राष्ट्रपति बनने के लिए बेचैन हैं कादिर खान
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क्या 2013 के चुनाव के पश्चात् पाकिस्तान के परमाणु बम के जनक डा. अब्दुल कादिर खान अपने देश के राष्ट्रपति बन सकते हैं? क्या वे सही अर्थों में वैज्ञानिक हैं या राजनीतिज्ञ? इसका उत्तर मिलना अब तक कठिन था। लेकिन पिछले कुछ दिनों से पाकिस्तान में जिस प्रकार चर्चाएं चल रही हैं उससे तो ऐसा लगता है कि उनके मन-मस्तिष्क में दबी यह इच्छा किसी भी समय परवान चढ़ सकती है। परवेज मुशर्रफ ने अपने शासनकाल में उनको अपने ही घर में नजरबंद क्यों कर दिया था? क्या बेनजीर उनसे नाराज थीं? उनके सम्बंध नवाज शरीफ से कैसे रहे? आदि बातों की जब जांच-पड़ताल करते हैं तो यह तथ्य उभर कर आता है कि अब्दुल कादिर खान के मन में राजनीतिज्ञ बनने की इच्छा प्रारम्भ से ही थी। लेकिन वह सुप्त अवस्था में थी। समय के साथ उनकी इच्छा बलवती बनती चली गई। क्या आज भी वे अपने मन में पाकिस्तान के शक्तिशाली नेता बनने के लिए लालायित हैं? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिन पर से अब तक पर्दा नहीं उठा है। लेकिन पाकिस्तान के कुछ वरिष्ठ राजनीतिज्ञ भली प्रकार से जानते हैं कि अब्दुल कादिर खान पद और पैसे के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
इस्लामी देशों में भले ही वे चर्चित हों लेकिन अपने ही देश के नेता और सेना के जनरलों में डा. खान हमेशा ही शंका की निगाहों से देखे जाते रहे हैं। एक सनकी व्यक्ति के हाथों में बंदूक आ जाए तो लोग हाय-तौबा करने लगते हैं। विचार कीजिए किसी महत्वाकांक्षी वैज्ञानिक के हाथों में परमाणु बम आ जाए तो फिर क्या नहीं हो सकता है?
पाकिस्तान के राजनीतिज्ञ ऐसा तो नहीं कर सकते हैं, क्योंकि परमाणु बम के दबदबे का लाभ उन्हें भी तो कहीं न कहीं मिलने ही वाला है। इसलिए ऐसा कह कर कौन पाकिस्तान की जनता में स्वयं को खलनायक बनाएगा? पाकिस्तान के अनेक राजनीतिज्ञ और बुद्धिजीवी इशारों-इशारों में तो कहते ही हैं कि परमाणु बम के निर्माण ने पाकिस्तान को पूरी दुनिया में बदनाम कर दिया है। इस्लामी बम जब इसका नाम पड़ा तो अनेक लोगों ने अपनी निगाहें भी तिरछी कर ली थीं। लेकिन इसके पीछे उनके भी कुछ स्वार्थ थे इसलिए मौन साधना ही बेहतर था। पाकिस्तान में राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बंधित सभी फैसले फौजी टोले के लोग ही करते हैं। सरकार चला रहे लोगों को इससे दूर ही रखा जाता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर को सेना के उच्च अधिकारी पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए खतरा समझते थे। यद्यपि बेनजीर के ही पिता जुल्फिकार अली भुट्टो ने इस विचार को सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था। यह बात दिन के उजाले की तरह स्पष्ट है कि परमाणु हथियारों का मामला भी बेनजीर के हाथों में नहीं था।
खतरनाक हथियार
पाकिस्तान की सुरक्षा से सम्बंधित सभी निर्णय केवल सेना के उच्च जनरल और कर्नल किया करते थे। पाकिस्तान के फौजी टोले ने पहले दिन से ही भारत को अपना कट्टर दुश्मन माना है इसलिए जो परमाणु बम तैयार किया गया वह केवल भारत के लिए ही है, यह स्वीकार करना ही पड़ेगा। पाकिस्तान ने कोई वैज्ञानिक प्रगति के लिए नहीं, बल्कि भारत को पराजित करने के लिए यह हथियार तैयार किया है। पाकिस्तान आज तक इस खतरनाक हथियार के लिए अपना कोई स्पष्टीकरण दुनिया के सम्मुख प्रस्तुत नहीं कर सका है। इस मामले में सबसे अधिक गैर-जिम्मेदारी का सबूत इस खतरनाक हथियार के जनक वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान ने दिया है। हद तो यह हो गई कि इसे बनाने के लिए वे चोरी करना भी नहीं भूले।
