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Apr 28, 2012, 12:00 am IST
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मुख्यमंत्री बहुगुणा की ताकत तो सरकार चलाने में नहीं, उसे बचाने में लगी है

दिंनाक: 28 Apr 2012 15:29:45

मुख्यमंत्री बहुगुणा की ताकत तो सरकार चलाने में नहीं, उसे बचाने में लगी है

–मेजर जनरल (से.नि.) भुवन चंद्र खण्डूरी, पूर्व मुख्यमंत्री , उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड में जोड़तोड़ से कांग्रेस की सरकार बनने के बाद भी पार्टी व सरकार में द्वंद्व व असमंजस की स्थिति बरकरार है। इससे यह स्पष्ट संकेत जाता है कि यह सरकार राज्य के विकास में कितनी स्थायी भूमिका निभा पाएगी? भाजपा सत्ता से बाहर भले ही रही, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) भुवन चंद्र खण्डूरी के नेतृत्व में उसने चुनावों में आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की, दुर्भाग्यवश श्री खण्डूरी की हार से बाजी पलट गई और कांग्रेस सत्ता में आ गई। मुख्यमंत्री के रूप में श्री खण्डूरी निष्काम जनसेवा, राज्य गठन की मूल अवधारणा को यथार्थ के धरातल पर उतारने की ईमानदार कोशिश करने वाले तथा भ्रष्टाचार उन्मूलन के पर्याय बनकर उभरे। यह उनकी आम जन में स्वीकार्यता का ही परिणाम है कि विधानसभा चुनाव से पूर्व जो भाजपा मृतप्राय थी, खण्डूरी उसके लिए संजीवनी सिद्ध हुये। 'खण्डूरी हैं जरूरी' नारे को सार्थक सिद्ध करते हुए उनके नेतृत्व में भाजपा को 31 सीटें मिलीं। सत्ता में न होकर भी प्रदेश की जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को लेकर भाजपा पूरी तरह सजग है। इस संबंध में पाञ्चजन्य ने श्री खण्डूरी से विस्तृत चर्चा की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:

कांग्रेस सरकार के भविष्य को किस रूप में देखते हैं?

ही में अखबार में हरीश रावत का वक्तव्य पढ़ा 'मुख्यमंत्री कोई हो डंडा मेरा ही चलेगा'। यह सरकार के भविष्य को बताने के लिए काफी है। यह कांग्रेस का ही नहीं, प्रदेश का भी दुर्भाग्य है कि मुख्यमंत्री ऐसे दबाब में कितना काम कर पायेंगे? उनकी सारी शक्ति सरकार चलाने में नहीं, बचाने में लग रही है। मुख्यमंत्री का कहना है कि लोकायुक्त, ट्रासंफर नीति आदि में परिवर्तन किया जायेगा तथा यह संविधान के अनुसार नहीं है। इस संदर्भ में हमने नवम्बर माह में भी केन्द्र से पत्र व्यवहार किया। मुख्यमंत्री बतायें कि इसमें संविधान सम्मत क्या नहीं है? यदि ऐसा है तो केन्द्र हमें बताये? सत्ता परिवर्तन होने पर पिछली सरकार के पारदर्शी तथा जनहित से जुड़े नीतिगत फैसलों को बदलना लोकतंत्र तथा जनभावनाओं का अपमान है। यदि कांग्रेस सरकार ऐसा करेगी तो भाजपा उसे बेनकाब करेगी।

मुख्यमंत्री कहते हैं कि भाजपा सरकार ने प्रदेश को भारी कर्ज में डुबो दिया है।

n ªÉlÉɪÉÇ और हवाई बयानबाजी में अन्तर होता है। मुख्यमंत्री को निराधार तथा अनर्गल बातें न कहकर तथ्यों तथा आंकड़ों पर आधारित बात कहनी चाहिए।

l CªÉÉ आप पार्टी हाईकमान के आदेश पर मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे।

n ªÉ½þ बेहद गम्भीर विषय है। राष्ट्रीय नेतृत्व ही परिस्थितियां, प्रदेश भाजपा से बातचीत तथा पार्टी तथा प्रदेश का हित-अहित ध्यान में रखकर फैसला लेगा। अभी इस विषय में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।

l CªÉÉ आपको नहीं लगता कि राज्य गठन का उद्देश्य इस राज्य की बागडोर संभालने वालों की महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ गया है?

n +É{É सही कह रहे हैं, आम जनता के साथ मिलकर भाजपा ने पृथक राज्य के लिए संघर्ष किया। 9 नवम्बर 2000 में उत्तराखण्ड राज्य बना। इसका श्रेय भाजपा को ही जाता है। क्योंकि तत्कालीन भाजपानीत सरकार जिसके मुखिया प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी थे, के कार्यकाल में ही इसकी घोषणा हुई। उन्होंने ही इसे विशेष राज्य तथा 2013 तक औद्योगिक पैकेज दिया किन्तु आश्चर्य की बात है कि जो कांग्रेस पृथक राज्य की घोर विरोधी रही तथा मुलायम सिंह के साथ मिलकर जिन्होंने जनता पर अत्याचार किये, जनता ने 2002 के प्रथम चुनाव में उसे ही सत्ता सौंप दी। हमें मात्र छ: माह में विशेष राज्य का दर्जा दिया गया, जिसे हासिल करने में सालों लग जाते हैं। किन्तु हम उत्तर प्रदेश की 'कार्बनकॉपी' बनकर रह गये। तिवारी सरकार में अन्तर्कलह जारी रही। उत्तराखण्ड का जन्म ठीक समय पर नहीं हुआ। ऐसा लगता है कुछ हमारी भी गलतियां रहीं। मुझे लगता है कि उत्तराखण्ड के लिए हमेशा समर्पित रही भाजपा को अगर प्रथम विधान सभा चुनाव में सत्ता सौंपी जाती तो आज राज्य की ऐसी दशा नहीं होती।

l ±ÉäÊEòxÉ इस बार फिर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा, इस बारे में आपकी क्या राय है?

