दृष्टिपात
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आलोक गोस्वामी
दिल्ली में इस्रायली दूतावास कर्मी पर हमला
इस्रायल ने ईरान पर लगाया आरोप
13 फरवरी की दोपहर नई दिल्ली में इस्रायली दूतावास की कार में सवार दूतावास की एक महिला अधिकारी सहित तीन अन्य एक बम विस्फोट में बुरी तरह घायल हो गए। सुरक्षाकर्मी बताते हैं, बम बाहर से कार पर चिपकाया गया था। जांच की रपट गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस को सौंपी गई है। दिल्ली पुलिस इस मामले में इस्रायल से आए वहां की जांच एजेंसी मोसाद के अधिकारियों के साथ मिलकर गुत्थी सुलझाने में जुटी है। पुलिस का मानना है कि इसके पीछे विदेशी आतंकी संजाल के साथ स्थानीय मदद शामिल हो सकती है, क्योंकि चुंबक से चिपकाया जाने वाला बम भारत में पहले कभी इस्तेमाल नहीं किया गया था। इसी दिन जार्जिया में भी इस्रायली दूतावास अधिकारी पर हमले का प्रयास किया गया था। इसके चलते इस्रायल ने तमाम देशों में अपने दूतावासों की सुरक्षा कड़ी कर दी है। ये हमले हिज्बुल्ला के सैन्य कमांडर इमाद मुगनियेह की हत्या की चौथी बरसी के एक दिन बाद किए गए थे। हिज्बुल्ला कुछ सालों से इस्रायल पर पलटवार की कई कोशिशें करता रहा है, क्योंकि वह इमाद की हत्या के लिए इस्रायल को ही दोषी मानता है।
नई दिल्ली स्थित इस्रायली दूतावास में रक्षा मंत्रालय के अधिकारी की पत्नी तल येहोशुआ-कोरेन इस हमले में बुरी तरह घायल हुईं। दूतावास में ही काम करने वालीं कोरेन उस वक्त अपने बच्चों को स्कूल से लेने जा रही थीं। उधर जार्जिया में भी इस्रायली दूतावास के अधिकारी की कार में बम चिपका मिला जिसे समय रहते बेजान कर दिया गया। इस्रायली सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार, वे पिछले कुछ समय से ईरान और हिज्बुल्ला की तरफ से ऐसी हरकतों का कयास लगा रहे थे। हाल के कुछ वर्षों में, माना जाता है कि हिज्बुल्ला ने सागरपार के अपने ढांचे को चुस्त कर लिया है, जिसमें यूरोप, दक्षिण अमरीका और दक्षिणपूर्व एशिया पर खास गौर किया जा रहा है।
उधर ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रामिन महमनपरस्त ने इस्रायल के आरोप की भर्त्सना की है कि भारत और जार्जिया में दूतावासों पर हमले में ईरान का हाथ है। उन्होंने कहा कि ये बातें मनोवैज्ञानिक लड़ाई छेड़ने की दिशा में ही की जा रही हैं। ईरान हर आतंकी हमले की निंदा करता है। l
मुशर्रफ को पता था
लादेन एबटाबाद में था!
