मधुमेह एवं अंग रक्षा
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मधुमेह एवं अंग रक्षा

by
Dec 31, 2011, 12:00 am IST
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स्वास्थ्य

दिंनाक: 31 Dec 2011 15:32:56

स्वास्थ्य

डा. हर्ष वर्धन

 एम.बी.बी.एस.,एम.एस. (ई.एन.टी.)

अब तक हमने मधुमेह तथा इससे होने वाले शरीर के दुष्प्रभावों और इस रोग में हितकारी योग आदि के बारे में चर्चा की। इस अंक में हम मधुमेह रोग में शरीर के विभिन्न अंगों में होने वाली परेशानियों में सुरक्षा कैसे करें, इस पर चर्चा करेंगे। अक्सर ऐसा होता है कि शरीर में इस रोग की मौजूदगी के बावजूद यदि शरीर के किसी अंग में किसी प्रकार की परेशानी उत्पन्न होती है तो अधिकांश लोग अनभिज्ञतावश अथवा जानबूझकर उसे नजरंदाज कर देखते हैं, जिसका परिणाम बहुत ही घातक होता है। धीरे-धीरे वह अंग समूचे शरीर में विकार पैदा करने लगता है और एक समय सीमा के बाद उस परेशानी का उन्मूलन बहुत कठिन हो जाता है। निम्नलिखित शरीर के अंगों एवं मधुमेह के कारण होने वाले विकार इस  प्रकार हैं-

हृदय

हृदय शरीर का वह महत्वपूर्ण अंग है जो हर धड़कन के साथ शरीर के प्रत्येक अंग में एक साथ रक्त पहुंचाता है तथा यही रक्त आक्सीजन का स्रोत है। दिल शरीर में रक्त की मांग और आपूर्ति के नियम को संतुलित बनाये रखता है। शरीर को अधिक रक्त की आवश्यकता होने पर रक्त की विशेष नलियां (कोरोनरी आर्टरी) अस्थायी रूप से चौड़ी होकर रक्त आपूर्ति कर देती हैं। यही क्रिया जब बाधित होती है तब दिल के दौरे की संभावना बढ़ जाती है।

मधुमेह में हृदय को सबसे अधिक खतरा रहता है। मुख्य तौर पर यह समझना चाहिए कि मधुमेह पीड़ारहित दिल के दौरे की जननी है। हृदय की दीवारों को आक्सीजन मिलना कम हो जाता है तो सीने में दर्द, सांस फूलने व भारीपन होने की शिकायत होने लगती है। इस परेशानी की गंभीर चिन्ता न की गयी और इसे नजरंदाज कर दिया गया तो दिल का दौरा होने की प्रबल संभावना बन जाती है। मधुमेह रोगियों को विशेष ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि ज्यादातर मरीजों को सीने में दर्द की शिकायत नहीं रहती है और सीधे ही उन्हें दिल का दौरा पड़ता है। यह ध्यान देने योग्य है कि थोड़ा सा तेज चलने पर सांस फूलने लगे या गर्दन या बायें हाथ या बायें जबड़े में दर्द होना शुरू हो जाए तो इसका अर्थ है कि दिल की दीवारों को जाने वाली शुद्ध खून की आपूर्ति बाधित हो रही है। मधुमेह रोगी को दिल के बैठने (सिंकिग) का अनुभव होने पर सचेत हो जाना चाहिए। हृदय की क्रिया सामान्य रहे, इसके लिए आवश्यक है कि नियमित व्यायाम के साथ-साथ चिकित्सक के परामर्शानुसार जीवनशैली में परिवर्तन, आवश्यक जांच आदि करवायी जाए।

