सम्पादकीय
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सम्पादकीय
मन जब तक जीता है, तब तक संसार है। मन का मरना ही मुक्ति है।
-मगनलाल हरिभाई व्यास (सत्संगमाला, पृ.97)
सत्तालिप्सा में कांग्रेस किस कदर बौरा गई है, यह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के मद्देनजर उसके रवैये से साफ देखा जा सकता है। उ.प्र. में दो दशकों से ज्यादा समय तक सत्ता से बाहर रहने से छटपटा रही कांग्रेस इस बार सत्ता हथियाने में कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती। इसलिए सारी लोकतांत्रिक मर्यादाओं और समाजहित व देशहित को भी ताक पर रखकर उसके नेता, विशेषकर जिन्हें दस जनपथ का सिपहसालार माना जाता है, मुस्लिम मतदाताओं का वोट कबाड़ने के लिए सक्रिय हैं। हद तो तब हो गई जब राहुल गांधी की उपस्थिति में आजमगढ़ की एक चुनाव सभा में कांग्रेस के बड़बोले महासचिव दिग्विजय सिंह ने फिर से बाटला हाउस मुठभेड़ कांड को फर्जी बताते हुए उसकी न्यायिक जांच की मांग कर डाली ताकि “आतंकी के रूप में मारे गए दो पढ़े-लिखे” मुस्लिम युवकों को न्याय मिल सके। लेकिन आश्चर्य तो यह देखिए कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली केन्द्र की संप्रग सरकार के गृहमंत्री पी.चिदम्बरम ने दिग्विजय के बयान व मांग को खारिज करते हुए कह दिया कि मुठभेड़ पूरी तरह असली थी और दुबारा इसकी किसी भी तरह की जांच से भी उन्होंने इनकार कर दिया। गृहमंत्री का मानना है कि दिल्ली पुलिस सहित कई एजेंसियों द्वारा उस मुठभेड़ को सही ठहराया जा चुका है, इसलिए इस मामले को फिर से खोलने का सवाल ही पैदा नहीं होता। उल्लेखनीय है कि आजमगढ़ जिला वही है जहां के संजरपुर गांव में जिहादी आतंकवादियों की नर्सरी पलने के गंभीर आरोप लगते रहे हैं और दिग्विजय सिंह मुस्लिम वोटों की खातिर आतंकवाद के आरोपी मुस्लिम युवकों के घरों पर जाकर उनके परिजनों को “न्याय” दिलाने का आश्वास देते रहे हैं।
यह कैसा विरोधाभास है कि कांग्रेसनीत सरकार का गृहमंत्री 2008 में हुई इस मुठभेड़ को सही ठहराए और कांग्रेस के एक महासचिव की ओर से उस पर उंगुली उठाई जाए? यह बेहद शर्मनाक है कि केवल वोट की राजनीति के लिए कांग्रेस एक ओर तो मुस्लिम भावनाओं को भड़का रही है, और दूसरी ओर उस मुठभेड़ में मारे गए जांबाज पुलिस अधिकारी मोहनचंद शर्मा की शहादत को कटघरे में खड़ा कर रही है। यह एक गंभीर सवाल है कि दिग्विजय किसके इशारे पर ऐसा कर रहे हैं? राहुल गांधी की उपस्थिति में उनका ऐसा बोलना और सोनिया गांधी व राहुल की ओर से उस पर चुप्पी साधे रहना क्या दर्शाता है? यह कांग्रेस के अंतद्र्वंद्व को भी उजागर करने वाला है कि पार्टी महासचिव ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले और पार्टी हाईकमान सरकार की छीछालेदार होते देखती रहे। इसका सीधा अर्थ है कि दिग्विजय सिंह सोनिया गांधी के इशारे पर यह उत्पात मचाए हुए हैं ताकि मनमोहन सरकार को संदेहों के दायरे में खड़ा किया जा सके और राहुल गांधी के लिए राह बने। यह दो दशकों से जिहादी आतंकवाद का दंश झेल रही देश की जनता और जान की बाजी लगाकर उससे जूझ रहे हमारे बहादुर जवानों को भी आहत करने वाला है। क्या सत्तालिप्सा और वोट की राजनीति ने कांग्रेस को इतना नीचे गिरा दिया है कि वह कर्तव्याकर्तव्य का बोध ही खो बैठे? चुनाव घोषणा से पूर्व सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग के 27 प्रतिशत कोटे से अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुस्लिम पिछड़ों को 4.5 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा करने के बाद अब सरकार के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद चुनाव सभाओं में उन्हें 9 प्रतिशत आरक्षण देने का चुनावी वादा कर रहे हैं, तो क्या सत्ता के लिए कांग्रेस संविधान की भी धज्जियां उड़ाने पर अमादा है जिसमें मजहबी आरक्षण की साफ मनाही है? उस मुस्लिम लीग में और कांग्रेस में क्या फर्क है जिसने मजहबी सत्ता के लिए देश के दो टुकड़े कर दिए थे? कांग्रेस भी मुस्लिम तुष्टीकरण और मजहबी आरक्षण के अस्त्र से एक बार फिर देश को मत-पंथ के आधार पर बांटने का षड्यंत्र कर रही है। देश को इस खतरे को समझने की आवश्यकता है।
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