11 अगस्त को मुम्बई के आजाद मैदान में असम और बर्मा (म्यांमार) के मुसलमानों के प्रति हमदर्दी जताने के लिए रजा अकादमी नामक संस्था, जो कुछ साल पहले भिवंडी में दो पुलिसकर्मियों की हत्या करने के लिए कुख्यात है, को महाराष्ट्र पुलिस ने हिंसक भीड़ जुटाने की अनुमति प्रदान कर दी। पर उस हिंसा के विरोध में 21 अगस्त को राज ठाकरे और उनकी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को शांतिपूर्ण रैली के लिए अनुमति प्रदान नहीं की। गिरगांव से आजाद मैदान तक 4 किमी. लम्बे मार्ग पर उमड़े जन सैलाब ने महाराष्ट्र पुलिस के इस राष्ट्रविरोधी रवैये के प्रति अपने मन का आक्रोश सार्वजनिक कर दिया। एक पुलिसकर्मी ने कैमरे के सामने राज ठाकरे को गुलाब का फूल भेंट करके यह स्पष्ट कर दिया पुलिस बल जनभावनाओं के साथ है, भले ही महाराष्ट्र के गृहमंत्री आर.आर.पाटिल और पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक राष्ट्रविरोधी उपद्रवियों के साथ खड़े हों। शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के आर.आर.पाटिल द्वारा 26/11 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले के समय किए गए निर्लज्ज आचरण को देखने के बाद उनसे तो उम्मीद नहीं थी कि वे स्वयं त्यागपत्र देंगे। पर टेलीविजन पर जिस बेशर्मी के साथ उन्होंने कहा कि मेरे त्यागपत्र की मांग राजनीतिक है, इसलिए उस पर ध्यान देना जरूरी नहीं है, उससे तो बेशर्मी भी लजा गई होगी। अपनी कुर्सी को बचाने के लिए आर.आर.पाटिल ने पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक का स्थानांतरण करने की अनुशंसा मुख्यमंत्री को भेज कर कांग्रेस पार्टी को असमंजस में डाल दिया। मुख्यमंत्री की उलझन थी कि अगर वे इसी समय अरूप पटनायक का स्थानांतरण करते तो यह राज ठाकरे द्वारा जनसभा में उठायी गयी सार्वजनिक मांग के सामने झुकना माना जाता, इससे राजठाकरे की राजनीतिक स्थिति मजबूत होती और कांग्रेस की कमजोर। कितनी पीड़ादायक स्थिति है कि राज्य की शांति और राष्ट्रहित के साथ खिलवाड़ करने वाले व्यक्तियों के बारे में निर्णय को राजनीतिक स्पर्धा की फुटबाल बनाया गया। शरद पवार की एकमात्र चिंता यह है कि कहीं महाराष्ट्र के गृहमंत्री का पद उनकी पार्टी से न खिसक जाए, और कांग्रेसी मुख्यमंत्री की एकमात्र चिंता है कि उनके किसी सही निर्णय से विपक्ष को फायदा न पहुंच जाए। अंतत: उन्होंने अरूप पटनायक की जगह सतपाल सिंह को पुलिस आयुक्त की कुर्सी पर बैठाने की घोषणा कर ही दी। अब कहा जा रहा है कि अपनी मुख्य प्रतिद्वंद्वी शिवसेना के विरुद्ध कांग्रेस राज ठाकरे का इस्तेमाल कर रही है।
नाकारागृहमंत्री
इससे भी अधिक पीड़ादायक स्थिति यह है कि एकाएक मुम्बई, पुणे, हैदराबाद, चेन्नै और बंगलूरु में एक साथ पूर्वोत्तर भारत के हजारों- हजार छात्र-छात्राओं और नौकरी-पेशा लोगों में दहशत के कारण भगदड़ मच गयी और वे हजारों की संख्या में अपने घर पहुंचने के लिए रेलवे स्टेशनों पर जमा हो गये। आश्चर्य यह है कि उनके लिए तुरंत विशेष रेलगाड़ियों की व्यवस्था भी कर दी गयी। रेल मंत्रालय केन्द्र सरकार के पास है, इसलिए स्वाभाविक है कि इन विशेष रेलगाड़ियों की व्यवस्था का पूरा 'श्रेय' केन्द्र सरकार को ही देना होगा। जहां तक राज्य सरकारों का सवाल है, उन्होंने तो भगदड़ में लगे इन पूर्वोत्तरवासियों को समझा-बुझाकर रुके रहने के लिए