नौनिहालों को संवारता 'नेले'
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'नेले' शब्द का कन्नड़ भाषा में अर्थ होता है 'आश्रय'। इसलिए बेंगलुरु में निराश्रित बच्चों को आश्रय देने वाले प्रकल्प का नाम ही हिंदू सेवा प्रतिष्ठान ने 'नेले' रखा है। प्रतिष्ठान मानता है कि निराश्रित बच्चों को आश्रय और शिक्षा देकर संस्कारित नागरिक बनाना समाज का उत्तरदायित्व है। ऐसे निराश्रित बच्चे महानगरों में कचरा बीनते घूमते रहते हैं; या कई छोटे-मोटे काम करते हैं। इनमें से अनेक बच्चों के अपने परिवार होते हैं, लेकिन आर्थिक विपन्नता के कारण ये परिवार बच्चों को ठीक खाना भी नहीं दे पाते हैं। इस स्थिति में उनके परिवारों द्वारा, उनकी शिक्षा और पालन-पोषण की आशा ही नहीं की जा सकती। पेट भरने का रास्ता खोजते-खोजते कई बच्चे अपराध जगत् में कदम रख देते हैं। इन बच्चों को संवरने का अवसर मिलना चाहिए, इस हेतु से पुलिस या सामाजिक कार्यकर्ता, ऐसे पकड़े गए बच्चों को 'नेले' में ला छोड़ते हैं।
हिंदू सेवा प्रतिष्ठान ने यह प्रकल्प वर्ष 2000 में आरंभ किया। आज कर्नाटक राज्य में इसके 10 केन्द्र चल रहे हैं; और इन केन्द्रों ने 260 से अधिक लड़के-लड़कियों को आश्रय दिया है। इन बच्चों को विद्यालयीन शिक्षा के साथ सांस्कृतिक मूल्य, सामाजिक जागृति, क्रीड़ा, संगीत, संस्कृत और योग भी सिखाया जाता है।
कुछ बच्चे शिक्षा में विशेष रुचि नहीं रखते। ऐसे बच्चों में शिक्षा के प्रति लगाव निर्माण करने के हर संभव प्रयास किए जाते हैं। लेकिन जो बच्चे पढ़ना ही नहीं चाहते, उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर रोजगार दिलाने के प्रयास भी किए जाते हैं।
रक्षा-बंधन, मकर संक्राति, कृष्ण जन्माष्टमी आदि त्योहार 'नेले' में उत्साह से मनाए जाते हैं। 'मक्काला मंतपा' उत्सव में बच्चों के लिए क्रीड़ा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मैसूर के विख्यात दशहरा उत्सव में 'नेले' के बच्चों का कार्यक्रम भी शामिल रहता है। यहां के बच्चों ने जिला स्तर पर आयोजित संगीत, चित्रकला, मैदानी खेल, कबड्डी, खो-खो आदि स्पर्धाओं में कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं। (न्यूज भारती)
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