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अपने पिता की मृत्यु के बाद जब चन्द्रकेतु राजा बना तो उसके मन में एक विशाल और सुन्दर महल बनवाने की इच्छा जागी। पिता के बनाए महल से उसे अरुचि हो गई थी। उसे यह महल पुराना और असुन्दर सा लगता था। नया महल बनवाने की तो चन्द्रकेतु ने ठान ही ली थी लेकिन वह महल कहां बनवाए इसके लिए स्थान नहीं तय कर पा रहा था। एक दिन वह नगर भ्रमण करते नदी के तट पर पहुंचा। वहां का दृश्य उसे बहुत रमणीक लगा। उसे हर तरह से वहां का वातावरण महल के लिए अनुकूल लगा। बस चन्द्रकेतु ने वहीं पर नया महल बनवाने का निर्णय लिया और वापस राजमहल लौट चला।
जहां वह महल बनवाना चाहता था उस नदी के तट पर एक बस्ती थी। जिसमें मछुआरे, किसान, साधु-सन्त आदि रहते थे। जब उन्हें पता चला कि यहां पर राजा चन्द्रकेतु का नया महल बनेगा तो उनमें खलबली मच गई। उन्होंने राजा से प्रार्थना की परन्तु चन्द्रकेतु ने उनकी एक न सुनी और उनके घर उजाड़कर विशाल महल बनाने का आदेश दे दिया। चन्द्रकेतु के आदेश का पालन हुआ। घर तोड़ दिए गए। बस्ती उजाड़ दी गई। सैकड़ों लोग भरी आंखों से अपने टूटे हुए घरों को निहार रहे थे। फिर वे दूसरा ठिकाना ढूंढने चन्द्रकेतु के राज्य से पलायन कर गए।
कुछ समय बाद राजा चन्द्रकेतु का नया महल बनकर तैयार हो गया। इस विशाल व सुन्दर महल को जो भी देखता, देखता ही रह जाता। वह इतना भव्य और मनमोहक था कि चन्द्रकेतु भी देखकर ठगा सा रह गया। उसने पण्डितों से अच्छा सा मुहूर्त निकलवाकर प्रवेश का दिन भी निश्चित कर लिया। निश्चित दिन से दो दिन पूर्व राजा चन्द्रकेतु को पड़ोसी राज्य के राजा शक्तिदेव की कन्या कुमारी चित्रा के विवाह आयोजन में जाना पड़ा। आयोजन समाप्ति के बाद लौटते समय चन्द्रकेतु घने जंगल से गुजर रहा था। अचानक घनघोर आंधी आ गई और चन्द्रकेतु अपने काफिले से बिछड़ गया। वह जंगल में भटकता रहा परन्तु उसे कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ा। इधर आंधी ने भी तूफान का रूप धारण कर लिया। वर्षा से भीगते व तूफान के थपेड़ों को सहते भूखे-प्यासे राजा चन्द्रकेतु की हालत गंभीर होने लगी। उसे सर्दी के कारण बेहोशी सी आने लगी। तभी उसे एक खण्डहर दिखाई दिया। वह सतर्कता के साथ उसके भीतर गया। भीतर पहुंचकर उसने देखा कि एक छोटी सी कोठरी वहां पर थी। कोठरी के बाहर की साफ-सफाई देखकर राजा समझ गया कि जरूर इसमें कोई रहता है। उसने दरवाजा खटखटाया। भीतर से एक वृद्ध व्यक्ति आया और राजा की स्थिति देखकर उसे अन्दर गर्म बिस्तर व सहारा देकर लिटा दिया। इसके बाद उस वृद्ध व्यक्ति ने राजा को एक गर्म पेय पीने को दिया। जिसके पीने के कुछ देर बाद ही राजा की कमजोरी जाती रही। वह स्वयं को तरोताजा महसूस करने लगा। उसे पेय अत्यन्त असाधारण तथा गुणकारी लगा। राजा समझ गया कि हो न हो, यह वृद्ध एक वैद्य है क्योंकि उस कोठरी में चारों ओर औषधियों की गंध फैली हुई थी तथा अनेक प्रकार की जड़ी-बूटी आदि रखी थी। चन्द्रकेतु के पूछने पर उस वृद्ध ने बताया कि वह एक वैद्य है। उसकी इस कोठरी के पास ही एक गुरुकुल भी है। जहां पर कुछ छात्र अनेक कष्ट सहकर भी रह रहे हैं। वह उन छात्रों को आयुर्वेद का ज्ञान देता था। दिनभर जंगल में घूम-घूमकर उनको जड़ी-बूटी, पेड़ पौधों, वृक्षों आदि की जानकारी देता व क्या किस रोग में फायदा करता है यह भी बताता था। शाम को सब छात्र गुरुकुल में बनी अपनी-अपनी कुटिया में चले जाते और वह वृद्ध इस कोठरी में आ जाता। यहां उसने दुर्लभ नुस्खों से बनी अनेक औषधियां भी जमा कर रखी थीं।
