संवाद
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संवाद
* बल्देव भाई शर्मा
देश अनेक चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से गुजर रहा है। राष्ट्रीय सुरक्षा पर मंडराता संकट हो या आंतरिक कानून व्यवस्था पर जिहादी आतंकवाद व माओवाद का नृशंस हमला, आर्थिक मोर्चे पर विफलता हो या आम जन की खुशहाली पर महंगाई का डाका, सामाजिक सद्भाव पर गहराती जाति-मत-पंथ की काली छाया हो या कालेधन और भ्रष्टाचार का फन ताने बैठा नाग, भारत की वर्तमान स्थितियां देशवासियों के लिए गहरी चिंता का विषय हैं, उस पर दुर्भाग्य यह कि देश का राजनीतिक नेतृत्व सत्ता के खेल में व्यस्त हो इस सबकी अनदेखी कर रहा है। भारतीय गणतंत्र के 62 वर्ष गुजर जाने के बावजूद स्वराज्य के सपने अधूरे हैं और भारत बाट जोह रहा है विश्व में एक स्वाभिमानी, समृद्ध और सशक्त राष्ट्र के रूप में खड़ा होने की। हमें स्वतंत्रता मिली, लेकिन जिन लोगों के हाथों में देश का नेतृत्व आया वे पश्चिम के मोहपाश में फंसे होने के कारण भारत की चिति, संस्कृति और परंपराओं के अनुकूल राष्ट्र के उन्नयन का कोई स्व-तंत्र विकसित नहीं कर सके और पश्चिम की जूठन पर एक राजनीतिक व व्यवस्था तंत्र खड़ा करते चले गए, जिसके बोझ तले दबा भारत आज भी पर-तंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा कराह रहा है। अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपना धर्म, अपना कानूनी ढांचा, जीवनमूल्यों को समृद्ध करने वाली अपनी शिक्षा पद्धति, मनुष्य और पर्यावरण के प्रति सह अस्तित्व की अवधारणा को दृढ़ करने वाली हमारी सामाजिक समरसता व परपंराएं और देशवासियों को आत्मनिर्भर व सम्मानपूर्ण जीवन जीने की राह दिखाने तथा भारत को सोने की चिड़िया बनाने वाली हमारी विकासमान आर्थिक संकल्पनाएं हेय समझकर न केवल पीछे धकेल दी गईं, बल्कि उनके प्रति जानबूझकर तिरस्कार का भाव पैदा कर उन्हें पिछड़ेपन की निशानी बना दिया गया। नेहरू युग में सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक प्रगति के जो नए मानदंड गढ़े गए और जिन्हें लेकर देश पर 50 वर्षों से ज्यादा समय तक शासन करने वाले कांग्रेसी नेता आगे बढ़ते रहे, उन्होंने स्व-तंत्र तो विकसित होने ही नहीं दिया, स्वराज्य और सुराज का स्वप्न भी भंग कर दिया। आज देश उसी विडम्बना से जूझ रहा है।
भारत की प्रकृति और संस्कार को न समझने वाले जिन लोगों के हाथों में देश की बागडोर आई उन्होंने सत्ता के लोभ में न केवल मातृभूमि का विभाजन स्वीकार कर उन संकल्पों को अपने स्वार्थों की अग्नि में झोंक दिया जो देश की स्वतंत्रता के संग्राम में निरंतर जूझने और प्राणोत्सर्ग करने वाले असंख्य हुतात्माओं ने मुट्ठियां तानकर लिए थे, बल्कि महात्मा गांधी के भारत में रामराज्य लाने के सपने को भी उनकी सत्तालिप्सा और उनका राजनीतिक अहंकार लील गया। हम स्वाधीन तो हुए पर स्वतंत्रता न जाने कहां खो गई? ग्राम स्वराज, कृषि, कुटीर व हस्तशिल्प, जो भारत की समृद्ध सामाजिक व आर्थिक संरचना का आधार थे, देश में निरंतर बढ़ते असंतुलित शहरीकरण और बड़े-बड़े उद्योगों को आधुनिक भारत के विकास का मंदिर बताए जाने की घोषणाओं के बीच दम तोड़ते चले गए और