दूरगामी रणनीति और दृढ़इच्छाशक्ति की जरूरत
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नक्सलवाद से निपटने के लिए
इच्छाशक्ति की जरूरत
हेमंत उपासने
छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की सरकार नक्सलवाद के खतरों से जूझ रही है। परिस्थितियां अनुकूल नहीं है, लेकिन डा. रमन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार अत्यन्त धैर्य, साहस और राजनीतिक कुशलता से नक्सली षड्यंत्रों को लगातार मात देती आ रही है। दो माह पूर्व छत्तीसगढ़ विधानसभा के बजट सत्र के अभिभाषण में राज्यपाल शेखर दत्त ने नक्सल प्रभावित जिलों में विकास कार्यों को चुनौतीपूर्ण बताते हुए कहा था कि जनता का विश्वास जीतकर ही विध्वंसकारियों पर विराम लगाया जा सकता है। पिछले दो विधानसभा चुनावों में छत्तीसगढ़ की जनता ने इसी विश्वास के साथ भारतीय जनता पार्टी को सत्ता सौंपी। राज्य में बढ़ते नक्सली खतरे के बीच शांतिपूर्ण विकास के उद्देश्य को मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने अपनी प्राथमिकता बनाए रखा है। सरकारी कार्यक्रमों की समीक्षा के लिए डा. रमन सिंह प्रतिवर्ष एक पखवाड़े तक 'ग्राम सुराज अभियान' चलाते हैं। इस दौरान मुख्यमंत्री सहित सम्पूर्ण मंत्रिमंडल और प्रशासनिक अधिकारी जनता से सीधे संवाद कर समस्याओं को हल करने का प्रयास करते है।
'ग्राम सुराज अभियान' का प्रभाव
डा. रमन सिंह ने इस वर्ष नक्सलियों के गढ़ समझे जाने वाले बस्तर संभाग के कसोली, पोलमपल्ली, मिरतुर और तोेकापाल से 'ग्राम सुराज अभियान' की शुरुआत की। 15 दिनों में उन्होंने 27 जिलों में चौपालें लगाकर जनता की समस्याओं के त्वरित समाधान का प्रयास किया। लेकिन नक्सलियों को छत्तीसगढ़ का विकास और जनता की खुशहाली रास नहीं आती। इसलिए उन्होंने कई थाने, स्कूल भवन, सड़कें, सरकारी कार्यालयों को ध्वस्त कर दिए हैं। सड़कों के निर्माण में लगी मशीनों तथा वाहनों को नक्सली आग की भेंट चढ़ा रहे हैं। 'ग्राम सुराज अभियान' के दलों पर जबर्दस्त हमले कर नक्सलियों ने अभियान रोकने के प्रयास किए। 'ग्राम सुराज अभियान' को नक्सली गुमराह करने वाला अभियान बताकर इसका विरोध करते हैं। इसी क्रम में गत 21 अप्रैल को संसदीय सचिव एवं बीजापुर के विधायक महेश गागड़ा के काफिले को लक्ष्य बनाकर बारूदी सुरंग से विस्फोट किया गया। उनकी निजी कार में बैठे तीन लोगों की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई। महेश गागड़ा पर इसके पहले गीदम के पास नक्सलवादी हमला कर चुके हैं, उसमें भी वे बाल-बाल बच निकले थे। 18 अप्रैल को नक्सलियों ने नारायणपुर-ओरछा मार्ग पर घात लगाकर बारूदी सुरंग से विस्फोट कर किशन रथ को निशाना बनाने का प्रयास किया, लेकिन तब वे और कार में बैठे सभी साथी जीवित बच निकले थी। इसी दिन नक्सलियों ने सुकमा जिले के केरलापाल क्षेत्र के मांझीपारा में किसान सम्मेलन को संबोधित कर रहे जिलाधिकारी एलेक्स पाल मेनन के दो अंगरक्षकों की गोली मारकर हत्या कर दी और मेनन का अपहरण कर लिया।