कमर का दर्द

मधुमेह रोगियों में अक्सर यह पाया जाता है कि उन्हें मोटापे के साथ-साथ कमर दर्द की शिकायत रहती है। यह दर्द ऐसा होता है कि जब रोगी चलना फिरना शुरू कर देता है तब यह दर्द भी बढ़ने लगता है और जब वह चलना बंद कर देता है तब यह दर्द भी कम होना शुरू हो जाता है। अक्सर इस दर्द को लोग सियाटिका या लम्बर स्पॉन्डिलोसिस मान लेते हैं और हड्डी रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेते हैं परन्तु इससे उन्हें स्थायी लाभ नहीं मिल पाता है। मधुमेह रोगियों में इस दर्द का ज्यादातर कारण होता है-कमर और जांघ को शुद्ध रक्त की आपूर्ति में कमी। अगर बैठे-बैठे कमर दर्द की शिकायत हो तो इसका कारण है शुद्ध रक्त की आपूर्ति में भारी कमी हो रही है। इसे वेस्ट (ध्र्ठ्ठत्द्मद्य) एंजाइना कहा जाता है। यदि इसे नजरंदाज किया गया तो सैक्स शक्ति में भारी कमी तथा पैरों में गैंगरीन के खतरे की संभावना बढ़ जाती है।

मधुमेह रोगी कमर दर्द में बिना चिकित्सक के परामर्श के दर्द निवारक गोलियों का सेवन करने से परहेज करें। कमर दर्द का सही इलाज करवाने के बजाय दर्द निवारक गोलियों का सेवन करने से एक तरफ जहां पैरों को खतरा बना रहता है दूसरी तरफ गुर्दे को नुकसान होने से इसके फेल हो जाने की संभावना बढ़ जाती है। अत: मधुमेह रोगियों को कमर दर्द की परेशानी है तो उन्हें हड्डी के साथ-साथ हृदय रोग विशेषज्ञ से भी सलाह लेनी चाहिए।

पैरों में दर्द और झनझनाहट

मधुमेह रोगियों में यदि थोड़े दूर चलने पर पैरों व टांगों में दर्द प्रारम्भ हो जाता हो तथा रुक जाने पर दर्द समाप्त हो जाता हो और इसके अलावा यह भी हो सकता है कि पैरों, तलवे और अंगुलियों में हमेशा झनझनाहट बनी रहती हो और खासकर सर्दी के मौसम में बढ़ जाती हो। कभी-कभी रात को बिस्तर पर सोते समय टांगो व पैरों में दर्द शुरू हो जाता हो, जिसके कारण पूरी रात नींद न आ पाती हो परन्तु यह दर्द पैर लटकाने पर अथवा थोड़ा सा चलने पर कम हो जाता हो। ऐसा भी होता है कि यह दर्द हमेशा बना रहता है। यह दर्द कई कारणों से होता है। प्रथम कारण न्यूरोपैथी है। पैरों की मांसपेशियों में न्यूरोपैथी के कारण हल्का फालिज का असर हो जाता है। इस कारण पैरों व हड्डियों पर अनावश्यक दबाव पड़ने लगता है। जोड़ों का क्रियाकलाप क्षीण हो जाता है। इन सबका असर यह होता है कि पैरों में दर्द और झनझनाहट की शिकायत हमेशा बनी रहती है। दूसरा कारण यह है कि पैरों को शुद्ध रक्त ले जाने वाली रक्त की नली में कैल्शियम एवं चर्बी निरंतर जमा होने के कारण संकुचन आ जाता है, जिसके कारण रक्त की आपूर्ति में बाधा पहुंचती है। इस कारण मधुमेह के मरीजों में यह दर्द शुरू हो जाता है। लम्बे समय से मधुमेह रोग से ग्रसित होना, धूम्रपान, रक्त में शुगर लेबल अनियंत्रित होना, आंखों में कम रोशनी होना, पेशाब में एल्ब्युमिन का होना, पैरों में झनझनाहट एवं संवेदनहीनता (सुन्न) का होना, पैर में रक्त की आपूर्ति का कम होना आदि ऐसे लक्षण हों तो मधुमेह रोगियों को लापरवाही नहीं करनी चाहिए।

