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भारत माता को 'डायन' कहने वाले कट्टरवादी मुस्लिम नेता और उत्तर प्रदेश सरकार में नगर विकास मंत्री आजम खां अब समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के ही गले की फांस बन गए हैं। एक बार पार्टी से निष्कासित आजम खां जब दोबारा लौटे तो माना जा रहा था कि उनकी 'ब्लैकमेल' करने की आदत में बदलाव आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बात-बात पर नाराज हो जाने वाले आजम अब सरकार को ही आंखें दिखाने लगे हैं। चाहते हैं कि सरकार और प्रशासनिक अधिकारी उनके इशारे पर नाचें। इसलिए आजम के खिलाफ समाजवादी पार्टी (सपा) और सरकार में असंतोष बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन सपा के सामने लोकसभा चुनावों की विवशता है, इसलिए आजम की अनुचित मांगों को माना जा रहा है। वैसे पार्टी में उनके विकल्प की भी खोज हो रही है।
विवादों से चोली-दामन-सा साथ रखने वाले तुनक मिजाज आजम खां का व्यवहार सरकार और पार्टी को खलने लगा है। उन्होंने अब वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को भी खरी-खोटी सुनानी शुरू कर दी है। अपने विभाग की एक बैठक में कुछ अधिकारियों के न आने पर उन्होंने पूरी प्रशासनिक व्यवस्था को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा, 'नौकरशाही पागल हाथी है, जो किसी भी समय महावत (मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ) को ही मार डालेगा।' उक्त बैठक में उन्होंने एक विशेष सचिव को तो बदतमीज, बदमिजाज और लापरवाह तक कह डाला। फिर उन्होंने बैठक ही स्थगित कर दी। उधर लखनऊ नगर निगम के आयुक्त नागेंद्र प्रताप सिंह (एनपी सिंह) ने जब ठेकेदारों पर नकेल कसनी शुरू की तो सभी ने आजम से शिकायत की, उन्होंने सरकार से नगर निगम आयुक्त को निलंबित करने की सिफारिश कर दी। बिना किसी आधार के निलंबन बेमतलब था। अत: निलंबन पर अड़े आजम से मिलने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उनके घर पहुंच गए, पर आजम अड़े रहे। आखिरकार कुछ दिन बाद उक्त आयुक्त का तबादला कर दिया गया।
इससे पहले मेरठ के प्रभारी मंत्री पद से हटाए जाने पर उन्होंने शेष जिलों के प्रभारी मंत्री पद से भी इस्तीफा दे दिया था। मुलायम सिंह के हस्तक्षेप के बाद उन्हें फिर से मेरठ का प्रभारी मंत्री बना दिया गया। उनकी जिद पर रामपुर (उनका गृह जनपद) स्थित मुस्लिम विश्वविद्यालय का नाम भी बदल दिया गया। इसी विश्वविद्यालय की पत्रावली राजभवन में लंबित होने पर उन्होंने केंद्र सरकार और राज्य सरकार पर निशाना साधने की बजाय राज्यपाल बी.एल. जोशी को ही खरी-खोटी सुना दी। इस पर राज्यपाल नाराज हुए तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को जाकर उन्हें संतुष्ट करना पड़ा।
सरकार बने अभी छह महीने भी नहीं हुए, इतने सारे विवाद आजम खां के साथ जुड़ गए हैं। इसलिए अब सपा और सरकार में उनके प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण उनकी ब्लैकमेल करने की आदत है। अपनी इसी आदत के कारण वह पिछले लोकसभा चुनाव के समय अलग-थलग पड़ गए थे। उन्होंने उस समय रामपुर से सपा उम्मीदवार जयाप्रदा को हराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। यहां तक कि उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार को जिताने का भी प्रयास किया, लेकिन उनके विरोध के बावजूद 50 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम जनसंख्या वाली रामपुर लोकसभा में जयप्रदा जीत गईं। यह एक प्रकार से आजम खां की हार थी। बाद में उन्हें सपा से निकाल दिया गया, लेकिन विधानसभा चुनाव नजदीक आते देख मुलायम सिंह ने उन्हें फिर पार्टी में शामिल कर लिया। हालांकि उनके आने से सपा के रसीद मसूद जैसे कद्दावर मुस्लिम नेता पार्टी से अलग हो गए। अब आजम के विकल्प के तौर पर राज्य सरकार में वरिष्ठ मंत्री अहमद हसन को आगे बढ़ाया जा रहा है। रमजान के महीने में मुख्यमंत्री ने अपने निवास पर इफ्तार की दावत दी। उसका प्रभारी अनौपचारिक रूप से अहमद हसन को बनाया गया। नाराज आजम वहां नहीं पहुंचे तो पत्रकारों ने सवाल पूछे। तब एक मंत्री ने व्यंग्य करते हुए कहा कि जो नहीं आए हैं उनकी बात करने की बजाय उनकी चर्चा करिए जो आए हैं। इतने से ही समझा जा सकता है कि आजम खां के प्रति असंतोष बढ़ता ही जा रहा है। पर सभी को फिलहाल 2014 के लोकसभा चुनावों तक तो इंतजार करना पड़ ही सकता है।
विवादों से गहरा नाता
0 भारत माता को डायन कहा था
0 अमर सिंह से छत्तीस का आंकड़ा
0 इमाम अहमद बुखारी से खुली दुश्मनी
0 उत्तर प्रदेश की नौकरशाही को 'पागल हाथी' कहा
0 मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को (संकेतों में) महावत बताया
0 बैठक में आए विशेष सचिव को बदतमीज कहा
0 नगर आयुक्त एनपी सिंह ने भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई की तो निलंबन की सिफारिश की, हटवाकर ही माने
0 मेरठ के प्रभारी मंत्री पद से हटाए गए तो इस्तीफे की पेशकश कर दी। फिर से प्रभारी बनाए गए।
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