मुख्यमंत्री ने 'ग्राम सुराज अभियान' दलों पर हुए नक्सली हमलों के बारे में कहा कि नक्सली विकास विरोधी हैं। श्री मेनन की सुरक्षित रिहाई के लिए मुख्यमंत्री और उनकी सरकार ने बहुत धैर्यपूर्वक कदम उठाए। जिलाधिकारी की रिहाई के बदले नक्सलियों ने अपने साथियों की रिहाई की एक लम्बी सूची पेश की। सरकार ने कानून के बाहर जाकर नक्सलियों की रिहाई के बारे में निर्णय लेने में अपनी असमर्थता जताई। अनेक दौर की चर्चा के बाद अंतत: एक लिखित समझौते के तहत श्री मेनन की रिहाई सुनिश्चित हुई। श्रीमती निर्मला बुच की अध्यक्षता में गठित एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने श्री मेनन की रिहाई के तत्काल बाद से अपना कार्य प्रारंभ कर दिया है। जेलों में बंद कुछ विचाराधीन कैदियों की जमानत की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इस बीच पूरे छत्तीसगढ़ में श्री मेनन की बिना शर्त रिहाई के लिए विभिन्न संगठनों ने धरने-प्रदर्शन, पूजन-हवन तक किये। लोकतंत्र रक्षक परिषद और छत्तीसगढ़ बुद्धिजीवी काउंसिल ने रायपुर सहित पूरे छत्तीसगढ़ में जनमत सर्वेक्षण और मतदान करवाया। लोगों ने एक सुर में श्री मेनन की बिना शर्त रिहाई के पक्ष में अपना समर्थन दिया। नक्सलियों के विरोध में पूरे प्रदेश में माहौल बन गया। यह दबाव काम आया।
नक्सलवाद के संगी–साथी
'ग्राम सुराज अभियान' के महीने भर पहले सुरक्षा बलों ने अबूझमाड़ में 3000 से ज्यादा जवानों के साथ भीतर तक घुसकर नक्सल विरोधी अभियान चलाया। नक्सलियों को अपना सुरक्षित गढ़ छोड़कर भागना पड़ा। उल्लेखनीय है कि अबूझमाड़ में दो वर्ष पूर्व तक किसी भी बाहरी व्यक्ति के प्रवेश और फोटो खींचने पर प्रतिबंध था। इस क्षेत्र में तलाशी अभियान के दौरान सुरक्षा बलों ने नक्सली ठिकानों से बड़ी मात्रा में गोलाबारूद, अत्याधुनिक हथियार, सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण, कम्प्यूटर तथा प्रिंटर आदि बरामद किए। 13 नक्सलियों को भी यहां से गिरफ्तार किया गया। अबूझमाड़ के इस क्षेत्र में पहली बार पुलिस पहुंची। पुलिस-प्रशासन की अब तक पहुंच न होने के कारण नक्सलियों ने यहां अपना शासन स्थापित कर लिया था। अबूझमाड़ के ग्राम माण्ड में नक्सलियों ने युवक-युवतियों को नक्सली गतिविधियों में निपुण करने की पाठशाला भी स्थापित कर रखी थी। यहां नक्सलियों ने सुरक्षा बलों पर हमले करने के लिए छोटे-छोटे नक्सली समूहों का गठन कर उनको प्रशिक्षित किया। मेनन के अपहरण के बाद के तेरह दिनों में उनकी रिहाई की बातचीत के बीच नक्सलियों को अपने ठिकाने मजबूत करने और शहरी 'नेटवर्क' को भी चुस्त-दुरुस्त करने का अवसर मिल गया। शहरों और नक्सली क्षेत्रों में ऐसे अनेक गैरसरकारी संगठन हैं जो नक्सलियों को अप्रत्यक्ष रूप से न केवल पनाह दे रहे हैं बल्कि नक्सलियों को हथियार, गोला-बारूद और खाद्य सामग्री पहुंचाने के लिए साथ-साथ धन भी मुहैया करा रहे हैं। पुलिस ने माओवादी संगठनों का प्रचार-प्रसार करने वाले आठ गैरसरकारी संगठनों पर पहले ही प्रतिबंध लगा रखा है, जिनमें प्रमुख रूप से चेतना नाट्य मंच, आदिवासी बाल संगठन, क्रांतिकारी महिला आदिवासी संगठन, दंडकारण्य आदिवासी किसान मजदूर संगठन, ग्राम रक्षा दल, जनताना सरकार, भूमकाल सेना और दंडकारण्य छात्र संघ हैं।