n ¨Éä®úÉ मानना है कि संगठन में मूलभूत परिवर्तन की जरूरत है। पार्टी के जन्म के समय जो विचारधारा थी उसे कार्यशैली में शामिल करना होगा। वस्तुत: लोग सभी पार्टियों को एक जैसा मानने लगे हैं। हमें अपनी आदर्श छवि तथा सिध्दान्तों को पुन: स्थापित करना होगा। उत्तराखण्ड से उसकी बेहतर शुरुआत होनी चाहिए। इसके लिए पार्टी जो भी दायित्व मुझे देगी मैं उसका पूरी प्रामाणिकता से निर्वहन करूंगा।

l +É{ÉEòÒ हार भी पार्टी को बहुत भारी पड़ी और एक सीट से भाजपा सत्ता में पिछड़ गई।

n मेरी हार को लेकर अनेक बातें सामने आ रही हैं जैसे कहा जा रहा है कि कोटद्वार मेरे लिए चुनाव लड़ने का उचित स्थान नहीं था, किन्तु मैं इससे सहमत नहीं हो पा रहा हूं। क्योंकि 1991 में जब से मैं राजनीतिक क्षेत्र में आया, तब से 2007 तक सांसद के रूप में मैंने, वहां का प्रतिनिधित्व किया तथा मुझे वहां से अच्छे मत मिले, मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वहां काफी विकास कार्य किये। वहां के लोगों से भी लगातार सम्वाद बनाये रखा। उसके आधार पर मुझे अपनी हार की किंचित भी शंका नहीं थी। किन्तु जो कुछ हुआ उसकी सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं कर सकते। हमारे लोगों में ही कुछ कमजोरी रही है, जहां तक मेरा अपना विचार है वही इसका मुख्य कारण रहा है, पार्टी के उचित फोरम पर इसकी जानकारी दे दी गयी है।

l +É{ÉEòÒ हार क्या यह सिद्ध नहीं करती कि ईमानदारी पर भ्रष्टाचार हावी है?

n VÉÉä आप कह रहे हैं उसमें किसी हद तक सच्चाई है। दुर्भाग्य से जीवन के सभी क्षेत्रों में नैतिकता का पतन हो रहा है। राजनीति भी इससे अछूती नहीं है। यहां भी धनबल, बाहुबल तथा जनता को भ्रमित करने वालों का प्रभाव बढ़ रहा है। चुनाव में जातिवाद, दुष्प्रचार, शराब जैसे अनैतिक हथकंडों को अपनाकर जीतने वालों की संख्या बढ़ रही है। राजनीतिक शुचिता के पक्षधर तथा उसे जनसेवा का माध्यम समझने वाले लोग भी चुनाव हार जाते हैं, इसलिए अच्छे लोग राजनीति में आने से कतराने लगे हैं। यह लोकतन्त्र तथा देश हित में अपने मत का प्रयोग करने वालों को समझना चाहिए।

l ¦ÉÉVÉ{ÉÉ हाईकमान अभी तक नेता प्रतिपक्ष का चयन नहीं कर पाया। क्या आपको नहीं लगता कि इसके पीछे भी पार्टी में सत्ता संघर्ष है?

n +SUôÉ होता कि इसका हल भी शुरू में हो जाता, किन्तु पार्टी हाईकमान के सामने भी कुछ समस्यायें होंगी। विपक्ष की भूमिका सत्ता पक्ष से कहीं ज्यादा जिम्मेदारी की होती है, सदन में तथा सदन के बाहर विपक्ष का जनहित में संघर्ष करना एक चुनौती है। इसको ध्यान में रखकर पार्टी हाईकमान की अपनी एक रणनीति होगी। इन्हीं बिन्दुओं को ध्यान में रखकर पार्टी हाईकमान किसी सक्षम व्यक्ति को ही यह जिम्मेदारी देगा।

l ¦ÉÉVÉ{ÉÉ की भविष्य की क्या योजना है?

n =kÉ®úÉJÉhb÷ को एक आदर्श, सम्पन्न, आत्मनिर्भर तथा संस्कारित प्रदेश बना सकें यही हमारी पार्टी का उद्देश्य है। 2007 में जब मुझे नेतृत्व का अवसर मिला तो भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता को लागू किया, जिससे योग्यता का निष्पक्ष आकलन हो सके। पुन: अवसर मिलने पर 3 माह में लोकायुक्त, स्थानान्तरण नीति, 'सिटीजन चार्टर' जैसे कानून बनाये ताकि अधिकारियों की जिम्मेदारी तय हो तथा आम आदमी को न्याय मिल सके। भाजपा जनहित और राष्ट्रहित के लिए प्रतिबद्ध है, राज्य में इसी एजेंडे पर वह काम करेगी। n

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