महबूबा का महाझूठ
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भारत, केन्द्र सरकार और सेना को अपमानित करने वाली
नरेन्द्र सहगल
जम्मू-कश्मीर में पिछले तीन दशक से हिंसा फैला रहे पाकिस्तान प्रशिक्षित जिहादी आतंकवादियों की हमदर्द, प्रदेश के नागरिकों के जानमाल के रक्षक भारतीय सुरक्षा बलों की दुश्मन, घाटी में सक्रिय अलगाववादी ताकतों की सरताज और कश्मीरियों के लिए स्वशासन की मांग कर रहे राजनीतिक दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की एक विशेषता यह भी है कि वह तथ्यों/सच्चाइयों को तोड़-मरोड़कर सामने लाने और झूठ बोलने में भी माहिर हैं। महबूबा का यह शौक आतंकवादियों को बहुत पसंद है। अपने मात्र 13 वर्ष के राजनीतिक सफर में इस कश्मीरी महिला नेता ने कश्मीरियों को भड़काने और बरगलाने में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ी।
महाझूठ
हाल ही में भारत के गृह मंत्रालय ने महबूबा मुफ्ती के एक ऐसे खतरनाक भारत विरोधी बयान पर पर्दाफाश किया है जिससे इस नेता की असली मंशा का परिचय मिलता है। पिछले दिनों हुई राष्ट्रीय एकता परिषद् की बैठक में महबूबा मुफ्ती ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा करने के साथ यह भी कहा कि सन् 2010 में कश्मीर में तैनात भारतीय सुरक्षा बलों ने 'बेकसूर एवं निहत्थे' 120 युवकों को मार डाला था। जबकि वास्तविकता यह है कि निरंतर पांच महीने तक सुरक्षा बलों पर योजनाबद्ध ढंग से करवाई गई पत्थरबाजी में 2900 सुरक्षाकर्मी घायल हुए थे और एक भी 'निहत्था' युवक नहीं मरा था। जिन 120 लोगों के मरने का दुख प्रकट किया जा रहा है वे न तो निहत्थे थे और न ही बेकसूर। सब पत्थरों, सलाखों, हथियारों से लैस थे जो जवानों पर हमला कर रहे थे। इस संदर्भ में महबूबा ने महाझूठ बोला है। कश्मीर की शीतल वादियों में लगी भारत विरोधी आतंकी आग में अपने नापाक इरादों का तेल छिड़क रही महबूबा यहीं तक सीमित नहीं रहीं। उन्होंने अपने इसी भाषण में यह भी जोड़ दिया कि अगर भारत सरकार 120 कश्मीरी युवकों का कत्ल करने वालों को भी फांसी पर लटकाए तो कश्मीरियों को संसद पर हमला करने की योजना के मुख्य सूत्रधार अफजल की फांसी पर कोई भी एतराज नहीं होगा, अन्यथा भारतीय न्याय प्रणाली पर दोगला होने का आरोप सत्य साबित हो जाएगा।
सरकार के लिए खुली चुनौती
भारत के अभिन्न भाग जम्मू-कश्मीर में रहने और राजनीति करने वाली महबूबा मुफ्ती ने इस तरह के बयान अथवा भाषण पहले भी कई बार खुलेआम दिए हैं। भारत, भारत सरकार, संसद, संविधान और सेना को किसी भी तरह कश्मीर घाटी से विदा करने के अपने मजहबी मिशन में लगी हुई इस नेता ने सदैव ही कश्मीरी युवकों को देश के खिलाफ बगावत करने के लिए उकसाया है। यह भी सभी जानते हैं कि इस तरह की भारत विरोधी हरकतें करने वाले कश्मीरी नेताओं पर भारत सरकार, विशेषतया सोनिया निर्देशित डा.मनमोहन सिंह की सरकार ने कभी भी कोई संज्ञान लेना उचित नहीं समझा।
