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Jul 21, 2012, 12:00 am IST
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हिन्दुस्थान हिन्दू शरणार्थियों की सुध

दिंनाक: 21 Jul 2012 13:24:28

नई दिल्ली में भूटानी शरणार्थियों पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा–

आज दुनिया में, विशेषकर एशियाई देशों में सबसे अधिकको मजबूर किए जा रहे हैं उनकी चिन्ता भारत सरकार और भारत के लोगों को जरूर करनी चाहिए। वे हिन्दू सम्मान और गरिमापूर्ण  ढंग से अपने-अपने देशों में बसें, इसके लिए भी भारतीयों को प्रयास करना चाहिए।

वक्ताओं ने पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ हो रहे सौतेले व्यवहार पर भी चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में हिन्दू लड़कियों को जबरन इस्लाम कबूल कराकर किसी मुस्लिम युवक के साथ निकाह करा दिया जाता है। वहां की अदालतें भी हिन्दुओं के साथ न्याय नहीं करती हैं। ऐसे में वे लोग भारत आना चाहते हैं, पर उन्हें यहां से भी खदेड़ा जाता है। वक्ताओं ने यह भी कहा कि दुनिया में जहां भी शोषित और प्रताड़ित हिन्दू हैं वे भारत की ओर आशाभरी नजरों से देख रहे हैं, किन्तु भारत उनकी सुध नही लेता है। संसद में इस पर बहस तक नहीं होने दी जाती है।

संगोष्ठी की पृष्ठभूमि के बारे में 'ह्यूमन राइट्स डिफेंस (इण्डिया)' के महासचिव और प्रसिद्ध अधिवक्ता श्री राजेश गोगना ने बताया कि 1988-90 के दौरान भूटान के नरेश ने अप समस्याएं हिन्दुओं के साथ ही हैं। लाखों हिन्दू शरणार्थी जीवन जीने को मजबूर हैं। विडम्बना तो यह है कि हिन्दू-बहुल देश भारत में भी लगभग 4 लाख कश्मीरी हिन्दू शरणार्थी जीवन जी रहे हैं। भारत के बाहर भूटान, पाकिस्तान, बंगलादेश आदि देशों में भी हिन्दू शरणार्थी जीवन जी रहे हैं। भूटान ने 1988-90 के दौरान 1,30,000 हिन्दुओं को निकाल बाहर किया था। तभी से ये लोग नेपाल में संयुक्त राष्ट्र संघ की मदद से शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। इन हिन्दू शरणार्थियों की चर्चा कोई नहीं करता है। गत 14 जुलाई को नई दिल्ली में भूटानी हिन्दू शरणार्थियों के दु:ख को सबके सामने लाने के लिए एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का विषय था 'भूटानी शरणार्थी: भुला दिए गए लोगों की दु:खद कथा'। इसका आयोजन एक गैरसरकारी संगठन 'ह्यूमन राइट्स डिफेंस (इण्डिया)' ने किया था। संगोष्ठी के मुख्य वक्ताओं में थे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. आनन्द कुमार, नेपाल के डा. भूम्पा राय, चेन्नै के स्वामी प्रसन्ना चतुर्वेदी, राज्यसभा सदस्य श्री तरुण विजय एवं श्री कर्मा छोजे, श्री डी.पी. कफले, श्री अनिल आर्य, श्री अरुण आनन्द, डा.एम. मलिंगम व डा. ओ.बी. गुप्ता।

तीन सत्रों में विभाजित इस संगोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि भारत के आस-पास जितने भी देश हैं वे अखण्ड भारत का हिस्सा रहे हैं। इसलिए इन देशों में जो हिन्दू शरणार्थी जीवन जीने ने यहां से इन हिन्दुओं को जबरन निकाल कर भारत-नेपाल की सीमा पर छोड़ दिया था। किन्तु भारत और नेपाल ने यह कहते हुए इन्हें नहीं स्वीकारा कि ये हमारे नागरिक नहीं हैं। इसके बाद इन हिन्दुओं को शिविरों में रखा गया। इनमें से करीब आधे लोगों को  8 विभिन्न देशों में  संयुक्त राष्ट्र संघ की सहायता से बसाया गया और शेष अभी भी नेपाल के शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं।

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