पूरा जोर लगा दिया था। कर्नाटक सरकार के कई मंत्री रेलवे स्टेशन पहुंचे। मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टीगार ने बार-बार टेलीविजन पर आकर उन्हें पूर्ण सुरक्षा प्रदान करने का आश्वासन दिया। इन चैनलों पर बड़ी संख्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गणवेशधारी स्वयंसेवक रेलवे स्टेशन पर उनके लिए भोजन लेकर और सुरक्षा पंक्ति बनकर खड़े दिखायी दिये। पर दक्षिण भारत के चार राज्यों में एक साथ दहशत की यह लहर दौड़ गयी और रेलगाड़ियों में ठसाठस भरकर हजारों पूर्वोत्तरवासी असम, मणिपुर आदि राज्यों में वापस लौट गये। पिछले 65 वर्षों में राष्ट्रीय एकता की जो आधारभूमि निर्माण की गयी थी, उसे राष्ट्रविरोधियों ने एक झटके में ढहा दिया। ये दहशत फैलाने वाले कौन हैं? इसके पीछे उनका क्या उद्देश्य है? उनकी विचारधारा क्या है? इसका पता लगाने की बजाय ताजे-ताजे गृहमंत्री बने सोनिया-भक्त सुशील शिंदे ने इस दहशत को फैलाने की पूरी जिम्मेदारी पाकिस्तान के मत्थे मढ़ दी। उन्होंने कहा कि इस दहशत को फैलाने के लिए ट्वीटर, फेसबुक,गूगल आदि सोशल मीडिया का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया और इसका स्रोत पाकिस्तान में है। अपने आरोप को विश्वास योग्य बनाने के लिए उन्होंने एक ओर तो अपने गृह सचिव आर.के.सिंह से वक्तव्य दिला दिया दूसरी ओर पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक से फोन पर बात करके 26/11 के बाद का वातावरण दोबारा पैदा करने की कोशिश की। महत्वपूर्ण सत्ता केन्द्रों पर आसीन बौने राजनेताओं की अक्ल अपने देश की जनता को बेवकूफ बनाने की दिशा में जितनी तेजी से दौड़ती है, उतना जनहित और राष्ट्रीय सुरक्षा की दिशा में नहीं दौड़ती। पूरा मीडिया मानता है कि देश के गृहमंत्री पद को पाने के पीछे सुशील कुमार शिंदे की अपनी योग्यता से अधिक उनका सोनिया-भक्ति का राग है, इसीलिए सोनिया उन्हें अपने साथ असम ले गयी होंगी और संभव है कि अपने निकम्मेपन की गेंद को पाकिस्तान के पाले में डालने की रणनीति वहीं बनी होगी।
वहीसोच, वहीलोग
यह तो सच है कि पूर्वोत्तरवासी भारतीयों के मन में परायेपन और दहशत का भाव पैदा करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल अवश्य हुआ होगा, किन्तु भारत को तोड़ने की साजिश करने वाली विचारधारा क्या केवल पाकिस्तान में सीमित है, पूरे भारत में वह फैली नहीं है? आखिर, जिस विचारधारा ने पाकिस्तान को जन्म दिया, जो आज भी उसकी प्राणधारा है, वह विचारधारा तो देश विभाजन के बाद भी भारत में उतनी ही सक्रिय है। यह विचारधारा मानवजातियों को विभाजित करती है, पूरी दुनिया के मुसलमानों के प्रति हमदर्दी दिखाती है और गैरमुसलमानों के प्रति परायेपन और नफरत का भाव पैदा करती है। इसी बात को मौलाना मुहम्मद अली ने 1924 में कहा था कि गांधी जैसे श्रेष्ठ इंसान से भी किसी गिरे हुए मुसलमान को मैं अपना मानता हूं, क्योंकि वह मुसलमान है। यही विचारधारा है जिसके कारण भारत का मुस्लिम समाज बंगलादेशी घुसपैठियों और म्यांमार के मुसलमानों की हित रक्षा के लिए भारत में उग्र प्रदर्शन कर रहा है। मुम्बई के बाद उत्तर प्रदेश के लखनऊ, इलाहाबाद व कानपुर आदि नगरों में जो उपद्रव हुआ क्या उन्हें भी पाकिस्तान के लोगों ने भारत में घुसकर किया। गृहमंत्री क्या सचमुच अपने देशवासियों को इतना मूर्ख समझते हैं?
