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जनमानस की भावनाओं के प्रगटीकरण के लिए नायकों की जरूरत

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May 5, 2012, 12:00 am IST
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जनमानस की भावनाओं केप्रगटीकरण के लिए नायकों की जरूरत

दिंनाक: 05 May 2012 11:45:05

'शिवाजी और सुराज' लोकार्पित

–मोहनराव भागवत, सरसंघचालक, रा.स्व.संघ

 

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री मोहनराव भागवत

शिवाजी की विलक्षणता थी कि वो राजा थे, किन्तु विरक्त भाव के। कभी भी सुख-सम्पदा के प्रति आकर्षित नहीं हुए। वे स्वयं वेश बदलकर अपने राज्य में घूमते थे, समाज का दुख-दर्द उन्होंने अपनी आंखों से देखा था।

पुस्तक लोकार्पित करते हुए श्री मोहनराव भागवत। साथ में हैं (बाएं से) श्री प्रभात कुमार, श्री सुरेश प्रभु एवं श्री अनिल माधव दवे

'हमारी परम्परा में व्यक्ति नहीं, बल्कि तत्व का महत्व है। इसलिए किसी व्यक्ति का अनुसरण न कर तत्व को अपना आदर्श मानना चाहिए। डा. हेडगेवार ने एक मार्ग बनाया, लेकिन आज वो हमारे बीच नहीं हैं। इसी प्रकार लोकमान्य तिलक ने प्रयत्न किया, तो क्या इन महापुरुषों के बाद वह तत्व नष्ट हो गया? नहीं, वह आज भी जीवंत है। या तो हम निर्गुण निराकार ब्रह्म की उपासना करें, पर यह उनके लिए संभव है जो आध्यात्मिक जीवन जीते हैं। किन्तु जनमानस की भावना का प्रगटीकरण हो इसके लिए हमें मूर्ति, सगुण, साकार नायक की जरूरत पड़ती है और ऐसे में हमारे सामने दो ही आदर्श हैं, हनुमान जी और शिवाजी'। उक्त उद्गार रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने गत 29 मई को नई दिल्ली में 'शिवाजी और सुराज' पुस्तक का लोकार्पण करते हुए व्यक्त किए। पुस्तक के लेखक मध्य प्रदेश से राज्यसभा सांसद श्री अनिल माधव दवे हैं तथा प्रकाशन नई दिल्ली के प्रभात प्रकाशन ने किया है। 

श्री भागवत ने आगे कहा कि जब एक राष्ट्र में ऐसी परिस्थिति निर्मित हो जाए कि वहां की प्रजा महान विचारों का अनादर करने लगे, तत्व-चिंतन को निम्न माना जाए। तो ऐसे में उस समाज की सोच और व्यवस्था में परिवर्तन हो, यह सुनिश्चित करना चाहिए। और सिर्फ इतना ही नहीं, समाज की सोच और व्यवस्था परिवर्तित हो तथा यह सकारात्मक व्यवस्था दीर्घकाल तक बनी रहे, ऐसा प्रयत्न करना चाहिए।

श्री भागवत ने कहा कि 400 साल पहले जिस प्रकार की परिस्थितियां थीं, आज भी वही परिस्थितियां हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि अब हम स्वाधीन हैं। पहले महलों के बगल में झोपड़ी नहीं थीं। अमीर और गरीब एक साथ रहते थे। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक विद्यालय में बच्चों को गरीबी पर निबंध लिखने के लिए कहा गया। एक बच्ची, जो बड़े घर की थी उसने कभी गरीबी का अनुभव नहीं किया था। उसने लिखा कि गरीबी हर जगह है, क्योंकि मेरे घर में जो काम करने वाली बाई आती है वह गरीब है, उसके बच्चे गरीब हैं। इसलिए हम सब गरीब हैं। उन्होंने कहा कि आज हमारे बीच सामाजिक खाई इतनी गहरी है कि बड़े घर के बच्चों को पता ही नहीं है कि गरीबी क्या है, क्योंकि उन्होंने कभी गरीबी देखी ही नहीं, उसका अनुभव ही नहीं किया।

श्री भागवत ने कहा कि शिवाजी की विलक्षणता थी कि वो राजा थे, किन्तु विरक्त भाव के। कभी भी सुख-सम्पदा के प्रति आकर्षित नहीं हुए। वे स्वयं वेश बदलकर अपने राज्य में घूमते थे, समाज का दुख-दर्द उन्होंने अपनी आंखों से देखा था। उसका अनुभव किया था, गरीब बच्चों के साथ खेलते थे। धर्म के प्रति उनकी विशेष रुचि थी। उनका राज्य भले ही छोटा था, लेकिन दृष्टि बड़ी थी।

श्री भागवत ने कहा कि शिवाजी के बाद संभा जी की भी मृत्यु हो गई, किन्तु मुगलों के विरुद्ध 30 वर्ष तक संघर्ष चला क्योंकि लोग जागृत हुए। उन्होंने शिवाजी से प्रेरणा ली।

पुस्तक के बारे में बताते हुए लेखक श्री अनिल माधव दवे ने कहा कि पुस्तक में कहीं भी शिवाजी के युद्धों का वर्णन नहीं किया गया है, अपितु पुस्तक में एक राजा के रूप में शिवाजी द्वारा स्थापित किए गए मूल्यों का सटीक विवेचन किया गया है। प्रत्येक व्यक्ति जो राज्य व्यवस्था में हिस्सेदारी चाहता है, उसको शिवाजी से कुछ न कुछ सीखना चाहिए। क्योंकि व्यवस्था शिवाजी से शुरू होती है और अव्यवस्था औरंगजेब से। शिवाजी राजा हैं, उन्होंने कई किले जीते, किन्तु उनका कोई भी रिश्तेदार किलेदार अथवा सामंत नहीं था, जबकि औरंगजेब ने अपने सारे रिश्तेदारों को उच्च पदों पर बिठा रखा था। दुर्भाग्य से आज हमारे देश में वही औरंगजेब वाली व्यवस्था चल रही है।

कार्यक्रम में मंचासीन श्री सुरेश प्रभु ने कहा कि शिवाजी असाधारण रणनीतिकार थे। कम संसाधनों में युद्ध कैसे जीता जाता है, शिवाजी इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। इसलिए विश्वभर की सेनाएं उनके युद्ध की रणनीति का अध्ययन करती हैं। इस अवसर पर रा.स्व.संघ के सह सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी, भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी, डा. मुरली मनोहर जोशी, श्रीमती सुषमा स्वराज सहित संघ और भाजपा के अनेक पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता उपस्थित थे। प्रतिनिधि

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