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बिहार में मुजफ्फरपुर जिले के कुढ़नी टोला गांव निवासी रूबी कुमारी अपने गांव के साथ-साथ आस-पास के गांवों के लिए भी उदाहरण बन चुकी है। उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि अगर महिला दृढ़निश्चयी हो तो उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। रूबी एक गरीब लोहार परिवार से नाता रखती है। जहां दो जून की रोटी भी जुटा पाना मुश्किल होता है। रूबी की छह बहनें और दो भाई हैं। मां के बीमार हो जाने के कारण घर की सारी जिम्मेदारी रूबी के कंधों पर आ गयी। महज आठ साल की उम्र में वह लोहार का कामकाज अपने पिता से सीख कर उन्हें व्यवसाय में मदद करने लगी है। विपरीत स्थितियों के बावजूद उसने कभी भी मुश्किलों के सामने घुटने नहीं टेके और अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। अभी वह प्रोजेक्ट बालिका उच्च विद्यालय कुढ़नी में दसवीं की छात्रा है। हालांकि उसका अभी तक का सफर आसान नहीं था। पग-पग पर ऐसी स्थिति आ जाती थी जिसके कारण कई बार अवरोध पैदा होती थी। पैसे नहीं देने पर मास्टर जी ने उसे ट्यूशन से निकाल दिया। लेकिन परिवार की आर्थिक तंगी और आगे कुछ कर गुजरने का जज्बा उसे पढ़ाई जारी रखने को मजबूर कर देता है। सुबह दो घंटे पढ़ाई करने के बाद आठ बजे अपने पिता की गुदरी चौक स्थित दुकान पर हाथ बंटाने चली जाती है। वहां से आकर विद्यालय जाती है। विद्यालय से लौटकर फिर दुकान में लग जाती है। वहां से आने के बाद रात दस बजे तक पढ़ाई करती है। इसकी चार बहनों की शादी के कारण पिता लाखों रु. के कर्ज में डूब चुके हैं, महाजन उन्हें बार-बार तंग करता है। पर रूबी की मदद के कारण अब उनके पिता को आशा की किरण थोड़ी दिखाई दी है। रूबी के पिता कहते हैं, लोग इसकी कार्यकुशलता से इतने प्रभावित हैं कि वे पांच किलोमीटर तक की दूरी तय कर रूबी के हाथों से हंसुआ, खुरपी, फसूल, कुदार और अन्य औजारों को बनवाने आते हैं। रूबी न सिर्फ अपने परिवार की मदद कर रही है, बल्कि कई लोगों को जीने की नई कला भी सिखा रही है। संजीव कुमार
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