पाकिस्तान से एक चौंकाने वाला खुलासा आया है लादेन-वध मामले में। आई.एस.आई. के पूर्व बड़े वाले अधिकारी ने सौ टके की बात बतायी है कि पूर्व राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ जानते थे कि अल-कायदा सरगना लादेन एबटाबाद में एक सुरक्षित अड्डे में रह रहा था, उस अड्डे को गुप्तचर एजेंसियों ने बनाया था। अमरीका की एक खबरिया वेबसाइट 'द डेली बीस्ट' में एक आलेख में, सी.आई.ए. के एक पूर्व अधिकारी ब्रूस रिडल ने आई.एस.आई. के पूर्व महानिदेशक जनरल (से.नि.) जियाउद्दीन ख्वाजा को उद्धृत किया है कि मुशर्रफ 'जानते थे कि बिन लादेन एबटाबाद में था।'
उल्लेखनीय है कि मुशर्रफ हर मंच से, हर चैनल पर, हर भाषण में यही रटते रहे हैं कि 'भई, मुझे नहीं पता था कि लादेन पाकिस्तान में था।' जियाउद्दीन भट्ट के नाम से जाना जाने वाले ख्वाजा का कहना था, एबटाबाद में बिन लादेन का अड्डा गुप्तचर ब्यूरो के पूर्व बड़े वाले अधिकारी ब्रिगेडियर इजाज शाह ने 'खास तौर पर' तैयार किया था। जियाउद्दीन की मानें तो इजाज शाह ही लादेन को एबटाबाद में जमाने वाला शख्स है, उसी ने उसकी हिफाजत और बाहर की दुनिया से छुपे रहने का इंतजाम किया था। जियाउद्दीन कहता है, मुशर्रफ को इस सबकी जानकारी थी। इजाज शाह ब्रिटेन में पैदा हुए कश्मीरी आतंकवादी अहमद उमर सईद शेख से भी नजदीकी से जुड़ा था। सईद को तीन ब्रिटिश और एक अमरीकी नागरिक को अगवा करने पर 1994 में भारत में जेल भी हुई थी। पत्रकार डेनियल पर्ल को अगवा करने में भी सईद शामिल था।
बात खुली तो पाकिस्तान में जियाउद्दीन भट्टट से पूछा-पाछी हुई। जियो टीवी पर भट्ट ने कहा कि उसे आलेख में गलत तरीके से उद्धृत किया गया है। लेकिन भट्ट ने यह नहीं बताया कि आखिर उसने कहा क्या था, जिसके मायने वैसे निकाले गए। वैसे, रिडल का कहना है कि भट्ट मुशर्रफ से चिढ़ता भी है, क्योंकि फौज के दिनों का उसका मुशर्रफ से कुछ मन-मुटाव है। रिडल तो यहां तक कहते हैं कि लादेन के मददगारों का पता लगाना चाहिए। अगर मुशर्रफ को यह पता था तो अगली बार उनके अमरीका आने पर अधिकारियों को उनसे पूछताछ करनी चाहिए। l
सांसत में सऊदी पत्रकार
सऊदी अरब के एक युवा पत्रकार की जान सांसत में है। कट्टरवादी मुल्लाओं ने उसे मार देने का फतवा दिया है। सऊदी अरब के इस पत्रकार का 'दोष' इतना है कि उसने ट्विटर पर पैगम्बर मोहम्मद का कथित अपमान किया था। 23 साल के इस पत्रकार हमजा काशगरी ने जान बचाने के लिए सऊदी अरब से मलेशिया का रुख किया तो मलेशिया ने उसे उल्टे पैर सऊदी अरब लौटा दिया। कहते हैं, हमजा का 'कसूर' यह है कि उसने गत दिनों पैगम्बर मोहम्मद को लेकर ट्विटर पर अपना संदेह जाहिर किया था। इस्लाम में पैगम्बर की तौहीन करना कुफ्र माना जाता है और सऊदी अरब में इसके लिए मौत की सजा का प्रावधान है। जबकि मलेशिया भी इस्लामी देश है, पर वहां इसे 'घोर अपराध' नहीं माना जाता। ट्विटर पर हमजा के संदेश के बाद सऊदी अरब में युवा पत्रकार को लानतें भेजी जाने लगीं। उसके 'संदेश' को धिक्कारते हुए 30 हजार लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दीं और कुछ ने जान लेने की धमकी भी दी। हमजा का कहना था कि वह सबसे बुनियादी मानवाधिकार-अभिव्यक्ति और विचारों की स्वतंत्रता-पर अपने हक की मांग कर रहा था। लेकिन उसे मौत की धमकियों का सामना करना पड़ा। लिहाजा वह जान बचाने क्वालालम्पुर चला गया, जहां उसे गिरफ्तार कर वापस सऊदी अरब भेज दिया गया।
मलेशिया के अधिकारियों ने कहा कि ऐसा उन्होंने सऊदी अरब की तरफ से इंटरपोल के अनुरोध पर किया था। मलेशिया ने कहा कि यह सऊदी अरब का अपना मामला है, वही देखे। l
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