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सरकार न गेहूं खरीद पा रही है, न सहेज पा रही है, और न ही गरीबों को वितरित कर पा रही है, बस-सड़ा रही है!

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Jun 9, 2012, 12:00 am IST
in Archive
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किसान भुगत रहे हैं अधिक अन्न उपजाने की सजा

दिंनाक: 09 Jun 2012 14:33:43

पंजाब/राकेश सैन

 

देश में एक अप्रैल को खाद्य सुरक्षा मानक के आधार पर सुरक्षित खाद्य भंडार (बफर स्टाक) 122 लाख टन चावल और 40 लाख टन गेहूं यानी कुल 1.62 करोड़ टन अनाज का स्टाक होना चाहिए था। इसके विपरीत सरकारी गोदामों में 5.30 करोड़ टन अनाज भरा पड़ा है।

पंजाब में 123 लाख टन से अधिक गेहूं खरीदा जा चुका है, इसकी कीमत कोई 16,000 करोड़ रुपए है। इस पर पंजाब सरकार को कर द्वारा 200 करोड़ रुपए की आमदनी हुई है। इसी तरह हरियाणा में करीब 11,000 करोड़ रुपए का गेहूं खरीदा जा चुका है और राज्य सरकार को कर द्वारा करोड़ों रु. की आमदनी हुई है। इससे जहां पंजाब व हरियाणा की राज्य सरकारें खुश हैं वहीं दोनों प्रदेशों के किसान गेहूं की पूरी कीमत न मिलने से परेशान हैं। किसानों की परेशानी का कारण है बढ़ते खर्च। उपज बढ़ाने की कोशिश में किसानों पर खाद, बीज, पानी इत्यादि का खर्च बढ़ता चला जा रहा है। अगर इसमें जमीन और किसान की मेहनत इत्यादि अन्य बातों को जोड़ दें तो किसान के पास कुछ बचता ही नहीं है। किसान कीमत के साथ-साथ धीमी गति से की जा रही खरीदी से भी परेशान हैं। दूसरा पहलू यह है कि सरकार के पास खरीदे गए गेहूं को रखने का उचित स्थान भी नहीं है, परिणामस्वरूप खरीदा गया गेहूं खुले में रखा जा रहा है। खुले में रखा गेहूं ही नहीं, गोदामों में रखा अनाज भी खराब हो रहा है।

इस वर्ष देश में आठ करोड़ टन से अधिक की उपज हुई हैं लेकिन रखने का कोई इंतजाम नहीं है। उधर पिछले भण्डारण का 2 करोड़ टन गेहूं खराब हो रहा है। अकेले पंजाब में ही 70,000 टन गेहूं खराब हो रहा है। केन्द्र सरकार के पास गेहूं रखने के साथ-साथ किसानों को बोरियां देने में भी मुश्किल आ रही है। परिणाम स्वरूप खुले में रखी उपज आंधी और बारिश से खराब हो रही है। गेहू की भराई से लेकर लदान और उतारने से लेकर रखने तक में इतनी परेशानियां आ रही हैं कि किसानों को लगता है कि उसने गेहूं को पैदा कर कोई गुनाह कर दिया है। हजारों-लाखों टन गेहूं जहां खरीदा जा रहा है वहीं करोड़ों टन गेहूं गोदामों में गल-सड़ रहा है और इस गले-सड़े गेहूं को न खाने योग्य करार देकर इसे एक तिहाई से भी कम दाम पर शराब निर्माताओं को बेचा जा रहा है, जिसका इस्तेमाल शराब बनाने में होता है।

गेहूं की रिकार्ड तोड़ पैदावार करने वाले किसान को छोड़कर इस धंधे से जितने भी लोग जुड़े हैं, सब लाभ की स्थिति में हैं। जैसे सरकार को कर मिल जाता है, आढ़ती को कमीशन, गोदामों में रखने वाले को किराया, बारदाना वाले और शराब कंपनियां… सभी लाभ की स्थिति में हैं। पर किसान का और उस पर मुनाफा कम होता जा रहा है और उस पर कर्ज बढ़ता जा रहा है। इससेे तंग आकर वह आत्महत्या करने को मजबूर हो रहा है।

