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बंगलादेशी घुसपैठियों की आड़ में

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Aug 6, 2012, 12:00 am IST
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बंगलादेशी घुसपैठियों की आड़ मेंसोनिया पार्टी की देशघाती राजनीति

दिंनाक: 06 Aug 2012 13:30:04

 

असम

सोनिया पार्टी की देशघाती राजनीति

डा. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

पिछले कुछ दिनों से असम में, विशेषकर बोडो क्षेत्रीय परिषद के अधिकार क्षेत्र में आने वाले चार जिलों-कोकराझार, बकसा, उदालगुड़ी और चिरांग- में असमिया लोगों और बंगलादेशी मुसलमानों में भयंकर टकराव चल रहा है। बोडो क्षेत्रीय परिषद के दो जिलों, कोकराझार और चिरांग में तो स्थिति बहुत ही भयावह है। असमिया लोगों और बंगलादेशी घुसपैठियों की लड़ाई अब धुबरी इत्यादि जिलों को पार करके बोंगईगांव, बरपेटा इत्यादि क्षेत्रों तक फैलने लगी है। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई दावा कर रहे हैं कि स्थिति नियंत्रण में आ चुकी है, लेकिन शायद वह अन्दर ही अन्दर सुलग रहे दावानल को महसूस नहीं कर रहे। पिछले विधानसभा चुनावों में जब सभी बंगलादेशी मुसलमान बदरुद्दीन अजमल की ए.यू.डी.एफ. (असम यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट) पार्टी के झण्डेतले लामबंद हो गए तो असम की हिन्दू जनता ने तरुण गोगोई की सरकार को जिताया था। लेकिन अब वही तरुण गोगोई बंगलादेशी घुसपैठियों के प्रति नरम रवैया अपना रहे हैं और उन्हें असम के लोगों की कीमत पर बसाने का प्रयास कर रहे हैं।

'47 से जारी षड्यंत्र

दरअसल असम 1947 से ही मुस्लिम लीग के निशाने पर रहा है और मुस्लिम लीग इसे भारत विभाजन की योजना के अन्तर्गत पाकिस्तान में शामिल करवाना चाहती थी। इसे लीग और तत्कालीन अंग्रेज हुकूमत की साझी योजना भी कहा जा सकता है।  1905 में जब अंग्रेज सरकार ने बंगाल का विभाजन किया और मुस्लिम बहुल पूर्वी बंगाल को अलग कर दिया तो पूरे बंगाल ने एकजुट होकर उसका विरोध किया था। अंग्रेजों ने तभी से पूर्वी बंगाल के साथ लगते असम के क्षेत्र को बंगाली मुसलमानों से भरने का निर्णय कर लिया था। असम में बंगाली मुसलमानों के बसने का यह सिलसिला 1930 तक निरन्तर चलता रहा। यही कारण था कि असम का सिलहट इत्यादि क्षेत्र मुस्लिमबहुल हो गया। आजादी से पहले जो अन्तरिम सरकारें बनी थीं उनमें असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बरदोलोई के त्यागपत्र देने पर मुस्लिम लीग के मुहम्मद सादुल्लाह मुख्यमंत्री बने थे। उन्होंने  इन बंगाली मुसलमानों को जमीन के स्थाई पट्टे दे दिए। तब मुस्लिम लीग के अध्यक्ष मुहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान में शामिल किए जाने वाले जिन क्षेत्रों का मानचित्र इंग्लैण्ड की सरकार को दिया था उस मानचित्र में पूरा बंगाल और असम का अधिकांश भाग शामिल था। लेकिन डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की सूझ-बूझ के कारण पश्चिम बंगाल पाकिस्तान में शामिल होने से बच गया और गोपीनाथ बरदोलोई के प्रयासों से असम। लेकिन इसके बावजूद अंग्रेज सरकार ने असम का सिलहट क्षेत्र पाकिस्तान में शामिल कर दिया।

