भर्ती प्रक्रिया में हिन्दू युवकों की अनदेखीअब्दुल्ला की पुलिस में अधिकांश मुसलमान
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जम्मू–कश्मीर/ विशेष प्रतिनिधि
अब्दुल्ला की पुलिस में अधिकांश मुसलमान
जम्मू–कश्मीर में हमेशा कुछ न कुछ विचित्र होता रहता है। पिछले कुछ समय से सैनिकों तथा केन्द्रीय बलों को हटाकर सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह स्थानीय पुलिस को सौंपने की बात कही जा रही है। इसके लिए व्यापक स्तर पर पुलिस में भर्ती का क्रम जारी है। किन्तु पुलिस में जिन लोगों को भर्ती किया जा रहा है, वह विचारणीय ही नहीं अपितु एक गंभीर विषय है। मनमाने ढंग से जिन युवकों को भर्ती किया जा रहा है उनमें से अधिकांश न केवल एक ही समुदाय से संबंधित हैं अपितु बहुत से पाकिस्तानी आतंकवादी शिविरों में प्रशिक्षित ऐसे उग्रवादी भी हैं जिन्होंने सरकार की पुनर्वास नीति के लाभ उठाए हैं। इनमें बहुत से ऐसे युवक भी हैं जो 2009 और 2010 के अलगाववादी आंदोलन में सक्रिय थे तथा केन्द्रीय सुरक्षा बलों को पत्थर मारने तथा हिंसा की अन्य गतिविधियों में लिप्त थे।
उल्लेखनीय है कि गत 6-7 वर्षों में राज्य पुलिस में व्यापक स्तर पर भर्ती की गई है। अधिकांश भर्ती कश्मीर घाटी तथा कुछ अन्य ऐसे क्षेत्रों में हुई है जो उग्रवाद से प्रभावित थे। यह भर्ती विचित्र प्रकार से की गई, जिसके लिए कोई नियमित प्रणाली अपनाने की बजाय 'आन-दि-स्पॉट' भर्ती का नाम दिया गया। इस भर्ती में 90 से लेकर 95 प्रतिशत तक एक ही समुदाय के युवकों को शामिल किया गया है। जम्मू के अधिकतर क्षेत्रों की अनदेखी की गई है, जिसे लेकर कई स्थानों पर युवकों ने विरोध प्रदर्शन भी किए और भर्ती प्रक्रिया पर कई प्रश्न चिन्ह भी लगाए।
जम्मू-कश्मीर राज्य पुलिस में पिछले 15 वर्षों में लगभग 30,000 से अधिक संख्या बढ़ा दी गई है। पुलिस में भर्ती के लिए जो मनमाने तरीके अपनाए जा रहे हैं वह कई क्षेत्रों में आलोचना का कारण तो बन ही रहे हैं, कई विशेषज्ञ भी चिंतित दिखाई देते हैं। गत तीन वर्षों में 10 हजार से अधिक युवक पुलिस में भर्ती किए गए, पर जम्मू क्षेत्र में इनमें से मात्र 500 युवकों को ही भर्ती किया गया है। सत्तारूढ़ दलों के नेताओं का तर्क है कि इस भर्ती से राज्य पुलिस को किसी भी स्थिति से निपटने के लिए स्वाबलम्बी बनाया जा रहा है, किन्तु राष्ट्रवादियों का इस संबंध में अपना अलग विचार है। उनका कहना है कि यह भर्ती पंथ निरपेक्षता के नियमों का उल्लंघन करके की जा रही है और भूतकाल के कटु सत्य की अनदेखी हो रही है। 1947 में महाराजा को सेना में शामिल ऐसे तत्वों ने क्या गुल खिलाए थे, और 1990 में जब घाटी में आतंकवाद पनपा था तो स्थिति क्या हो गई थी, इसका ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि तब राज्य पुलिस ने श्रीनगर में एक प्रकार से विद्रोह कर दिया और कई प्रकार की अफवाहों के साथ ऐसा वातावरण उत्पन्न हो गया था कि इन पुलिसकर्मियों से शस्त्र डलवाने के लिए सेना को बुलाना पड़ा था।
जम्मूवासियों की तो हमेशा से यह शिकायत है कि घाटी के सशस्त्र पुलिसकर्मी बदले की भावना से काम करते हैं और शांति व्यवस्था बहाल करने की बजाय आक्रोश को बढ़ाते हैं। इस संबंध में उल्लेखनीय है कि गत दिनों सीमावर्ती नगर राजौरी में कुछ साम्प्रदायिक तत्वों ने हिन्दुओं के एक धार्मिक जुलूस पर आक्रमण किया, जिसका प्रतिरोध हुआ। प्रशासन को कर्फ्यू लगाना पड़ा, किन्तु कर्फ्यू के बीच सशस्त्र पुलिसकर्मियों ने हिन्दुओं के घरों में घुसकर लूटपाट की और उपद्रव मचाया। इससे तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारी भी आश्चर्यचकित रह गए थे। तब राज्य पुलिस को हटाया गया तथा केन्द्रीय सुरक्षा बलों को नियुक्त किया गया, जिससे स्थिति सामान्य हुई।
