राज्यों से
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राज्यों से
केरल /प्रदीप कृष्णन
पूर्व कामरेड चन्द्रशेखरन
की हत्या
माकपाई कितने हिंसक और अमानवीय होते हैं इसका एक और उदाहरण गत 4 मई को केरल में देखने को मिला जब उसके गुंडों ने अपने ही एक पूर्व सहयोगी की बर्बरतापूर्वक हत्या कर दी। केरल में वैसे तो रा.स्व.संघ और उसके समविचारी संगठनों के कार्यकर्ता ही माकपाई हिंसा का शिकार होते रहते हैं। पर पूर्व में भी कई बार ऐसा हुआ है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पाटीं (माकपा) में वर्षों तक साथ रहने के बाद किसी मतभेद के कारण पार्टी छोड़ देने वाले को भी ये लोग बर्दास्त नहीं करते और उसे रास्ते से हटा देते हैं। गत 4 मई की रात कोझीकोड जिले के ओंचियम् गांव में जिस प्रकार से टी.पी. चन्द्रशेखरन की हत्या की गई उससे यह एक बार और साफ हो गया कि कम्युनिस्टों का जनाधार घट रहा है और इस बौखलाहट में वे हिंसा पर उतारू होकर लोगों में भय पैदा करना चाहते हैं, ताकि लोग डर कर पार्टी में ही बने रहें। ओंचियम् के चर्चित व सर्वप्रिय नेता टी.पी. चन्द्रशेखरन को उस समय निशाना बनाया गया जब वे रात करीब 10 बजे मोटर साइकिल से अपने घर लौट रहे थे। पुलिस सूत्रों के अनुसार लगभग 7 लोगों के एक गुट ने पहले उन पर बम फेंका, उनके गिरने के बाद धारदार हथियारों से उन पर हमला बोल दिया। हमला इतना बर्बरतापूर्ण था कि चन्द्रशेखरन का चेहरा तक पहचानने लायक नहीं रहा। 51 वर्षीय इस कम्युनिस्ट नेता के चेहरे पर कम्युनिस्ट गुंडों ने 51 गहरे घाव कर दिए।
चन्द्रशेखरन का अपराध बस इतना था कि उन्होंने सन् 2008 में माकपा का साथ छोड़ दिया था और 2009 के पंचायत चुनावों में उन्होंने रिवोल्यूशनरी मार्क्सिस्ट पार्टी (आर.एम.पी.) बनाकर न केवल अपनी ओंचियम् पंचायत में विजय हासिल की बल्कि आसपास के गांवों में भी उनकी पार्टी को समर्थन मिला। चन्द्रशेखरन् ने पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं द्वारा बिना विचार-विमर्श के इरामला पंचायत का प्रशासन जनता दल (सेकुलर) को सौंपने के विरोध में पार्टी छोड़ी थी। उनके पार्टी छोड़ने और नई पार्टी बनाने के बाद से इस क्षेत्र में हुए लगभग सभी छोटे-बड़े चुनावों में माकपा को हार का मुंह देखना पड़ा। लोकसभा चुनावों में भी पार्टी को अपने मजबूत गढ़ वाडाकारा संसदीय क्षेत्र में भी हार का स्वाद चखना पड़ा। इसके बाद माकपा ने चन्द्रशेखन को वापस पार्टी में लाने के भी प्रयास किए लेकिन बात नहीं बनी। तब अनेक कम्युनिस्ट नेताओं ने चन्द्रशेखरन के कृत्य को 'अपराध' बताना शुरू कर दिया था और 'सजा' देने की बात कही थी। हालांकि अब माकपाई नेता घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं और चन्द्रशेखरन के मामले में मासूम और अनभिज्ञ दिखने का नाटक कर रहे हैं। पर चन्द्रशेखरन के भाई सेतु माधवन ने बताया कि हम सब हमेशा उनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते थे, पर वे अपनी जान की परवाह न कर अपने कामरेड़ों की सुरक्षा की चिंता करते थे। इस सिलसिले में वे मुख्यमंत्री ओमेन चांडी से भी मिले थे।