गांव–गांव तक फैले घुसपैठिए

भारत विभाजन के बाद भी लीग और पाकिस्तान सरकार ने पूरे असम को पाकिस्तान में शामिल करवाने का अपना एजेण्डा त्यागा नहीं। बंगलादेश जब पाकिस्तान से अलग हो गया तो पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को असम को मुस्लिम बहुल बनाकर उसे हिन्दुस्थान से तोड़ने का एक और रास्ता मिल गया। बंगलादेश बनने के बाद लाखों की संख्या में बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठिए हिन्दुस्थान में आए और अधिकांश असम में स्थाई रूप से बसने लगे। यह ठीक है कि इन बंगलदेशी घुसपैठियों ने अपने विस्तार के लिए सारे हिन्दुस्थान को ही अपना निशाना बनाया था। एक मोटे अनुमान के अनुसार, आज हिन्दुस्थान में बसे बंगलादेशी घुसपैठियों की संख्या चार करोड़ के लगभग है, जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ के अनेक सदस्य देशों की कुल आबादी ही चार करोड़ से कहीं कम है। आज दिल्ली, कोलकाता जैसे शहरों में लाखों की संख्या में बंगलादेशी घुसपैठिए मिल जाएंगे, लेकिन अब तो उनका विस्तार छोटे-छोटे शहरों तक में हो गया है। पूर्वोत्तर भारत में तो वे गांव-गांव तक पहुंच गए हैं। मेघालय, त्रिपुरा और असम उनके विशेष शिकार हुए हैं। दु:ख की बात यह है कि ये बंगलादेशी घुसपैठिए अपराध कर्म में तो लिप्त हो ही रहे हैं, इनकी मानसिकता भारत विरोधी है और अनेक स्थानों पर आतंकवादी गतिविधियों में भी इनकी संलिप्तता पाई गई है।

दुर्भाग्य से इन बंगलादेशियों को इस देश में, खासकर असम में स्थाई रूप से बसाने में और उन्हें जरूरी कानूनी कागजात उपलब्ध करवाने में पश्चिम बंगाल की पूर्ववर्ती मार्क्सवादी सरकार और असम की सोनिया पार्टी सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। बंगलादेशी घुसपैठियों के कारण असम में जो जनसांख्यिक परिवर्तन आ रहा है उस पर गुवाहाटी उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय भी अनेक बार चिन्ता प्रकट कर चुके हैं। न्यायालय ने केन्द्र सरकार को ऐसे आदेश भी दिए हैं कि बंगलादेशी घुसपैठियों की शिनाख्त करके उन्हें तुरन्त देश से बाहर निकाला जाए।

मुस्लिम राजनीति की बिसात

असम में इन बंगलादेशी घुसपैठियों की संख्या अनेक जिलों और विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक स्थिति में पहुंच चुकी है। ऐसे में उन्होंने अपनी ही एक राजनीतिक पार्टी एयूडीएफ बना ली और पिछले विधानसभा चुनाव में 18 सीटें प्राप्त करके वह मुख्य विपक्षी दल बनने की स्थिति में आ गई है। इन दिनों, क्योंकि दिल्ली में अब तक की सबसे कमजोर, दिशाहीन और निर्णय लेने में अक्षम सरकार काबिज है, जो सत्ता की खातिर मुसलमानों के तुष्टीकरण में लगी हुई है, इसलिये आईएसआई और बंगलादेशी घुसपैठियों को लेकर लम्बी राजनीति चलाने वालों ने असम में अपनी राजनीति का पहला प्रयोग करने का निर्णय कर लिया है। असम के कोकराझार, चिरांग, धुबरी और दूसरे जिलों में आज जो हो रहा है वह उसी प्रयोग का प्रतिफल है। असम में स्थिति कितनी खराब हो चुकी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मेघालय के राज्यपाल रणजीत शेखर ने भी सार्वजनिक रूप से यह कहा है कि असम सरकार स्थिति पर नियंत्रण रखने में असफल रही है।

इन दंगों के बाद, असम के तटस्थ विश्लेषक यह मानते हैं कि अब पुनर्वास की व्यवस्था उन्हीं के लिए की जाए जो असमिया मुसलमान हैं।  बंगलादेशी मुसलमानों की शिनाख्त करके उन्हें वापस बंगलादेश भेजा जाये। लेकिन लगता है असम की सोनिया पार्टी सरकार इस त्रासदी का भी राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है।  सोनिया पार्टी के सबसे बड़े सिपहसालार दिग्विजय सिंह, जिनको सोनिया गांधी ने असम का प्रभारी बनाया हुआ है, ने खुलकर कहा कि असम में बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठिए नहीं हैं बल्कि वे यहां के मूल मुस्लिम समुदाय से ही संबंध रखते हैं।  जबकि असम में असल स्थिति यह है कि विधानसभा के कुल 126 क्षेत्रों में से 56 क्षेत्र ऐसे बन गये हैं जहां चुनाव में वही उम्मीदवार जीत सकता है जिसका समर्थन ये बंगलादेशी मुसलमान करेंगे।  इसका अर्थ यह हुआ कि सत्ताधारी सोनिया पार्टी का समर्थन पाकर एक दिन बंगलादेशी मुसलमान राज्य के शासन के सूत्रधार भी बन सकते हैं। इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि असम में अभी जो दंगा-फसाद हुआ है, उसकी आड़ में तरुण गोगोई सरकार और ज्यादा बंगलादेशियों को असम में स्थायी रूप से बसाने जा रही है।

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