अर्थ खो बैठीं कविवर सुमित्रानंदन पंत की ये पंक्तियां जो उन्होंने कभी बड़ी श्रद्धा और भावविह्वलता के साथ लिखी होंगी-“भारत माता ग्राम वासिनी, खेतों में फैला है श्यामल, धूल भरा सा मैला आंचल।” स्व-तंत्रता की शोकांतिका यह है कि हम आज भी अंग्रेजों की बनाई करीब डेढ़ सौ साल पुरानी भारतीय दंड संहिता को ढो रहे हैं। हम मानो भारत की राष्ट्रीय, सामाजिक व आर्थिक संकल्पनाओं का प्राणतत्व ही गंवा बैठे, तो स्वाधीनता का अर्थ ही क्या बचा? मैकाले की कथनी चरितार्थ होती चली गई कि अंग्रेजों के भारत से चले जाने के बाद भी ‘काले अंग्रेज’ उनके मंसूबों को पूरा करेंगे। स्वाधीन भारत के स्वाभिमान पर इससे बड़ी चोट और क्या हो सकती है? इसी मानसिकता का परिणाम है कि चीन अरुणाचल व लद्दाख तक घुसा चला आता है और हमारी केन्द्रीय सत्ता कहती है कि सब ठीक है, चिंता की कोई बात नहीं। आखिर यह सरकार भी तो उन्हीं नेहरू की वारिस है जिन्होंने अपने प्रधानमंत्री रहते भारत की हजारों वर्ग किलोमीटर भूमि पर चीन के कब्जा कर लेने के बाद कहा था कि ‘क्या फर्क पड़ता है, वहां तो घास का एक तिनका भी नहीं उगता’। देश की धरती के प्रति केन्द्रीय सत्ता की ऐसी संवेदनहीनता व स्वाभिमान-शून्यता लज्जास्पद है, इसी का परिणाम है कि पाकिस्तान भारत पर हर वक्त आंखें तरेरता है और चीन भारत के 20-30 टुकड़े हो जाने के मंसूबे पालता है तथा जिहादी आतंकवादी हिन्दुस्थान को दारुल इस्लाम में परिवर्तित कर देने के लिए बेखौफ कत्लेआम मचाते हैं व माओवादी-नक्सलवादी देश के 200 से ज्यादा जिलों में अपना प्रभाव स्थापित कर भारत को तोड़ने के चीन व पाकिस्तान के इरादों को पूरा करने के लिए नरसंहार करते हैं। इसी दुर्बलता का लाभ उठाकर कश्मीर को भारत से “आजाद” कराने का देशद्रोही ख्वाब देख रहे अलगाववादी दिल्ली में सरकार की नाक के नीचे राष्ट्रविरोधी भाषा बोलते हैं तथा बंगलादेश से पूर्वोत्तर के रास्ते भारत भर में फैल गए 5 करोड़ से ज्यादा मुस्लिम घुसपैठिए लीगी तत्वों व सेकुलर नेताओं की शह से हमारे भू-जनसांख्यिक अनुपात को बदलकर भारत में कई पाकिस्तान बनाने की तैयारी में लगे हैं।
जवाहरलाल नेहरू व इंदिरा गांधी के काल में अपनी सत्तालिप्सा के लिए राजनीतिक वर्चस्व बनाए रखने की जिस घृणित शैली को कांग्रेस ने विकसित किया, उन हथकंडों ने देश की राजनीति को सेवा व त्याग की परपंरा से विमुख कर मात्र सत्ता प्राप्ति का हथियार बना दिया और राजनीति राष्ट्र व समाजाभिमुख होने की बजाय सत्ताकेन्द्रित होती चली गई। राजनीतिक शुचिता और सुशासन का भावबोध खत्म कर राजनीति में नैतिकता व लोकतांत्रित मूल्यों को तिलांजलि दे दी गई। इसी का परिणाम है कि आज राजनीति देश सेवा का माध्यम नहीं, देश को लूटने का प्रपंच बन गई है। परिणामत: देश में घोटाले पर घोटाले हो रहे हैं और सरकारी खजाने की लूट की होड़ सी मची है, उधर जनता बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रही है। कांग्रेस की कुसंस्कृति ने अधिकांश दलों को अपनी चपेट में ले लिया है और जहां भी वे सत्ता में आते हैं, भ्रष्टाचार मानो सत्ता का मंत्र बन जाता है। सत्ता स्वार्थों के लिए राजनीति विकृत से विकृततर होती चली गई और सेकुलरवाद व