पुलिस ने इस मामले में तेजी से खोजबीन करते हुए यह साफ कर दिया है कि चन्द्रशेखरन की हत्या के तार माकपा से ही जुड़े हैं। 7 सदस्यीय एक गिरोह को इस काम के बदले 35 लाख रु. दिए गए। हत्यारों द्वारा प्रयुक्त मोबाइल फोन के रिकार्ड खंगालने के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची है कि हत्यारों ने पूरी योजना से और स्थानीय लोगों के सहयोग से इस काम को अंजाम दिया और फिर वे कर्नाटक के रास्ते मुम्बई भाग गए। सूत्रों के अनुसार उन 7 हत्यारों में से 2 का माकपाई हिंसा का इतिहास रहा है। इस मामले में प्रयुक्त इनोवा कार को बरामद कर लिया गया है और पूछताछ के लिए 5 लोगों को भी हिरासत में लिया गया है। पुलिस इस मामले में कन्नूर जेल में पहले से ही विभिन्न वारदातों के सिलसिले में बंद माकपाई गुंडों पर नजर रखे हुए है। संदेह है कि चन्द्रशेखरन की हत्या की साजिश कन्नूर जेल में बंद माकपाइयों के ही एक गुट ने रची है।
इस सारी सचाई को जानने के कारण ही चन्द्रशेखरन के परिजनों और आर.एम.पी.के कार्यकर्ताओं ने घड़ियाली आंसू बहा रहे माकपाइयों को संवेदना व्यक्त करने के लिए ओंचियम् न आने देने की घोषणा कर दी, सिवाय वरिष्ठ माकपाई वी.एस. अच्युतानंदन के। और अच्युतानंदन 'माकपा के घोषित शत्रु' की मौत पर संवेदना जताने गए भी और चन्द्रशेखरन को एक 'बहादुर कामरेड' बताया। अच्युतानंदन की इस संवेदना को भी माकपाई 'पार्टी विरोधी कृत्य' ठहरा सकते हैं, क्योंकि पार्टी सचिव पिनरई विजयन के चलते पार्टी के पोलित ब्यूरो से चलता कर दिए गए पुर्व मुख्यमंत्री व वयोवृद्ध माकपाई नेता वी.एस. अच्युतानंदन भी कुछ माकपाइयों की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं। उधर चन्द्रशेखरन की हत्या के बाद ओंचियम् में जगह-जगह पर हिंसक प्रदर्शन हुए और मोझीपरा, कुन्नमकरा, ओरकाटेरी तथा अन्य स्थानों पर कुछ वाहनों व लगभग 25 माकपाइयों के घरों पर लोगों ने धावा बोला। चन्द्रशेखरन की हत्या के बाद दु:ख से व्याकुल उनकी धर्मपत्नी रेमा ने कहा कि, 'उन लोगों ने उन्हें मार दिया, पर कभी हरा नहीं पाए। उनके विचार मरेंगे भी नहीं। हमारा संघर्ष जारी रहेगा। ओंचियम् के लोग ही उनके संघर्ष को आगे तक ले जाएंगे।'
महाराष्ट्र /द.बा. आंबुलकर
लोग पानी से बेहाल,
नेता चलें राजनीति की चाल
महाराष्ट्र के वर्तमान हालात को सूखा, अकाल या पानी की कमी- किन शब्दों में रेखांकित करें, इसे लेकर बयानबाजी जारी है। राज्य के जल आपूर्ति मंत्री लक्ष्मण राव ढोबले के अनुसार महाराष्ट्र के सतारा, सांगली, सोलापुर, बीड़, उस्मानाबाद, लातूर, धुलिया, नगर तथा नसिक- इन 9 जिलों में पानी की भीषण कमी है। राज्य के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण की मानें तो यह सूखे की स्थिति है। जबकि उप मुख्यमंत्री अजित पवार के अनुसार राज्य में अकाल की स्थिति है। संबद्ध विभाग के मंत्री, उप मुख्यमंत्री तथा मुख्यमंत्री द्वारा मौजूदा हालात पर दिये जा रहे बयानों को सोनिया कांग्रेस-पवार कांग्रेस के बीच की आपसी खींचतान तथा राजनीतिक तौर पर एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, जबकि राज्य के एक तिहाई क्षेत्र का हाल बढ़ती गर्मी के साथ बद से बदतर होता जा रहा है।
