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राजनीति में संसदीय परम्पराओं के संवाहक तथा कानून के जानकार उत्तराखण्ड राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री श्री नित्यानंद स्वामी अब नहीं रहे। पिछले काफी समय से अस्वस्थ चल रहे श्री स्वामी ने 86 वर्ष की उम्र में भी अपने को जिंदादिल व राजनीतिक शुचिता का पर्याय बना रखा था। 27 दिसम्बर, 1928 को हरियाणा के नारनौल में जन्मे श्री नित्यानंद स्वामी काफी दिनों से अस्थमा की समस्या से ग्रस्त थे। फरीदाबाद में अपने नाती के विवाह संस्कार से लौटे स्वामी ने देहरादून पहुंचकर परिजनों को घबराहट की शिकायत की थी। पारिवारिक लोगों ने उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया, जहां अस्थमा दौरे के कारण उनका 5 दिसम्बर की सुबह देहावसान हो गया। उनका अंतिम संस्कार देहरादून के लक्खीबाग स्थित श्मशान घाट पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया।
सादगी, सरलता एवं राजनीतिक शुचिता के पक्षधर श्री नित्यानंद स्वामी को उत्तराखण्ड की राजनीति का भीष्म पितामह भी कहा जाता था। उनकी राजनीतिक कार्य-कुशलता के प्रशंसक देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी भी हैं। इसी कारण श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने उन्हें अलग राज्य बनने पर 9 नवंबर, 2000 को उत्तराखण्ड राज्य का प्रथम मुख्यमंत्री मनोनीत किया। उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन के दौरान अविभाजित उत्तर प्रदेश में श्री नित्यानंद स्वामी विधान परिषद के सभापति थे। उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सभापति के महत्वपूर्ण दायित्व से बंधे होने के कारण उन्होंने सीधे तौर पर राज्य निर्माण आन्दोलन में प्रतिभाग नहीं किया। वे भारतीय मजदूर संघ से भी लंबे समय तक जुड़े रहे थे। उत्तराखण्ड का हर आमजन श्री नित्यानंद स्वामी की सरलता का मुरीद हो जाता था, अपने मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल के समय उन्होंने अपने अधीनस्थ अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिये थे कि उत्तराखण्ड के सुदूर इलाकों से आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को उनसे जरूर मिलाया जाये। राज्य की गरीब जनता की हर संभव सहायता के लिये वो हमेशा तैयार रहे। 1950-51 में देहरादून के डी.ए.वी. (पी.जी.) कालेज से छात्र संघ से शुरू हुआ उनका राजनीतिक जीवन उन्हें काफी ऊंचाईयों तक ले गया। वह इस कालेज के छात्र संघ अध्यक्ष चुने गये। इसी महाविद्यालय से एम.ए. एल.एल.बी. करने के बाद श्री स्वामी ने लंबे अर्से तक वकालत भी की। वह कानून के अच्छे जानकार थे। भारत के संविधान एवं ससंदीय परम्पराओं का उन्हें भली भांति ज्ञान था। वह इन सबका बहुत ख्याल रखते थे। उत्तराखण्ड में शराब बंदी के लिये भी उन्हें याद किया जाता है। उत्तराखण्ड की सत्ता संभालते ही उन्होंने माफिया से मुक्ति एवं शराबबंदी के लिये कार्य किया, इस कारण उन्हें भारी विरोध भी झेलना पड़ा।
श्री स्वामी के निधन पर भारतीय जनता पार्टी ने देहरादून पार्टी कार्यालय में एक शोक सभा आयोजित कर अपनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित की। नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट ने अपने संदेश में नित्यानंद स्वामी को संसदीय परम्पराओं का उपासक बताते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी के लिये श्री स्वामी का जाना अपूरणीय क्षति है। अल्मोड़ा से कांग्रेस सांसद श्री प्रदीप टम्टा ने कहा कि नित्यानंद स्वामी शालीन एवं आदर्श राजनेता थे, उनका निधन उत्तराखण्ड की राजनीति के लिये दु:खद है। भाजपा के राज्य सभा सदस्य भगत सिंह कोश्यारी ने उन्हें कभी न थकने वाला राजनेता बताया। पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचन्द्र खंडूरी ने उन्हें ज्ञानवान, कर्मठ तथा लोकप्रिय नेता बताया। श्री खंडूरी ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री स्वामी सच्चे अर्थो में राष्ट्रवादी थे। कुशल राजनेता होने के साथ-साथ उन्हें उनके मृदु व्यवहार के लिये भी जाना जायेगा। मनोज गहतोड़ी'
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