अल्पसंख्यकवाद जैसी कुत्सित अवधारणाओं का सृजन कर वोट राजनीति के लिए राष्ट्रहित और राष्ट्रवाद की बलि चढ़ाई जाने लगी। इसी राजनीतिक प्रवृत्ति के कारण देश में दो दशक पहले कश्मीर से शुरू हुआ जिहादी आतंकवाद पूरे देश में फैलता गया और एक लाख से ज्यादा निर्दोष नागरिकों व हमारे जांबाज जवानों की नृशंस हत्या कर दी गई। हमारे मंदिरों, न्यायालय परिसरों, यहां तक कि भारतीय संप्रभुता की प्रतीक हमारी संसद पर भी हमला किया गया, लेकिन वोट राजनीति के खेल में फंसी यह सरकार जिहादी आतंकवाद से सख्ती से निपटने के लिए न तो दृढ़ इच्छाशक्ति दिखा सकी और न कड़े कानून बना सकी, बल्कि जिहादी आतंकवाद के प्रति नरम रुख अपनाते हुए ‘पोटा’ जैसे कानून को खत्म कर दिया गया। फांसी की सजा पाए दुर्दांत आतंकवादी व मुख्य षड्यंत्रकारी जेलों में बिरयानी खाते हुए हमारी सुरक्षा व्यवस्था को मुंह चिढ़ाते हैं, लेकिन सरकार आतंकवाद का ठीकरा हिन्दुओं के सिर फोड़ने के लिए “भगवा आतंकवाद” जैसे जुमले गढ़ती है व इसके नाम पर हिन्दुत्वनिष्ठ और राष्ट्रभक्त संगठनों को घेरने व साधु-संतों को गिरफ्तार कर अमानवीय उत्पीड़न के बल पर उनसे झूठी स्वीकारोक्ति कराने में लगी है। और तो और, कांग्रेसी नेता व कथित मानवाधिकारों के पैरोकार तथा सेकुलर, जिहादी आतंकवादियों की देहरी पर माथा टेककर उन्हें न्याय दिलाने की दिलासा देकर उनके परिजनों की मिजाजपुर्सी करते हैं। पंथ निरपेक्षता का दम भरने वाली कांग्रेसी सरकारें हिन्दू विरोध व मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति को प्रश्रय देती रहीं। हद तो तब हो गई जब मौजूदा केन्द्र सरकार के प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक घोषणा कर दी कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों किंवा मुस्लिमों का है। इससे देश का बहुसंख्यक समाज हैरान है कि कहीं सत्ता के लिए कांग्रेस मुस्लिम लीग की राह पर तो नहीं जा रही? इसी मानसिकता के कारण इस सरकार ने मुस्लिम हितों की अपनी योजनाओं को अमली जामा पहनाने के लिए सच्चर समिति, रंगनाथ मिश्र आयोग व समान अवसर आयोग जैसी संस्थाएं गठित कीं और इन्हीं की सिफारिशों के नाम पर संवैधानिक प्रावधानों को ताक पर रखकर देश में मजहबी आरक्षण जैसे देश विघातक प्रावधान लागू करने पर तुली है। इतना ही नहीं, देश में हिन्दुओं के उत्पीड़न के लिए “साम्प्रदायिक व लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक” जैसे काले कानून का प्रारूप तैयार करा दिया गया जिसका खाका बनाया है कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने, जिसमें चुन-चुनकर हिन्दुत्वविरोधी लोगों को रखा गया है। इससे लगता है कि सत्ता के लिए अल्पसंख्यकों की राजनीति करने वाली सोनिया पार्टी मानो इस्लामी और चर्च की ताकतों के हाथों का खिलौना बन गई है और ये तत्व साम्राज्यवादी, पूंजीवादी व कम्युनिस्ट शक्तियों की कठपुतलियां बनकर भारत के स्वत्व को समाप्त कर उसके अस्तित्व को ही मिटा देने पर आमादा हैं।
