पाठकीय: अंक-सन्दर्भ 17 जून,2012
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पाठकीय अंक–सन्दर्भ
17 जून,2012
खत्म करो अल्पसंख्यकवाद
इन दिनों पंथनिरपेक्षता की बड़ी चर्चा चल रही है। मेरा मानना है कि सभी समुदायों को समान अधिकार तथा अल्पसंख्यक व बहुसंख्यक का भेद समाप्त करके ही पंथनिरपेक्षता का वास्तविक रूप स्थापित किया जा सकता है। समाज को मजहब के आधार पर बहुसंख्यकों व अल्पसंख्यकों में विभाजित करके तथा अल्पसंख्यकों को विशेषाधिकार देकर सरकार ने साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया है। सरकार ने अल्पसंख्यक आयोग व मंत्रालय बनाकर भी भेदभाव को और अधिक बढ़ाया है। राष्ट्र की समस्त जनता को समान अधिकार मिलें तो उससे सभी प्रकार की साम्प्रदायिकता अपने आप मिट जायेगी। अल्पसंख्यकों को अधिक अधिकार देना तथा प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह द्वारा राष्ट्रीय विकास परिषद् की बैठक (17 दिसम्बर, 2006) में यह कहना कि 'भारतीय संसाधनों पर मुसलमानों का अधिकार पहला है' अपने आप में घोर साम्प्रदायिकता का बोध कराता है। देश के 90 जिलों को मुस्लिम-बहुल बताकर, उन्हें विशेष सुविधा दिला कर क्या सरकार बहुसंख्यक हिन्दुओं के साथ भेदभाव करके समाज में साम्प्रदायिकता का जहर नहीं घोल रही है? राष्ट्र के पंथनिरपेक्ष स्वरूप को बनाये व बचाये रखने के लिए अल्पसंख्यकवाद को समाप्त करना चाहिए और सभी का भारतीयकरण कर समान नागरिक का दर्जा देना चाहिए। मजहबी भेदभाव के कारण ही साम्प्रदायिकता देश के पंथनिरपेक्ष स्वरूप को बिगाड़ रही है। परन्तु लोकतंत्र में वोटों के लालच में एक गलत धारणा बन चली है कि मुस्लिम अल्पसंख्यकों को विशेष अधिकार देते चले जाओ और उनका वोट लेकर राष्ट्र की सत्ता पाते रहो। जरा सोचो और समझो!
–विनोद कुमार सर्वोदय
नयागंज, गाजियाबाद (उ.प्र.)
सांस्कृतिक अपराध है गोहत्या
पिछले दिनों पाञ्चजन्य में एक समाचार पढ़ा कि उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद में आयोजित एक उत्सव में लोगों से आह्वान किया गया कि आओ और अलग-अलग प्रकार से पकाए गए गोमांस का लुत्फ उठाओ। जिस देश में 85 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष रूप से हिन्दू धर्म में विश्वास रखती हो और शेष 15 प्रतिशत आबादी हिन्दू से मतान्तरित हो, उस देश में इस प्रकार की घटना घोर निन्दनीय है। गोमांस स्वास्थ्य की दृष्टि से नुकसान देय है। अंग्रेजी नाटककार शेक्सपीयर के नाटक 'ट्वैल्थ नाइट' का एक पात्र कहता है 'मैं विश्वास करता हूं कि गोमांस ने मेरी बुद्धि को नष्ट कर दिया है।' एक ईरानी विद्वान अल-गजाली (1058-1111 ई.) ने अपनी पुस्तक 'अहया उलदी' में लिखा है कि गाय का मांस मर्ज (बीमारी) है, उसका दूध सफा (स्वास्थ्यकर) है और घी दवा है। आयुर्वेद में गोदुग्ध को अमृत और गोघृत को आयु कहा है। अब तो पाकिस्तान में भी यह मांग जोर पकड़ने लगी है कि खाने के लिए पशुओं (मुर्गे, बकरे आदि) को पालना ईश्वरीय गुनाह है। उस्मानिया विश्वविद्यालय में घटी इस घटना को सामान्य समझकर नहीं छोड़ना चाहिए। सरकार को चाहिए कि बात और आगे बढ़े उससे पूर्व ही गो को राष्ट्रीय रत्न या फिर इससे मिलता जुलता संवैधानिक दर्जा देकर भारत के माथे पर लगा गोहत्या, गोमांस भक्षण, गोमांस निर्यातक का कलंक सदा-सदा के लिए मिटा दे।
–शिवकुमार शर्मा
गांव व डाकघर–जमाल, जिला–सिरसा, हरियाणा-125110