राष्ट्रवादी संगठनों द्वारा आपत्ति जताने के पश्चात भी पुलिस में भर्ती का क्रम थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक सरकारी रपट के अनुसार 'आन दि स्पॉट' भर्ती के अंतर्गत 2011 में 1837 पुलिसकर्मी भर्ती किए गए, जिसमें जम्मू क्षेत्र में खोड तथा अखनूर में भर्ती की गई। इस भर्ती में 173 स्थानीय युवकों का चयन किया गया, शेष 1664 कश्मीर घाटी के थे। विधानसभा के भीतर और बाहर जब इस पर आपत्ति जताई गई तो सरकार का उत्तर था कि यह क्रम जारी रहेगा। यहां यह भी उललेखनीय है कि राज्य पुलिस को सशक्त बनाने के लिए सारा खर्च केन्द्र सरकार की ओर से दिया जा रहा है, जिसके कारण राज्य पुलिस का वार्षिक खर्च 1000 करोड़ रु. से बढ़कर गत 10 वर्षों में 3000 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य पुलिस को सशक्त बनाने के साथ ही पिछली घटनाओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। पंथनिरपेक्षता सिर्फ बातों में नहीं, व्यवहार में भी होनी चाहिए। जिन पर आम आदमी की सुरक्षा का दायित्व है, उसमें साम्प्रदायिक आधार पर भर्ती नहीं करनी चाहिए।
महाराष्ट्र/ द.वा. आंबुलकर
सहकार में सरकार की मनमानी
राज्य के 25 लाख दुग्ध उत्पादक ग्रामीणों एवं किसानों की शिखर संस्था 'महाराष्ट्र राज्य सहकारी दुग्ध महासंघ' ने कुछ वर्ष पूर्व राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री तथा कुछ प्रभावशाली मंत्रियों के चुनाव क्षेत्रों में प्रस्तावित पशु-खाद्य उत्पाद कारखानों के लिए 20 करोड़ रु. आवंटित किये थे। अब ये किसान-ग्रामीण पश्चाताप कर रहे हैं। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के चुनाव क्षेत्र कुड़ाल, पूर्व मुख्यमंत्री तथा मौजूदा केन्द्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे के शोलापुर जिले के नांदवी, पूर्व मुख्यमंत्री तथा मौजूदा केन्द्रीय मंत्री विलासराव देशमुख के गृहनगर लातूर के अलावा नगर जिले के सूपा में पशु खाद्य के उत्पाद हेतु तीन कंपनियों को मात्र एक लाख रु. पूंजी एवं लागत के आधार पर 'महाराष्ट्र राज्य सहकारी दुग्ध उत्पादक महासंघ' ने 20 करोड़ रु. की राशि आवंटित कर दी।
पहले से तय शर्तों के अनुसार 'महाराष्ट्र राज्य सहकारी दुग्ध उत्पादक महासंघ' द्वारा पशु खाद्य एवं पशु विकास हेतु कुडाल के लिए 3 करोड़ 20 लाख, नांदवी, लातूर तथा सूपा की प्रत्येक परियोजना के लिए 4 करोड़ 80 लाख रु. का अग्रिम आवंटन किया गया। तय शर्तों के तहत इस राशि से इन कंपनियों को परियोजना प्रारंभ कर पशु खाद्य का उत्पादन शुरू करना था तथा उपरोक्त आवंटित राशि 54 समान किश्तों में 12 प्रतिशत ब्याज के साथ लौटानी थी। राशि लौटाने में विलंब की स्थिति में प्रतिदिन 5 हजार रु. का अतिरिक्त भुगतान करना भी तय हुआ था। बावजूद इन सारी शर्तों के, इन परियोजना के अन्तर्गत स्थापित किसी भी पशु खाद्य कारखाने ने अब तक पैसा लौटाने की शुरुआत तक नहीं की है। दुग्ध उत्पादक महासंघ की 20 करोड़ रुपए से भी अधिक राशि अब डूबने की कगार पर आ पहुंची है।
