बकरीद के अवसर पर 'गोरू हाट' (गाय बाजार) बसाने के प्रयासममता के राज में अवैध बूचड़खानों के बचाव में उतरी पुलिस-प्रतिनिधि
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बकरीद के अवसर पर 'गोरू हाट' (गाय बाजार) बसाने के प्रयासममता के राज में अवैध बूचड़खानों के बचाव में उतरी पुलिस-प्रतिनिधि

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Oct 22, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 22 Oct 2012 12:25:35

 

 

इस वर्ष ई-उल-जुहा या कहें कि बकरीद 27 अक्तूबर को है। इसे देखते हुए सारे नियम कानूनों को ताक पर रखकर पश्चिम बंगाल के कसाई बड़े पैमाने पर गोहत्या करने की तैयारी में हैं। और उससे भी अधिक शर्मनाक तथा चिंताजनक स्थिति यह है कि बंगाल सरकार, उसका प्रशासन और पुलिस अवैध बूचड़खाने खोलने और चलाने के लिए उनकी पूरी मदद कर रही है। सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम वोट बैंक के लालच में उसके तुष्टिकरण की लालसा इस हद तक बढ़ गई है कि राज्य सरकार के दबाव में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी तक स्थानीय हिन्दुओं के वरिष्ठ नेताओं को थाने बुलाकर समझाने के नाम पर धमकाने लगे हैं कि वे 'मुसलमानों के त्यौहार' को देखते हुए गोकशी की अनदेखी कर दें। और ऐसा न करने पर 'परिणाम कुछ भी हो सकता है' जैसी शब्दावली का प्रयोग कर रहे हैं। पूरे प्रदेश में ईद-उल-जुहा से पूर्व ही गोभक्तों-गोरक्षकों को 'ठीक' करने का 'सरकारी कार्यक्रम' चल रहा है। इसके विरुद्ध गोसेवक समाज भी उठ खड़ा हुआ है, एकजुट हो रहा है और किसी भी कीमत पर 'गाय की कुर्बानी' न होने देने का संकल्प व्यक्त कर रहा है।

ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने जबसे प्रदेश की सत्ता संभाली है, उसे लग रहा है कि उसकी जीत और माकपा की हार में सबसे बड़ा योगदान 'मुस्लिम वोट बैंक' का है। इसीलिए उस वोट बैंक को साधे रखने की कोशिश में कई निर्णय ऐसे भी हो रहे हें जिससे ममता बनर्जी सरकार की लोकप्रियता तेजी से घटती जा रही है। हालांकि विदेशी पूंजी निवेश, महंगाई और गैस सिलेण्डरों की 'राशनिंग' को मुद्दे पर केन्द्र सरकार से समर्थन वापस लेकर ममता बनर्जी ने देश की आम जनता का मन जीतने की कोशिश की, लेकिन पश्चिम बंगाल में 'मुस्लिम वोट बैंक' को रिझाने के लिए जो कुछ हो रहा है, या किया-कराया जा रहा है, उससे लोगों के मन में जबरदस्त आक्रोश है। हालात तो यहां तक पहुंच गए हैं कि सर्वोच्च न्यायालय और कोलकाता उच्च न्यायालय के निर्णय/आदेश/निर्देश की अवहेलना कर खुलेआम अवैध पशु बाजार खुलवाए जा रहे हैं, जिन्हें वहां गोरू हाट (गाय बाजार) कहा जाता है। इस प्रकार के गोरू हाट पुलिस के संरक्षण में खुल रहे हैं। इसका उदाहरण देखना हो तो दक्षिण 24 परगना के उस्थी थाने के पास चले जाइये, जहां थानाध्यक्ष ने थाने की दीवार और उस्थी नर्सरी के बीच खाली पड़ी जगह में गोरू हाट खुलवा दिया। जायनगर थाना क्षेत्र के मौजपुर और विश्वंतपुर गांवों में भी बड़े-बड़े गोरू हाट खुल गए हैं। फाल्टा थानान्तर्गत सहाराहाट में पुलिस की मौजूदगी में कसाई ध्वनि विस्तारक (माइक) लगाकर खुलेआम 'शहादत के लिए गाय उपलब्ध' होने का प्रचार कर रहे हैं।

