कौन समझेगा गुम हुए बच्चों के मां-बाप का दर्द?
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कौन समझेगा गुम हुए बच्चों के मां–बाप का दर्द?
अरुण कुमार सिंह
यह पापी पेट ऐसा है कि वह एक महिला को बेटी के गुम होने के दर्द के बावजूद मजदूरी करने को मजबूर कर रहा है। उस महिला का नाम है बिमला। बिमला नई दिल्ली में आनन्द पर्वत के समीप हरिजन बस्ती, गली नं. 1 के मकान नं. 2/36 में किराए की एक कोठरी में रहती है। उसके साथ पति चन्द्रभान और तीन बच्चे भी हैं। इन्हीं तीन बच्चों में से एक बच्ची 4 वर्षीया शालू 9 अप्रैल से गायब है। पति-पत्नी तब से इस समाचार के लिखने तक शालू को ढूंढ रहे हैं। चन्द्रभान और बिमला दोनों मजदूरी करके घर चलाते हैं। एक दिन भी दोनों मजदूरी न करें तो घर का चूल्हा नहीं जलेगा। इसलिए चन्द्रभान बेटी को खोजते-खोजते मजदूरी की तलाश भी करता है, और जहां काम मिल जाता है, वहीं काम करना शुरू कर देता है। फिर शाम को वह काफी देर तक शालू को खोजता रहता है। बिमला एक फैक्ट्री में मजदूरी करती है। सुबह से दो-ढाई बजे तक वह शालू को ढूंढती है, और सायं 3 बजे से मजदूरी करने लगती है। बिमला और चन्द्रभान ऐसी गरीबी में जी रहे हैं कि उनकी बच्ची खो जाने के बावजूद वे मजदूरी करने को विवश हैं। वे दोनों पूरा समय बच्ची की खोज भी नहीं कर पा रहे हैं।
शालू एकमात्र ऐसी बच्ची नहीं है, जो खो गई हो अथवा कोई उसे उठाकर ले गया हो। दिल्ली में प्राय: प्रतिदिन किसी बच्चे के अपहरण, हत्या या नहीं तो गायब होने के मामले सामने आते हैं। डेढ़ करोड़ से अधिक की आबादी वाले दिल्ली महानगर में गायब होने वाले अधिकांश बच्चे गरीब परिवारों के होते हैं। इसलिए इन बच्चों को पुलिस गंभीरता से ढूंढती भी नहीं है।
हाल के वर्षों में दिल्ली में बच्चों के गायब होने की घटनाएं खूब बढ़ी हैं। दिल्ली पुलिस की वेबसाइट देखने पर यह मालूम होता है कि प्रतिदिन किसी बच्चे के गायब होने की प्रथम सूचना रपट (एफ.आई.आर.) विभिन्न पुलिस थानों में दर्ज होती हैं। इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की गुमशुदगी के पीछे किसी माफिया के हाथ होने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
कहां गई शालू?
10 अप्रैल को उत्तरी जिले के सराय रोहिल्ला थाने को सूचित किया गया कि शालू अपने घर से ही गायब हो गई है। उसकी एफ.आई.आर. की संख्या है- 124/1। इसी एफ.आई.आर. में एक मोबाइल नम्बर भी है- 8860794697। इस नम्बर पर एक दिन करीब 2 बजे फोन किया तो उधर से एक महिला की आवाज आई। उसने अपना नाम बिमला बताया। अभी मैंने शालू ही बोला था कि उसने पूछ लिया आपको कहीं शालू मिली है क्या? मैंने कहा नहीं। फिर उसने अपने को शालू की मां बताते हुए कहा, 'क्या कहें भैया, आज 18वां दिन है। उस दिन तीनों बच्चों को खाना खिलाकर कमरे में सुला चुकी थी। छत पर कपड़े सुखाने गई कि इसी बीच हाथी छाप वाले चुनाव प्रचार के लिए गली में आ गए। आवाज सुनकर शालू बाहर हो गई। कुछ ही देर बाद मैं छत से आई तो वह नहीं दिखी। भागती हुई नीचे गई। गली में काफी भीड़ थी। मैं शालू को तलाशती हुई बहुत दूर निकल गई। किन्तु वह नहीं मिली। कहां चली गई मेरी शालू, उसे कौन ले गया?'