हैरानी की बात तो यह है कि जिस राष्ट्रीय एकता परिषद् में महबूबा ने देश की न्यायिक व्यवस्था का मजाक उड़ाते हुए भारतीय सुरक्षा बलों को संसद पर हमला करने वाले अफजल के समकक्ष खड़ा कर दिया, उस बैठक में प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह, गृहमंत्री पी.चिदम्बरम, जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली भी मौजूद थे।
सुरक्षा बलों का घोर अपमान
सत्ता पक्ष एवं विपक्षी दलों के प्राय: सभी गण्यमान्य नेताओं की उपस्थिति में अलगाववाद समर्थक इस कश्मीरी नेता ने भारत की सेना को कठघरे में खड़ा कर दिया, वह भी इतने बड़े झूठ के साथ। भारतीय सुरक्षा जवानों पर उन कश्मीरी युवकों की हत्या का संगीन आरोप लगाया गया है, जिन्होंने बकायदा आतंकियों के साथ मिलकर सुरक्षा जवानों पर पांच महीने तक हमले किए हैं। इन सुरक्षा जवानों में सीआरपीएफ के साथ राज्य पुलिस के जवान भी थे। इन जवानों ने अपनी रक्षा के लिए कहीं-कहीं जवाबी कार्रवाई की थी। अगर इनका इरादा उपद्रवियों को मारने का होता तो पांच महीने में हजारों लोग मर जाते। यह भारत सरकार और सुरक्षा बलों का अपमान नहीं तो और क्या है? इस तरह का बयान किसी और देश में दिया होता तो बयान देने वाले को देश को नीचा दिखाने के जघन्य अपराध में जेल के सींखचों में सील कर दिया जाता।
परंतु भारत में तो इस संगीन भाषण को मीडिया सहित सभी सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों और सभी दलों और संगठनों ने अनसुना कर दिया है। महबूबा ने यह भी कहने का दुस्साहस किया कि 'आपकी सेना में ऐसे लोग हैं जो घपले घोटालों को अंजाम देते हैं, आपके पास एक ऐसा जनरल है, जो अपने जन्मप्रमाण पत्र के मामले में फंसा हुआ है।' इस तरह के तीखे व्यंग्यबाणों से भारतीय सेना की गरिमा को छलनी करने वाली महबूबा के विरुद्ध कार्रवाई क्यों नहीं की गयी?
अब याद आए महात्मा गांधी
अपने इसी भाषण में महबूबा मुफ्ती ने कश्मीर घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को अंजाम देने वाले उन हथियारबंद कातिलों की कब्रों का जिक्र भी किया था जो बम विस्फोटों, आतंकी हमलों अथवा सेना के साथ आमने-सामने की लड़ाई में मारे गए, महबूबा बोलीं कि कश्मीर में 2700 बेनाम कब्रे हैं। कश्मीर में कभी भी न्यायिक व्यवस्था ने काम नहीं किया। 'ऐसा लगता है कि जैसे यह कब्रें सोमालिया में हों-नहीं यह तो गांधी के भारत में है-गांधी के कश्मीर में जहां गांधी भी आए थे।'
अपने इस तरह के अत्यंत जज्बाती परंतु बिना सिर पैर के तथ्य रहित भाषण में महबूबा ने जिन 2700 कब्रों की बात कही है वह श्रीनगर के सबसे बड़े कब्रिस्तान में बनी हुई हैं, किसी जंगल अथवा पहाड़ की गुफा में नहीं। यह वही कब्रें हैं जहां कश्मीर के प्राय: सभी सत्ताधारियों, विपक्षी नेताओं, अलगाववादी नेताओं, मजहबी संगठनों के रहनुमाओं और आतंकी कमांडरों ने फातिहे पढ़ रखे हैं। जाहिर है कि इन कब्रों में स्वयं कश्मीर के नेताओं तथा एक विशेष समुदाय के लोगों की मौजूदगी में उन आतंकियों को दफनाया गया है, जिन्होंने आजादी के नाम पर हजारों निहत्थे और बेकसूर लोगों का खून बहाया है। यह सब कुछ अच्छी तरह से जानती हैं महबूबा।
