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आज प्राय: हर घर में देखा जा रहा है कि सास और बहू में पटरी नहीं बैठ रही है। इस वजह से अनेक तरह की दिक्कतें पैदा हो रही हैं। हर सास एक दिन बहू होती है और हर बहू एक दिन सास बनती है। फिर सास-बहू में यह छत्तीस का रिश्ता क्यों? इस रिश्ते को टीवी चैनलों में दिखाए जाने वाले महिला प्रधान धारावाहिकों ने भी बिगाड़ने का काम किया है। मेरा मानना है कि सास-बहू के बीच आपसी समझदारी यदि मजबूत है तो कभी उन दोनों में मनमुटाव नहीं होगा। इस मामले में मैं अपने आपको भाग्यशाली मानती हूं। मैं अपनी सासू मां के कारण ही जीवन में थोड़ी-बहुत सफल रही हूं। वह तो बिल्कुल मेरी मां जैसी हैं। हम दोनों आपस में बिल्कुल मां-बेटी का रिश्ता रखते हैं। मैंने एक सरकारी विभाग में उच्च पद पर कार्य किया। समय पर कार्यालय पहुंचती थी। हर उस लक्ष्य को प्राप्त किया जिसके लिए संकल्प लेती थी। इसमें मेरी सासू मां का सबसे बड़ा योगदान रहा। ससुर और पति की भी भूमिका अच्छी रही। वे दिन मुझे याद हैं जब मेरा बेटा साढ़े पांच महीने का था। उसे घर पर छोड़कर नौकरी करने जाती थी। पीछे घर पर उसकी पूरी देखरेख मेरी सासू मां ही करती थीं। यह हम दोनों की आपसी समझदारी का परिणाम था। अब मेरा बेटा बड़ा हो गया है और सासू मां 88 वर्ष की हो गई हैं। मैं भी सेवानिवृत्त हो चुकी हूं। इस आयु में भी ईश्वर की कृपा से हमारी सासू मां अपना सब काम कर लेती हैं। मैं कभी किसी चीज में मदद कर देती हूं तो कहती हैं तुम लोग बहुत करते हो। उनकी यह बात अहसास कराती है कि बड़े-बुजुर्गों को मदद की नहीं, अपनत्व और प्यार की भूख रहती है। आप उनके साथ अपनत्व दिखाएं वह भी आपको आशीष देंगे। जहां आशीष होगा वहां झगड़ा नहीं होगा। मैं तो हर बहू से यही कहना चाहूंगी कि अपनी सासू मां को अपनी मां मानो, मां जैसा सम्मान दो। बच्चों में भी बड़ों के प्रति आदर की भावना बढ़ाओ। बच्चों से कभी यह मत कहो कि तुम्हारी दादी बड़ी…। जहां तक हो सके बच्चों के सामने उनकी दादी की तारीफ करें। फिर सास-बहू में सामंजस्य न बैठने का सवाल ही नहीं है। सुरेन्द्रा जैन
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