उपरोक्त लक्षणों के होने पर की गयी लापरवाही पैरों के कटने का परोक्ष-अपरोक्ष कारण बनती हैं। मधुमेह रोगियों के पैरों पर खतरा सदैव बना रहता है क्योंकि इस बीमारी में होने वाली ऑटोनोमिक न्यूरोपैथी के कारण पसीने को उत्पन्न करने वाली और त्वचा को चिकना बनाये रखने वाली ग्रंथियां ठीक प्रकार से कार्य करना बंद कर देती हैं। इस कारण पैरों की त्वचा अत्यधिक खुश्क हो जाती है। पैरों में संक्रमण होने के कारण चटकन, फटन और गड्ढे बन जाते हैं। जल्दी घाव बनने और संक्रमण अंदर तक पहुंचने के कारण, इसे नियंत्रित करने में अत्यधिक परेशानी होती है।  अत: मधुमेह रोगियों को उपरोक्त परेशानी महसूस होने पर तुरन्त किसी वैस्क्युलर अथवा कार्डियो वैस्क्युलर सर्जन से परामर्श लेना चाहिए।

स्ट्रोक (फालिज)

अचानक बेहोशी अथवा फालिज या दोनों का एक साथ आक्रमण ही स्ट्रोक कहलाता है। कुछ समय के पश्चात् बेहोशी ठीक हो जाती है परन्तु फालिज का असर हाथ या पैर पर बना रहता है। यह बीमारी पहले बुजुर्ग लोगों को ज्यादा होती थी परन्तु मधुमेह के कारण यह बीमारी किसी को किसी भी उम्र में अपने चंगुल में ले सकती है। मधुमेह में ज्यादातर वृद्ध लोग, रक्त चाप (ब्लड प्रेशर) के मरीज, हृदय रोगी एवं टी.आई.ए. (ट्रांसियन्ट इस्चीमिक अटैक-यह छोटा स्ट्रोक होता है। इसमें क्षणिक बेहोशी और कमजोरी आती है तथा 24 घंटे से ज्यादा नहीं रुकती तथा मरीज पुन: बाह्य तौर पर सामान्य हो जाता है) के मरीज इस बीमारी के शिकार होते हैं। इसके अतिरिक्त गर्दन में स्थित आरटरी की दीवारों में चर्बी व कैल्शियम का जमाव (एथिरोस्क्लेरोसिस) होने के कारण स्ट्रोक हो जाता है और परिणाम यह होता है कि मस्तिष्क को शुद्ध रक्त की आपूर्ति में कमी हो जाती है तथा चर्बी के टुकड़े मस्तिष्क के अंदर स्थित खून की नलियों में पहुंचकर उसे जाम कर देते हैं तथा कुछ हिस्सों को स्थायी तौर पर नुकसान कर देते हैं। इसके अलावा स्ट्रोक के अन्य कारण हैं-गर्दन की रक्त नलियों में अनावश्यक बाहरी दबाव या रक्त की नली की संरचना में जन्म से विकार या नली की दीवारों में अनावश्यक सूजन। एक प्रमुख कारण यह भी है कि हृदय के किसी कोने में पड़ा रक्त का कतरा, जिसके टुकड़े हृदय से निकलकर गर्दन की नलियों से होते हुए मस्तिष्क में पहुंच कर वहां खून की नली में जाकर फंस जाते हैं। गर्दन की नलियों की रुग्णता तथा कैरोटिड नली (हृदय से निकलने वाली खून की वह नली जो मस्तिष्क को शुद्ध रक्त पहुंचाती है) में खून का कम प्रवाह भी स्ट्रोक के लिए जिम्मेदार है।