अलगाववादी सोच
कश्मीरियों और कश्मीर को भारत से 'आजाद' करवाने के स्वप्न देख रहीं महबूबा की भाषण शैली एवं ढंग ऐसा था मानो वह किसी दूसरे मुल्क के नेताओं के सामने 'कश्मीर राष्ट्र' में चल रहे 'स्वतंत्रता संग्राम' पर बोल रही हैं। महबूबा द्वारा इस्तेमाल किए 'आपके लोग, आपका जनरल, आपका न्याय, आप उदाहरण स्थापित करें, कश्मीरी युवक, कश्मीरी देख रहे हैं, अफजल कश्मीर' शब्दकोष से तो यही लगता है कि कश्मीर एक 'आजाद मुल्क' है और भारत सरकार एवं सेना ने उस पर कब्जा किया हुआ है।
उल्लेखनीय है कि महबूबा के इस भाषण को गृह मंत्रालय कभी भी सामने न लाता यदि विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने पिछले वर्ष अमदाबाद में मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आयोजित तीन दिन के उपवास सम्मेलन में यह रहस्योद्घाटन न किया होता कि महबूबा मुफ्ती ने अपने इसी भाषण में नरेन्द्र मोदी की तारीफ की थी। सभी जानते हैं कि सुषमा स्वराज पर झूठ का आरोप लगाते हुए महबूबा ने प्रतिक्रिया व्यक्त की थी कि उसने नरेन्द्र मोदी की कभी प्रशंसा की ही नहीं।
महबूबा की खुली पोल
सुषमा स्वराज ने महबूबा की प्रतिक्रिया को मात्र एक राजनीतिक नाटक करार देते हुए गृहमंत्रालय से उनके भाषण को सार्वजनिक करने के लिए कहा था। तब जाकर गृह मंत्रालय ने न केवल महबूबा द्वारा की गई नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा वाले अंश, अपितु पूरे भाषण को ही सबके सामने लाकर कश्मीर के लिए 'स्वशासन' चाहने वाली इस अलगाववादी राजनीतिक नेता की पोल पट्टी खोल दी।
सरकार, सेना, न्यायालय, नेता प्रतिपक्ष और राष्ट्रीय एकता परिषद् की बैठक में मौजूद सभी गण्यमान्य नेताओं के सम्मान पर चोट पहुंचाने वाली महबूबा के भाषण पर अभी तक किसी ने ध्यान नहीं दिया। न तो नेता प्रतिपक्ष ने मानहानि का कोई मुकदमा दायर किया और न ही भारत सरकार विशेषतया, गृहमंत्रालय ने कश्मीर में अपना कर्तव्य निभा रहे सैनिकों पर लगे मनगढ़ंत आरोप और उनके कार्य पर किए गए अपमानजनक कटाक्षों का संज्ञान लिया।
खुला देशद्रोह
सर्वविदित है कि यह वही महबूबा मुफ्ती हैं जिन्होंने तीन वर्ष पूर्व जम्मू सहित सारे देश में चले श्री अमरनाथ भूमि आंदोलन के समय कहा था कि बालटाल (कश्मीर घाटी) में हिन्दू यात्रियों को सौ एकड़ जमीन देने से हमारी पहचान पर खतरा हो जाएगा। उस समय हुर्रियत कांफ्रेंस तहरीके हुर्रियत, सभी अलगावादी संगठनों, आतंकी कमांडरों द्वारा गाए जा रहे 'आजाद कश्मीर राष्ट्र' के राग में अपने स्वर मिलाते हुए महबूबा ने भारत की सरकार ओर सेना को जमकर कोसा था।
उस समय कश्मीर के कई शहरों में फहराए गए पाकिस्तानी झंडों और जलाए गए तिरंगे से उस चौकड़ी का पर्दाफाश हो गया था जो अक्सर भारतीय सुरक्षा बलों को हटाने, आतंकियों को जेलों से छोड़ने, भारतीय कश्मीर और पाक अधिकृत कश्मीर के मध्य नियंत्रण रेखा को मिटाने, कश्मीर पर भारत का संवैधानिक वर्चस्व समाप्त करने और 'आजादी-स्वशासन-स्वायत्तता' जैसे राग अलापती रहती है। यह तो खुला देशद्रोह है।
