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कश्मीर घाटी के इस्लामीकरण की नीति को सफल बनाने के बाद लगता है कि अलगाववादियों-आतंकवादियों ने अब जम्मू को भी अपने निशाने पर ले लिया है। जम्मू महानगर के बाहरी क्षेत्रों में कश्मीर घाटी तथा कुछ अन्य क्षेत्रों से कश्मीरी हिन्दू परिवारों के साथ ही 3000 से भी अधिक मुस्लिम परिवारों के भी बसने की बात चर्चा और चिंता का विषय बनी रहती है। विस्थापित हिन्दुओं के पुनर्वास या घाटी में वापसी की बात पर तो कभी- कभी चर्चा होती है, किन्तु इन मुसलमान परिवारों की घाटी में वापसी की बात किसी भी स्तर पर कभी भी सामने नहीं आती।
जिन क्षेत्रों में इन मुस्लिम विस्थापितों को रखा गया है और जहां अन्य लोग रहस्यमय परिस्थितियों में आकर बस रहे हैं, उन बस्तियों के नाम भी बदले जा रहे हैं। जम्मू के बाहरी क्षेत्र नरवाल के एक भाग को तो इस्लामाबाद का नाम दिया गया है। इसी प्रकार अन्य क्षेत्रों के नाम जलालाबाद, फिरदौसपुरा, कासिम नगर, रमजानपुरा आदि रखे गए हैं। एक और आश्चर्य की बात यह है कि बड़ी संख्या में बंगलादेशी व म्यांमार के मुसलमान भी जम्मू आ रहे हैं। कश्मीरी मुसलमानों के साथ ही इनमें से अधिकांश ने जम्मू नगर के बाहरी क्षेत्रों में अपने झोपड़े बना लिए हैं। वेश्यावृत्ति से लेकर अनेक प्रकार के अवैध व्यापार व कृत्यों में ये लोग शामिल पाए जा रहे हैं। किश्तवाड़ के बाहरी इलाकों में वेश्यावृत्ति में लिप्त ऐसे छह परिवारों के सदस्यों को गिरफ्तार भी किया गया है, जो मूलत: म्यांमार के थे।
विधानसभा के गत अक्तूबर अधिवेशन के दौरान एक प्रश्न के उत्तर में सरकार द्वारा बताया गया कि जम्मू नगर के नरवाल बस्ती में 407 बर्मी (म्यांमार) परिवार पहुंचे हैं और छन्नी रामा में 28 परिवार रह रहे हैं। इन परिवारों के सदस्यों की संख्या कुल मिलाकर 2036 है। किन्तु गैरसरकारी सूचनाओं के अनुसार बर्मा के इन शरणार्थियों की संख्या 5000 के लगभग है, जो 782 परिवारों पर आधारित है। एक स्थानीय समाचार पत्र ने यह समाचार भी प्रकाशित किया है कि बर्मा के अधिकांश शरणार्थी वेश्यावृत्ति के धंधे में लिप्त हैं और इन परिवारों की महिलाएं तथा युवतियां होटलों आदि में पकड़ी जा रही हैं।
इसी बीच कुछ कथित समाजसेवी संगठन इन विस्थापितों की सहायता तथा पुनर्वास के लिए भी सक्रिय हो गए हैं। इन शरणार्थियों के नाम पर जनता व सरकार से धन लूटा जा रहा है। इन संगठनों में 'सखावत सेंटर (जे एण्ड के) ने तो इस संबंध में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में बड़े-बड़े ज्ञापन भी छपवाए हैं, जिनमें दान के लिए अनुरोध करते हुए म्यांमार के इन शरणार्थियों की दयनीय स्थिति के हृदय को छूने वाला दृश्य दिखाए गए हैं व उनका वर्णन किया गया है। इन ज्ञापनों में यह भी कहा गया है कि दान देने वालों को धारा 80 जी के अन्तर्गत आयकर में छूट मिलेगी। जम्मू के निवासी अपने नगर के आसपास तेजी से घटित हो रहे इस घटनाचक्र को लेकर खासे चिंतित हैं। समझ नहीं पा रहे हैं कि म्यांमार के ये मुस्लिम पूरा देश छोड़कर यहीं क्यों बस रहे हैं? और उनकी सेवा के नाम पर लूट का धंधा चलाने वालों को सरकार 80 जी के अन्तर्गत छूट क्यों दे रही है?
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