एक गुमनाम बलिदान
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एक गुमनाम बलिदान

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Feb 4, 2012, 12:00 am IST
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साहित्यिकी

दिंनाक: 04 Feb 2012 16:15:01

साहित्यिकी

हाल में ही प्रकाशित होकर आई पुस्तक “जखीरे में शहादत” में क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की शहादत को, उनके सहयोगी रहे कई लोगों की स्मृतियों के माध्यम से याद किया गया है। इसमें उनके व्यक्तित्व के भी कई पक्ष उजागर हुए हैं। यह पुस्तक इस बात को प्रमाणित करती है कि देश को स्वतंत्र कराने के लिए उस दौर के देशभक्तों में किस कदर जुनून व्याप्त था। यह सही है कि भारत को आजाद कराने वाले क्रांतिकारियों और  आंदोलनकारियों की जब बात आती है तो हमारी जुबान पर कुछ ही देशभक्तों के नाम आते हैं, लेकिन इससे उन लाखों देशभक्तों के बलिदान को कमतर करके नहीं देखा जा सकता है जिन्होंने अपना सब कुछ देश के लिए न्योछावर कर दिया था। ऐसे ही एक जुनूनी देशभक्त दंपती थे भगवती चरण वोहरा और दुर्गा भाभी। इस दम्पत्ति ने अपने घर-परिवार और अन्य दूसरे दायित्वों से बढ़कर अपने वतन को स्वतंत्र कराना ही अधिक महत्वपूर्ण समझा। इस पुस्तक में भगवती चरण वोहरा के बलिदान को कई लोगों की स्मृतियों के द्वारा संजोया गया है। असेम्बली बम कांड के अभियुक्त और लाहौर जेल में बंद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को रिहा कराने के लिए हमले की योजना बनाते समय एक दुर्भाग्यपूर्ण हादसे में भगवती चरण वोहरा शहीद हो गए थे। इसी घटना को केन्द्र में रखकर इस पुस्तक में कई मार्मिक स्मृतियों को संकलित किया गया है।

हालांकि पुस्तक में संकलित सभी संस्मरण भगवती चरण वोहरा के व्यक्तित्व में विद्यमान देशभक्ति की भावना को उजागर करते हैं, लेकिन विशेष रूप से उनकी पत्नी दुर्गा देवी उपाख्य दुर्गा भाभी का संस्मरण बेहद कारुणिक बन पड़ा है। इसके अलावा उदय शंकर भट्ट, यशपाल और मास्टर छैल बिहारी लाल के संस्मरण भी मार्मिक हैं। भगवती चरण वोहरा की याद करते हुए दुर्गा देवी अपने संस्मरण “और दीपक बुझ गया” में लिखती हैं, “जिसका जीवन मृत्यु से कहीं अधिक आवश्यक था और जिसकी मृत्यु जीवन से बड़ी प्रमाणित हुई, उसकी बदनसीबी का केवल एक ही कारण था, और यह वह चीज थी जिसने उसे मामूली इंसान के दायरे से निकालकर एक बहुत ऊंची हस्ती बना दिया था।” इसी तरह मास्टर छैल बिहारी लाल अपने संस्मरण “जब वे शहीद हुए” में भगवती चरण वोहरा के अंतिम क्षणों को बेहद मार्मिक शब्दों में व्यक्त किया है। पुस्तक में संकलित सुखदेव राज और यशपाल के संस्मरण से भी वोहरा जी के व्यक्तित्व और उनकी अनन्य देशभक्ति के अनछुए पहलू उजागर हुए हैं।

प्रसिद्ध इतिहासकार और भारतीय क्रांतिकारी संग्राम के सजग अध्येता सुधीर विद्यार्थी ने अपने कुशल संपादन और गंभीर प्रयास के द्वारा इस महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम दिया है। इस पुस्तक में भगवती चरण वोहरा के राजनीतिक दर्शन और देश के प्रति समर्पण के अद्वितीय विचारों को भी सामने लाया गया है। उनके भीतर अपनी मातृभूमि की सेवा और उसे स्वाधीन कराने की इच्छा कितनी प्रबल थी, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बम विस्फोट में बुरी तरह घायल होने के बाद और शहीद होने से पहले भी वे देश के लिए अपने उद्देश्यों में सफल न हो पाने पर शोक मना रहे थे। अपने अंतिम क्षणों में उन्होंने कहा था, “काश आजाद जी से मिल पाता। काश यह मृत्यु दो दिन बाद होती। दु:ख है कि भगत सिंह को छुड़ाने में भाग न ले सका।” पुस्तक में वोहरा समेत कई क्रांतिकारियों के चित्र और प्रभावी संपादकीय लेख ने इसे और भी महत्वपूर्ण बना दिया है।

पुस्तक का नाम –   जखीरे में शहादत (संस्मरण)

संपादक      – सुधीर विद्यार्थी

प्रकाशक      – राजकमल प्रकाशन,

                        1-बी, नेताजी सुभाष मार्ग,

                        नई दिल्ली-2

मूल्य –     250रुपए  पृष्ठ-160

वेबसाइट:           www.rajkamalprakashan.com

दो देशों का रोचक यात्रा वृत्तांत

परिचित साहित्यकार मोहन कुमार सरकार अब से लगभग एक वर्ष पहले एशिया महाद्वीप के दो ऐसे देशों की यात्रा पर गए थे, जिन्हें आमतौर पर विदेश भ्रमण के लिए जाने वाले पर्यटक उपेक्षित ही करते हैं। लेखक ने न केवल उन दोनों देशों की यात्रा संस्मरण को रोचक अंदाज में लिपिबद्ध भी किया, बल्कि इस बात को भी प्रमाणित करने में सफलता प्राप्त की है कि वास्तव में भारतीय प्राचीन सभ्यता और संस्कृति से बहुत हद तक समानता रखने वाले इन दोनों देशों (कम्बोडिया और वियतनाम) की यात्रा अनोखे अनुभव वाली रही। हाल ही में प्रकाशित होकर आई पुस्तक “वामन के चरण” को लेखक ने दो खंडों में विभक्त किया है। पहले खंड में एशिया महाद्वीप के मंदिरों का देश कहे जाने वाले कम्बोडिया का यात्रा वृत्तांत है जबकि दूसरे खंड में वियतनाम की यात्रा का वर्णन किया गया है।