दूसरे दिन हम उसके घर गए। पहली मंजिल में उसका कमरा है। सुबह के करीब 9 बज रहे थे। बाहर अच्छी-धूप थी। फिर भी उस मकान की सीढ़ियों पर अंधेरा पसरा था। हाथ को हाथ नहीं दिख रहा था। किसी तरह पहली मंजिल के उस कमरे में पहुंचे। उसके एक पड़ोसी ने उस कमरे की ओर इशारा करते हुए कहा इसी में वे लोग रहते हैं। कमरा खुला हुआ था। एक किनारे स्टोव और कुछ बर्तन पड़े हुए थे। एकाध कम्बल और कुछ अन्य कपड़े थे। उसी पड़ोसी ने बताया कि वे दोनों तो भोर होते ही बच्चों को कुछ खिलाकर शालू को खोजने निकल जाते हैं। अभी पड़ोसी यह बता ही रहा था कि बिमला आ गई। उसके आंसू रुक नहीं रहे थे। फफकते हुए उसने कहा, 'हमारे बच्चों पर किसी की बुरी नजर लग गई है। यदि हो सके तो मेरी बेटी को ढूंढ दो। घर वाले मुझे क्या कहेंगे? बेटी को खोने के लिए ही दिल्ली गई थी? मैं अपने मां-बाप और सास-ससुर को कौन-सा मुंह दिखाऊंगी?'
बिमला मूलत: बस्ती (उ.प्र.) जिले की रहने वाली है। दो महीने पहले ही वह अपने बच्चों के साथ दिल्ली आई है। सिर्फ पति की मजदूरी से घर का खर्च चल नहीं पाता था। इसलिए वह भी दिल्ली आ गई और एक फैक्ट्री में मजदूरी कर रही है। उसे दिल्ली के बारे में कुछ भी नहीं पता है। फिर भी वह अपनी लाडली को ढूंढ रही है। ईश्वर करे बिमला को उसकी बेटी मिल जाए।
घर आओ आशीष
दिल्ली पुलिस की वेबसाइट में एक खण्ड है- 'मिसिंग चाइल्ड' का। वहीं 13 वर्षीय आशीष कुमार के भी लापता होने की खबर मिली। पंजाबी बाग थाने में दर्ज एफआईआर (134/1, 13 अप्रैल, 2012) के अनुसार आशीष 11 अप्रैल से ही अपने घर (डब्ल्यू-423 मांदीपुर गांव) के पास से गायब है। चार भाई-बहनों में आशीष सबसे बड़ा है। उसके पिता सूबेदार ने पाञ्चजन्य को बताया कि अभी कुछ दिन पहले ही आशीष को गांव से दिल्ली पढ़ने के लिए लाया था। 11 अप्रैल को दिन के दो-ढाई बजे वह घर के बाहर खेल रहा था, वहीं से वह गायब हो गया। सूबेदार उ.प्र. में आजमगढ़ जिले के एक गांव के रहने वाले हैं। करीब 10 साल से वह दिल्ली में बिजली मिस्त्री का काम करते हैं और मादीपुर गांव में किराए पर रहते हैं। गांव में बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं था, इसलिए उन्होंने बच्चों को दिल्ली बुला लिया था। अभी वे स्कूल में बच्चों का दाखिला कराने के लिए पूछताछ कर रहे थे कि आशीष लापता हो गया। अब वे भी सब काम छोड़कर पुत्र आशीष को ढूंढने में लगे हैं। दिनभर जगह-जगह 'पोस्टर' चिपकाते फिर रहे हैं। इसी दौरान वे एक दिन पाञ्चजन्य कार्यालय भी आए। कुछ पूछने से पहले ही आंसू पोंछने लगे। फिर कहा, 'एक भले व्यक्ति ने स्कूटर दिया है। तेल भी वही भरवाते हैं। उसी स्कूटर से पूरी दिल्ली में आशीष को तलाश रहे हैं। किन्तु काम छोड़कर कब तक खोजेंगे? एक हफ्ता से एक पैसा नहीं कमाया है। अब यदि काम नहीं करेंगे तो अन्य बच्चे भूखे रहेंगे।' (यह रपट छपते-छपते पता चला कि आशीष नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास मिल चुका है।)
