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सनातन धर्म में नारी की अहम भूमिका है। लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती, दुर्गा, मीरा, सीता, अनसुइया आदि पूजनीय हैं। आज भी इनका स्थान यथावत है। भारत में बड़ी तेजी से पैर पसारती पाश्चात्य संस्कृति व चकाचौंध में भी नारी धर्म की कदर करती है, जो कि सनातन धर्म के लिए गौरव की बात है।
हालांकि, धर्म के ठेकेदारों एवं विरोधियों ने नारी को सदैव धर्म से अलग रखने की कुचेष्टाएं कीं, जो कि उसकी शक्ति के आगे धराशायी होती रहीं। नारी किस प्रकार धर्म के प्रति समर्पित रहती है, यह उसकी ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा एवं आस्था बताती है। हर घर में नारी ही देवी-देवताओं का नित्य एवं नियमानुसार सच्चे व नि:स्वार्थ भाव से स्मरण करती है। अपने परिवार के लिए व्रत रखती हैं। विभिन्न धार्मिक उत्सवों, आयोजनों एवं त्योहारों में बढ़-चढ़कर भागीदारी करना उसके भक्तिभाव को उजागर तो करता ही है, धर्म के प्रति गहरे जुड़ाव को भी प्रदर्शित करता है। धर्म का अर्थ 'धार्मिकता', धारण करना एवं कर्तव्य है, जिसमें नारी अपना पूरा योगदान करती है। यही योगदान उसके आत्मबल, सम्मान को बढ़ाए हुए है। ओमप्रकाश उनियाल
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