बात यहीं तक नहीं रूकी। दक्षिण 24 परगना के अनतर्गत उस्थी पुलिस थाने के प्रभारी सुदीप सिंह ने गत 12 अक्तूबर को पियानगंज के एक सामाजिक कार्यकर्ता पिन्टू महेश को बातचीत के लिए बुलाया। पिन्टू ने ही 4 अक्तूबर को पंजीकृत डाक द्वारा थाना प्रभारी व अन्य उच्च पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को सूचित किया था कि उनके गांव/कस्बे पियानगंज में अवैध बूचड़खाने के निर्माण के प्रयास किये जा रहे हैं, इस पर तुरंत रोक लगाई जाए। पर 12 अक्तूबर को इस विषय पर बातचीत के दौरान पिन्टू महेश हैरान रह गए उनकी शिकायत पर जांच और कार्रवाई की बजाय पुलिस-प्रशासन उस अवैध बूचड़खाने को स्थापित करने के लिए सहयोग देने  को कहने लगा। थाना प्रभारी सुदीप सिंह के साथ उस बैठक में क्षेत्रीय पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) पापिया सुल्ताना भी मौजूद थीं। अवैध बूचड़खाने को चलता रहने देने के बढ़ते दबाव के बीच साहसी महेश ने डीएसपी श्रीमती सुल्ताना से साफ शब्दों में कह दिया- 'मैडम, आपके भाइयों और बहनों को संतुष्ट रखने के लिए हम अपने कस्बे में अवैध बूचड़खाना नहीं चलने देंगे।' उन्होंने डी.एस.पी. सुल्ताना और थाना प्रभारी सुदीप सिंह से कहा कि वे कसाईयों के पैरोकार बनने की बजाय कानून का पालन करें और न्यायालय द्वारा इस संबंध में दिए गए निर्देशों के अनुसार कार्य करें। पिन्टू महेश की इस खरी-खरी बातों के बाद थाना प्रभारी द्वारा 13 अक्तूबर की शाम बुलाई जाने वाली गांववासियों की उस प्रस्तावित बैठक को स्थगित कर दिया गया जिसमें 'पियानगंज में आपसी सहमति से बूचड़खाना खोलने का सर्वसम्मत प्रस्ताव' किया जाना था।