सरकारकीखुलतीपोल
पूर्वोत्तरवासियों में दहशत फैलाने वाले एसएमएस और एमएमएस भेजने वाले चेहरे कौन हैं? बंगलूरु में मोबाइलों की मरम्मत करने वाले अनीस पाशा ने अलग-अलग सिम कार्डों और मोबाइलों का इस्तेमाल कर अकेले ही 20,000 पूर्वोत्तरवासियों को मुसलमानों पर अत्याचारों के झूठे चित्र और दहशत वाले संदेश प्रेषित किए। वह पुलिस की पकड़ में आ गया है और उसने अपना अपराध स्वीकार भी कर लिया है। उसी प्रकार पुणे में ऐसे दहशत भरे संदेश भेजने के आरोप में जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उनके नाम हैं-भिवंडी का आरिफ मुनव्वर खान (47 वर्ष), मुहम्मद अफजल अब्दुल रहमान खान, इमरान इरफान खान एवं सरफराज मुहम्मद इकबाल खान, 32 वर्ष। अब गृहमंत्री का काम केवल यह रह जाता है कि वे कैसे भी यह सिद्ध करें कि चारों गिरफ्तार व्यक्ति पाकिस्तान से आये हैं या उन्होंने जो संदेश प्रसारित किये वे उन्हें पाकिस्तान से प्राप्त हुए।
यह सच है कि सोशल मीडिया का प्रसार इतना व्यापक हो गया है और अण्णा आंदोलन को व्यापक जनाधार प्राप्त कराने में उसका इतना अधिक योगदान रहा कि सूचना व तकनीकी मंत्री कपिल सिब्बल और तत्कालीन गृहमंत्री पी.चिदम्बरम सोशल मीडिया का मुंह बंद करने के लिए तभी से छटपटा रहे हैं। उस समय भी सोशल मीडिया के हाथ-पैर बांधने की उन्होंने बहुत कोशिश की थी, किंतु प्रबल जन विरोध के कारण वे अपने मंसूबों में सफल नहीं हो पाये। पर, अब पाकिस्तान विरोधी वातावरण पैदा करके वे इसमें सफल होने की संभावनाएं देख रहे हैं। 250 से अधिक वेबसाइटों पर उन्होंने रोक लगाने की घोषणा कर दी है, किंतु इंडियन एक्सप्रेस (22 अगस्त) ने अपनी जांच में पाया है कि उनमें से अधिकांश साइटों ने असम का जिक्र तक नहीं किया। अपनी कारगुजारी दिखाने के लिए केन्द्र सरकार ने अमरीका से भी गुहार लगायी है कि सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने में हमारी मदद करें, किंतु अमरीका ने इस अभियान में सहभागी होने से इनकार कर दिया। जिस भौंडे ढंग से केन्द्रीय गृहमंत्री और केन्द्र सरकार उछल कूद कर रही है उससे तो 26/11 के बारे में भी उनके चार वर्ष लम्बे अभियान की पोल खुलने का भय पैदा हो गया है। उनकी एकमात्र उपलब्धि कसाब की गिरफ्तारी है। बाकी, कभी वे हेडली, कभी जुंदाल, कभी सईद को 26/11 का 'मास्टर माइंड' सिद्ध करने की निष्फल कोशिश करते रहे हैं। उस आतंकी हमले में स्थानीय तत्वों की भूमिका पर पर्दा डालने में उनकी अक्ल ज्यादा खर्च हो रही है। क्या वे सचमुच इस सत्य से अनजान हैं कि जिहादी विचारधारा पाकिस्तान और भारत को जोड़ने वाली कड़ी है?
जड़ेंभारतमेंहै
और फिर, पूर्वोत्तरवासियों में दहशत पैदा करके उन्हें दक्षिण भारत के राज्यों से भगाने की योजना को केवल सोशल मीडिया तक सीमित रखने की क्या मजबूरी है', मेल टुडे, (23 अगस्त) में प्रकाशित कृष्ण कुमार की रपट के अनुसार पुणे में पूर्वोत्तरवासियों पर हमलों का सिलसिला 11 अगस्त की मुम्बई सभा के तीन दिन पहले (8 अगस्त) को ही शुरू हो गया था। वहां तीन दिन के भीतर दस से अधिक पूर्वोत्तरवासी इन हमलों का शिकार बने। मणिपुर के प्रेमानंद खोम्ड्रोम पर दो बार हमला किया गया और वह भय के कारण कभी वापस न लौटने की कसम लेकर मणिपुर वापस लौट गया। पूर्वोत्तरवासियों ने पुलिस आयुक्त से भी इस बारे में भेंट की। पर पुलिस ने उनकी शिकायत भी दर्ज नहीं की। इसके बाद मुम्बई में दंगाईयों ने आजाद मैदान पर पुलिस और मीडिया कर्मियों की पिटाई की, महिला पुलिसकर्मियों का उत्पीड़न किया, पुलिस की राइफलें छीन लीं, उनकी और मीडिया की गाड़ियां जला दीं, पर पुलिस चुपचाप सब देखती रही। उलटे पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक ने उपद्रवियों को पकड़ने वाले कर्तव्य परायण पुलिस कर्मियों को सबकी आंखों के सामने डांटा। इससे पूर्वोत्तरवासियों में यह भय समा गया कि जो पुलिस अपनी रक्षा नहीं कर सकती वह हमें क्या बचाएगी। और इस अनुभूति के कारण अपने घर लौटने की छटपटाहट गहरी हो गयी। यानी इस भगदड़ के कारण भारत के भीतर ही खोजना उचित रहेगा। उसके लिए पाकिस्तान का हौव्वा खड़ा करना आवश्यक नहीं है।
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