इस सारे गोरखधंधे के पीछे राजनीति छिपी हुई है। महाराष्ट्र में कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने राज्य सहकारी दुग्ध उत्पादक महासंघ का दोहन कर ग्रामीणों और किसानों की पूंजी का लाभ उठाते हुए अपने-अपने चुनाव क्षेत्र या गृहनगर में पशु खाद्य कारखाने की परियोजना शुरू करवाई। राज्य के ग्रामीणों एवं किसानों से हुई उपरोक्त धोखाधड़ी अभी चर्चा में ही थी कि पुणे के निकट सासवड़ में 100 करोड़ रुपयों की लागत से दूध का पाउडर बनाने की परियोजना को महाराष्ट्र राज्य सहकारी दुग्ध उत्पादक महासंघ द्वारा स्वीकृति दे दी गई है, यह बात नये सिरे से चर्चा का विषय बन गयी है। यद्यपि राज्य सहकारी दुग्घ उत्पादक महासंघ का कार्यक्षेत्र समूचा राज्य है, पर महासंघ के पदाधिकारियों में कांग्रेसी नेताओं का ही जमावड़ा रहता है। उसमें भी पुणे एवं पश्चिमी महाराष्ट्र के सत्ताधारी कांग्रेसी अपनी राजनीतिक मंशा के तहत महासंघ को अपने चंगुल में रखते हैं। सूत्रों के अनुसार आज जबकि महाराष्ट्र में राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित दूध पावडर उत्पादन परियोजनाओं में से अधिकांश या तो बंद हो चुकी हैं या बंद होने की कगार पर हैं, तब सहकारी समिति के माध्यम से पुणे के निकट इसी प्रकार की परियोजना का निर्माण सहकार में सरकार की मनमानी का नया नमूना है।
केरल/ प्रदीप कृष्णनन
केरल में सक्रिय है सिमी
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एन.आई.ए.) का कहना है कि स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया यानी सिमी पर प्रतिबंध के बावजूद उसकी गतिविधियां जारी हैं। एनआईए ने यह बात प्रतिबंध के कारणों की जांच करने वाली पंचाट (ट्रायब्यूनल) के समक्ष कही। पिछले दिनों तिरुअनंतपुरम में पंचाट की तीन दिवसीय बैठक में एनआईए ने अपनी रपट सम्मिलित कर कहा कि पिछले दिनों कम से कम तीन मामले ऐसे हुए जिसमें सिमी की संलिप्तता के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने अपनी रपट में कहा है कि उसके पास इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि लश्कर-ए-तोयबा नामक प्रमुख आतंकवादी संगठन में केरल के युवकों को भर्ती करने के लिए प्रारंभिक प्रशिक्षण शिविर, जोकि सन् 2006 में पनाईकुलम में आयोजित किया गया था, का आयोजन सिमी ने ही किया था। बाद में इस शिविर में प्रशिक्षित केरल के युवकों को सन् 2008 में कश्मीर में लश्कर-ए-तोयबा के प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने भेजा गया था। इसी प्रकार का प्रशिक्षण शिविर सन् 2007 में वैगामॉन (इडुक्की) में भी आयोजित किया गया था और कोझिकोड से भड़काऊ पोस्टर बरामद किए गए थे।
इससे पूर्व केरल की राज्य सरकार ने भी पंचाट के समक्ष प्रस्तुत अपनी रपट में सिमी पर 11 साल से लागू प्रतिबंध को जारी रखने की अपील की है। रपट में राज्य खुफिया विभाग के हवाले से कहा गया है कि भले ही सिमी की गुप्त बैठकों के संबंध में उसके पास पुख्ता सबूत न हों, पर अनेक स्थानों पर छापों के दौरान उससे संबंधित साहित्य बरामद किया जाना बताता है कि उसकी गतिवधियां जारी हैं। जुलाई, 2008 में एक कालेज के प्रोफेसर का हाथ काटने की घटना के बाद से खुफिया एजेंसियों ने जांच की तो पाया कि जिस एसडीपीआई ने इस घटना को अंजाम दिया, उसमें अधिकांश सिमी के पूर्व कार्यकर्ता हैं। इसके बाद हिंसा की कम से कम 8 वारदातों में एसडीपीआई या कहें सिमी के लोग ही शामिल थे। इसलिए राज्य सरकार और राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने पंचाट से अपील की है कि सिमी पर प्रतिबंध जारी रहने दिया जाए। खुफिया एजेंसियों की इस बात पर लगातार नजर है कि सिमी के लोग किन राजनीतिक दलों व संस्थाओं में शामिल होकर अपनी गतिविधियां जारी रखे हुए हैं।
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