इसकी शुरुआत मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने अपने प्रभाव क्षेत्र सतारा से की। जिले के कुछ गावों में जाकर मुख्यमंत्री ने स्थिति का जायजा लिया, सूखे पड़े तालाब तथा खेत-बागान देखे, गांवों के लोगों का हाल जाना और ग्रामीणों-मजदूरों के साथ बैठकर भोजन भी किया। मुख्यमंत्री द्वारा सूखे का जायजा लेते समय ग्रामीणों-मजदूरों द्वारा लाया गया भोजन उन्हीं के साथ करने की शासन-प्रशासन स्तर पर काफी चर्चा हुई। पर इसका नतीजा यह हुआ कि मुख्यमंत्री चव्हाण जब सतारा जिले के ही आरपाड़ी क्षेत्र का जायजा लेने पहुंचे तो उनको दिखाने और सूखे की स्थिति को छिपाने के लिए स्थानीय प्रशासन ने फिल्मी स्टाइल में एक 'सेट' जमा दिया। हुआ यूं कि मुख्यमंत्री की आरपाड़ी यात्रा के दौरान काम पर 'ग्रामीण मजदूर' के तौर पर काम करते हुए दिखाने के लिए जिले में कार्यरत प्रशिक्षणार्थी पुलिसकर्मियों को लगाया गया। इन पुलिसकर्मियों को मुख्यमंत्री के दौरे के दो दिन पहले से ग्रामीणों के भेष में तैनात किया गया। यहां तक कि ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत वृक्षारोपण का दिखावा करने के लिए पेड़ों की बड़ी डालियां काटकर मुख्यमंत्री के दौरे की पूर्व संध्या पर सड़क के दोनों ओर लगवाईं गयीं। जब मुख्यमंत्री चव्हाण ने सूखा क्षेत्र की यात्रा कर वहां मजदूरी करने वाले युवाओं से चर्चा की तो उन 'ग्रामीण युवा मजदूर' बने पुलिसवालों ने पूर्व-निर्धारित योजना के अनुसार अपने सारे संवाद बोल दिये। पर मुख्यमंत्री के साथ गये गृहमंत्री आर.आर. पाटिल तथा ग्रामीण विकास मंत्री जयंत पाटिल ने जब वहां मौजूद महिलाओं से चर्चा की तो उन्हें असलियत पता चली। मुख्यमंत्री द्वारा सूखाग्रस्त क्षेत्र की यात्रा के दौरान इस प्रकार की 'प्रशासनिक नौटंकी' करने के लिए इन दोनों मंत्रियों ने स्थानीय प्रशासन के साथ-साथ कांग्रेसी नेताओं को भी आड़े हाथों लिया।
मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण द्वारा सुखाग्रस्त क्षेत्र की इस प्रकार से यात्रा करने व सूखाग्रस्त लोगों से मिलने की इस पहल पर राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष तथा केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने तीखा कटाक्ष किया। राज्य सरकार द्वारा राहत के लिए केन्द्र से विशेष अनुदान न मांगने के लिये भी शरद पवार ने राज्य के कांग्रेसी नेताओं को ही दोषी करार किया।
अपने सहयोगी दल के अध्यक्ष शरद पवार की टिप्पणियों को नजरंदाज करते हुए मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने अपने राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी के साथ सतारा के सूखाग्रस्त क्षेत्र का दोबारा दौरा किया। इन कांग्रेसी नेताओं ने मात्र ढाई घंटे में सूखा-पीड़ित ग्रामीणों की समस्याएं जानकर समाधान ढूंढने की राजनीतिक औपचारिकता पूरी कर दी। राहुल गांधी जब सतारा के सूखा पीड़ित ग्रामीणों को संबोधित कर रहे थे तो कुछ ग्रामीणों ने उनके खिलाफ नारेबाजी कर सूखे से तुरंत राहत देने की मांग की। कुछ प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने धर-दबोचा, बावजूद इसके कुछ ग्रामीण प्रदर्शनकारियों ने 'इस क्षेत्र में सूखा हर साल पड़ता है और नेताओं की यात्राएं भी हर साल होने के बावजूद गर्मी के दिनों में हमें पीने का पानी तक नसीब नहीं होता। यह कुदरती तथा प्रशासनिक ज्यादती कब तक जारी रहेगी, हमें हमारी जिंदगी में पेयजल कब नसीब होगा?' इस प्रकार के बैनर लहराए। इससे हैरान-परेशान मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने चुप्पी साधना ही उचित समझा, जबकि राहुल गांधी ने केवल इतना कहते हुए अपना भाषण समाप्त कर दिया कि 'राज्य में हमारी सरकार है तथा मुख्यमंत्री सूखे को समाप्त करने का प्रयास करेंगे।'
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