लेकिन वे इतने पर भी संतुष्ट नहीं हुए, बल्कि 2004 में उनकी परमाणु कालाबाजारी का घपला भी सामने आ गया। पता लगा कि वे परमाणु बम का कारोबार करके सारी दुनिया में उसे फैलाने का प्रयास कर रहे थे। ऐसा करना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक संगीन अपराध है। उन दिनों परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के राष्ट्रपति पद पर विराजमान थे। अब्दुल कादिर खान पाकिस्तान के ही नहीं, बल्कि इस्लामी जगत के हीरो बने हुए थे। लेकिन मुशर्रफ पर जब बड़ी ताकतों का दबाव आया तो उनके लिए डा. अब्दुल कादिर को अपराध के कटघरे में खड़ा करना अनिवार्य हो गया। डा. खान ने इस आरोप को स्वीकार कर लिया कि परमाणु रहस्यों को उन्होंने अन्य देशों को भी बेचा है। तीन देशों के नाम उछले उनमें एक ईरान, दूसरा लीबिया और तीसरा दक्षिण कोरिया था। लेकिन उन्होंने यह भी कह दिया कि उन्होंने जो कुछ किया वह प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के आदेश से किया है। अब उनका कहना है कि दो ही देशों को उन्होंने परमाणु रहस्य निर्यात किए थे। जब इस प्रकार के समाचार पाकिस्तान में प्रसारित हुए तो लोगों ने उनसे पूछा कि वे अब तक इस मामले में मौन क्यों रहे? यदि बेनजीर के ही जीवन में इस बात को कहते तो बेनजीर अवश्य ही अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करतीं। यह सब कुछ तो केवल अपना पाप छिपाने के लिए उन्होंने उस व्यक्ति के नाम का उपयोग कर डाला जो अब इस दुनिया में नहीं है। पाकिस्तान के 'डेली न्यूज' ने डा. कादिर से जब यह पूछा कि बेनजीर ने तो आपके कथनानुसार दो ही देशों में इस तकनीक को देने की बात कही थी तो फिर यह तीसरा देश कहां से आ गया? क्या तीसरे देश को इस तकनीक का रहस्य बता कर उन्होंने कोई अपना निजी लाभ उठाया है?
कादिर की धमकी
डा. कादिर ने यह भी बताया कि 1998 में पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ हिन्दुस्थान के जवाब में परमाणु विस्फोट करने में आगे-पीछे हो रहे थे। तब डा. कादिर ने उन्हें धमकी दी थी कि वे यदि उनके कहे अनुसार यह धमाका नहीं करेंगे तो मैं सारी बातें मीडिया को बता दूंगा। इसलिए नवाज शरीफ ने हिचकिचाते हुए उक्त विस्फोट के आदेश दिये। इसका अर्थ यह हुआ कि डा. कादिर के दबाव के कारण ही उन्होंने यह जोखिम भरा काम किया। अब यहां यह सवाल उठता है कि यदि एक प्रधानमंत्री के विरोध करने पर भी वे अपनी इच्छा मनवाने में सफल हो गए तो फिर दूसरे प्रधानमंत्रियों का विरोध उन्होंने क्यों नहीं किया? उन्होंने बेनजीर को यह धमकी क्यों नहीं दी कि वे यदि विरोध करेंगी तो वे सारी बातें मीडिया को बता देंगे। डा. कादिर की अन्य बातों में भी विरोधाभास दिखाई पड़ता है। उन्होंने न केवल बेनजीर के सिर पर यह आरोप मढ़ने का प्रयास किया, बल्कि यह भी कहा कि परमाणु कार्यक्रम से सम्बधित सभी मामलों की निगरानी 808 व्यक्ति करते हैं। यदि ऐसा था तो फिर उन्होंने अकेले परमाणु तकनीक अन्य देशों को कैसे निर्यात कर दी? क्या बेनजीर के आदेश को स्वीकार करने से पहले उन्होंने सभी 808 व्यक्तियों को अपने विश्वास में ले लिया था?
