अक्षिता, अम्बा, रागिनी और सौम्या काएक ही सपना पढ़ें, पढ़ाएं, कुछ कर दिखाएं-अरुण कुमार सिंह-
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अक्षिता, अम्बा, रागिनी और सौम्या काएक ही सपना पढ़ें, पढ़ाएं, कुछ कर दिखाएं-अरुण कुमार सिंह-

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Sep 8, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Sep 2012 15:25:03

आज की युवा पीढ़ी के बारे में न जाने कितनी तरह की बातें की जाती हैं। कोई कहता है नई पीढ़ी संवेदनहीन हो गई है। कोई कहता है नए बच्चे मौज-मस्ती में ज्यादा समय बिताते हैं। पर एक बड़ा वर्ग यह भी कहता है कि नई पीढ़ी बड़ी ऊर्जावान है, उसे सही राह दिखाने की जरूरत है। सच में यदि किसी बच्चे को सही मार्गदर्शन मिल जाता है तो वह समाज में अपनी छाप जरूर छोड़ता है। उदाहरण के लिए नोएडा (उ.प्र.) की अक्षिता और उनकी तीन सहेलियों- अम्बा, रागिनी और सौम्या को आप ले सकते हैं। अक्षिता अभी दिल्ली पब्लिक स्कूल, रामकृष्णपुरम (नई दिल्ली) में 12वीं कक्षा में पढ़ रही हैं। वह पढ़ाई में बड़ी होशियार हैं। अम्बा, रागिनी और सौम्या भी नोएडा के अलग-अलग विद्यालयों में 12वीं में पढ़ती हैं। पर यहां उनकी व्यक्तिगत पढ़ाई की नहीं, उनकी सामूहिक पढ़ाई की चर्चा हो रही है।

उल्लेखनीय है कि अक्षिता और उनकी सहेलियां सप्ताह में दो दिन शनिवार और रविवार को सायं 3-5 बजे तक 25 गरीब बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाती हैं। ये सभी ऐसे बच्चों की तलाश घर के आसपास करती रहती हैं और उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। अम्बा, रागिनी और सौम्या तीनों हर शनि और रवि को अक्षिता के घर आती हैं और वहीं बच्चों को   पढ़ाती हैं।

इन बच्चों के पिता मजदूरी करते हैं या रिक्शा चलाते हैं, जबकि इनकी माताएं घरों में झाड़ू-पोछा, बर्तन सफाई आदि कार्य करती हैं। गरीबी के कारण ये लोग अपने बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल नहीं भेजते हैं। इस कारण बच्चे दिन-भर यूं ही गलियों और सड़कों पर घूमते रहते हैं। बच्चों का यूं घूमना अक्षिता को अच्छा नहीं लगा और उन्होंने लगभग एक साल पहले इन बच्चों को पढ़ाने का निर्णय लिया। अक्षिता ने बताया कि शुरू में इन बच्चों के माता-पिता इन्हें पढ़ाने के लिए तैयार नहीं थे। उनका कहना था कि यदि बच्चे पढ़ने जाएंगे तो घर में छोटे बच्चों की देखरेख कौन करेगा? पर जब उन्हें पढ़ाई का महत्व बताया गया और कहा गया कि पढ़ाई के लिए उन्हें कोई खर्च नहीं देना होगा तो वे तैयार हो गए। पढ़ने आने वाले बच्चों में कई तो 10-11 साल के हैं। ये बच्चे कभी स्कूल नहीं गए हैं। अक्षिता का प्रयास है कि इन बच्चों का किसी विद्यालय में दाखिला हो जाए। पर दाखिले में सबसे बड़ी बाधा बच्चों की उम्र है। फिर भी वह प्रयास में लगी हैं। जब भी उन्हें समय मिलता है स्थानीय विद्यालयों में जाती हैं और इन गरीब बच्चों के नामांकन की बात करती हैं। इसमें उन्हें अब सफलता भी मिलने लगी है। सेक्टर-36 के सरस्वती बालिका मन्दिर में 5 बच्चियों का नामांकन हो गया है। इन बच्चों का विद्यालय शुल्क अक्षिता ही भरती हैं। अक्षिता ने बताया कि घर से जेब खर्च के लिए और कभी परिवार के अन्य लोग आशीर्वादस्वरूप जो पैसा उन्हें देते हैं उसी से इन बच्चों का शुल्क भर देते हैं। अक्षिता ने यह भी बताया कि उनका प्रयास है अधिक से अधिक गरीब बच्चों को पढ़ाना और स्कूल में उनका दाखिला कराना। अक्षिता गरीब बच्चों को पढ़ाने के प्रति इतनी समर्पित हैं कि उन्हें पढ़ाने के समय कक्षा में किसी का आना बिल्कुल पसन्द नहीं है। इस संवाददाता ने एक शनिवार को जब उनसे फोन पर बात की और बताया कि बच्चों का फोटो भी लेना है, तो उन्होंने कहा, 'बातचीत के लिए थोड़ी देर पहले आएं। मैं नहीं चाहती कि बच्चों की पढ़ाई का समय कम किया जाए।' अक्षिता अपने घर में काम करने वाली श्वेता और पूजा को भी पढ़ाती हैं। पढ़ाई के समय श्वेता और पूजा से घर का कोई भी सदस्य काम नहीं करा सकता है।