वैद्य से बात करते हुए चन्द्रकेतु को कब नींद आ गई पता न चला। सबेरे जब उसकी नींद खुली तो सूरज काफी चढ़ चुका था। चारों ओर चमकीली धूप खिली हुई थी। राजा को ढूंढते हुए सैनिक वहां आ पहुंचे थे। चन्द्रकेतु वैद्य को अनेक धन्यवाद देता हुआ सैनिकों के साथ वापस राजमहल चला गया। निश्चित मुहूर्त में राजा चन्द्रकेतु ने अपने नए महल में प्रवेश किया। राजा की प्रसन्नता का ठिकाना न था, लेकिन उस रात जब चन्द्रकेतु नए महल में सोया तो उसने अनुभव किया कि उसे पिछली रात जैसी मीठी नींद नहीं आई। अगली रात भी उसे वैसी मीठी नींद नहीं आई जैसी कोठरी में आई थी। बस! उसके मन में यह विचार जाग उठा कि कोठरी में अच्छी नींद आती है। उसने तुरन्त ही एक शानदार कोठरी बनवाने का आदेश दे दिया।
कुछ ही दिनों में एक स्वच्छ, सुन्दर तथा आलीशान कोठरी बनकर तैयार हो गई। राजा उसमें सोया परन्तु उसे वैसी नींद नहीं आई जैसी वैद्य की कोठरी में आई थी। राजा चन्द्रकेतु ने सोचा कि वैद्य की कोठरी जैसी ही एक साधारण कोठरी बनवाई जाए। शायद उसमें मुझे मीठी नींद आ जाए। राजा ने तुरन्त ही एक साधारण सी कोठरी बनवाने का आदेश दे दिया। जिसने भी राजा का यह आदेश सुना वह उसे पागल कहने लगा परन्तु राजा का आदेश भला कैसे टाला जा सकता था? साधारण सी कोठरी भी तैयार हुई और चन्द्रकेतु उसमें सोया भी लेकिन नतीजा वही हुआ। राजा को मीठी नींद नहीं आई। अब तो राजा चन्द्रकेतु विचलित हो उठा। एकाएक उसे याद आया कि वैद्य ने उसे एक गर्म पेय पीने को दिया था। अब राजा को मीठी नींद का रहस्य समझ में आ गया। वह मीठी नींद का नुस्खा प्राप्त करने जंगल में उसी वैद्य के पास गया। अनुभवी वैद्य ने राजा की पूरी बात सुनी और कुछ देर चुप रहा फिर उसे समझाते हुए बोला, 'राजन्, मैंने न तो उस पेय में नींद की कोई ऐसी औषधि मिलाई थी और न ही ऐसा कोई नुस्खा है। जब व्यक्ति अभावग्रस्त होता है तो छोटी सी वस्तु भी अपार सुख दे जाती है। उस दिन राजन् तुम अत्यधिक थके थे और उस पर भी तूफान, आंधी व सर्दी ने तुम्हें बेसहारा कर दिया था। उस स्थिति में जब यह कोठरी मिली तो तुम्हें अत्यन्त आनन्द मिला और तुम मीठी नींद में सो गए। इससे पहले न तो तुमने अभावग्रस्त जीवन देखा था न ही उसके बाद के सुख की कल्पना की थी।'
वैद्य की बात राजा को समझ आ चुकी थी। उसने वैद्य को प्रणाम किया और वापस राजमहल लौट चला। उसे वह दिन याद आ रहा था जब उसने नया महल बनवाने के लिए सैकड़ों घर उजाड़े थे। उसकी आंखों में पश्चाताप के आंसू थे। उसने मन ही मन संकल्प लिया कि वह वैद्य और उसके शिष्यों के लिए एक अच्छा सा गुरुकुल बनवाएगा।
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