देश के समक्ष उपस्थित इन विषम परिस्थितियों में राष्ट्र उन्नायक स्वामी विवेकानंद, जिनका यह डेढ़ सौंवीं जयंती वर्ष है, का आह्वान देशवासियों को स्मरण कराना स्फूर्तिदायक व विश्वास संवर्धन करने वाला होगा, “उठो भारत! मैं अपने सामने यह एक सजीव दृश्य देख रहा हूं कि हमारी यह प्राचीन माता पुन: एक बार जागृत होकर अपने सिंहासन पर नवयौवनपूर्ण और पूर्व की अपेक्षा अधिक महिमान्वित होकर विराजी है। शांति और आशीर्वाद के वचनों के साथ सारे संसार में भारत के नाम की घोषणा कर दो। तुम लोग शून्य में विलीन हो जाओ और फिर एक नवीन भारत का निर्माण करो।” इस आह्वान से सारी निराशा, सारे संदेह, सारी दुर्बलताएं क्षीण हो जाती हैं और देशवासियों के अंत:करण में एक नवचैतन्य जागृत होता है देश के चित्र को बदलने का। 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश पर आपातकाल का प्रहार जनता को झकझोर गया था और अनगिनत असह्य यातनाओं को झेलकर भी भारत उठ खड़ा हुआ था। उस तानाशाही को परास्त करने के लिए जनता जागी और मुट्ठियां तानकर खड़ी हो गई, उस जागृत समाज शक्ति ने एक निरंकुश सत्ता की चूलें हिला दीं। भारत ने उस कालरात्रि के बाद एक नया सवेरा देखा और देश में पुन: लोकतंत्र की स्थापना हुई। जनचेतना का ज्वार किस तरह हिलोरें लेने लगा और उसने किस तरह तानाशाही मंसूबों को ध्वस्त कर दिया, यह भारतीय जनमानस की उसी जाग्रत शक्ति का परिचायक है, जिसने लगभग 1000 वर्षों के पराधीनता काल में सतत् संघर्षरत रहकर अंतत: विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंका और भारत माता के मस्तक पर स्वाधीनता का अभिषेक किया। भारत में राष्ट्रवाद की यह चेतना कभी परास्त नहीं हुई। हमारे राष्ट्र की संकल्पना में ही यह चैतन्य-शक्ति निहित है, और वह यूरोपीय राष्ट्र की अवधारणा से पूरी तरह भिन्न है, क्योंकि हमारा राष्ट्र पश्चिम की तरह राजनीतिक इकाई भर नहीं है। राष्ट्र का नवचैतन्य हमें सदा स्फूत्र्त करता है, आज उसी आह्वान पर जागृत होने, उठ खड़े होने की आवश्यकता है। यह जागरण ही हमारी शक्ति है, उसी के बल पर हम राष्ट्रघाती, विभेदकारी और भारत के सर्वतोमुखी उन्नयन में बाधा डाल रही शक्तियों का मूलोच्छेद कर सकते हैं। वर्तमान में देश के समक्ष उपस्थित चुनौतियों और समस्याओं का समाधान भी इसी राष्ट्र जागरण में से निकलेगा जैसे पिछले दिनों कालेधन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़े हुए जनांदोलन, विशेषकर जागृत युवा शक्ति ने देश में जिस तरह नूतन चेतना का संचार किया और देशवासियों के हृदय में एक आशा व विश्वास का भाव जगाया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, निरंतर पिछले 87 वर्षों से देशभक्त और भारतीय जीवनमूल्यों व संस्कारों से ओतप्रोत जीवन गढ़ने के कार्य में लगा है, आज उसी चेतना के व्यापक विस्तार की आवश्यकता है जिसमें भारत की समस्त सज्जन शक्ति व राष्ट्रभक्त जनता ‘जगें, जगाएं भारत” का आह्वान करते हुए देश में राजनीति की भ्रष्ट व विभाजनकारी सत्तालोलुप धारा को अवरुद्ध कर राष्ट्रनिर्माण और शुचिता व सुशासन के संकल्प से ऊर्जस्वित राजनीतिक चेतना का संचार करे। गणतंत्र दिवस पर यह आयोजन इसी आकांक्षा और विश्वास के साथ अपने सुधी पाठकों को समर्पित है-
एक हाथ में कमल, एक में धर्मदीप्त विज्ञान
लेकर उठने वाला है धरती पर हिन्दुस्थान
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