आवरण कथा 'संप्रग सरकार तले गिरता बाजार, डूबता रुपया अनर्थकारी' में डा. अश्विनी महाजन ने केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों पर कड़ा प्रहार किया है। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह स्वयं एक विख्यात अर्थशास्त्री हैं, फिर भी देश की अर्थव्यवस्था ठीक नहीं है। आर्थिक विकास दर निरन्तर नीचे गिर रही है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि यह सरकार गैर-योजना मद में बहुत ज्यादा पैसा खर्च करती है। जिस क्षेत्र को पैसा चाहिए उसे नहीं दिया जा रहा है और वोट गणित ठीक करने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है।
–लम्बोदर कुमार
जयलालगढ़, पूर्णिया (बिहार)
द ऐसा लगता है कि संप्रग सरकार पूरी तरह विश्व बैंक व अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के इशारे पर काम करती है। इस सरकार ने कहा था कि चुनाव जीतने के एक साल के अन्दर महंगाई पर काबू पा लिया जाएगा। किन्तु अब तो कई वर्ष बीत गए हैं। फिर भी महंगाई थमी नहीं, उल्टे बड़ी तेजी से बढ़ रही है। विदेशी मुद्रा का भण्डार खाली हो रहा है। फिर भी यह नाकारा सरकार सिर्फ बयानबाजी कर रही है।
–प्रमोद प्रभाकर वालसांगकर
म.सं.-1-10-81, रोड सं.-8बी, द्वारकापुरम, दिलसुख नगर हैदराबाद–500060 (आं.प्र.)
द देश के इतिहास में पहली बार डॉलर के मुकाबले रुपया इतना कमजोर हुआ है, जबकि देश की बागडोर एक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के हाथों में है। कुछ समय पहले विश्व बाजार में जब डॉलर टूट रहा था उस समय हमारे प्रधानमंत्री डॉलर को संभालने के लिए सक्रिय हुए थे। पर अब जब रुपया टूट रहा है तो प्रधानमंत्री 'खामोश' हैं। इसका क्या अर्थ लगाया जाए?
–दयाशंकर मिश्र
म.सं.-84, राजधानी एन्कलेव, लोनी, गाजियाबाद (उ.प्र.)
द एशिया में केवल भारत और बंगलादेश की मुद्रा ही कमजोर क्यों हो रही है? श्रीलंका, पाकिस्तान, चीन, म्यांमार आदि देशों की मुद्रा क्यों नहीं टूट रही है? यदि विश्व स्तर पर कोई आर्थिक संकट होता तो उसका प्रभाव हर देश पर पड़ता। किन्तु ऐसा तो हो नहीं रहा है। इसका मतलब तो यही है कि भारत अपनी मुद्रा को बचाने के लिए कुछ नहीं कर रहा है।
–गणेश कुमार
कंकड़बाग, पटना (बिहार)
अब क्यों चुप रहे?
उत्तर प्रदेश के कोसीकलां में हुए दंगे की रपट श्री मुकेश गोस्वामी की कलम से पढ़ी। अखिलेश राज में यह पहला दंगा है। हिन्दुओं पर हमला किया गया। छोटी-सी बात को तिल का ताड़ बनाकर हिन्दुओं के सैकड़ों घरों और दुकानों को आग के हवाले किया गया। गुजरात की मोदी सरकार को कोसने वाले सेकुलर नेता और मीडियाकर्मी इस दंगे पर चुप रहे। कोसीकलां में पीड़ित हिन्दू थे, इसलिए किसी सेकुलर ने मुंह खोलना ठीक नहीं समझा।
–वीरेन्द्र सिंह जरयाल
28-ए, शिवपुरी विस्तार, कृष्ण नगर, दिल्ली-110051
नैतिकता–विहीन कांग्रेसी
सम्पादकीय 'चिदम्बरम के लिए कुर्सी बड़ी, नैतिकता नहीं' बड़ा सामयिक है। कांग्रेस में नैतिक मूल्यों के पतन का दौर जून 1975 में उस समय से आरंभ हो गया जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने अपनी सत्ता को बचाये रखने के लिए न्यायालय के फैसले की अवहेलना कर आपातकाल की घोषणा की। वर्तमान गृहमंत्री पी. चिदम्बरम भी उसी श्रृंखला की एक कड़ी हैं। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के मामले में चिदम्बरम की भूमिका पर भी प्रश्न चिन्ह लगे हैं। दरअसल, महात्मा गांधी की नैतिकता अब केवल पुस्तकों और ग्रंथों में रह गई है।
–मनोहर 'मंजुल'
पिपल्या–बुजुर्ग, प. निमाड़-451225 (म.प्र.)