मधुमेह के मरीजों को हल्का सा चक्कर या कमजोरी आने की शिकायत हो तो दिमाग के डॉक्टर (न्यूरोलॉजिस्ट) के साथ हृदय रोग विशेषज्ञ से भी परामर्श लेना उचित होगा। गर्दन में स्थित कैरोटिड नली की जांच करवायें। यदि स्ट्रोक हो चुका है और इलाज न्यूरोलॉजिस्ट से चल रहा है तो उनसे आग्रह करना चाहिए कि वह किसी वैस्क्युलर सर्जन को अवश्य दिखला दें। इससे भविष्य में दोबारा स्ट्रोक होने की संभावना से बचाव हो सकेगा।

फेफड़े का इंफेक्शन

मधुमेह में फेफड़े के संक्रमण अर्थात टी.बी. अथवा क्षयरोग की गुंजाइश ज्यादा रहती है। क्योंकि टी.बी. के कीटाणु मधुमेह रोगियों में प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाने के कारण आसानी से प्रवेश कर लेते हैं। यदि छाती में प्ल्यूरसी या पानी इकट्ठा हो गया है तो तुरन्त किसी फिजीशियन को दिखाकर टी बी का इलाज शुरू करवायें। यदि छाती में इकट्ठे हुए पानी की मात्रा आधा लीटर से अधिक है तो शीघ्र किसी चेस्ट सर्जन से परामर्श लें, क्योंकि इस पानी को यदि शीघ्र निकाला नहीं गया तो मधुमेह के कारण मवाद बन सकता है।

गुर्दा

अक्सर यह पाया जाता है कि मधुमेह रोगी रक्त चाप से पीड़ित होते हैं। जब गुर्दे को शुद्ध रक्त पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है, तब गुर्दे के अंदर स्थित अंगों (जक्स्ट्रा ग्लोमेरूलर आपरेटस) से हमेशा रिसने वाला पदार्थ “रेनिन” की मात्रा बढ़ने लगती है। परिणामस्वरूप रक्त चाप के लिए जिम्मेदार “रेनिन एंजियोटेन्सिन” रक्त में सामान्य से अधिक क्रियाशील हो जाता है और रक्त चाप बढ़ जाता है।

इसमें महत्वपूर्ण जांच खून में यूरिया और क्रियेटिनिन की मात्रा का निर्धारण है। जांच में इन दो तत्वों की बढ़ी हुई मात्रा पायी जाती है तो इसका सीधा अर्थ कि गुर्दे में कोई परेशानी है।       दूसरी महत्वपूर्ण जांच है खून में इलेक्ट्रोलाइट अर्थात सोडियम व पोटैशियम की मात्रा की जानकारी प्राप्त करना। मधुमेह के साथ यदि उच्च रक्तचाप भी है तो यह संभव है कि इसका संबंध गुर्दे से हो। इसके लिए आवश्यक है कि वैस्कुलर सर्जन से सलाह लें तथा चिकित्सक द्वारा सुझाये गयी जांच को करवायें।

उपरोक्त सारी जानकारियां मधुमेह रोगियों को ध्यान में रखते हुए दी गयी हैं। अधिकतर यह देखने में आता है कि मधुमेह से पीड़ित लोग ऊपर दी गयी परेशानियों को महसूस करने के बावजूद उसे गंभीरता से नहीं लेते हैं अथवा अपने अनुसार दवाइयां लेते रहते हैं, जो गलत है।

शारीरिक व्यायाम, योग, उचित खान-पान के साथ-साथ आवश्यक परहेज एवं शरीर में उत्पन्न होने वाली परेशानियों के प्रति सतर्कता तथा संबंधित अंगों में होने वाली तकलीफ में संबंधित अंगों  विशेषज्ञ चिकित्सकों से परामर्श के माध्यम से मधुमेह रोग में सामान्य जीवन जीया जा सकता है परन्तु यदि इलाज के संदर्भ में लापरवाही की जाए  तो यह बीमारी दीमक की भांति धीरे-धीरे शरीर को खोखला कर देती है। द

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