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अप्रत्याशित तो कुछ भी नहीं होना था गुजरात में। बस, कसौटी पर थी भाजपा की सरकार, उसके द्वारा किया गया विकास और उसके नेतृत्वकर्त्ता श्री नरेन्द्र मोदी की प्रतिष्ठा। चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि ये सभी खरे उतरे। यह तो पहले से ही स्पष्ट दिख रहा था कि गुजरात में लगातार पांचवी बार और श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार भाजपा विधानसभा चुनाव जीतने जा रही है, सरकार बनाने जा रही है। देखना सिर्फ यह था कि कांग्रेस के तमाम दुष्प्रचार और गुजरात परिवर्तन पार्टी क्या प्रभाव पड़ता है, जीत-हार का अंतर क्या होता है। गुजरात की जनता ने भारतीय जनता पार्टी को शानदार और ऐतिहासिक विजय दिलाई और श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भी जबरदस्त विश्वास प्रकट किया।
हालांकि 20 दिसम्बर की सुबह जब मतगणना शुरू हुई तो बात दो प्रदेशों की होनी थी, गुजरात और हिमाचल की, लेकिन पिछले डेढ़ माह के चुनावी अभियान की तरह नजरें गुजरात पर ही टिकी थीं। लगातार तीसरी बार दो तिहाई बहुमत हासिल कर लेना कोई आसान काम नहीं होता। वह भी तब जबकि राजनीतिक दलों का एक बड़ा समूह और लोगों की मानसिकता को प्रभावित करने वाले मीडिया का एक बड़ा वर्ग नरेन्द्र मोदी का शत्रुता की हद तक जाकर विरोध कर रहा हो। और तो और, गुजरात दंगों को लेकर राष्ट्रीय ही नहीं तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिनकी छवि एक 'साम्प्रदायिक नेता' के रूप में प्रचारित करने में जुटा रहा हो। पर इस बार के चुनाव में न गुजरात दंगे थे और न साम्प्रदायिकता, यहां तक कि कांग्रेसी नेता चुनावी अभियान के दौरान श्री नरेन्द्र मोदी पर व्यक्तिगत हमले से भी बचते नजर आए। वे जानते थे कि श्री नरेन्द्र मोदी दूसरों के द्वारा फेंकी गई ईंट से सीढ़ी बनाकर आगे बढ़ जाते हैं। इसलिए इस बार था सिर्फ जनता के सरोकारों का मुद्दा।
सबका समर्थन मिला
साफ है कि जनता ने भाजपा सरकार के विकास के दावे को सही माना और कांग्रेस के झूठे वादों को नकार दिया। पिछली बार की तुलना में इस बार भाजपा ने चारों क्षेत्रों (उत्तर गुजरात, दक्षिण गुजरात, मध्य गुजरात और सौराष्ट्र) में बेहतर प्रदर्शन किया। दक्षिण गुजरात की 35 में से 28 सीटों पर जीत बताती है कि भाजपा का जनजातीय समाज में भी समर्थन बढ़ा है, जो कभी कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक हुआ करता था। 12 मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में, खासकर वहां जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, भाजपा प्रत्याशियों की जीत इस बात की आश्वस्ति है कि विपक्षी दलों द्वारा साम्प्रदायिकता के नाम पर मुस्लिम समाज को बरगलाने के दिन अब जल्दी ही लद जाएंगे।
विनम्र और कृतज्ञ
गुजरात में भाजपा की जीत के बाद श्री नरेन्द्र मोदी ने सबसे पहले अपनी मां का आशीर्वाद लिया और फिर उनके पास गए जिनके कारण सबसे ज्यादा चुनौती मिलने की संभावना थी। भाजपा छोड़कर मोदी को चुनौती देने वाले श्री केशूभाई पटेल के घर जाकर उन्होंने न केवल उन्हें मिठाई खिलाई बल्कि पैर छूकर उनका आशीर्वाद भी लिया। मोदी की यह विनम्रता सबको भा गई। इसके बाद प्रदेश भाजपा मुख्यालय पर एकत्र हुए और जीत का उत्सव मना रहे कार्यकर्त्ताओं को सम्बोधित करते हुए श्री मोदी ने कहा कि यह उनकी या सिर्फ भाजपा की जीत नहीं है बल्कि 6 करोड़ गुजरातियों की जीत है। गुजरात चुनाव ने यह सिद्ध कर दिया है कि यहां का मतदाता परिपक्व हुआ है। गुजरात की जनता ने 80 के दशक में जातिवादी राजनीति के दुष्परिणाम झेले हैं। गुजराती समाज दोबारा वैसा माहौल नहीं देखना चाहता। वह जातिवाद से ऊपर उठकर विकास और प्रदेश के हित में मतदान करना जान गया है। गुजरात के मतदाताओं ने पूरे देश को एक राह दिखाई है। स्वयं को जीत का हीरो बता रहे लोगों से उन्होंने कहा 'इस जीत का हीरो मैं नहीं, मेरे 6 करोड़ गुजराती भाई-बहन हैं। इस जीत के हीरो वे लाखों कार्यकर्त्ता हैं जो भारत माता की जय बोलते हैं, मैं उनके सामने शीश झुकाता हूं।' सिर्फ मोदी, मोदी, मोदी और प्रधानमंत्री पद की दौड़ की चर्चा कर रहे मीडिया और कार्यकर्त्ताओं से उन्होंने कहा 'पार्टी मां होती है। पार्टी की वजह से ही हम कुछ बनते हैं। आज मैं जो कुछ भी हूं भारतीय जनता पार्टी की वजह से हूं।' जीत का आधार बताते हुए उन्होंने कहा- 'यह चुनाव परिणाम इस बात की मिसाल हैं कि हमने पूरी ईमानदारी से विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा और जीता।' और शानदार जीत के बावजूद उसके मद में चूर होने की बजाय श्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ इस प्रकार क्षमा मांगी- 'यदि मुझसे कहीं किसी तरह की गलती हुई है तो मैं आपसे, अपने 6 करोड़ भाइयों-बहनों से माफी मांगता हूं। आपने मुझे सत्ता दी है, अब अपना आशीर्वाद दीजिए ताकि मैं कोई गलती न करूं, कोई आहत न हो और मुझसे अनजाने में भी कोई गलती न हो।
