मुकर्रर करती है उसका क्रियान्वयन वर्षों तक नहीं होता। इससे समाज में यह भावना फैलती है कि कोई कुछ भी करे उसको सजा नहीं मिलती। दिल्ली के दरिन्दों के दिमाग में भी शायद यही बात बैठी हुई थी। तभी तो वे खा–पीकर शिकार की तलाश में निकल गए। इन लोगों ने पूरे तंत्र और समाज को चुनौती दी है। ऐसे लोगों को मौत की ही सजा मिलनी चाहिए, ताकि कोई दूसरा ऐसी घटना करने की हिम्मत न कर सके। दिल्ली देश की राजधानी है। जब यहां भी महिलाएं और लड़कियां सुरक्षित महसूस नहीं कर सकेंगी तो फिर पूरी व्यवस्था को धिक्कार है। लोगों, खासकर महिलाओं को लगने लगा है कि तंत्र अब उनकी सुरक्षा नहीं कर सकता है, अपनी सुरक्षा उन्हें खुद करनी पड़ेगी। क्या हम ऐसा समाज बनाना चाहते हैं? हमें तो ऐसा समाज बनाने का पूरा प्रयत्न करना चाहिए, जिसमें हर कोई सुरक्षित महसूस करे।'
ये हैं दिल्ली के दोषी
दिल्ली की घटना का मुख्य आरोपी राम सिंह है। यह बस चालक है और आर.के.पुरम की एक झुग्गी बस्ती रविदास कैम्प में रहता है। इसकी पत्नी का कुछ समय पहले निधन हो गया है। बाकी सभी आरोपी अविवाहित हैं। एक आरोपी मुकेश, राम सिंह का छोटा भाई है। पवन गुप्ता, विनय शर्मा, राजू और अक्षय ठाकुर भी इस घटना के आरोपी हैं। इनमें राजू को छोड़कर सभी आरोपी पकड़े जा चुके हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने लिया संज्ञान
दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल दहला देने वाली इस घटना का स्वत: संज्ञान लिया और दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। मुख्य न्यायाधीश डी. मुरूगेसन और न्यायाधीश राजीव सहाय की खण्डपीठ ने कहा कि राजधानी में कोई सुरक्षित नहीं है। अदालत ने पूछा घटना के समय दिल्ली पुलिस क्या कर रही थी? इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने बलात्कार से जुड़े मामलों की जल्द सुनवाई के लिए 5 त्वरित अदालत बनाने की भी अनुमति दी।
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