है न आश्चर्यजनक और शर्मनाक घटनाक्रम, जिसमें पुलिस अधिकारी 'अवैध बूचड़खानों के पैरोकार' बनकर सामने आ रहे हैं। पर पियानगंज के लोग कानूनी तरीकों और आंदोलन के द्वारा अवैध बूचड़खाने को न चलने देने के संकल्प के साथ मैदान में आ डटे हैं। इस आंदोलन के जोर पकड़ने के बाद पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स के जवानों ने पियानगंज के घरों की दीवारों पर चिपके 'गाय बचाओ- देश बचाओ' शीर्षक वाले कुछ पोस्टर 'जांच' के नाम पर उतार लिए। ये पोस्टर 'बंगिया आर्य प्रतिनिधि सभा' द्वारा 9 अक्तूबर को धर्मतल्ला में होने वाले 'राष्ट्र जागरण महासम्मेलन' के समर्थन में चिपकाए गए थे, जिसकी बाद में राज्य सरकार ने 'सुरक्षा कारणों' से इजाजत नहीं दी। इस कारण आक्रोशित बंगिया आर्य प्रतिनिधि सभा, आर्य प्रतिनिधि सभा, आर्य वीर दल, राष्ट्रीय गोरक्षा मिशन, राष्ट्रीय गोरक्षा सेना, गोरक्षा वाहिनी और हिन्दू एक्जिसटेंस नामक दर्जन भर से अधिक बड़े संगठन एक मंच पर आ जुटे हैं। इन सबका एक ही आह्वान है- 'पश्चिम बंगाल में गाय बचाओ।' इन संगठनों की एकजुटता व लोगों की जागरूकता के कारण पिछले दिनों बंगाल-झारखण्ड सीमा के कुल्टी क्षेत्र (जिला बर्द्धमान) से 67 गायों और निरसा में 15 गायों को छुड़वाया गया। प्रौद्योगिकी केन्द्र साल्ट लेक से भी गोसेवकों ने पशुओं के व्यापारियों से 5 गायों को छुड़वाया, जो उन्हें अवैध कटाने के लिए ले जा रहे थे। इन सब गायों का बारासात में  राजस्थान गो-कल्याण ट्रस्ट द्वारा संचालित गोशाला भेज दिया गया है।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पशु व्यापार अधिनियम के अन्तर्गत परिवहन माध्यमों द्वारा पशुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने-ले जाने के लिए स्पष्ट नियम व प्रावधान बताए गए हैं। लेकिन इसका पश्चिम बंगाल में खुलेआम उल्लंघन हो रहा है और पुलिस 'ले-देकर' उन ट्रकों को कहीं भी जाने देती है जिसमें ठूंस-ठूंसकर गाय-बैल-बछड़े भरे गए होते हैं। इस सबकी अनदेखी कर राज्य सरकार, उसका प्रशासन और पुलिस केवल और केवल मुस्लिम समर्थकों को खुश करने के लिए संविधान और कानून को ताक पर रखकर चल रही है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय अपने निर्णय में बहुत स्पष्ट कह चुका है कि- 'किसी भी मुसलमान को अपने मजहबी विश्वास और विचारधारा के प्रदर्शन के लिए बकरीद के दिन गाय की कुर्बानी देना आवश्यक नहीं है।' कोलकाता उच्च न्यायालय ने भी 13 अक्तूबर, 2011 और 2 नवम्बर, 2011 के अपने निर्णय में बहुत साफ-साफ कहा है कि- 'राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों को ईद-उल-जुहा के अवसर पर गोवंश के व्यापार हेतु बाजार बनाने, उनका गैरकानूनी तरीके से परिवहन कराने का कोई अधिकार नहीं है।' न्यायालय ने 'पश्चिम बंगाल पशु वध निवारण अधिनियम (1950) तथा पशु उत्पीड़न अधिनियम (1960) के आलोक में बार-बार प्रशासन को निर्देशित किया है कि ऐसा न होने पाए। पर पुलिस-प्रशासन भी करे तो क्या करे। साल्ट लेक सिटी में छोटा हाथी (मिनी मेटाडोर) में गैरकानूनी तरीके से भरकर ले जायी जा रही जिन 5 गायों को गोसेवकों ने छुड़ाया, उस मेटाडोर पर भी लिखा था 'कुर्बानीर 'गोरू'। पर उसके बचाव में आ खड़े हुए हैं राज्य के शहरी विकास मंत्री फरहाद हाकिम उर्फ बॉबी। हाकिम और उनके समर्थकों की शह पाकर अब प्रशासन भी कह रहा है कि वह गोवंश उचित प्रकार से व्यापार के लिए ले जाया जा रहा था, इसलिए गोशाला को 70,000 रु. का बांड (गारंटी) देकर उन गायों को छुड़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन गोशाला प्रबंधक 'गाय और मुसलमान' का संबंध जानते हैं, इसलिए उन्होंने किसी भी कीमत पर गाय न देने का निर्णय किया है। इससे क्षेत्र में तनाव है पुलिस-प्रशासन गोहत्यारों, कसाइयों और अवैध बूचड़खानों के समर्थकों के साथ खड़ा है तो गोभक्त समाज गोवंश की रक्षा के लिए एकजुट हो रहा है। गाय को कुर्बानी से बचाने के लिए वह कोई भी कुर्बानी देने को तैयार दिख रहा है।

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