स्वास्थ्य
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डा. हर्ष वर्धन
एम.बी.बी.एस.,एम.एस. (ई.एन.टी.)
“रियुमेटाइड आर्थराइटिस”
के बारे में जानें
गत लेख में हमने आर्थराइटिस के प्रमुख प्रकार “आस्टियोआर्थराइटिस” के बारे में चर्चा की थी। प्रस्तुत लेख में हम “आर्थराइटिस” के ही प्रकार “रियुमेटाइड” पर चर्चा करेंगे। “रियुमेटाइड आर्थराइटिस” जोड़ों के सूजन की एक ऐसी बीमारी है जिसके कारण जोड़ों में दर्द, सूजन, अकड़न, गतिशीलता की क्षति तथा विकृति आ जाती है। यह एक “क्रोनिक” बीमारी है तथा इसका पूर्ण इलाज संभव नहीं है। कुछ लोगों में इस बीमारी की क्रियाशीलता कुछ अंतरालों में होती है । कुछ लोगों में इस बीमारी की क्रियाशीलता लगातार बनी रहती है तथा एक समय के उपरांत अत्यंत गंभीर हो जाती है जबकि कुछ लोग बीच-बीच में इस बीमारी का अनुभव करते हैं तथा रोग की क्रियाशीलता अथवा इसके अन्य कोई लक्षण उनमें परिलक्षित नहीं होते हैं।
यह एक सर्वांगी (सिस्टेमिक) बीमारी है तथा इसके दायरे में जोड़ों के अलावा अन्य अंग भी आते हैं। उहादरण के तौर पर आंतरिक अंगों के (फेफड़ा, यकृत, गुर्दा, अस्थि मज्जा, हृदय तथा आंखें) आसपास के क्षेत्र की झिल्ली (मेम्ब्रेन)। “रियुमेटाइड आर्थराइटिस” प्रमुख तौर पर आनुवांशिक बीमारी है तथा पुरुषों की तुलना में महिलाओं को तीन गुना अधिक इस बीमारी के होने की संभावना होती है लेकिन अधिक उम्र में महिलाओं और पुरुषों का अनुपात लगभग बराबर हो जाता है।
“रियुमेटाइड आर्थराइटिस” बीमारी का कारण
“रियुमेटाइड आर्थराइटिस” बीमारी की मुख्य वजह क्या है, इसकी जानकारी अभी तक उपलब्ध नहीं है लेकिन अधिकांश चिकित्सा वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि आनुवांशिक तथा पर्यावरणीय कारक इसके लिए उत्तरदायी हैं। शोधकर्ताओं ने आनुवांशिक चिन्हकों को खोजा है जो “रियुमेटाइड आर्थराइटिस” को विकसित करने की 10 गुना से अधिक संभावना पैदा करते हैं। यह जीन्स प्रतिरोधक तंत्र, दीर्घकालिक सूजन (इन्फ्लेमेशन) तथा “रियुमेटाइड आर्थराइटिस” के विकास अथवा वृद्धि से जुड़े होते हैं लेकिन अब तक इन जीन्स से युक्त सभी व्यक्तियों को न तो “रियुमेटाइड आर्थराइटिस” हुआ है और न ही इस बीमारी से पीड़ित सभी व्यक्तियों में यह जीन्स उपलब्ध हैं। इस बीमारी को पैदा करने वाले विभिन्न कारकों में एक कारक यह भी है कि जो लोग लम्बे समय से अत्यधिक धूम्रपान करते हैं, उनको भी इस रोग के होने की संभावना होती है।
“रियुमेटाइड आर्थराइटिस” में क्या होता है?
यह एक स्व-प्रतिरक्षित विकार (ऑटोइम्यून डिसार्डर) है। साधारणत: एक स्वस्थ प्रतिरक्षा तंत्र शरीर को बैक्टीरिया, वायरस आदि के बाहरी संक्रमण से बचाता है परन्तु “रियुमेटाइड आर्थराइटिस” में शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र अज्ञात कारणों से शरीर के स्वस्थ उतकों (टिश्यूज) पर आक्रमण करना आरम्भ कर देता है। इसकी प्रतिक्रिया का परिणाम यह होता है कि जोड़ों में सूजन होने लगती है, जिससे जोड़ों के रिक्त स्थान में कमी होने लगती है तथा सामान्य आकार और लाइनबद्धता (एलाइनमेंट) भी खत्म होने लगती है।
“रियुमेटाइड आर्थराइटिस” के बारे में प्रमुख जानकारी
थ् यह किसी भी अवधि में (सप्ताह अथवा माह के अंदर) उभर सकती है। यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है।
थ्यदि डेढ़ माह से अधिक समय से एक से अधिक जोड़ों में परेशानी है तो इस बीमारी के होने का शक पुख्ता हो जाता है।
थ् शरीर के दोनों साइड के कम से कम छह जोड़ों में परेशानी छह सप्ताह से अधिक रहती है तो इस बीमारी के होने की पूरी आशंका होती है।
थ् अगर कम उम्र में यह बीमारी शुरू होती है तो इसके तेजी से बढ़ने की संभावना होती है।