प्रेरणादायी प्रयास
पिछले 16 अंकों में रेखाचित्र में 'महाभारत' शीर्षक से बड़ी रोचक जानकारी दी गई। गंगा से भीष्म का जन्म, उनकी प्रतिज्ञा और सत्यवती का हस्तिनापुर के राजा शान्तनु से विवाह आदि प्रसंग बहुत ही सुन्दर ढंग से बताया गया। कथाकार कुमार मोहन चलम और चित्रकार सन्तु का प्रयास पाञ्चजन्य के पाठकों के लिए बहुत प्रेरणादायी है।
–उदय कमल मिश्र
गांधी विद्यालय के समीप, सीधी-486661 (म.प्र.)
गाय की महिमा
श्री मुजफ्फर हुसैन के आलेख 'मुबारक शेख की गोशाला' से हृदय अति प्रसन्न हुआ। कृषि की रीढ़ होने के साथ गोमाता उस परोपकार, सहनशीलता, शान्त और तीक्ष्ण बुद्धि और चतुराई की प्रतीक है, जो सैकड़ों परिस्थितियों को अनर्थ में बदलने से रोक देती है। यह घास, फूस और पत्तों को उस अमृत-रूपी पोषक दुग्ध में परिवर्तित कर देती है जिसे न मिलने की स्थिति में बच्चे मां के दूध जैसे पोषक तत्व से वंचित रह जाते हैं।
–विशाल कोहली
110, ए-5/बी, पश्चिम विहार, नई दिल्ली-110062
वंशवादी अधिनायकवाद
मंथन में श्री देवेन्द्र स्वरूप ने अपने लेख 'राष्ट्रहित के सुझाव से डरा वंशवाद' में प्रामाणिक तथ्यों के आधार पर यह बताने का प्रयास किया है कि वर्तमान संप्रग सरकार देशहित के मामलों में कतई गंभीर नहीं है। चाहे लोकपाल कानून बनाना हो या विदेशों में जमा कालाधन भारत वापस लाना हो, सरकार इन मुद्दों को कोई महत्व ही नहीं दे रही है, जबकि आम जनता की इच्छा है कि देश में एक सशक्त लोकपाल की नियुक्ति हो और कालाधन वापस लाया जाए। इसी तरह चुनाव आयुक्त या अन्य महत्वपूर्ण संस्थाओं के प्रमुखों की नियुक्ति के लिए वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के सुझावों को नहीं मानना सरकार की हठधर्मिता ही कही जाएगी। इस देश को सिद्धान्तहीन वंशवादी अधिनायकवाद की गिरफ्त में धकेला जा रहा है। यह अलग बात है कि देशवासी सभी सच्चाई से अवगत हैं और वंशवाद को हवा देने वालों का स्वप्न पूरा नहीं होगा।
–क्षत्रिय देवलाल
उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया
कोडरमा-825409 (झारखण्ड)
पञ्चांग
वि.सं.2069 तिथि वार ई. सन् 2012
श्रावण कृष्ण 12 रवि 15 जुलाई, 2012
” ” 13 सोम 16 ” “
” ” 13 मंगल 17 ” “
(तिथि वृद्धि)
” ” 14 बुध 18 ” “
श्रावण अमावस्या गुरु 19 ” “
श्रावण शुक्ल 1 शुक्र 20 ” “
” ” 2 शनि 21 ” “
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