इस द्विदेशीय यात्रा संस्मरण की एक बड़ी विशेषता है इसकी सरल, सहज और प्रवाहमयी भाषा-शैली। भाषा को लेकर लेखक के मन में किसी प्रकार का दुराग्रह या संकीर्णता नजर नहीं आती है। इसके साथ ही लेखक ने इसे कहीं भी जटिल बनाने का प्रयास नहीं किया है। रास्ते की हर छोटी-बड़ी घटना को बगैर किसी लाग-लपेट के लेखक ने शब्दबद्ध किया है। एयरपोर्ट से लेकर हवाई यात्रा के दौरान और उन दोनों देशों में अर्जित बहुत से अनुभवों की वजह से यह वृत्तांत पठनीय और रोचक बन पड़ा है।

कम्बोडिया की यात्रा के पहले पड़ाव के रूप में वहां की राजधानी नोम पेन्ह की विशेषताएं और वहां मौजूद स्मारकों, मंदिरों, होटलों और संग्रहालयों की खूबसूरती लेखक को मंत्रमुग्ध कर देती है। “सिल्वर पैगोड़ा” (इमराल्ड बुद्ध मंदिर) देखकर लेखक कहता है, “बुद्ध मंदिर परिसर बौद्ध और सनातन हिन्दू धार्मिक आस्था का एक मिला-जुला रूप है जो कम्बोडिया की सांस्कृतिक विरासत है।” कम्बोडिया की काशी के नाम से प्रसिद्ध शहर सियमरीज में स्थित विश्व प्रसिद्ध अंगकोर वट मंदिर को अपने समक्ष पाकर लेखक कहता है, “मेरी कल्पना का साकार रूप मुझे पुलकित कर रहा था। विश्व विरासत के रूप में मान्यता प्राप्त निस्संदेह विश्व की सबसे बड़ी और विशाल धार्मिक आध्यात्मिक आकृति, प्रथम दृष्ट्या अद्भुत, सुंदर और हृदयस्पर्शी मनुष्य निर्मित आकृति है और सर्वाधिक सुरक्षित पौराणिक धार्मिक स्थल भी।” इसके अलावा ब्रह्मा मंदिर, शिव मंदिर, शिव निर्झर, त्रिदेव मंदिर और अनेक बौद्ध मंदिरों के साथ ही लेखक ने कम्बोडिया के सामाजिक जीवन पर भी संक्षिप्त प्रकाश डाला है।

पुस्तक के दूसरे खंड में लेखक ने वियतनाम की यात्रा से अर्जित अनुभवों और वहां स्थित कुछ प्राचीन स्मारकों, मंदिरों का वर्णन किया है। इसकी शुरुआत ऐतिहासिक कू-ची सुरंगों से की गई है। इसमें पहले वियतनाम की भौगोलिक, सामाजिक व्यवस्था के बारे में भी लेखक ने संक्षिप्त प्रकाश डाला है। इसके बाद मार्टियर मेमोरियल, वान पिलर पैगोड़ा के बारे में भी बताया है। इसके पश्चात एक अन्य ऐतिहासिक महानगर हो ची मिन्ह में स्थित ऐतिहासिक धार्मिक स्मारकों, स्थलों के बारे में बताया है। मरियम्मन मंदिर, प्रेसिडेंशियल पैलेस और कुछ कला दीर्घाओं की भी लेखक ने चर्चा की है। लेखक ने इन दो देशों के यात्रा वृत्तांत को लिखने में ऐसी शैली का प्रयोग किया है कि कहीं भी बोझिलता का अनुभव नहीं होता। पुस्तक में दोनों देशों के कुछ प्रसिद्ध स्थलों के चित्र भी दिए गए हैं। निश्चित रूप से यह पुस्तक कम्बोडिया और वियतनाम की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को प्रभावी ढंग से सामने लाती है। द

पुस्तक का नाम-    वामन के चरण (यात्रा वृत्तांत)

लेखक –     मोहन कुमार सरकार

सम्पर्क –     202, सोनकी गुनेश्वरी अपार्टमेन्ट, आशियाना दीघा मार्ग, पटना-14

मूल्य –      158 रु.  पृष्ठ- 151

दूरभाष:      (0)9835467637 ( 

सत्ता के इर्द-गिर्द

द माता प्रसाद शुक्ल

यकीनन उनमें खामियां हैं,

उन पर सत्ता की चाबियां हैं।

चुनाव जीतने के बाद फिर,

फिर उनकी मनमानियां हैं।

उन पर दूध चढ़ाना होगा,

वे सियासत की बामियां हैं।

कहां हैं अब भरत से भाई?

न अब सीता-सी भाभियां हैं।

वो अब हमसे आगे बढ़ गए हैं,

जो सत्ता की सीढ़ी चढ़ गए हैं।

चार रिसालों में क्या छप गए हैं,

उनके तो दिमाग ही चढ़ गए हैं।

कल तलक जो हंसते-खेलते थे,

आज वो तस्वीरों में मढ़ गए हैं।

कुछ शख्स ऐसे भी रहे हैं जो,

दिलों में नगीने से जड़ गए हैं।

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