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने अनेक अवसरों पर स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी भी प्रदेश में हिंसा व अव्यवस्था के बीच विकास नहीं हो सकता। सरकार शांति के साथ दूर-दराज के क्षेत्रों का विकास करना चाहती है। नक्सलियों को हिंसा का रास्ता छोड़कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया के साथ विकास की मुख्यधारा में जुड़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि नक्सली बंदूक छोड़ दें तो मैं स्वयं सबसे पहले उन्हें गले लगाऊंगा। लेकिन केन्द्रीय गृह सचिव आर.के. सिंह का मानना है कि नक्सलियों से बातचीत से नहीं निपटा जा सकता। नक्सली देश के शत्रु हैं। माओवादी वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था को हथियार के बल पर खत्म करना चाहते हैं।
हिंसक और बर्बर नक्सलवादी
सुकमा के जिला अधिकारी श्री मेनन की रिहाई के लिए एक ओर छत्तीसगढ़ सरकार ने शांति वार्ता के प्रस्ताव के साथ सुरक्षा बलों को वापस बैरकों में भेज दिया था, तो दूसरी ओर नक्सली अपनी हिंसक करतूतों को अंजाम देने में लगे हुए थे। श्री मेनन की रिहाई के पूर्व नक्सलियों ने भाजयुमो के मंडल अध्यक्ष रामलाल वाचम, पिता मोतीलाल और साई बी राम सहित दस लोगों का दस दिन पूर्व अपहरण कर लिया था। श्री मेनन की रिहाई के एक दिन पूर्व रात में जन अदालत लगाकर सभी को बेरहमी से लाठी डंडों से पीट पीटकर तीनों को मार डाला और शेष ग्रामीणों को गंभीर हालत में छोड़ दिया। जल, जंगल और जमीन पर जनजातियों के हितैषी बनने वाले नक्सलियों ने सुबह ही इस परिवार के सदस्य भक्कू वाचम की गोली मारकर हत्या कर दी। इसी दिन नक्सलियों ने राजनांंदगांव के ग्राम भावसा चवेला में सड़क निर्माण में लगे वाहनों को आग के हवाले कर दिया। 2 मई को नक्सलियों ने बघेली के बीच बाजार में दो जवानों की हत्या कर दी और चार जवानों को घायल कर दिया। श्री मेनन का अपहरण करने के पूर्व ही नक्सलियों ने एक के बाद एक 17 लोगों का अपहरण कर लिया था, जिसमें से छह लोगों को उन्होंने मार डाला, तीन को छोड़ दिया जबकि आठ लोग लापता हैं। गत अप्रैल में नक्सलियों ने एक जवान को अगवा कर जन अदालत लगाकर चालीस हजार रुपए नगद और नौकरी छोड़ने की शर्त पर रिहा किया। इसी प्रकार ग्रामीणों से भी रुपये लेकर उनकी रिहाई की गई। नक्सली ग्रामीणों को जन अदालत में भी रुपए लेकर आने का फरमान जारी कर रहे हैं।
गत 13 मई को नक्सलियों ने एक बर्बर और अमानवीय घटना को अंजाम देकर रात्रि में केन्द्र सरकार के उपक्रम एन.एम.डी.सी. की सुरक्षा हेतु 'डयूटी' पर जा रहे केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बला (सीआईएसफ) के 6 जवनों की नक्सलियों ने घात लगाकर हत्या कर दी। न केवल हत्या की बल्कि मृत पड़े जवानों के नाक-कान काटकर शव को छत-विछत कर दिया और शवों के बीच घातक विस्फोट बम भी रख दिया ताकि अन्य सुरक्षा बल जब उनके शव उठाने आएं तो और भी बड़ा हादसा हो।