थ् रक्त जांच में “रियुमोटाएड फैक्टर पॉजीटिव” पाया जाता है तो भी बीमारी के तेजी से बढ़ने की संभावना होती है।
थ् यह बीमारी 25 वर्ष की उम्र में तथा सामान्य तौर पर 50 वर्ष से पूर्व शुरू हो सकती है लेकिन कभी-कभी यह बच्चों में भी देखने को मिलती है।
थ् यही शरीर के सभी जोड़ों को अपनी गिरफ्त में ले सकती है जैसे शरीर के दोनों भागों के जोड़।
थ् सुबह के समय अकड़न एक घंटे से अधिक तक रहती है।
थ् सामान्य तौर पर हाथ, पैर, कलाई, कोहनी (एल्बो), कंधा अथवा टखना (एंकल) के छोटे जोड़ों को प्रभावित करती है।
थ् इस बीमारी के कारण सूजन हो जाती है जिसका परिणाम होता है कि जोड़ जहां गरम एवं नाजुक होते हैं, वहां दर्द और सूजन होने लगती है।
थ् जोड़ों के अलावा अन्य अंगों फेफड़ा, हृदय, यकृत, गुर्दा, अस्थि मज्जा और आंख पर भी इसका प्रभाव पड़ने लगता है।
थ् इस बीमारी के कारण थकान, वजन में कमी तथा बुखार (कभी-कभी) के रहने की संभावना हो जाती है।
थ् इसमें अंगुलियों में विकृति भी होने लगती है।
थ् अक्सर चिकनगुनिया तथा कभी-कभी डेंगू होने के बाद छह माह तक भी जोड़ों में दर्द की शिकायत बनी रहती है, अत: इस परिस्थिति में पूरी जांच के उपरांत ही पता लगाया जा सकता है कि “रियुमेटाइड आर्थराइटिस” है अथवा दर्द का कारण चिकुनगुनिया या डेंगू का प्रभाव।
जोड़ों के अलावा अन्य अंगों पर पड़ने वाला प्रभाव :
इस बीमारी में जोड़ों के अतिरिक्त शरीर के विविध अंगों पर भी प्रभाव पड़ने लगता है। कुछ मरीजों में इसके खतरे की संभावना ज्यादा होती है जो निम्न प्रकार है-
थ्”पेरीफेरल न्यूरोपैथी” : यह स्नायु को प्रभावित करती है तथा बहुधा हाथ और पांव में देखने को मिलती है। इससे झनझनाहट (टिंगलिंग), सुन्नता अथवा जलन होने की संभावना हो सकती है।
थ् मांसपेशी समस्या : अनेक मरीजों को मांसपेशियों में कमजोरी की शिकायत होने लगती है।
थ्रक्त अल्पता : कुछ लोगों में इस बीमारी में खून की कमी होने लगती है, जिसके कारण लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या कम होने लगती है।
थ् “स्केलेराइटिस एवं एपीस्केलेराइटि” : आंख की खून की नसों में सूजन के कारण कार्निया के क्षति होने की संभावना बनने लगती है।
थ् संक्रमण : “रियुमेटाइड आर्थराइटिस” में शरीर में संक्रमण होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है।
थ् त्वचा रोग : इस बीमारी में त्वचा रोग खासकर अंगुलियों में हो सकता है।
फेफड़ा रोग : फेफड़ों में क्रोनिक बीमारी होने की प्रबल संभावना बन जाती है। “इन्टरस्टीशियल फाइब्रोसिस, पल्मोनेरी हाइपरटेंशन” एवं अन्य परेशानियां हो सकती हैं।
थ् हृदय रोग : “रियुमेटाइड आर्थराइटिस” रोग में हृदय रोग के होने का खतरा बढ़ जाता है।
थ् गर्भावस्था : वह महिलायें जो पहले से इस बीमारी से पीड़ित हैं, उन्हें गर्भावस्था के दौरान पूर्व प्रसव (प्री-मेच्योर डिलिवरी) होने की संभावना हो सकती है। अन्य स्वस्थ महिलाओं की तुलना में उन्हें तीन गुना अधिक उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन) होने का खतरा रहता है।
“रियुमेटाइड आर्थराइटिस” के लक्षण शरीर में दिखाई देने पर अविलम्ब हड्डी रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। चिकित्सक द्वारा दिये गये परामर्श के अनुसार ही व्यायाम करना चाहिए। चिकित्सक यदि जीवन शैली में परिवर्तन तथा खान-पान में परहेज की सलाह दे तो उसे तुरन्त व्यवहार में लाना चाहिए। इस बीमारी में शरीर के प्रति लापरवाही खतरनाक हो सकती है।
लेखक से उनकी वेबसाइट ध्र्ध्र्ध्र्. ड्डद्धण्ठ्ठद्धद्मण्ध्ठ्ठद्धड्डण्ठ्ठद.ड़दृथ्र् तथा ईमेलड्डद्धण्ठ्ठद्धद्मण्ध्ठ्ठद्धड्डण्ठ्ठदऋढ़थ्र्ठ्ठत्थ्.ड़दृथ्र् के माध्यम से भी सम्पर्क किया जा सकता है।द
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