देश में बिमला- चन्द्रभान और सूबेदार जैसे लोगों की संख्या हजारों में है। ये लोग अपने बच्चों के गुम होने के गम को सीने में छुपाकर जीवन रूपी गाड़ी घसीट रहे हैं। चूंकि ये लोग देश के सामान्य नागरिक हैं, इसलिए इनके दर्द को दूर करने के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं होता है। पुलिस आंकड़ों पर आधारित एक रपट के अनुसार इस वर्ष जनवरी से मार्च तक दिल्ली में तीन महीनों में ही 722 बच्चे गायब हुए। यानी एक दिन में 8 बच्चे गायब हो रहे हैं। दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय कुमार मल्होत्रा ने बच्चों के लापता होने के सन्दर्भ में गृह मंत्रालय एवं पुलिस की एक समिति बनाने की मांग की है। श्री मल्होत्रा ने यह भी कहा है कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि दिल्ली में अन्तरराष्ट्रीय बच्चा अपहरण गिरोह सक्रिय हो और उसके संबंध मानव अंग तस्करी से हों।
हर घंटे 11 बच्चे गायब
एक अन्य रपट के अनुसार भारत में हर घंटे 11 बच्चे और प्रति वर्ष करीब 1 लाख बच्चे गायब हो रहे हैं। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई एक जानकारी के अनुसार जनवरी 2008 से जनवरी 2010 के बीच सबसे अधिक बच्चे महाराष्ट्र से गायब हुए। इस अवधि में महाराष्ट्र से गायब होने वाले बच्चों की संख्या 26,211 थी। वहीं प. बंगाल से 25,413, दिल्ली से 13,570, म.प्र. से 12,777, उ.प्र. से 9,482, छत्तीसगढ़ से 5,594, आं.प्र. से 3,555, बिहार से 3,345 और असम से 2,686 बच्चे लापता हुए।
इनसे साफ पता चलता है कि भारत में बच्चों का बाजार तेजी से फल-फूल रहा है। लोगों का कहना है कि देश में अनेक ऐसे गिरोह हैं, जो बच्चों को बहला-फुसलाकर अपने साथ ले जाते हैं। ये गिरोह उन बच्चों को ऐसे लोगों के हाथों बेचते हैं, जो बच्चों से भीख मंगवाते हैं, चोरी करवाते हैं, इनके अंगों का व्यापार करते हैं, किसी नि:संतान को बच्चा गोद दिलाकर लाखों रु. कमाते हैं। ये लोग इन बच्चों को बलि देने और अश्लील बाल चित्रण में भी इस्तेमाल करते हैं। बच्चियों को ये लोग वेश्यावृत्ति की ओर धकेलते हैं, 'मसाज पार्लर' में काम करवाते हैं।
पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर हुई है। उसमें कहा गया है कि 2008 से 2011 के बीच 1,17000 बच्चे रहस्यमय ढंग से गायब हो गए हैं, याचिका में आशंका व्यक्त की गई है कि इनमें से अधिकांश बच्चे देह व्यापार में धकेल दिए गए हैं। याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों और केन्द्र शासित प्रदेशों की सरकारों को नोटिस जारी कर इस संबंध में उनसे जवाब मांगा है। उम्मीद है कि सर्वोच्च न्यायालय की इस सक्रियता से सरकारें जागेंगी और लापता बच्चों के मामलों को गंभीरता से लेंगी।
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