नक्सली बड़ी संख्या में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों से युवक-युवतियों को बरगला कर अपनी ताकत बढ़ाने के लिए उन्हें अपने दल में शामिल कर रहे हैं। अपहरण अब नक्सलियों के लिए दहशत का व्यापार बन गया है। जो उनके साथ नहीं जाता उसे मौत के घाट उतारने में नक्सली देर नहीं लगाते। अबूझमाड़ के ग्राम कोहंदी की एक महिला के रिश्तेदारों द्वारा नक्सलियों का साथ न देने की सजा के लिए उस महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। इसी प्रकार गरियाबंद के नक्सल प्रभावित क्षेत्र दरर्ीपारा में तेंदूपत्ता प्रबंधक सुरेन्द्र कश्यप को पुलिस का मुखविर बताते हुए पहले लाठी- डंडों से पीटा, चाकू से गला काटा और फिर गोलियों से भूनकर उसके परिवार वालों के सामने ही उसकी हत्या कर दी।
दो माह पूर्व छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की तीन ट्रांसपोर्ट कंपनियों से राकेट लांचर बनाए जाने के सामान और मोर्टार बनाने के सामानों का जखीरा बरामद किया, जो कलकत्ता से रायपुर और फिर नक्सलियों के पास जंगलों में पहुंचने वाला था। चार वर्ष पहले भी रायपुर के डंगनिया इलाके में पुलिस ने लावारिस हथियारों की बड़ी खेप बरामद की थी। इसके अलावा सुरक्षा बलों ने अपने खोजी अभियान में जंगलों में बंदूक, कारतूस और बम बनाने के कारखाने ध्वस्त किए हैं। नक्सलियों से भय का आलम यह है कि नक्सली क्षेत्रों में अब कोई ठेकेदार सड़क नहीं बनाना चाहता। प्रशासन ने कई बार सड़क निर्माण के 'टेंडर' जारी किए। जिन्होंने हिम्मत कर काम शुरू भी किया तो नक्सलियों ने सड़क निर्माण की मशीनों को आग लगा दी। नक्सली जब चाहते हैं बंद का ऐलान करते हैं। चार माह पूर्व ही राज्य के गृहमंत्री ननकी राम कंवर ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में चौपाल लगाकर लोगों की जन समस्या हल करने का भरोसा दिलाया। साथ ही नक्सलियों से मुख्यधारा में जुड़ने का आवाह्न किया। आत्मसमर्पण करने पर विशेष पैकेज देने का प्रस्ताव भी किया। लेकिन नक्सलियों ने तो केवल हिंसा को अपना हथियार बना लिया है।
माओवादियों ने देश के अनेक जिलों में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। यहां माओवादियों की समानान्तर सरकार चल रही है। माओवाद के खतरे से तब तक प्रभावशाली तरीके से नहीं निपटा जा सकता जब तक केन्द्र व राज्य सम्मिलित रूप से अभियान संचालित नहीं करते। सभी नक्सल प्रभावित राज्यों को अपनी सीमाओं पर कड़ी चौकसी बरतकर नक्सलियों के सफाए के लिए दूरगामी रणनीति बनाने की जरूरत है। लेकिन सबसे पहले नक्सलियों के खात्मे के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों में दृढ़ इच्छा शक्ति की जरूरत है।
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