जहां किसानों को अधिक अन्न उपजाने की सजा मिल रही है वहीं देश के करीब 40 करोड़ लोग एक वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं। गरीबी रेखा से कुछ ऊपर वाला वर्ग भी महंगाई के कारण अपनी अन्न की आवश्यकता को पूरा करने के लिए संघर्ष करता दिखाई दे रहा है। अन्न की रिकार्ड तोड़ उपज तथा गोदामों में पड़े अन्न को खराब होता देखकर ही देश के सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार को गरीबी रेखा से नीचे आने वाली जनसंख्या को मुफ्त अनाज देने की बात कही थी। जो लोग गरीबी की रेखा से थोड़ा ऊपर के वर्ग में हैं, उन्हें निर्धारित कोटे से अधिक गेहूं देने की बात भी सरकार को कही थी, लेकिन केन्द्र सरकार ने न्यायालय की दोनों बातों को मानने से इनकार कर दिया।

देश की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए गेहूं की उपज को बढ़ावा देना देश का स्थायी लक्ष्य है, लेकिन समस्या है गेहूं के रख-रखाव की। गेहूं की कटाई, भराई और भण्डारण में किसान बिना सरकार की सहायता के कुछ भी नहीं कर सकता। गेहूं का निर्यात व बिक्री दोनों ही सरकार के नियंत्रण में है, खरीदी भी सरकारी एजेंसियां ही अधिक करती हैं। निजी क्षेत्र तो छोटा खिलाड़ी है। एक रपट के अनुसार देश में एक अप्रैल को खाद्य सुरक्षा मानक के आधार पर सुरक्षित खाद्य भंडार (बफर स्टाक) 122 लाख टन चावल और 40 लाख टन गेहूं यानी कुल 1.62 करोड़ टन अनाज का स्टाक होना चाहिए था। इसके विपरीत सरकारी गोदामों में 5.30 करोड़ टन अनाज भरा पड़ा है। इस भण्डारण को सुरक्षित रखने में सरकारी एजेंसी भारतीय खाद्य निगम पर भारी बोझ है। अनाज के सरकारी रख-रखाव पर होने वाला खर्च कई गुना बढ़ गया है। गेहूं खरीद में आढ़ती का कमीशन, राज्यों के आधा दर्जन शुल्क, किराया, भण्डारण से पूर्व और बाद के हर छह महीने पर उपचार का खर्च, एफसीआई के कर्मचारियों और अधिकारियों के खर्च के चलते समर्थन मूल्य पर खरीदे गए गेहूं का मूल्य डेढ़ गुना से भी अधिक हो जाता है। गेहूं के निर्यात को लेकर भी सरकार बहुत सुस्त है। इस कारण सरकार की गेहूं के रख-रखाव को लेकर करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है। उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए कह सकते हैं कि सरकार की नीतियों तथा अदूरदर्शिता के परिणामस्वरूप किसान को तो नुकसान हो ही रहा है, सरकार पर भी गेहूं के रख-रखाव का खर्च बढ़ता चला जा रहा है। समय की मांग है कि सरकार किसानों के हित व गेहूं के रख-रखाव के बढ़ते खर्चों और गेहूं की हो रही बर्बादी को देखते हुए व्यावहारिक कदम उठाकर किसानों के साथ-साथ गरीब वर्ग को भी राहत दे। जो गरीबी की रेखा के नीचे तथा उससे थोड़ा ऊपर का वर्ग है, सरकार उसे मुफ्त नहीं तो कम दाम पर गेहूं वितरित करे। राज्यों को अन्न उपज अनुसार गोदाम बनाने की अनुमति दे। अन्न की बर्बादी देश हित में नहीं है। अन्न को बर्बाद होने से बचाना हम सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए।

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