जब से पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति जरदारी के भ्रष्टाचार के मामले को लेकर पाकिस्तान की संसद पर शिकंजा कसा है उसके पश्चात् पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति अत्यंत अस्थिर हो गई है। न्यायालय की सख्ती के कारण यूसुफ रजा गिलानी को प्रधानमंत्री के पद से त्यागपत्र देना पड़ा है। बाद में जब से राजा अशरफ प्रधानमंत्री बने हैं, उन्हें भी इसी मामले का सामना करना पड़ा है। यदि उन्होंने जरदारी के भ्रष्टाचार के मामले में स्विस बैंक से पूछताछ नहीं की तो फिर उन्हें भी गिलानी वाला मार्ग दिखा दिया जाएगा।
पी.पी.पी. की साख
पाकिस्तान में अब इस बात की जोरशोर से चर्चा चल रही है कि इस बार सरकार स्वयं आगे आकर राष्ट्रपति से संसद को भंग कर देने की मांग करेगी। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि पाकिस्तान में किसी भी क्षण नए आम चुनाव की घोषणा की जा सकती है। पीपीपी की स्थिति बहुत दृढ़ नहीं है। यदि होती तो वह वर्तमान में भी अन्य दलों के सहयोग से मिली-जुली सरकार क्यों बनाती? सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह के सवाल उठाए हैं और सरकार को बारम्बार कठघरे में खड़ा किया है उसे लगता है कि नए चुनाव हुए तो पीपीपी बहुत अच्छी स्थिति नें नहीं होगी। ऐसे समय में यह सवाल पैदा होगा कि अगली सरकार किसकी होगी? नवाज शरीफ और इमरान खान इस बार अपनी जीत के दावे प्रस्तुत कर रहे हैं। लेकिन वे भी अकेले हाथों सरकार नहीं बना सकते हैं। तब क्या अब्दुल कादिर खान इन नेताओं के साथ मिलकर कोई नई रणनीति बनाएंगे? अब्दुल कादिर खान बेनजीर और उनकी पार्टी के कट्टर विरोधी हैं। पीपीपी को पराजित करने के लिए विरोधी दल डा. अब्दुल कादिर खान का उपयोग कर सकते हैं। खान की लोकप्रियता का लाभ अन्य विरोधी दल उठा सकते हैं, क्योंकि वे पाकिस्तान में परमाणु बम के जनक हैं। इसलिए पाक जनता में उनके प्रति सम्मान और विश्वास दिखता है। लोगों का मानना है कि पाकिस्तान को अपने परमाणु बम के निर्माण से वे दुनिया की ताकत बना सकते हैं तो अपनी योग्यता के आधार पर वे पाक को आर्थिक और राजीतिक शक्ति भी बना सकते हैं। पीपीपी को परमाणु बम का विरोधी बताकर वे पाकिस्तान में उसकी साख को गिरा सकते हैं। इस प्रकार पाकिस्तान में डा. खान के नेतृत्व में सरकार बन सकती है। नवाज शरीफ और इमरान खान के नेतृत्व में मोर्चा बनाकर अब्दुल कादिर खान को राष्ट्रपति पद पर विराजमान किया जा सकता है। पाकिस्तान के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इसीलिए डा. खान राजनीति कर रहे हैं। नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग को उनका विरोध करना चाहिए, लेकिन जब नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद मिल जाए तो वे निश्चित ही संतुष्ट हो जाएंगे।
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