बंद हुई बोलती
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समदर्शी
बात बेलाग
एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये के टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले पर 'कैग' से लेकर न्यायपालिका तक की लताड़ से बेनकाब मनमोहन सिंह सरकार ने राष्ट्रपति संदर्भ के जरिये सर्वोच्च न्यायालय से राय मांगी कि क्या प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन के लिए नीलामी ही एकमात्र विकल्प है? मामला नीयत का था, पर सरकार ने बड़े ही शातिराना अंदाज में उसे नीतिगत प्रश्न बना कर पूछा। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने भी संविधान के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए जवाब दिया कि देश के राजस्व की दृष्टि से नीलामी निश्चय ही सर्वश्रेष्ठ जरिया है, लेकिन जनहित में अन्य प्रक्रियाओं से प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन को असंवैधानिक हरगिज नहीं कहा जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय की यह राय आते ही सरकार के मंसूबे भी बेनकाब हो गये, जब मनमोहन सिंह सरकार के मंत्रियों और सोनिया पार्टी के नेताओं में यह राग अलापने की होड़ लग गयी कि टू जी स्पेक्ट्रम से लेकर कोयला खानों तक अपने चहेतों को बंदरबांट के जरिये देश के राजस्व को साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा का चूना लगाने का फैसला और तरीका सही था। कांग्रेसियों के मुकदमे लड़ते-लड़ते अचानक खुद बड़े नेता बन गये एक मंत्री, जो टू जी में 'शूून्य क्षति की थ्योरी' दे कर आलोचना और उपहास के पात्र बने थे, से जब पत्रकारों ने पूछा, तो क्या आपकी थ्योरी सही थी? वे रहस्यमयी मुस्कान के साथ बोले: 'वे शब्द तो नहीं दोहराऊंगा, पर समझने वाले सब समझ गये हैं और जो न समझे वह…'। देश की सर्वोच्च अदालत की इस राय के साथ ही संवैधानिक संस्था 'कैग' एक बार फिर कांग्रेसियों के निशाने पर आ गयी यानी जिसने सरकारी खजाने की लूट का पर्दाफाश किया, उलटे उसे ही कठघरे में खड़ा कर दिया गया, पर कांग्रेसियों का जोश जल्दी ही ठंडा पड़ गया, जब एक जनहित याचिका खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने दो टूक टिप्पणी की कि 'कैग' को सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन के आकलन का संवैधानिक जनादेश हासिल है, 'कैग' को महज मुनीम समझने की गलतफहमी नहीं पाल लेनी चाहिए। इसके बाद, कम से कम, इस मुद्दे पर तो कांग्रेसियों की बोलती बंद है।
लूट की छूट
स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े घोटाले कोयला खान आवंटन की परतें जैसे-जैसे खुल रही हैं, यह सच भी बेनकाब होने लगा है कि दरअसल लूट की उस खुली छूट में सभी को सब कुछ पता था और सब कुछ सुनियोजित ढंग से हुआ था। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्वकाल में, जब उनके पास कोयला मंत्रालय भी रहा, कोयला खानों का आवंटन जिस रफ्तार से किया गया, वह अपने आपमें बहुत कुछ कह देता है। इससे पहले पूरे साल में एक-दो कोयला खान ही आवंटित की जाती थी, लेकिन मनमोहन राज में तो एक-एक दिन में 41 कंपनियों को कोयला खानें बांट दी गयीं। वैसे खोजबीन की जाये तो कोयला खान आवंटन की यह रफ्तार विश्व कीर्तिमान भी हो सकती है। यह कीर्तिमान बनाया मनमोहन सिंह के अधीन कोयला राज्य मंत्री रहे दसारी नारायण राव ने। उन्होंने 13 जनवरी , 2006 को यह कारनामा किया। उनकी यह कारगुजारी तब और भी अर्थपूर्ण हो जाती है, जब यह पता चलता है कि 29 जनवरी को झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन पुन: कोयला मंत्री बन गये थे, यानी कोयला मंत्रालय हाथ से निकलने से पहले ही पूरे खेल को अंजाम दिया गया। अब यह समझना तो मुश्किल नहीं होना चाहिए कि मंत्री और मंत्रालय बदलने की जानकारी पहले से किस-किस को रही होगी? लूट की छूट का ऐसा ही दूसरा उदाहरण संतोष बागरोडिया ने पेश किया। इस उद्योगपति के कोयला राज्य मंत्री रहते 11 कोयला खानें आवंटित की गयीं, जिनमें उनके अपने परिवार को मिली खान भी शामिल है।
किराये के 'किसान'
बहुब्रांड खुदरा क्षेत्र में 51 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी के विरुद्ध विपक्ष ही नहीं, सरकार के सहयोगी और समर्थक भी उद्वेलित नजर आ रहे हैं। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस तो संप्रग और सरकार से बाहर ही आ गयी, जबकि द्रमुक और समाजवादी पार्टी ने विरोध में आयोजित भारत बंद का समर्थन किया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दिल्ली में प्रदर्शन कर चेतावनी भी दे दी कि वह इस सरकार के विरुद्ध किसी भी हद तक जायेंगी और जरूरत पड़ी तो संसद के आगामी सत्र में अविश्वास प्रस्ताव भी लायेंगी। बेशक, सरकार की धड़कनें तेज हैं, पर दरबारी सक्रिय हो गये हैं। इसी सक्रियता के परिणामस्वरूप हरियाणा से कुछ किराये के 'किसान' इस प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के फैसले पर सोनिया पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी का 'आभार' जताने दस, जनपथ भेजे गये। जाहिर है, अपनी राजनीति चमकाने के लिए इन किराये के 'किसानों' का इंतजाम करने वाले नेता भी उनके साथ दरबार में पहुंचे। इन 'किसानों' की पूरी पहचान तो अभी होनी बाकी है, पर सच का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सोनिया को दिये गये ज्ञापन पर कुल 13 हस्ताक्षरों में से 10 अंग्रेजी में किये गये हैं।
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