आतंकियों के साथ लगाव
महबूबा मुफ्ती जिस कश्मीर केन्द्रित राजनीतिक दल की अध्यक्ष हैं उसके संस्थापक मुफ्ती मुहम्मद सईद (महबूबा के पिता) जब देश के गृहमंत्री थे, उनके आदेशानुसार सात दुर्दांत आतंकियों को डा.रूबिया (महबूबा की बहन) की रिहाई के बदले बिना शर्त छोड़ दिया गया था। आतंकियों ने रूबिया का अपहरण करके उसे बंधक बना लिया था। उस समय इस चर्चा की किसी ने कोई परवाह नहीं की थी कि रूबिया का अपहरण कांड महज एक 'फ्रैंडली मैच' था जो जेलों में बंद आतंकी कमांडरों को छोड़ने के लिए खेला गया था। आज भी महबूबा मुफ्ती की पार्टी ऐसे ही आतंकियों को छोड़ देने का शोर मचा रही है।
सर्वविदित है कि महबूबा की अध्यक्षता वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी जब कांग्रेस के समर्थन से जम्मू-कश्मीर की सत्ता पर काबिज हुई थी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद और स्वयं महबूबा की पहल पर अस्तित्व में आई 'हीलिंग टच' नीति के तहत आतंकियों को छोड़ने, उनका कथित समर्पण करवाने और उन्हें आर्थिक मदद देकर उनके कारोबार स्थापित करवाने की एकतरफा मुहिम शुरू की गई थी जिसका अर्थ था कि पहले हथियार उठाओ, हिंसा करो, फिर समर्पण का नाटक करके सरकार से आर्थिक मदद लो और ऐश करते हुए भारत के विरुद्ध आवाज को बुलंद करते रहो।
घुटने न टेके सरकार
यहां एक महत्वपूर्ण प्रश्न खड़ा होता है कि आखिर कब तक भारत सरकार इन अलगाववादियों, उनके कुकृत्यों और उनके अपमानजनक बयानों, भाषणों को बर्दाश्त करती रहेगी? कश्मीर में सभी पाकिस्तान प्रेरित और 'आजादी' समर्थक नेता देश की राजधानी दिल्ली समेत बंगलौर, कोलकाता, चंडीगढ़ और जम्मू-जैसे बड़े शहरों में जाकर भारत के विरुद्ध जहर उगल सकते हैं। परंतु यही लोग कश्मीर की धरती पर चार लाख से ज्यादा कश्मीरी पंडितों को अपने ही घरों में रहने और जीने का हक भी नहीं देते।
कितनी अजीब बात है कि पिछले बीस वर्ष में इन अलगाववादी तत्वों और हिंसक आतंकियों ने चार लाख हिन्दुओं को उजाड़ने के साथ एक लाख के करीब निर्दोष भारतीय नागरिकों व जवानों की जान ले ली है, जबकि इनका प्रभाव जम्मू कश्मीर के 22 जिलों में से मात्र कश्मीर घाटी के छ:जिलों तक ही सीमित है। इस सीमावर्ती प्रदेश के 80 प्रतिशत नागरिक इन भारत विरोधी तत्वों का समर्थन नहीं करते। फिर भी भारत सरकार ने अलगाववादियों को ही जम्मू-कश्मीर के प्रतिनिधि मानकर उनके आगे घुटने टेकने की नीति अपना रखी है।
हमारी सरकार की यही कमजोर और कायर मानसिकता महबूबा मुफ्ती जैसी पाकिस्तान-परस्त शक्तियों को संरक्षण दे रही है। यदि केन्द्र सरकार इन अलगाववादियों पर शिकंजा कस दे तो जम्मू कश्मीर की 80 प्रतिशत जनता खम ठोक कर खड़ी हो जाएगी। परंतु हमारी सत्तालोलुप सरकार इतनी हिम्मत जुटाएगी इसमें संदेह है। n
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