अक्षिता, अम्बा, रागिनी और सौम्या ये चारों सहेलियां सम्पन्न परिवारों से संबंध रखती हैं। घर में हर तरह की सुख-सुविधा है। ऐसे वातावरण में पल-बढ़ रहीं ये बच्चियां गरीब बच्चों को क्यों और कैसे पढ़ाने लगीं? इस सम्बंध में एक रोचक और प्रेरक प्रसंग है। अक्षिता ने  बताया, 'उनकी कालोनी में पार्क के साथ फुटपाथ पर एक धोबी वर्षों से कपड़े प्रेस करता है। उसके छोटे-छोटे बच्चे कभी किसी के दरवाजे पर, तो कभी सड़क पर बैठे रहते थे। उन्हें स्कूल नहीं भेजा जाता था। एक दिन मेरी मां ने धोबी से कहा कि बच्चों को स्कूल क्यों नहीं भेजते हो? तो उसने कहा इतनी कम कमाई में स्कूल का खर्च देना मुश्किल है। फिर मेरी मां ने उन बच्चों को घर बुलाकर पढ़ाना शुरू किया और स्कूल में दाखिला भी कराया। मां का यह नेक काम मुझे बहुत पसन्द आया और फिर मैंने भी वही किया। बाद में अपनी सहेलियों को भी इस काम के लिए जोड़ा। बच्चों को पढ़ाने में बड़ा मजा आता है।'

अम्बा कहती हैं कि इन बच्चों को पढ़ाने के बाद खुद को बड़ा अच्छा लगता है। महसूस होता है कि शरीर के अन्दर एक नई ऊर्जा पैदा हो रही है। हम जैसों को तो घर से सारी सुविधाएं मिल जाती हैं, पर हम उनकी कद्र नहीं करते हैं। लेकिन इन बच्चों को हम लोग जो सुविधा दे रहे हैं, उनका ये बड़ा सम्मान करते हैं। इन बच्चों से मैंने यह जाना कि समाज या परिवार से जो कुछ मिले उसका सम्मान करो।

रागिनी ने बताया कि बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ योग, चित्रकला आदि का भी प्रशिक्षण दिया जाता है।

बच्चों की जब छुट्टी होती है तब उन्हें कुछ खाने-पीने के लिए भी दिया जाता है। पढ़ने-लिखने की सामग्री भी बच्चों को नि:शुल्क दी जाती है। यह सारा खर्च अक्षिता और उनकी सहेलियां उठाती हैं।

12वीं में पढ़ने वालीं नोएडा की अक्षिता, अम्बा, रागिनी और सौम्या प्रत्येक शनिवार और रविवार को सायं 3-5 बजे तक गरीब बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाती हैं। ये सभी अपने जेब खर्च से इन बच्चों को पाठ्य सामग्री भी देती हैं। अक्षिता ने 5 बच्चों का दाखिला विद्यालय में करवाया है और उनका शुल्क वही भरती हैं।

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