गुजरात (कुल स्थान 182)
चुनाव वर्ष भाजपा कांग्रेस अन्य
2012 115 61 6
2007 117 59 6
क्षेत्रवार
सौराष्ट्र(54) 35 16 3
दक्षिण गुजरात(35) 28 6 1
उत्तर गुजरात(53) 32 21 –
मध्य गुजरात(40) 20 18 2श्
0 26 दिसंबर को श्री नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में लगातार चौथी बार शपथ लेकर इतिहास रचेंगे।
0 गुजरात परिवर्तन पार्टी को 3 सीटें मिलीं। इसके नेता केशुभाई पटेल चुनाव जीते, लेकिन गोरधन झाड़पिया हार गए।
0 भाजपा प्रदेश अध्यक्ष आर.सी. फाल्दू और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया हारे। वर्तमान 5 मंत्री भी हारे।
0 सदन में कांग्रेस विधायक दल के नेता शक्ति सिंह गोहिल की भी हार।
0 भाजपा की आनंदी बेन पटेल ने 1 लाख से अधिक मतों से जीत दर्ज कर रिकार्ड बनाया तो मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कांग्रेस प्रत्याशी को 86,373 मतों से पराजित किया। मोदी को मिले 1,20,470 मत जबकि श्वेता भट्ट को 34,097।
0 शहरी क्षेत्र की 80 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र की 50 प्रतिशत सीटें भाजपा ने जीतीं।
0 मुस्लिम बहुल 19 सीटों में से 12 सीटें भाजपा ने जीतकर साम्प्रदायिकता के दुष्प्रचार को ध्वस्त कर दिया। हालांकि भाजपा ने एक भी मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं उतारा था।
0 सद्भावना यात्रा और युवा विकास यात्रा का लाभ भाजपा को मिला।
0 वनबंधु योजना के कारण जनजातीय क्षेत्रों में भी बढ़त, जहां कांग्रेस का वर्चस्व हुआ करता था।
0 नरेन्द्र भाई मोदी ने इस बार चुनाव प्रचार के दौरान अत्याधुनिक '3 डी' तकनीकी का प्रयोग किया। इसे बेहद खर्चीला बताकर विरोधी दलों ने उनकी आलोचना की, लेकिन इसके द्वारा वे अधिक से अधिक लोगों तक अपनी बात पहुंचा सके।
0 महात्मा गांधी को अपना राजनीतिक गुरु बताने वाले नकली गांधी राहुल को जबाव मिला–विदेशी वस्त्रों की होली जलाने वाले महात्मा गांधी के कथित चेले 'एफडीआई' के नाम पर विदेशियों को नहीं बुलाते। गांधी जी तो स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस को खत्म करना चाहते थे, राहुल उनकी इच्छा पूरी क्यों नहीं करते?
हिमाचल चला केरल की चाल
जहां गुजरात में भाजपा ने तीसरी बार जीत दर्ज की वहीं हिमाचल प्रदेश में भाजपा द्वारा लगातार दूसरी बार सरकार बनाने की कोशिश नाकाम साबित हुई। हालांकि भाजपा ने यहां अपनी पूरी ताकत झोंक रखी थी, उसने काम भी किया था, उसके नेतृत्व पर कोई प्रश्नचिन्ह भी नहीं था। चुनाव में भाजपा सिरमौर जिले जैसे कांग्रेसी गढ़ में सेंध लगाने में भी कामयाब रही, जहां उसे 5 में से 4 सीटें मिलीं। उधर महंगाई, भ्रष्टाचार आदि मुद्दे भी थे जिसके बल पर वह जीत के प्रति आश्वस्त थी। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के भ्रष्टाचार के काले कारनामों का कच्चा चिट्ठा भी जनता के बीच था। राजनीतिक विश्लेषक और सर्वेक्षण भी बता रहे थे कि इस पहाड़ी प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है। लेकिन 20 दिसम्बर को जब भाग्य का पिटारा खुला तो बाजी लगी कांग्रेस के हाथ। अब कहा जा रहा है कि दो दलों के बीच बंटे इस प्रदेश ने केरल की तरह एक बार इसको, दूसरी बार उसको चुनने की परिपाटी अपना ली है। यहां 1977 से लगातार एक बार भाजपा तो दूसरी बार कांग्रेस की सरकार बन रही है। बहरहाल, मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने हार स्वीकारते हुए हार के कारणों की समीक्षा करने के साथ ही कांग्रेस को जीत की बधाई दी है तो वीरभद्र सिंह जीत दिलाने के बाद भी जनता की बजाय सोनिया जी की अनुकम्पा से मुख्यमंत्री बनने की बात कह रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश (कुल सीटें 68)
चुनाव वर्ष भाजपा कांग्रेस अन्य
2012 26 36 6
2007 41 23 4
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